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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 22 अगस्त 2024 (17:40 IST)

अजा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा? जानिए इसके फायदे

अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि और पारण मुहूर्त सहित उपवास रखने के फायदे

अजा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा? जानिए इसके फायदे - Aja Ekadashi vrat ke fayde
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इस बार 29 अगस्त 2024 गुरुवार के दिन अजा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस एकादशी का पुराणों में महत्व बताया गया है। आओ जानते हैं व्रत रखने का महत्व, पूजा विधि और पूजन का शुभ मुहूर्त।
 
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 29 अगस्त 2024 को सुबह 01:19 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त- 30 अगस्त 2024 को सुबह 01:37 बजे तक।
पारण मुहूर्त : 30 अगस्त को सुबह 07:49 से सुबह 08:31 के बीच।
 
अजा एकादशी रखने के फायदे:-
  1. धार्मिक मान्यतानुसार यह दिन भगवान की कृपा पाने और इस एकादशी का व्रत करने से पिशाच योनि छूट जाती है। 
  2. इस एकादशी व्रत से जप, दान तथा यज्ञ आदि करने का फल सहजता से ही प्राप्त हो जाता है तथा हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करने का वरदान मिलता है। 
  3. जया या अजा एकादशी व्रत करने से जीवन की हर तरह की परेशानियों से मुक्ति तथा जाने-अनजाने में हुए सभी पाप खत्म हो जाते हैं। 
  4. यह एकादशी व्रत मोक्ष मिलता है तथा दोबारा मनुष्य जन्म नहीं लेना पड़ता। अत: इसे जया एकादशी भी कहा जाता है। 
 
जया अजा एकादशी पूजा विधि:-
  • स्कंदपुराण के अनुसार जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन, व्रत और उपवास रखकर तिल का दान और तुलसी पूजा का विशेष महत्व है।
  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री विष्‍णु का ध्‍यान करें।
  • तत्पश्चात व्रत का संकल्‍प लें।
  • फिर घर के मंदिर में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्‍णु की प्रतिमा स्‍थापित करें।
  • एक लोटे में गंगा जल लेकर उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाएं।
  • अब इस लोटे से जल की कुछ बूंदें लेकर चारों ओर छिड़कें।
  • फिर इसी लोटे से घट स्‍थापना करें।
  • अब भगवान विष्‍णु को धूप, दीप दिखाकर उन्‍हें पुष्‍प अर्पित करें।
  • अब एकादशी की कथा का पाठ पढ़ें अथवा श्रवण करें।
  • शुद्ध घी का दीया जलाकर विष्‍णु जी की आरती करें। 
  • श्री विष्णु के मंत्रों का ज्यादा से ज्यादा जाप करें। 
  • तत्पश्चात श्रीहरि विष्‍णु जी को तुलसी दल और तिल का भोग लगाएं।
  • विष्‍णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • शाम के समय भगवान विष्‍णु जी की पूजा करके फलाहार करें।
  • श्री हरि विष्णु के भजन करते हुए रात्रि जागरण करें।
  • अगले दिन द्वादशी तिथि को योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दें।
  • इसके बाद स्‍वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
  • इस दिन व्रत और पूजा के साथ-साथ गरीब लोगों को गर्म कपड़े, तिल और अन्न का दान करने से कई यज्ञों का फल प्राप्त होता है।