मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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क्‍या 'देवदूतों' पर थूकना जायज है?

क्‍या 'देवदूतों' पर थूकना जायज है? - corona in indore
जो डॉक्‍टर किसी की जान बचाता है, उसे आमतौर पर लोग अपना भगवान ही मानते हैं। ठीक है, आप उन्‍हें भगवान मत मानिए, लेकिन जो शख्‍स आपका इलाज करने के लिए आपके घर के दरवाजे पर आया है उसे डॉक्‍टर तो मानि‍ए।
 
चलि‍ए उसे आप उसे डॉक्‍टर भी मत मानि‍ए कम से कम उसे इंसान तो समझि‍ए। इंदौर शहर में जो तस्‍वीरें सामने आई हैं, वे बेहद शर्मनाक हैं। कोई भी अपने घर आए शख्‍स पर थूकने की इजाजत नहीं देता है। तो फिर धरती पर मानव सेवा में लगे इन देवदूतों के साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है?

संकट की घड़ी में इंसान के लिए सबसे बड़ा सहारा ईश्वर होता है, उसे हम किसी भी नाम से पुकारें वो हमेशा हमें हर मुसीबत से उबारता है। कहते हैं कि ईश्वर हर जगह नहीं पहुंच पाता है इसलिए उसने कुछ फ़रिश्ते बनाए जो इंसान की शक्ल में मदद के लिए आते हैं। डॉक्‍टर भी आपके घर फरिश्ता बनकर आए थे। लेकिन आप फरिश्तों पर थूकने लगे, उन्‍हें पत्‍थर मारने लगे।

इस समय कोरोना वायरस ने पूरी इंसानियत को ख़तरे में डाल दिया है, लेकिन हर मुश्किल से बच निकलने की इंसानी फितरत ने हज़ारों सालों से मानव जाति को संभाले रखा है लेकिन इंदौर के अमन-पसंद बाशिदों ने सबसे मुश्किल समय में एक दो नहीं लगातार तीसरी बार ऐसी हरकतें कीं जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है।

यकीन करना मुश्‍कि‍ल है कि इसी शहर ने 3 बार सबसे साफ शहर का खिताब अपने नाम किया है, ऐसी गंदी सोच तो हमारी कभी नहीं रही। आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग की लाख अपीलों के बाद भी लोग यहां थाली और ताली पीटने के जत्थों में उमड़े, मानो सब पता होने पर भी नियम न मानने की कसम खा रखी हो। लेकिन, अपनी जान जोखिम में डालकर हमारी जान बचाने निकले लोगों से बदसलूकी कहां तक जायज है। 
पहले ही इंदौर और इंदौरियों की अच्छी खासी फ़जीहत हो चुकी है, अब भाई बस करो, इस मुश्किल समय में एक दूजे से लड़ो मत, सिर्फ इस महामारी से लड़ो वरना कहने की जरूरत नहीं कि कोई धर्म, मज़हब मानने वाला इंसान ही नहीं बचेगा।
 
याद कीजिए वो वक्‍त। जब भी देश में सांप्रदायिक संकट पैदा हुआ है, हिन्दू और मुस्‍ल‍िम दोनों समुदायों की तरफ से सौहार्द को बनाए रखने के उदाहरण पेश किए गए हैं। 
 
ठीक है यह मान लेते हैं कि रानीपुरा और टाटपट्टी बाखल में रहने वाले तिहाड़ी काम करने वाले लोग हैं, वहां जागरूकता की कमी है। लेकिन क्‍या दुनियाभर में कोरोना की तबाही किसी को नजर नहीं आती? लोगों में आपसी मतभेद हो सकते हैं, एक दूसरे के प्रति गुस्सा हो सकता है, लेकिन उसके लिए यह वक्त सही नहीं है। अभी तो कोरोना के खिलाफ एकजुटता दिखाने का वक्त है। क्योंकि यह घातक वायरस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बच्चे, बूढ़े, जवान, पुरुष, महिला किसी को भी नहीं बख्शता।
 
माफ कीजिए, जो सामने दिख रहा है, वो बेहद निंदनीय कृत्‍य है। देशभर में इसे लेकर बहस हो रही है और इसकी आलोचना हो रही है। ऐसे वक्‍त में जब संक्रमण को पूरे देश में फैलने से बचाना है। कोरोना विरोधी इस मुहिम में किसी का भी सहयोग नहीं करना बेहद दुखद है।
 
यदि कहीं विश्वास का संकट दिखता भी है तो प्रशासन धर्मगुरुओं के माध्यम से अपील जारी करे, उन्हें उन लोगों के बीच में ले जाए, ताकि वे बीमारी की गंभीरता को समझें। क्योंकि यह वायरस किसी वर्ग विशेष या लिंग विशेष को अपना शिकार नहीं बनाता, बल्कि यह तो सिर्फ इंसान को ही अपनी गिरफ्त में लेता है। ...और इंसान भी तभी बचेगा, जब इंसानियत बचेगी। 
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