• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. विजयादशमी
  4. Kullu Dussehra festival
Written By

कुल्लू का दशहरा उत्सव : जानिए ऐतिहासिक महत्व

कुल्लू का दशहरा उत्सव : जानिए ऐतिहासिक महत्व - Kullu Dussehra festival
दशहरा, विजयादशमी त्योहार के नाम से भी विख्यात रहा है। विजयादशमी भगवान श्रीराम की विजय के रूप में मनाया जाए या दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा-आराधना का उत्सव रहा है। 


 
दशहरा हर्ष और उल्लास से मनाया जाने वाला विजय का पर्व है, जो विश्व को यह शिक्षा देता है कि बुराई चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, परंतु सत्य एवं अच्छाई के समक्ष स्थापित नहीं हो सकती, पाप का अंत होना तय होता है। वह अधिक समय तक अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकता अत: दशहरा मनाते हुए हमें इस महत्वपूर्ण तथ्य का बोध अवश्य होता है। 
 
कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां इस त्योहार को दशमी कहते हैं। आश्विन महीने की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है।
 
देते हैं यज्ञ का न्योता : कुल्लू के दशहरे में आश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धालपुर घाटी में रघुनाथजी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं। राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।
 
रथयात्रा और जुलूस : रथयात्रा का आयोजन होता है। रथ में रघुनाथजी तथा सीता व हिडिंबाजी की प्रतिमाओं को रखा जाता है। रथ को एक से दूसरी जगह ले जाया जाता है, जहां यह रथ 6 दिन तक ठहरता है। इस दौरान छोटे-छोटे जुलूसों का सौंदर्य देखते ही बनता है। 
 
मोहल्ला उत्सव का आयोजन : उत्सव के 6ठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आकर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं। रघुनाथजी के इस पड़ाव पर सारी रात लोगों का नाच-गाना चलता है। 7वें दिन रथ को बियास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंकादहन का आयोजन होता है।
 
निराली छटा बिखेरता उत्सव :- इसके पश्चात रथ को पुन: उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथजी को रघुनाथपुर के मंदिर में पुन:स्थापित किया जाता है। इस तरह विश्वविख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है। कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है।
 
दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। भारत में विजयादशमी का पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है। भारत के ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां दशहरे की धूम देखते ही बनती है। कुल्लू के साथ-साथ मैसूर का दशहरा काफी प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत तथा इसके अतिरिक्त उत्तर भारत, बंगाल इत्यादि में भी विजयादशमी पर्व को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।