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Written By ND

आँखों की हर साल कराएँ जाँच

आँखों की हर साल कराएँ जाँच
- डॉ. सुधीर महाशब्दे,
नेत्ररोग विशेषज्ञ, सचिव,नेत्र चिकित्सालय इंदौर
ND
डायबिटीज से पीड़ितों को अपने पूरे शरीर की हर साल जांच कराना जरूरी होता है। इसकी वजह यह है डायबिटीज एक सायलेंट किलर है जो शरीर के अवयवों पर चुपचाप हमला करता रहता है। इसके कारण जो अपूरणीय क्षति होती है उसे नियमित जांचों से टाला जा सकता है। डायबिटीज का आँखों पर स्थाई प्रभाव पड़ता है। आंँखों के परदे की नाजुक नलिकाओं की सतह खून की अधिकता के कारण नष्ट हो जाती हैं। जो खून नलिकाओं में रहना चाहिए वह बहकर बाहर आ जादा है। यदि इसे प्राथमिक अवस्था में ही पकड़ लें तो आँखों को स्थाई क्षति सेबचाया जा सकता है लेकिन इसेे पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता

डायबिटीज के मरीजों की आँखों के परदे के पीछे की महीन रक्त नलिकाओं के फूटने अथवा उनमें खून जमने के कारण परदा क्षतिग्रस्त हो जाता है। क्षतिग्रस्त नलिकाओं से द्रव रिसकर पुतली के सामने आ जाता है जिससे दिखना कम होने लगता है। यदि इसका इलाज जल्दी शुरु होजाए तो मरीज की नजर और ज्यादा क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। दरअसल रक्त नलिकाओं के फट जाने से परदे को जो क्षति होती है उसे कभी भी ठीक नहीं किया जा सकता है। लेजर मशीन से इलाज के बाद केवल जितनी दृष्टि शेष है उसे ही बचाया जा सकता है।

महत्व जल्दी इलाज का

डायबिटीज के कारण आँखों में होने वाली क्षति का जितना पहले पता लगेगा मरीज के लिए उतना ही अच्छा है क्योंकि कई बार मरीज की दृष्टि भले ही ठीक रहे लेकिन अंदर ही अंदर क्षति जारी रहती है जो एकाएक सामने आती है। इसीलिए हर साल आँखों की जांच होना जरूरी है।भले ही ठीक से दिखाई देता हो लेकिन आँखों की जांच नियमित रूप से करा लेना चाहिए।

क्या है इलाज

डायबिटीज से जुड़ी आँखों की अधिकांश समस्याओं का निदान लेजर ट्रीटमेंट से किया जा सकता है। लेजर की बीम निहायत एहतिहात से ठीक उन्हीं रक्त नलिकाओं पर केंद्रित की जाती है जो क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और उनसे द्रव बाहर आकर रेटीना में रिसने लगा है। लेजर बीम फूट चुकी नलिकाओं को सील कर देती है। यदि नई रक्त नलिकाएं बनने लगी हैं तो वे भी लेजर ट्रीटमेंट से सील की जा सकती हैं। दस में आठ केसेस में लेजर ट्रीटमेंट से नई रक्त नलिकाओं का बनना रुक जाता है।

डायबिटीज छोटी उम्र में भी शुरु हो सकती है लेकिन अक्सर यह बड़ी उम्र के लोगों में पाई जाती है। यह दो तरह की होती है- पहली जिसे इंसुलीन के इंजेक्शन के साथ नियंत्रित करना पड़ता है तथा दूसरी वह जिसे खानपान पर नियंत्रण करके अथवा गोलियां खाकर काबू मेंरखा जा सकता है। डायबिटीज किसी भी तरह की क्यों न हो इसका आँखों पर असर एक सरीखा पड़ता है। जो 5-20 साल से डायबिटीज से पीड़ित हैं उनके परदे के क्षतिग्रस्त होने के अवसर 80 प्रतिशत से अधिक हैं। यह प्रतिशत नियमित रूप से साल में केवल एक बार आँखों की जांच केबाद ही नीचे लाया जा सकता है। हर जांच का एक फोटो लेकर रेकार्ड रखा जाता है जिसकी तुलना दूसरी जांच के दौरान खींचे गए फोटो से की जाती है। इससे हर जांच के बाद यह पता लगता है कि एक साल के दौरान कितनी क्षति हो चुकी है। फ्लोरोसिन एंजियोग्राफी मशीन से बीमारी को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है।