रविवार, 13 अक्टूबर 2024
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Written By WD

॥ श्री ललिता राजोपचार पूजन॥

सौंदर्य लहरी के प्रणेता आद्य श्री शंकराचार्य द्वारा निर्दिष्ट

॥ श्री ललिता राजोपचार पूजन॥ -
- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार

केवल दीक्षित साधकों के लिए
आचमनीयम्‌-
आचमनीय जल प्रदान करें-
तोयेनाचमनं विधेहि शुचिना गांगेन मत्काल्पितं।
साष्टागं प्रणिपतमंब, कमले दृष्टया कृतार्थी कुरु॥

पयस्नानम्‌-
निम्न मंत्र से गौदुग्ध से स्नान कराएँ-
स्व र्धेनुजातं बलवीर्य वर्धनं, दिव्यामृतात्यन्तर सप्रदं सितम्‌।
श्री चंडिके दुग्ध समुद्र संभवे, गृहाण दुग्धं।
मनसा मयाऽर्पितम्‌॥
(दुग्ध स्नानं समर्पयामि)

दधिस्नानं‌-
निम्न मंत्र से दही से स्नान कराएँ -
क्षीरोद्भवं स्वादु सुधामयं च, श्री चन्द्रकांतिसदृशं सुशोभनम्‌।
श्री चण्डिके शुंभनिशुंभनाशिनि, स्नानार्थमंगी कुरु तेऽर्पितं दधि।
(दधि स्नानं समर्पयामि।)

घृतस्नानं-
निम्न मंत्र बोलकर घृत से स्नान कराएँ-
श्री क्षीरजोद् भूतमिदं मनोज्ञं प्रदीप्तवह्नि द्युति पावितं च।
श्री चण्डिके दैत्यविनाश दक्षे, हैयंगवीनं परिगृह्यतां च॥

मधुस्नानं-
निम्न मंत्र से शहद से स्नान कराएँ -
माधुर्यमिश्रं मधुमक्षिकागणै, र्वृक्षालिरम्ये मधुकानने चित्तम्‌।
श्री चंडिके शंकर प्राणवल्लभे, स्नानार्थमंगी कुरु तेऽर्पितं मधु॥
(मधु स्नानं समर्पयामि)

शर्करा स्नानं-
निम्न मंत्र से शकर से स्नान कराएँ-
पूर्णेक्षुकांभोधि समुद्भवामिमां माणिक्य मुक्ता फलदाममंजुलाम्‌।
श्री चण्डिके चंड विनाशकारिणि स्नानार्थ मंगीकुरु शर्करां शुभाम्‌॥
(शर्करा स्नानं समर्पयामि)

सुगंधितद्रव्य स्नानं-
निम्न मंत्र से सुगंधि इत्र-सुगंधित तेल अर्पित करें-
एतच्चम्पक तैलमम्ब विविधैः पुष्पैर्मुहुर्वासितम्‌।
न्यस्तं रत्नमये सुवर्णचषके भृंगैर्भ्रमद्भिर्वृतम्‌।
सानन्दं सुरसुन्दरीभिरमितो हस्तैर्धृतं ते मया केशेषु भ्रमर-प्रभेषु-सकलेष्वंगेषु चालिप्यते॥
(सुगंधि द्रव्यं समर्पणयामि)

उद्वर्तनं-
गंध कुंकुमादि से उद्वर्तन -
मातः ! कुंकुम पंक निर्मित मिदं देहे तवोद्वर्तनम्‌।
भक्त्याऽहं कलयामि हेम रजसा सम्मिश्रितं केसरैः।
केशानामलकैर्विशोध्य विशदान्‌ कस्तूरिकोदञ्चितैः,
स्नानं ते नव रत्न कुम्भ-सहितैः संवासितोष्णोदकै॥
(उद्वर्तनं समर्पयामि)

पञ्चामृत स्नानं-
पञ्चामृत से स्नान कराएँ-
दधि दुग्ध घृतै स माक्षिकैः सितया शर्करया समन्वितैः।
स्नपयामि तवाहमादरात्‌ जननि ! त्वां पुनरुष्ण वारिभिः॥
(पंचामृत स्नानं समर्पयामि)

तीर्थजल-
तीर्थजल अथवा शुद्ध जल (को ही तीर्थ जल सदृश्य मानकर उस) से स्नान कराएँ-
एलोशीर-सु-वासितैः सकुसुमैर्गंगादि तीर्थोदकैः,
माणिक्यामल मौक्तिकामृत युतैः स्वच्छैः सुवर्णोदकैः।
मंत्रान्‌ वैदिक तांत्रिकान्‌ परिपठन्‌ सानंदमत्यादरात्‌ स्नानं ते
परिकल्पयामि जननि! स्नेहात्‌ त्वमंडी कुरु॥
(स्नानं समर्पयामि)
श्री महालक्ष्माद्यावाहित देवताभ्यो नमः।
मूलमंत्र द्वारा पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करें। पश्चात्‌ यथा शक्ति, श्री सूक्त, देवी सूक्ति आदि से अभिषेक करें।

शुद्धोदक स्नानं-
शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
उद्गंधैरगरुद्भवैः सुरभिणा कस्तूरिका वारिणा,
स्फूर्जत्सौरभ यक्ष कर्दम जलैः काश्मीर नीलैरपि
पुष्पांभोभिरशेष तीर्थ सलिलैः कर्पूरवासोभरैः। स्नानं ते
परिकल्पयामि कमले भक्तया तदंगीकुरु॥
(शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि)

वस्त्र -
वस्त्र-उपवस्त्र समर्पित करें -
बालार्क-द्युति दाडिमीय-कुसुम प्रस्पर्धि सर्वोत्तमम्‌,
मातस्तवं परिधेहि दिव्य-वसनं भक्तया मया कल्पितम्‌।
मुक्ताभिर्ग्रथितं सुकञ्चुकमिदं स्वीकृत्य पीतप्रभम्‌
तप्तस्वर्ण समान वर्णमतुलं प्रावर्णमंडी कुरु॥
(वस्त्रं उपवस्त्रं समर्पयामि)

आचमनीयं-
आचमन हेतु जल दें -
भूपाल दिक्पाल किरीट रत्नमरीचिनी राजित पाद पीठे।
देवैः समाराधित पादपद्मे श्री चंडिके स्वाचमनं गृहाण॥
(वस्त्र उपवस्त्राते आचमनीयं जलं समर्पणयामि)

पादुका समर्पण-
पादुका अथवा पादुका के रूप में अक्षत समर्पित करें-
नवरत्न मये मयाऽर्पिते, कमनीये तपनीय पादुके।
सविलासमिदं पद द्वयम्‌, कृपया देवि ! तयोर्निधीयताम्‌॥
(पादुका समर्पयामि)

केश प्रसाधनं-
विभिन्न केश प्रसाधन-
बहुभिरगुरु धूपैः सादरं धूपयित्वा,
भगवति! तवकेशान्‌ककंतैर्मार्जयित्वा।
सुरभिभिर विन्दैश्चम्पकैश्चार्चयित्वा,
झटिति कनक सूत्रैर्जूटयन्‌ वेष्टयामि॥
(केश प्रसाधन समर्पयामि)

कज्जलं समर्पण -
निम्न मंत्र से श्री देवी को काजल आंजे-
चांपये कर्पूरक चंदनादिकै, र्नानाविधै र्गंध
चयैः सुवासितम्‌। चैत्रांजनार्थाय हरिन्मणिप्रभं
श्री चंडिके स्वीकुरु कज्जलं शुभम्‌॥
(कज्जलं समर्पयामि)

गंध समर्पण -
सुगंधित चन्दन अर्पित करें -
प्रत्यंगं परिमार्जयामि शुचिना वस्त्रेण संप्रोञ्छनं कुर्वे
केशकलाप मायततरं धूपोत्तमैर्धूपितम्‌।
काश्मीरेगरु द्रवैर्मलयजैः संघर्ष्य संपादितं,
भक्त त्राणपरे श्रीकृष्ण गृहिणि श्री चंदनं गृह्याताम्‌।
(चंदनं विलेपयामि)

तिलक समर्पण-
निम्न मंत्र से तिलक अर्पित करें -
मातः भालतले तवाति विमले काश्मीर कस्तूरिका,
कर्पूरागरुभिः करोमि तिलकं देहेऽडंरागं ततः।
वक्षोजादिषु यक्षकर्दम रसं सिक्ता च पुष्प द्रवम्‌,
पादौ चंदन लेपनादिभरहं सम्पूजयामि क्रमात्‌॥
(तिलकं समर्पयामि)

अक्षतम्‌ -
कुंकुमयुक्त अक्षत अर्पित करें -
विभिन्न आभूषण अर्पित करें :-
रत्नाक्षतैस्त्वांपरि पूजायामि, मुक्ता फलैर्वा रुचिरार विन्दैः ।
अखण्डितैर्देवि यवादिभिर्वा काश्मीर पंकांकित तण्डुलैर्वा॥
(कुंकुमाक्त अक्षतान्‌ समर्पयामि)

आभूषणं समर्पण -
विभिन्न आभूषण अर्पित करें -
मञ्जीरे पदयोर्निधाय रुचिरां विन्यस्यकाञ्ची कटौ,
मुक्ताहारमुरोजयोरनुपमां नक्षत्र मालां गले।
केयूराणि भुजेषु रत्न वलय श्रेणीं करेषु क्रमात्‌,
ताटंके तव कर्णयो र्विनिदधे शीर्षे च चूडामणिम्‌॥
धम्मिले तवदेवि हेमकु सुमान्याधाय भाल स्थले,
मुक्ता राजि विराजमान तिलकं नासापुटे मौक्तिकम्‌॥
मातः मौक्तिक जालिकां च कुचयोः सर्वांगुलीषूर्मिकाः,
कट्यां काञ्चन किंकिंणी र्विनिदघे रत्नावतंसं श्रुतौ॥
(आभूषणं समर्पयामि)

नानापरिमल द्रव्यं -
अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहँदी आदि अर्पित करें -
जननि चम्पक तैलमिदं पुरो मृगमदोप युतं पटवासकम्‌।
सुरभि गंधमिदं च चतुः समम्‌, सपदि सर्वमिद प्रतिगृह्यताम्‌।
(नानापरिमल द्रव्याणि समर्पयामि)

सिंदूरं -
निम्न मंत्र से ही मिश्रित सिंदूर विलेपित करें -
सीमन्ते ते भगवति मयासादरं यस्तमेतत्‌, सिन्दूरं मे हृदय
कमले हर्ष वर्ष तनोतु।
बालादित्य द्युतिरिव सदालोहिता यस्य कान्तिः,
अन्तर्ध्वान्तं हरति सकलं चेतसा चिन्तयैव॥
(सिंदूर समर्पयामि)

पुष्पं समर्पण-
नाना सुगंधि पुष्प समर्पित करें -
मंदारकुन्द करवीर लवंगपुष्पैः, त्वांदेवि सन्ततमहं परिपूजयामि जाती जपा वकुल चम्पक केतकादि, नाना विधानि कुसुमानि चतेऽर्पयामि। मालती वकुलहेम पुष्पिका, कोविदार करवीरकैतकैः। कर्णिकार गिरि कर्णिकादिभिः पूजयामि जगदंब ते वपुः॥
परिजात-शतपत्र पाटलै, मल्लिका वकुल चम्पकादिभिः।
अम्ब्रुजैः सु कमलैश्च सादरम्‌, पूजयामि जगदंब ते वपुः॥
(नाना सुगंधि पुष्पं समर्पयामि)

पुष्प माला-
पुष्पमाला अर्पित करें -
पुष्पौद्यैर्द्योतयन्तैः सततपरिचलत्कान्ति कल्लोल जालैः।
कुर्वाणा मज्जदन्तःकरण विमलतां शोभितेव त्रिवेणी॥
मुक्ताभिः पद्मरागैर्मरकतमणिर्निर्मिता दीप्यमानैर्नित्यं।
हारत्रयीत्वं भगवति कमले गृह्यतां कंठमध्ये॥
(पुष्प मालां समर्पयामि)

अंग पूजा
गंध, अक्षत व पुष्प लेकर अंग पूजन करें ।
() ह्रीं दुर्गायै नमः पादौ पूजयामि।
() ह्रीं मंगलायै नमः गुल्कौ पूजयामि।
() ह्रीं भगवत्यै नमः जंघै पूजयामि।
() ह्रीं कौमायै नमः जातुनी पूजयामि।
() ह्रीं वागीश्वयै नमः उरौ पूजयामि।
() ह्रीं वरदायै नमः कटीम्‌ पूजयामि।
() ह्रीं पद्माकरवासिन्यै नमः स्तनौ पूजयामि।
() ह्रीं महिषाद्दिन्यै नमः कंठं पूजयामि।
() ह्रीं उमासुतायै नमः स्कंधौ पूजयामि।
() ह्रीं इण्द्रायै नमः भुजौ पूजयामि।
() ह्रीं गौर्ये नमः हस्तौ पूजयामि।
() ह्रीं मौहवत्यै नमः मुखं पूजयामि।
() ह्रीं शिवायै नमः कर्णो पूजयामि।
() ह्रीं अन्नपूर्णायै नमः नैत्रे पूजयामि।
() ह्रीं कमलायै नमः ललाट पूजयामि।
() ह्रीं महालक्ष्मै नमः सर्वांग पूजयामि।

अथ आवरण पूजा
वांछित जानकारी :-
(अपनी कुल परंपरा अनुसार सात्विक, तामसिक, राजसिक नव आवरण पूजन करें)।
नव आवरण पूजा में पाँच क्रम एक साथ होते हैं। वे निम्न हैं -:

() आवाहन व ध्यान
() पूजन
() नमस्कार
() तर्पण
() स्वाहाकार

अतः प्रत्येक आवरण में ध्यान बोलने के पश्चात्‌ नावावरण पूजन क्रम में प्रत्येक देवता के नाम के पश्चात्‌ ''ध्यायामि, पूजयामि, नमः, तर्पयामि स्वाहा''।

जैसे कि प्रथम आवरण में उर्ध्वाम्नाय परंपरा में निम्न प्रकार से उच्चारित करेंगे :- ''ॐ महादेव्यम्बा मयी श्री पादुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः स्वाहा।''

इसी प्रकार प्रत्येक आवरण की पूजन समाप्ति पर उस आवरण का नाम बोलकर निम्न प्रकार से बोलेंगेः-

''एताः प्रथमावरण देवताः साङायै सपरिवाराः सायुधा सशक्तिकाः पूजिताः तर्पिताः सन्तु।''

तामसी पूजा में तर्पण- सुरा से किया जाता है।

विशेष पूजा में- योगिनी पात्र, वीरपात्र, शक्तिपात्र, गुरुपात्र, भोगपात्र, बलिपात्र की अलग-अलग स्थापना की जाती है।

श्रीयंत्र नवारण पूजन क्रम में बिंदु, त्रिकोण, अष्टदल, षोडशदल, चतुस्त्र, भूपूर इत्यादि के क्रम में भी आम्नायों के अंतर्गत पूजन भेद हैं।

अतः साधक अपनी कुल परंपरा व गुरु निर्देशों का पालन करें।

नव आवरण पूजन यदि समयाभाव अथवा अन्य कारण से न कर पाएँ तो सामान्य अभिषेक किया जा सकता है। यदि अभिषेक भी न कर पाएँ तो प्रणाम कर राजोपचार पूजन क्रम में आगे का पूजन शुरू करें।
हरिद्रा समर्पण :- हरिद्रा अर्पित करें :- हरिद्रुमोत्थामति पीतवर्णां सुवासितां चंदन पातरजातैः ।
अनन्यभावेन समर्पितांते मार्तहरिद्रामुररी कुरुष्व ॥
हरिद्राचूर्णम्‌ समर्पयामि

धूपम्‌ :- दशांगधूप जलाकर धुआँ आघ्रणित** करें:- लाक्षा सम्मिलितैः सिताभ्रसहितैः, श्रीवास सम्मिश्रितै कर्पूरा कलितैः सितामधु, युतैर्गो सर्पिषाऽऽ लोडितैः॥ श्री खण्डागरु गुग्गुल प्रभृतिर्नाना विधैवेस्तुभिः। धूपं ते परिकल्पयामि, जननि स्नेहात्‌ त्वमंगी कुरु॥

(धूपमं आध्रापयामि)

नीराजनं दर्शनम्‌ :-
रत्नालंकृत हेम पात्र निहितैर्गो सर्पिषाऽऽ लोडितैः
दीपै र्दीर्ध तरान्धकार भिरुरैर्बालार्क कोटिप्रभैः ॥
आताम्र ज्वलदुज्जवल प्रविलसद् रत्नप्रदीपैस्तथा ।
मातः त्वामहमादरादनु-दिनं नीरांजयाम्युच्चकैः ॥
(निराजनं समर्पयामि)

नैवेद्य निवेदन :
चतुरस्र बनाएँ। उस पर नैवेद्य पात्र रखें। 'ह्रीं नमः' से प्रोक्षण करें। मूल मंत्र से (दाहिने हाथ के पृष्ठ पर बायाँ हाथ रखकर) नैवेद्य को आच्छादित करें, वायु बीज 'यं' सोलह बार कर अग्नि बीज 'रं' सोलह बार जपें, अमृतीकरण हेतु पश्चात्‌ बाएँ हाथ को अधोमुख करें। उसके पृष्ठ पर दक्षिण हाथ रख नैवेद्य की ओर हाथ रखकर अमृत बीज 'वं' का सोलह बार जाप कर नैवेद्य के अमृतमय होने की भावना करें। धेनुमुद्रा दिखावें, आठ बार मूल मंत्र बोलकर गंध पुष्प चढ़ावें, बाएँ हाथ के अंगूठे से नैवेद्य पात्र का स्पर्श करें। दाहिने हाथ में जल पात्र लेवें। निम्न मंत्र बोलें-

चतुर्विधानं सघृत सुवर्णपात्रे मया देविसमर्पितं तत्‌।
संवीज्यमाना मरवृन्दकैस्तवं जुषस्व मातर्दय या ऽवलोकम ॥
श्री मन्महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीभ्यो नमः नैवेद्यं सर्मपयामि
(यह मंत्र बोलकर देवी के दक्षिण भाग में जल डालें।)
पश्चात बाएँ हाथ की अनामिका मूल और अंगुष्ठ से नैवेद्य मुद्रा दिखाकर, पात्र में पुष्प तुलसी मंजरी छोड़ें।

॥ भगवति ! निवेदितानी हवींषिं जुषाण ॥

ग्रासमुद्रा दिखावें । बाएँ हाथ को पद्माकार करें। साथ ही दाहिने हाथ से निम्न मुदा में दिखाएँ :-
ह्रीं प्राणाय स्वाहाः कनिष्ठिका
(अनामिका व अंगुष्ठ के संयोग से)
ह्रीं अपानाय स्वाहाः तर्जनी
(मध्यमा व अंगुष्ठ के संयोग से )
ह्रीं व्यानाय स्वाहाः तर्जनी
(अनामिका, मध्यमा व अंगुष्ठ के संयोग से)
ह्रीं उदानाय स्वाहाः अनामिका
(मध्यमा व अंगुष्ठ के संयोग से )
ह्रीं समानाय स्वाहाः सर्वांगुलिभिः
इसके पश्चात्‌ आचमनी से जल लेवें।

प्रार्थनाः- निम्न प्रार्थना बोलें :-
नमस्ते देवदेवेशि सर्वतृप्ति करंपरम्‌ ।
अखंडानंद सम्पूर्ण गृहाण जलमुत्तमम्‌ ॥
श्री मन्महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीभ्यो नमः
जलं समर्पयामि अन्तःपट करें।
(पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें।)
ब्रह्मेशाद्यैः सरसमभितः सूपविष्ठैः समन्तात्‌ सिंजद्वाल, व्यंजन पिकरैर्वीज्यमाना सखीभिः
नर्मक्रीड़ा प्रहसन परान पंक्ति भोक्तृन्‌ हसन्ती,
भुंक्ते पात्रे कनकघटिते षड्रसान देव देवी॥1॥ शाली भक्तं सुपक्वं शिशिरकरसितं पायसापूपसूपं लेह्यं पेयं च चोष्यं, सितममृतफलं घारिकाद्यं सुखाद्याम्‌॥
आज्यं प्राज्यं सुभोज्यं नयन रुचिकरं राजिकैलामरिचैः स्वादीयं शाकराजी परिकर ममृताहारजोषं जुषस्व ।
सात बार मूल मंत्र जपें, पुनः जल छोड़ें
नीमन्महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीभ्यो मध्ये पानीयं समर्पयामि।

प्रार्थना : अब प्रार्थना करें :-
सापूप सूप दघिदुग्धसिता-घृतानि, सुस्वादु भक्ष्य परमान्न पुरः सराणि
शाकोल्लसन्मरिच जीरक वाल्लिकानि भक्ष्याणि भक्ष्य जगदम्ब मयाऽर्पितानी ॥
दुग्धं निवेदनं- (केशर, सूखे मेवे व इलायचीयुक्त दुग्ध अर्पित करें।)
क्षीर मेतदिदमुत्तमो, त्तमं प्राज्यमाज्यमिदमुत्तमम मधु ।
मातरेतदमृतोपमं पयः, सम्भ्रमेण परिपीतयां मुहुः ॥
(अमृतपमं पयः समर्पयामि)
निम्न मंत्र बोलकर आचमन दें :
गंगोत्तरी वेग समुद्भवेन सुशितलेनाति मनोहरेण ।
त्वं पद्म पत्राक्षि मयाऽर्पितेन शंखोदकेनाचमनं कुरुष्व ॥
(आचमनीय समर्पयामि)

मुख प्रक्षालनं-
उष्णोदकैः पाणि युगं मुखं च, प्रक्षाल्य मातः कलधौतपात्रै।
कर्पूर मिश्रेण स कुंकुमेन, हस्तौ समुर्द्तय चन्दनेन ॥
मुख प्रक्षालनार्थ, करोद्वर्तनार्थे जलं चंदनं समर्पयामि-


फलानिः ऋतु फल समर्पण :-
जम्वाम्र रम्भा फल संयुतानि, द्राक्षा फल क्षोद्रसमन्वितानि।
सनारिकेलानी सदाडिमानि, फलानि ते देवि समर्पयामि ॥
कूष्माण्ड कोशातिक संयुतानि, जम्बीर नारिंग समन्वितानि।
स बीजापुराणि स बादराणि, फलानि ते देवि समर्पयामि॥
(ऋतुफलानि समर्पयामि)

तांबूलम्‌ समर्पण :(एला, लवंगयुक्त पान का बीड़ा)
कर्पूरेण युतैर्लवंग- सहिस्तैस्तक्कोल चूर्णान्वितैः, सुस्वादु
क्रमुकैः सगौर खदिरैः सुस्निग्ध जाती फलैः। मातः कैत कपत्र पाण्डुरुचिभि स्तांबूल वल्ली दलैः, सानंदं मुख मण्डनार्थमतुलं तांम्बूलमंगीकुरु॥ एलालवंगादि समन्वितानि तक्कोल कर्पूर विमिश्रितानि । ताम्बूलं वल्लीदल संयुतानि पूगानि ते देवि समर्पयामि ॥
मुख वासार्थे तांबूल समर्पयामि ।

दक्षिणा समर्पण :
अथबहुमणिमिश्रैमौक्तिकैस्त्वां विकीर्य, त्रिभुवन कमनीयैः
पूजायित्वा च वस्त्रैः। मिलित विविध मुक्तै र्दिव्य लावण्य युक्तताम्‌ ।
जननि कनक वृष्ठिं दक्षिणां ते समर्पयामि॥
(दक्षिणां समर्पयामि)

आरार्तिकं:
महतिकनकपात्रे स्थापयित्वा विशालान्‌ डमरू सदृश्य रूपान्‌ पक्व गोधुम दीपान्‌ ।
बहुघृतमय तेषुन्यस्त दीपान्‌ प्रकृष्ठान्‌, भुवनजननि कुर्वे नित्यमारार्तिकं ते ॥
सविनयमथ दत्वा जानुयुग्मं धरण्याम्‌, सपदि शिरसि धृत्वा पात्रमारार्तिकस्य ।
मुख कमलसमीपे तेऽम्ब सार्थ त्रिवारम्‌ भ्रमयति मयि भूयात्‌ ते कृपार्द्रः कठाक्षः


प्रदक्षिणा :
पदे पदे या पतरपूजेकभ्यः, सद्योऽश्व मेधादिफलं ददाति ।
तां सर्व पाप क्षय हेतु भूतां, प्रदक्षिणां ते परितः करोमि ॥
(प्रदक्षिणा समर्पयामि)
विशेषार्घ्य : विशेष अर्घ्य प्रदान करें :
कलिंगकोशातक संयुतानि जंबीर नारिंग समन्वितानि ।
सुनारिकेलानि सदाडिमानी, फलानि ते देवि समर्पयामि॥
(विशेष अर्घ्यम्‌ समर्पयामि)

छत्रं समर्पण :
मातः कांचन दण्ड मण्डित मिदं पूर्णोन्दु बिम्ब प्रभम्‌,
नानारत्न विशोभि हेमकलशं लोकत्रयाह्लादकम्‌। भास्वन
मोक्तिक जालिका परिवृतं प्रीत्यात्महस्ते धृतम्‌, छत्रं ते
परिकल्पयामि शिरसि त्वष्ट्रा स्वयं निर्मितम्‌॥
(छत्रं समर्पयामि।)

चामरं समर्पण :
शरदिन्दु मरीचि गौरवर्णेः, मणिमुक्ता विलसत्‌
सुवर्ण दण्डैः। जगदंब विचित्र चामरैरत्वाम्‌
अहमानन्द भरेण वीजयामि॥
(चामरं समर्पयामि)

दर्पणं समर्पयामि :
मार्तण्डमण्डल निभो जगदंब योऽयम्‌,
भक्त्या मयामणिमयो मुकुरोऽर्पितस्ते।
पूर्णेन्दु बिम्ब रुचिरं वदनं स्वकीयम्‌
अस्मिन्‌ विलोक्य विलोल विलोचने त्वम्‌॥
(दर्पण समर्पयामि)
अश्व समर्पण :
प्रियगतिरति तुंगो रत्न पल्याण युक्तः, कनकमय विभूषः
स्निग्ध गंभीर घोषः। भगवति कलितोय वाहनार्थं
मयाते, तुरंग शतसमेतो वायु-वेगस्तुरंगः॥

गज समर्पण :
मधुकर वृत्तकुंभ न्यस्त सिन्दुर रेणुः, कनक कलित घण्टा
किंकिणी शोमि कण्ठः।
श्रवण युगल चञ्चच्चामरो
मेघतुल्यो, जननि तव मुदे स्यान्मत मातंग एषः॥

रथ समर्पण :
द्रुतम तुरगैर्विराजमानम्‌, मणिमय चक्र चतुष्टयेन युक्तम्‌।
कनकमयममुं वितानवन्तम्‌, भगवति तेहि रथं समर्पयामि॥

सैन्य समर्पण :
हयगज रथपति शोभमानम्‌,
दिशिदिशि दुन्दुभि
मेघनाद युक्तम्‌। अभिनव चतुरंग सैन्यमेतत्‌,
भगवति भक्ति भरेण तेऽर्पयामि॥

दुर्ग समर्पण :
परिखी कृत सप्त सागरम्‌ बहु सम्पत सहितं मयाम्ब
ते विपुलम्‌। प्रबलं धरणी तलाभिधम्‌,
दृढ़ दुर्गमिदं निखिलं समर्पयामि॥

व्यंजन समर्पण
शतपत्र युतैः स्वभावशीतैः, अति सौरम्य युतैः परागपीतैः।
भ्रमरी मुखरी कृतैरनन्तैः, व्यंजनैस्तवां जगदंब वीजयामि॥

नृत्यं समर्पण : नृत्ममय वंदना :-
भ्रमर विलुलित लोलकुन्तलाली, विगलतिमाल्य
विकीर्ण रंगभूमि। इयमति रुचिरा नटीनटन्ती,
तव हृदये मुदमातनोतु मातः
रुचिर कुच तटीनां नाद्यकाले नयीनां, प्रतिगृहमथ ते च प्रत्यहं
प्रादुरासीत्‌।
धिमिकि धिमिकि धिद्धि धिद्धि धिद्धीति
धिद्धि, थिमिकि थिमिकि तत्तत्‌ थैपी थैपीति शब्दः
डमरू डिण्डिम जर्झर झल्लरी, मृदुरवार्द्र घटाद्र घटादय।
झटिति झांकृत झांकृत झांकृतैः, महुदयं हृदयं सुख यन्तु ते
तत्पश्चात ताम्रपात्र में दधि, लवण, सर्षण दूर्वा, अक्षत रखकर देवी पर दृष्टिदोष का उत्तारन करें :
दृष्टया प्रदृष्टया खलुदृष्ट दोषान्‌, संहर्तुमारात्मप्रथित प्रकाशा॥
जनो भवेदिन्द्रपदाय, यौग्यस्तस्यै तवेदं लवणाक्षिदोषम्‌॥
पात्र एक पृथक जगह रखकर निम्न स्तुति करें :-

स्तुति-
तव देवि गुणानुवर्णने चतुरानो चतुराननादयः।
तदि हैक मुखेषु जन्तुषु स्तवनं कस्तव कर्तुमीश्वरः॥
प्रदक्षिणा- अपनी जगह ही खड़े होकर प्रदक्षिणा करें :
पदे पदे या परिपूजकेभ्यः सद्योऽश्व मेधादिफलं ददाति।
तां सर्व पापं क्षय हेतु-भृताम्‌, प्रदक्षिणां ते परितः करोमि॥
(प्रदक्षिणा समर्पयामि)
प्रणाम समर्पण :
रक्तोत्पला रक्ततल प्रभाभ्याम्‌, ध्वजोर्ध्व रेखा
कुलिशांकिताभ्याम्‌ । अशेष वृन्दारक
वन्दिताभ्याम्‌, नमोभवानी पदपंकजाभ्याम्‌॥

पुष्पांजलि समर्पण :
हाथ में सुगंधित पुष्प लें :
चरण नलिन युग्मं पंकजैपूजयित्वा, कनक कमल मालां
कण्ठदेशेऽर्पयित्वा । शिरसि विनिहितोऽयं रत्न-
पुष्पांजलिस्ते, हृदयकमले मध्ये देवि हर्ष तनोतु॥
(पुष्पांजलिं समर्पयामि)

भवन समर्पण :
अथ मणिमय मंचकाभिरामे, कनकमय वितान राजमाने।
प्रसरदगरु धूप धूपितेऽस्मिन्‌ भगवति भवनेसस्तु ते निवासः॥

पर्यंक समर्पण :
तवदेवि सरोज चिह्नयोः पदयोर्निर्जित पद्मरागयोः।
अति रक्त तरैरलक्तकैः कुनरुक्तां रचयामि रक्ताम्‌॥

गण्डूष समर्पण :
अथमातरुशीरवासितं निजताम्बूल रसेन रंजितम्‌।
तपनीय मये हि पद्टके, मुख गण्डूष जलं विधीयताम
(मुख गण्डूषार्थे जलं समर्पयामि)

क्षमा प्रार्थना :-
एषा भक्तवा तव विरचिता या मया देवि पूजा
स्वीकृत्यैना सपदि सकलान्‌ मेऽपराधन क्षमस्व।
न्यूनं यत्‌तत्‌ तव करुणया पूर्णतामेतु सद्यः
सानन्दं मे हृदय पटले तेऽस्तु नित्यं निवासः॥

ओम सुशांतिर्भवतु
सायंकालीन ॥ शयन प्रार्थना ॥

क्षणमथ जगदम्ब जगदम्ब मंचकेऽस्मिन्‌, मृंदुत्तर तूलिकया विराजमाने।
अति रहसि मुदा शिवेन सार्द्धम, सुख शयनं कुरु मां हृदिस्मरन्ती॥

ध्यानं-
मुक्ताकुन्देन्दु गौरां मणिमय मुकुटां रत्नताटंक युक्ताम्‌।
अक्षस्रक्‌ पुष्प हस्तामभय वर करां चन्द्र चूड़ां त्रिनेत्राम।
नानालंकार युक्तां सुर मुकुटमणि मणिद्योतित स्वर्ण पीठाम्‌।
सानन्दा सुप्रसन्नां त्रिभुवन जननीं चेतसा चिन्तयामि॥
(प्रणाम करें- पट्ट वस्त्र से आच्छादित करें)

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः