श्रीयंत्र साधना तंत्र-विज्ञान की सर्वोत्कृष्ट देन है। तंत्र को हेय दृष्टि से न देखा जाकर ज्ञेय दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
किसी का बुरा करना, किसी को नुकसान पहुँचाना, किसी स्त्री अथवा पुरुष से अवांछित लाभ प्राप्त करना तंत्र विज्ञान का उद्देश्य नहीं है। इस तरह के दुष्कर्म करने वाले लोग 'औगढ़' कहलाते हैं व उनकी विद्या औगढ़ विद्या कहलाती है। यह विद्या असुर-मंत्रों के अन्तर्गत आती है। तंत्र विज्ञान में यह विद्या समाविष्ट नहीं है।
आत्म-साक्षात्कार, आत्म-कल्याण के हितार्थ की गई साधना तंत्र विज्ञान के अंतर्गत आती है, तंत्र विज्ञान का उद्देश्य तो मानव-कल्याण है।
श्री यश समृद्धि ज्ञान व विवेक की प्राप्ति, सामान्य मानव के लक्षणों से ऊपर उठकर देवत्व की प्राप्ति, पश्चात अपने लक्ष्य संधान के लिए साधना।
श्रीयंत्र का वाक्यार्थ यही है कि जिसके अर्चन से श्री, धन, लक्ष्मी, यश, समृद्धि में प्राप्त हो।
यहाँ पर साधारण गृहस्थ साधकों के लिए मान्य संक्षिप्त दैनिक पूजन पद्धति दे रहे हैं। इस पद्धति द्वारा गृहस्थ व्यक्ति नियमित पूजन कर सकते हैं। श्रीयंत्र दैनिक पूजन में श्रीयंत्र में स्थित नौ-आवरणों का पूजन किया जाता है। इस विधि में श्रीयंत्र के नौ आवरणों की जानकारी क्रमवार सरलता से चित्र सहित समझा दी गई है।
घर, दुकान आदि में स्थापित श्रीयंत्र की दैनिक संक्षिप्त पूजा निम्न प्रकार से करें :-
नोट :- 'मूल मंत्र' अर्थात अपनी-अपनी आम्नाय में गुरु द्वारा निर्दिष्ट त्री अक्षरी, चतुरक्षरी, पंच अक्षरी, षोडष अक्षरी मंत्र पहले बोलकर पश्चात पीछे का व्याक्यांश बोलें अथवा 'मूल मंत्र' अपनी राशि के अनुसार जान लें, इस हेतु हमने एक तालिका प्रस्तुत की है। तालिका हेतु यहाँ क्लिक करें।
त्रैलोक्यमोहन चक्र (प्रथम आवरण) चतुरस्य त्रिरेखायां अर्थात चतुरस्र की तीन रेखाओं पर ( दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र'- त्रैलोक्यमोहन चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वसंक्षोभिणी मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
सर्वाशापरिपूरक चक्र (द्वितीय आवरण)
'षोडषदल कमले' अर्थात सोलह कमल दल पर (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्वाशापरिपूरक चक्राय नमः।
उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वविद्रावण मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
सर्वसंक्षोभण चक्र (तृतीय आवरण) षोडष कमल दल के अन्दर अष्ट कमल दल पर (दर्शाए गए चित्र के अनुसार)
निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्व संक्षोभण चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वाकर्षिणी मुद्रा प्रदर्शित करें अथवा प्रणाम करें।
सर्व सौभाग्यदायक चक्र (चतुर्थ आवरण) अष्ट कमल दल के अंदर स्थित चौदह त्रिभुजों पर ( दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्व सौभ्यदायक चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्ववशंकरी मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
सर्वार्थसाधक चक्र (पंचम आवरण) उक्त चौदह त्रिभुज के भीतर दस त्रिभुजों ( दर्शाए गए चित्र के अनुसार) में निम्नांकित मंत्र बोलकर पूजन करें (बहिर्दसार पूजन अर्थात बाह्य पूजन)
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'मूलमंत्र' सर्वार्धसाधक चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प-अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सवोन्मादिनी मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
सर्वरक्षाकर चक्र (षष्ट आवरण) उन्ही के भीतर दस त्रिभुजों में (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्नांकित मंत्र बोलकर पूजन करें (अंतर्दसार पूजन अर्थात त्रिभुजों का आंतरिक पूजन) :-
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'मूलमंत्र' सर्वरक्षाकर चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वमहाअंकुश मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
सर्वरोगहर चक्र (सप्तम आवरण) उक्त दस त्रिभुजों के अंदर आठ त्रिभुजों (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) में निम्नांकित मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्वरोगहर चक्राय नमः उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वखेचरी मुद्रा प्रदर्शित करें अथवा प्रणाम करें।
सर्वसिद्धिप्रद चक्र (अष्टम आवरण) उक्त आठ त्रिभुजों के भीतर स्थित त्रिभुज (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) में निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्व सिद्धिप्रद चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प अक्षत से पूजन करें।
पश्चात् सर्व बीजा मुद्रा प्रदर्शित करें अथवा प्रणाम करें।
सर्वानन्दमय चक्र (नवम आवरण) उक्त त्रिभुज के मध्य स्थित बिंदु पर (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
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'मूलमंत्र' सर्वानन्दमय चक्राय नमः। उक्त मंत्र बोलकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। पश्चात् सर्वयोनि मुद्रा दिखाएँ अथवा प्रणाम करें।
उक्त नवावरण पूजा के पश्चात निम्न प्रकार से समग्र श्रीयंत्र का चंदन, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य से पूजन करें :-
() निम्न मंत्र से चंदन अर्पित करें:-
'लं' पृथ्व्यात्मकं गंधम् समर्पयामि। (इसके पश्चात कनिष्ठि का अग्रभाग व अंगुष्ठ मिलाकर पृथ्वी मुद्रा दिखाएँ।)
() निम्न मंत्र से पुष्प अर्पित करें :-
'हं' आकाशात्मकं पुष्पम् समर्पयामि। (इसके पश्चात तर्जनी अग्रभाग व अंगुष्ठ मिलाकर आकाश मुद्रा दिखाएँ।)
() निम्न मंत्र से धूपबत्ती जलाकर उसका सुवासित धुआँ आघ्रापित करें-
'यं' वायव्यात्मकं धूपम् आघ्रापयामि। (इसके पश्चात तर्जनी मूल भाग व अंगुष्ठ मिलाकर वायु मुद्रा दिखाएँ।)
() निम्न मंत्र से दीपक प्रदर्शित करें। (इस हेतु किसी पात्र अथवा दीपक में
शुद्ध घी में रूई की बत्ती डालकर उसे प्रज्वलित करें, हाथ धो लें) :-