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Written By WD

कैसे मनाएँ दीपावली महोत्सव

कैसे मनाएँ दीपावली महोत्सव -
- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार 'मनस्वी'

Praveen BarnaleND
अधिकांश व्यक्तियों को इस बात की जानकारी नहीं रहती है कि दीपावली पर्व किस तरह मनाया जाए।

कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता है। उस दिन धन प्रदात्री 'महालक्ष्मी' एवं धन के अधिपति 'कुबेर' का पूजन किया जाता है।

हमारे पौराणिक आख्यानों में इस पर्व को मनाने की संपूर्ण व्यवस्था दी गई है। इसका संबंध हमारे जीवन में आयु, आरोग्य, धन, ज्ञान, वैभव व समृद्धि की उत्तरोत्तर प्राप्ति से है। साथ ही मानव जीवन के दो प्रभाग धर्म और मोक्ष की भी प्राप्ति हेतु विभिन्न देवताओं के पूजन का उल्लेख है।

आयु के बिना धन, यश, वैभव का कोई उपयोग ही नहीं है। अतः सर्वप्रथम आयु वृद्धि एवं आरोग्य प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके पश्चात तेज, बल और पुष्टि की कामना की जाती है। तत्पश्चात धन, ज्ञान व वैभव प्राप्ति की कामना की जाती है।

विशेषकर आयु व आरोग्य की वृद्धि के साथ ही अन्य प्रभागों की प्राप्ति हेतु क्रमिक रूप से यह पर्व धन-त्रयोदशी (धन-तेरस), रूप चतुर्दशी (नरक-चौदस), कार्तिक अमावस्या (दीपावली- महालक्ष्मी, कुबेर पूजन), अन्नकूट (गो-पूजन), भाईदूज (यम द्वितीया) के रूप में पाँच दिन तक मनाया जाता है।

आइए इन पाँचों पर्वों को कैसे मनाया जाए, यह देखते हैं।

धन-त्रयोदशी (धन-तेरस)
कार्तिक कृष्ण-13 को यमराज (मृत्यु के देवता) का पूजन किया जाता है। साथ ही लक्ष्मी (तिजोरी) का भी पूजन किया जाता है।

प्रदोषकाल तक व्रत रखकर, प्रदोषकाल प्रारंभ होने के पश्चात तेल का दीपक जलाकर विधिवत यथाशक्ति (पंचोपचार अथवा षोडशोपचार द्वारा) दीपक-पूजन करके, घर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर उस दीपक को रखा जाता है। दीपक रखते समय यह प्रार्थना की जाती है कि 'हे यम देवता! आपके वर-प्रसाद से हमें पूर्ण आयुष्य की प्राप्ति हो।' (प्रयास यह रहना चाहिए कि यह दीपक संपूर्ण रात्रि जलता रहे)

इसी दिन घर में कीमती आभूषण व नकद द्रव्य रखे जाने वाले खजाने (तिजोरी) का भी पूजन किया जाता है। नवीन आभूषण, बर्तन इत्यादि उपयोगी वस्तुएँ भी खरीदी जाती हैं। इसके अलावा आरोग्य प्रदाता भगवान धन्वंतरि का भी पूजन किया जाता है।

रूप चतुर्दशी (नरक चौदस)
इस दिन धर्मराज चित्रगुप्त व यमराज दोनों का पूजन किया जाता है। इस हेतु चंद्र-दर्शन (अर्थात चंद्रमा के रात्रि में उदित रहने वाली चतुर्दशी के दिन) स्वयं के शरीर में तेल, अभ्यंग, उबटन लगाकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर धर्मराज का यथाशक्ति पूजन कर उनसे नरक के भय से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है।

प्रदोषकाल में तेल का दीपक जलाकर यथाशक्ति पूजन कर यमराज की प्रसन्नता के लिए चौराहे पर, देवालय में अथवा घर के बाहर उस दीपक को रखा जाता है। यमराज से यह प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से नरक के भय से मुक्ति प्राप्त हो।

दीपावली (कार्तिक-अमावस्या)
कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता है। इस दिन महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए अनुष्ठानपूर्वक पूजन करने का विधान है।

इस क्रम में गणेश, सरस्वती, महाकाली, कुबेर, षोडश मातृका, कलश, नवग्रह पूजन किया जाता है। साथ ही नवीन बही-खाते, लेखनी-दवात, घर-दुकान के प्रमुख द्वार, दीपमाला का भी पूजन किया जाता है।

महालक्ष्मी के विभिन्न आठ अंगों का आठ सिद्धियों की प्राप्ति हेतु पूजन किया जाता है। दीपावली की रात्रि का लक्ष्मी प्राप्ति हेतु विशेष तांत्रोक्त महत्व है। इस दिन संपूर्ण रात्रि जागरण करके 'लक्ष्मी' को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी प्रदाता श्री सूक्त, पुरुष सूक्त, लक्ष्मी सूक्त, विष्णु सहस्रनाम, लक्ष्मी यंत्र पूजन आदि का अपनी आवश्यकतानुसार जाप अथवा हवन किया जाता है। विशेषकर श्रीयंत्र का तंत्रोक्त पूजन किया जाता है।
दीपावली क्रम में :
'सरस्वती' के रूप में बही-खातों का पूजन किया जाता है।
'महाकाली' के रूप में स्याही की दवात का पूजन किया जाता है।
कुबेर के रूप में तिजोरी का पूजन किया जाता है।
घर व व्यापारिक प्रतिष्ठान के प्रमुख द्वारों पर स्वस्ति वाचक चिन्ह आदि अंकित कर उनका पूजन किया जाता है।
दीपक जलाकर उन्हें क्रमबद्ध सजाकर महालक्ष्मी का प्रकाश के रूप में पूजन किया जाता है। इन दीपकों से देवस्थान, घर, व्यापारिक प्रतिष्ठानों को सजाया जाता है।
दरिद्रता नाश हेतु, आर्थिक प्रगति में बाधा निवारण हेतु, आर्थिक उन्नति हेतु विभिन्न स्तोत्र, सहस्रनाम, कवच व वेद अथवा पौराणिक मंत्रों का अनुष्ठान दीपावली की रात्रि में किया जाता है।
प्रसन्नता व्यक्त करने हेतु आतिशबाजी की जाती है। मित्रों, स्नेहियों को शुभकामनाएँ प्रेषित की जाती हैं। मिठाई व उपहार का वितरण किया जाता है।
बुजुर्ग व पूज्य व्यक्तियों के चरण छूकर आशीर्वाद प्राप्त किए जाते हैं।

इस तरह दीपावली महापर्व को लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

विशेष : इसी दिन गायों के सींग आदि को सजाकर उन्हें घास व अन्न प्रदान कर अगले दिन गोवर्धन पूजन हेतु आमंत्रित किया जाता है।

दीपावली पूजन हेतु विशिष्ट मुहूर्त
लक्ष्मी की प्रसन्नतार्थ विशिष्ट मुहूर्त निम्नांकित रहते हैं :

वृषभ लग्न, सिंह लग्न बेला एवं कुंभ लग्न बेला।
गोधूलि, महानिशा बेला
सूर्य, शुक्र की होरा।
अन्नकूट (गोवर्धन पूजन)
जहाँ दीपावली की निशा (रात्रि) को महालक्ष्मी की प्रसन्नतार्थ पूजन किया जाता है, वहीं अगले दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को भगवान विष्णु की प्रसन्नतार्थ पूजन किया जाता है।

इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर विष्णु को अर्पित किए जाते हैं। इसे 'अन्नकूट' महोत्सव के रूप में जाना जाता है। जहाँ दीपावली पर्व अर्थ प्राप्ति हेतु मनाया जाता है, वहीं भोग और मोक्ष की प्राप्ति हेतु 'अन्नकूट' पर्व मनाया जाता है।

भोग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए गायों को श्रृंगारित कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है। पकाए हुए चावलों अथवा गायों के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन किया जाता है।

भगवान विष्णु अथवा उनके अवतार के सन्मुख विभिन्न पकवान बनाकर, रांगोली इत्यादि से सजावट करके महानैवेद्य के रूप में भाँति-भाँति के पकवान अर्पित किए जाते हैं। भगवान विष्णु से भोग और मोक्ष दोनों की कामना करके यह 'अन्नकूट' नामक महोत्सव मनाया जाता है।
भाई-दूज (यम द्वितीया)
पौराणिक आख्यानों के अनुसार पूर्वकाल में यमराज को उनकी बहन यमुना ने अपने घर बुलाकर भोजन कराया था। भोजन से संतुष्ट यमराज ने अपनी बहन यमुना से वर माँगने को कहा था। वात्सल्यमयी यमुना ने यमराज से प्राणियों को अकाल मृत्यु व नरक भय से कष्ट-मुक्ति हेतु वर माँगा था। इसलिए यह पर्व यम द्वितीया (अथवा भाई-दूज) के रूप में जाना जाता है।

नारद पुराण में उल्लेख है कि इस दिन भाई को अपनी बहन के घर जाकर भोजन करना चाहिए। उस दिन बहन को वस्त्र और आभूषण उपहार स्वरूप देकर बहन का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। सायंकाल यम की प्रसन्नतार्थ तेल का दीपक लगाकर दीप-दान करना चाहिए।

इस तरह धन त्रयोदशी से यम द्वितीया तक का पर्व-काल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाला है। यह पर्व-काल भारतीय संस्कृति में अनेक वर्षों से अनवरत रूप से चला आ रहा है।

दीपावली-पर्व की विशेषता यह है कि इसमें देवताओं के पूजन, अर्चन, हवन आदि-आदि के लिए जाति-वर्ण, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, बालक, क्षेत्रीयता आदि का कोई भेद ही नहीं है। समस्त मानव जाति अपने आत्म कल्याणार्थ, मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु इस पर्व को अपने-अपने ढंग से न केवल मनाते हैं बल्कि अपनी प्रसन्नता व खुशियों को समाज के अन्य अंगों के साथ मिल-जुलकर बाँटते हैं।