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  4. Who was Lord Macaulay and his education policy
Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 25 नवंबर 2025 (14:29 IST)

कौन था मैकाले, जिसका नरेंद्र मोदी ने किया अपने भाषण में उल्लेख?

Lord Macaulay
Lord Macaulay: हमारे देश के करोड़ों लोग मदरसों में पढ़ते हैं, सरस्वती विद्यालय में पढ़ते हैं और कान्वेंट स्कूल में अधिकतर लोग पढ़ते हैं। हमारी शिक्षा हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई में बंटी हुई है क्योंकि हम भारतीय भी बंट गए हैं। जब अंग्रेजों का राज आया तो यहां पर पश्‍चिमी धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए कई स्तरों पर कार्य हुआ। इसमें धर्मगुरुओं के साथ ही अंग्रेजी शासन-प्रशासन ने मिलकर कार्य किया। इसके बावजूद उन्हें वैसी सफलता नहीं मिल पा रही थी जैसी वे चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतवर्ष के संपूर्ण लोग पश्‍चिमी सभ्यता, धर्म और संस्कृति में ढलकर भारत स्थाई रूप से ब्रिटेन का उपनिवेश बन जाए। इसी योजना के तहत भारत में लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति को लागू किया गया। 
 
कौन था मैकाले?
लॉर्ड मैकाले, जिनका पूरा नाम थॉमस बैबिंगटन मैकाले था, एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, निबंधकार, इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 25 अक्टूबर, 1800 ई. को हुआ था और मृत्यु 28 दिसम्बर, 1859 ई. में हुई थी। वह 1830 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य चुने गए। वह 1834 ई. में गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल के पहले कानून सदस्य नियुक्त होकर भारत आए। उन्हें उस समय के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने लोक शिक्षा समिति का सभापति भी नियुक्त किया। उन्होंने 1835 ई. में अपना प्रसिद्ध स्मरण-पत्र (Minute) प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर भारत में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई। वह 1834 ई. से 1838 ई. तक भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर और लॉ कमिशन के प्रधान रहे। भारतीय दंड विधान से संबंधित प्रसिद्ध ग्रंथ 'दी इंडियन पीनल कोड' (Indian Penal Code - IPC) की लगभग सभी पांडुलिपि उन्होंने ही तैयार की थी, जिसे 6 अक्टूबर 1860 को लागू किया गया।
 
क्या सोच थी मैकाले की? 
2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' के भारत के प्रति विचार और योजना में कहा कि 'मैं भारत में काफी घूमा हूं। दाएं-बाएं, इधर-उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएंगे या स्थाई रूप से गुलाम बना पाएंगे।
 
मैकाले ने आगे कहा कि जब तक हम इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूं कि हम इसकी पुरानी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, इतिहास और उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्योंकि अगर भारतीय सोचने लग गए कि जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्मसम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे, जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।'
 
मैकाले के ही शब्दों में उसकी रणनीति के मुताबिक उसने अपनी संसद को सलाह दी थी कि 'हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिए का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं। हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरुचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों।'
 
लॉर्ड मैकाले की शिक्षा का असर:
इन्हीं लॉर्ड मैकाले की बताई शिक्षा पद्धति और भारत के संबंध में उसके इतिहास को भारतीय लोग मानने के लिए आज भी मजबूर हैं। भारतीयों को अपनी संस्कृति, गौरवशाली इतिहास और धरोहर से तोड़ने का जो प्रयास वर्षों पहले किया गया था, आज सभी भारतीय उसे आत्मसात किए घूम रहे हैं। देश ने कई क्षेत्रों में तरक्की की है लेकिन अंग्रेजों ने इस तरक्की के बदले भारत से बहुत कुछ छीन लिया।
 
भारत इतना संपन्न था कि सोने-चांदी के सिक्के चलते थे, कागज के नोट नहीं। जिस भारत को इतिहास में अशिक्षित और निर्धन दिखाने की साजिश की गई, वहां धन-दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आततायी और अंग्रेजी दलाल यहां आते ही क्यूं? लाखों-करोड़ रुपए के हीरे-जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज भी हैं, मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है कि आज भी हम 'अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति' के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं। इसी में छुपा हुआ है भारत के लोगों का धर्मांतरण किए जाने का खेल। गौरे चले गए लेकिन भारतीय अंग्रेज आज भी अस्पताल, स्कूल और चर्च के माध्यम से भारतीय लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने में लगे हुए हैं।
 
जब भारत में मैकाले शिक्षा पद्धति लागू की गई तो एक षड्यंत्र के तहत केवल यूरोपीय पद्धति पर आधारित शिक्षा को भारत में लागू किया गया। इसके पीछे मकसद केवल क्लर्क तैयार नहीं करना था, अपितु साथ ही भारत के पाश्चात्यीकरण की तैयारी भी करनी थी, लोगों के मन में अपने धर्म, भाषा और संस्कृति के प्रति हीनभावना भरनी थी।
 
कैसे किया मैकाले की शिक्षा नीति को लागू?
अब अंग्रेजों के सामने चुनौती थी कि कैसे भारतीयों को उस भाषा में पारंगत करें जिससे कि ये अंग्रेजों के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानी गुलाम की तरह कार्य कर सकें। इस कार्य को आगे बढ़ाया जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' ने। 1858 में मैकाले द्वारा इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाया गया। मैकाले की सोच स्पष्ट थी, जो कि उसने ब्रिटेन की संसद में बताया, जैसा कि ऊपर वर्णन है। उसने पूरी तरह से भारतीय शिक्षा व्यवस्था को खत्म करने और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने का प्रारूप तैयार किया। इस प्रारूप को तैयार करने से पहले उसने बाकायदा एक सर्वे किया था और इस सर्वे के मुताबिक भारत में साक्षरता का प्रतिशत बहुत ऊंचा था। 
 
इस सर्वे के बाद मैकाले ने कहा था, 'भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।' उसने बाकायदा अपनी बात को कुछ इस तरह कहा था कि 'जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है, वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।' 
 
इसके बाद भारत में स्थापित शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे खत्म किया जाने लगा। भारतीय भाषा और संस्कृतनिष्ठ शिक्षा को पूरी तरह खत्म करने की मुहिम शुरू हो गई। ये मुहिम रंग भी लाई और आजादी के वक्त जो ज्यादातर कर्णधार देश को संभालने वाले थे, वे भी मैकाले की नई शिक्षा पद्धति से निकले हुए ही थे। 
 
मैकाले की शिक्षा नीति के मुख्य बिंदु
1. शिक्षा का उद्देश्य (The Objective):
मैकाले का मुख्य उद्देश्य भारत में एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो रंग और रक्त से भारतीय हो, लेकिन रुचि, विचार, नैतिकता और बुद्धि से अंग्रेज हो। यह वर्ग ब्रिटिश प्रशासन और व्यापार के लिए निचले स्तर के कर्मचारी उपलब्ध करा सके।
 
2. शिक्षा का माध्यम (Medium of Instruction): 
इस नीति के द्वारा शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को बना दिया गया। मैकाले का मानना था कि पश्चिमी साहित्य और विज्ञान भारतीय तथा अरबी साहित्य से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। उन्होंने संस्कृत और फारसी जैसी भारतीय भाषाओं में दी जाने वाली पारंपरिक शिक्षा को हतोत्साहित किया।
 
3. निस्यंदन सिद्धांत (Downward Filtration Theory)
मैकाले ने निस्यंदन सिद्धांत (छानने का सिद्धांत) का समर्थन किया। इसके अनुसार, सरकार को केवल उच्च और मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को ही शिक्षित करना चाहिए। यह शिक्षित वर्ग फिर स्वयं ही अपने ज्ञान और विचारों को धीरे-धीरे आम जनता (जन साधारण) तक पहुँचाएगा, जैसे जल ऊपर से नीचे रिसता है।
 
4. प्राच्य-आंग्ल विवाद का अंत (End of Orientalist-Anglicist Controversy)
  • यह विवरण-पत्र भारत में चल रहे प्राच्य (Orientalist) और आंग्ल (Anglicist) समर्थकों के बीच के विवाद को समाप्त करने के लिए लाया गया था।
  • प्राच्यवादी चाहते थे कि शिक्षा भारतीय भाषाओं (संस्कृत, फारसी) और पारंपरिक ज्ञान में दी जाए।
  • आंग्लवादी (जिनके समर्थक मैकाले थे) चाहते थे कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो और पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान पढ़ाया जाए।
  • इस नीति ने आंग्लवादियों का पक्ष लिया, जिससे भारत में पश्चिमी धर्म और संस्कृतिक की शिक्षा की नींव पड़ी और पारंपरिक भारतीय ज्ञान, संस्कृति और साहित्य की उपेक्षा की जाने लगी और यहां तक की उसका उपहास भी उड़ाया जाने लगा। 
  • मैकाले की शिक्षा ने एक ऐसा वर्ग बनाया जिसने अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ मानकर भारतीय संस्कृति की जड़ों से दूरी बना ली।
  • इस नीति ने भारत के शैक्षणिक, सामाजिक और प्रशासनिक ढांचे पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाला।