पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद से विदाई को अगर संकेत माना जाए तो साफ है कि कांग्रेस में अब करीब 3 दशक पुराने उस दौर की फिर शुरुआत हो गई है, जब कोई क्षत्रप आलाकमान को आंख दिखाने की हिम्मत नहीं करता था। हालांकि पार्टी की कमान अभी औपचारिक तौर पर सोनिया गांधी के हाथों में ही है, लेकिन पंजाब का घटनाक्रम बताता है कि कांग्रेस में अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का समय शुरू हो चुका है और आने वाले दिनों वे कुछ और सख्त फैसले लेंगे। कैप्टन को हटाकर राहुल गांधी ने वह काम किया है, जो वे पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भी नहीं कर पाए थे। खुद सोनिया गांधी ने भी पार्टी की कमान संभालने के बाद कभी इस तरह की राजनीति नहीं की, जैसी कैप्टन के मामले में राहुल और प्रियंका ने की है।
गौरतलब है कि अमरिंदर सिंह 5 दशक से ज्यादा समय से सोनिया गांधी को जानते हैं। उनकी लंदन से ही राजीव और सोनिया गांधी से करीबी थी और भारत लौटने के बाद भी यह दोस्ती बनी रही। यही वजह है कि उन्होंने राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में भी कभी ज्यादा तरजीह नहीं दी। राहुल जब पार्टी अध्यक्ष थे तब भी कैप्टन उनकी बजाय सोनिया गांधी से ही राजनीतिक चर्चा करते थे। उस दौरान ऐसी भी खबरें आई थीं कि कुछ मौकों पर कैप्टन ने राहुल को दोटूक कह दिया कि वे इस बारे में उनकी मम्मी यानी सोनिया गांधी से बात करेंगे।
बताया जाता है कि सोनिया ने भी राहुल से कह रखा था कि वे कैप्टन से बातचीत करते हुए इस बात का ध्यान रखें कि वे अपने पिता के दोस्त से बात कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले तो खुद कैप्टन ने ही मीडिया से चर्चा के दौरान बताया था कि 2 साल से उनकी मुलाकात राहुल गांधी से नहीं हुई हैं। इन सब बातों से राहुल और उनके करीबी बहुत आहत रहते थे। लेकिन इस बार राहुल ने उन सब बातों का हिसाब कैप्टन से कर लिया।
याद नहीं आता कि इससे पहले राहुल और प्रियंका ने या सोनिया गांधी ने ही किसी बड़े नेता को इस तरह जलील करते हुए किसी को पद से हटाया हो। सोनिया के पार्टी की कमान संभालने के बाद से अब तक 23 साल में किसी मुख्यमंत्री या पार्टी के किसी बड़े नेता को इस तरह की बेअदबी का सामना नहीं करना पड़ा। जिसको भी पद पर बैठाया वह बैठा रहा और मुख्यमंत्रियों ने भी अपने कार्यकाल पूरे किए। हां, इस दौरान अजित जोगी जरूर एक अपवाद कहे जा सकते हैं। वे भी एक समय कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह सोनिया गांधी के बेहद करीबी हुआ करते थे, लेकिन चूंकि राहुल को उनका जिद्दी और मनमानीपूर्ण रवैया पसंद नहीं था, लिहाजा उन्हें भी कैप्टन की तरह न सिर्फ जलील होना पड़ा था, बल्कि पार्टी से भी बाहर होना पड़ा था।
सोनिया गांधी से पहले इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीब 25 साल के कार्यकाल के दौरान राजस्थान में मोहनलाल सुखाडिया, कर्नाटक में एस.निजलिंगप्पा और देवराज अर्स, आंध्रप्रदेश में के. बह्मानंद रेड्डी और जे. वेंगलराव, महाराष्ट्र में वसंतराव नाईक, पश्चिम बंगाल में प्रफुल्ल सेन, गुजरात में हितेन्द्र देसाई, हिमाचलप्रदेश में यशवंत सिंह परमार, असम में बिमल प्रसाद चलिहा और सरतचंद्र सिन्हा, केरल में के. करुणाकरण, ओडिशा में जानकी बल्लभ पटनायक, पंजाब में ज्ञानी जैलसिंह, मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह और हरियाणा में भजनलाल आदि ही ऐसे चंद मुख्यमंत्री हुए जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। दूसरी ओर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के कार्यकाल में महाराष्ट्र ही एक मात्र ऐसा सूबा रहा जहां 1999 से 2014 के बीच कांग्रेस ने 5 मुख्यमंत्री दिए। बाक़ी जगह मुख्यमंत्रियों को काम करने दिया गया।
पंजाब का घटनाक्रम कांग्रेस के दिग्गज नेताओं और राज्यों के क्षत्रपों को सदमे में डालने वाला है। पार्टी में किसी भी दिग्गज को यह अंदाजा नहीं था कि चुनाव के ऐन पहले कैप्टन को इस तरह से हटा दिया जाएगा। इसमे कोई संदेह नहीं कि जिस तरह से कैप्टन को हटाया गया है वह सामान्य नहीं था। जैसे भाजपा ने पिछले 6 महीने में 5 मुख्यमंत्री बदल दिए, उस सहजता से कांग्रेस कैप्टन को नहीं हटा सकी है। लेकिन इसमें यह भी देखा जाना चाहिए कि भाजपा ने जिनको हटाया, उनमें से किसका कद कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा था! सब के सब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मर्जी और कृपा से बने मुख्यमंत्री थे, जिनका संचालन रिमोट के जरिए ही हो रहा था। इसलिए दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। यही वजह है कि कैप्टन को हटाने की घटना ने कांग्रेस के पुराने और दिग्गज नेताओं की नींद उड़ाई है।
कांग्रेस में संगठन चुनावों को लेकर कुछ महीनों पहले सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं के समूह, जिसको जी-23 के नाम से जाना जाता है, के नेता इस घटनाक्रम से खासे हैरान-परेशान हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। उनको लग रहा है कि कांग्रेस में वह परंपरा शुरू हो गई है, जो सोनिया गांधी के राजनीति में सक्रिय होने और पार्टी की कमान संभालने के पहले थी।
पंजाब के घटनाक्रम का साफ संदेश है कि कोई भी क्षत्रप या वरिष्ठ नेता आलाकमान को आंख नहीं दिखा सकता है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक जी-23 के नेताओं ने कैप्टन को हटाने के तरीके को लेकर नाराजगी जताई है। लेकिन वह नाराजगी से ज्यादा चिंता है। उन सबको लग रहा है कि आगे उनकी बारी है। उन सबको धीरे-धीरे रिटायर कर दिया जाएगा या हाशिए पर डाल दिया जाएगा। राज्यों में भी पार्टी के अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, भूपेश बघेल और कमलनाथ जैसे क्षत्रपों को चिंता सताने लगी है। सबको लग रहा है कि जब बेहद शक्तिशाली मुख्यमंत्री माने जाने वाले कैप्टन की छुट्टी हो गई तो वे किस खेत की मूली है।
दरअसल कांग्रेस में कई बड़े नेता राहुल गांधी की योजना या पार्टी चलाने के तौर तरीकों में फिट नहीं बैठ रहे हैं। दशकों से पार्टी में होने और सरकार तथा संगठन में बड़े पदो पर रहने की वजह से वे अब भी पार्टी में हैं और सीमित अर्थों में उनकी भूमिका भी बनी हुई है पर आगे की योजना में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। ये नेता सिर्फ राहुल की योजना में ही फिट नहीं हैं, बल्कि वैचारिक तौर पर भी राहुल की राजनीति को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
राहुल गांधी जब भी मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते हैं तो वे सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर ही नहीं बल्कि मोदी के उद्योगपति मित्रों पर भी हमला बोलते हैं। यही नहीं, वे सीधे-सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी निशाने पर लेते हैं। जबकि पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता ऐसा करने से न सिर्फ बचते हैं बल्कि निजी चर्चाओं में राहुल के बयानों से असहमति भी जताते हैं। हाल ही में जलियांवाल बाग स्मारक का स्वरूप बदले जाने के मामले में जब राहुल ने कहा कि मोदी सरकार आजादी की लडाई के इस स्मारक को नवीनीकरण के नाम पर विरूपित कर शहीदों का अपमान कर रही है तो कैप्टन ने वहां किए बदलावों की खुल कर तारीफ की। किसान आंदोलन को लेकर भी अमरिंदर सिंह का रवैया पार्टी लाइन से हट कर रहा। उन्होंने कहा था कि किसानों के आंदोलन से प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, इसलिए किसानों को पंजाब के बाहर जाकर आंदोलन करना चाहिए।
बहरहाल, पंजाब में हुआ बदलाव राहुल की भावी राजनीति का पहला संकेत है तो राज्यसभा की सात सीटों के उपचुनावों के लिए प्रत्याशी चयन उसका दूसरा संकेत हैं। राहुल चाहते तो कांग्रेस के दो बड़े नेता गुलाम नबी आजाद और मुकुल वासनिक राज्यसभा मे जा सकते थे, लेकिन उन्होंने दोनों की संभावना खत्म करा दी। कांग्रेस में हाल के दिनों की ये सारी घटनाएं बताती हैं कि पार्टी की कमान अब पूरी तरह राहुल और प्रियंका के हाथों में है और अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी अब अपने पुराने सहयोगियों को सिर्फ 'आई एम सॉरी' बोलने की जिम्मेदारी ही निभाएंगी।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)