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ऐसे वीडियो से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं

ऐसे वीडियो से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं - No need to be frightened by such videos
आतंकवादी संगठन अलकायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी अचानक सामने आया है। अपने 14 मिनट के वीडियो में वह कश्मीर में आतंकवाद को हवा देने की कोशिश कर रहा है। वह कहता है कि कश्मीर को हमें नहीं भूलना चाहिए। मुजाहिद्दीन सेना एवं सरकार पर लगातार हमला करते रहें जिससे कि भारत की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो, क्योंकि कश्मीर अंतरराष्ट्रीय जेहाद का अंग है।

इस बात का विश्लेषण किया जा रहा है कि आखिर अल जवाहिरी एकाएक कश्मीर को लेकर सामने क्यों आया है? उसके वीडियो के साथ स्क्रीन पर आतंकवादी जाकिर मूसा की तस्वीर अवश्य दिख रही है लेकिन उसने उसका एक बार भी नाम नहीं लिया।

ध्यान रखने की बात है कि जाकिर मूसा को सुरक्षाबलों ने 23 मई को मौत के घाट उतार दिया था। जाकिर पहले हिज्बुल मुजाहिद्दीन का कमांडर था लेकिन उससे उसका मतभेद होता गया और उसने अंसार-गजवात-उल-हिन्द की स्थापना की। इस संगठन को अल कायदा से जुड़ा माना गया और यह सच भी था।

वस्तुत: जाकिर मूसा ने खुलकर यह ऐलान किया कि जम्मू-कश्मीर में हमारी लड़ाई आजादी या पाकिस्तान में मिलने के लिए नहीं है। यह अंतरराष्ट्रीय खिलाफत की लड़ाई है। हम इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए जेहाद कर रहे हैं। उसने हुर्रियत नेताओं को धमकी देते हुए कहा कि जो भी इससे परे बात करेगा, उसे लाल चौक पर लटका देंगे।

इसके पहले किसी आतंकवादी ने हुर्रियत नेताओं के बारे में ऐसी बात नहीं कही थी। सीमापार स्थित आतंकवादी संगठनों ने इसका विरोध किया लेकिन जाकिर मूसा अपने मत पर अड़ा रहा। इससे पहला निष्कर्ष यह निकलता है कि अल कायदा ने इस क्षति के बाद जम्मू-कश्मीर में फिर से अपने संगठन को खड़ा करने की पहल की है।

सामान्यत: यह निष्कर्ष गलत नहीं कहा जा सकता है। किंतु विचार करने वाली बात यह भी है कि आखिर जाकिर मूसा के मारे जाने के 1 महीने 17 दिनों बाद अल कायदा के प्रमुख को इसकी याद क्यों आई? जाकिर मूसा के अंत के तुरत बाद अल कायदा कोई बयान जारी कर सकता था। इसका मतलब हुआ कि इनके बीच त्वरित सूचना तंत्र कमजोर हो चुका है, जो संगठन के जर्जर होने का सबूत है।

जाकिर मूसा के मारे जाने के काफी पहले 22 दिसंबर 2018 को सेना ने घोषणा की थी कि जाकिर मूसा गैंग का सफाया किया जा चुका है। उस दिन कश्मीर घाटी में 6 आतंकवादी मारे गए थे। ये सब जाकिर मूसा गिरोह के सदस्य थे एवं स्थानीय थे। इसके बाद जाकिर मूसा बचा हुआ था।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि जाकिर मूसा बुरहान वानी के बाद किंवदंती अवश्य बन गया था, प्रदर्शनों से लेकर आतंकवादियों के जनाजे तक में उसने नारे लगते थे, पर वह कश्मीर में ज्यादा कुछ कर नहीं पाया। कुछ बड़े आतंकवादी उसके साथ आए अवश्य, पर पाकिस्तान तथा वहां सक्रिय आतंकवादी आकाओं के खिलाफ बोलने के कारण वह अलग-थलग था। यह बताना इसलिए जरूरी है, क्योंकि जवाहिरी के वीडियो देखकर कोई यह न माने कि अल कायदा की किसी तरह व्यापक उपस्थिति कश्मीर में है।

कुछ विश्लेषक यह मान रहे हैं कि पाकिस्तान इस समय इतने दबाव में है कि वह सीधे कश्मीर में हस्तक्षेप नहीं कर सकता इसलिए उसने हिंसा की आग भड़काने के लिए जवाहिरी को सामने लाया है। जवाहिरी इस समय कहां है? इसके बारे में भी अलग-अलग मत हैं। संभव है कि ओसामा बिन लादेन की तरह वह भी पाकिस्तान में ही कहीं हो। अफगानिस्तान से तालिबानों के शासन के अंत के बाद से वह कहीं दिखा नहीं है।

अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 के हमले के लिए 21 सर्वाधिक वांछित आतंकवादियों की सूची में ओसामा के बाद उसे दूसरे स्थान पर रखा था। जवाहिरी ने अपने वीडियो पाकिस्तान पर भी तीखा हमला किया है। जवाहिरी ने कहा है कि पाकिस्तानी सेना और सरकार केवल मुजाहिद्दीनों का विशेष राजनीतिक इस्तेमाल करने में रुचि रखती है। बाद में उन्हें उनके हाल पर छोड़ देती है या फिर उन पर अत्याचार करती है।

उसने पाकिस्तानी सेना और सरकार को अमेरिका का चापलूस कहा है। जवाहिरी ने कहा कि जब अफगानिस्तान से रूसियों को निकालने के बाद अरब मुजाहिदीन कश्मीर की तरफ बढ़ने वाले थे तो पाकिस्तान ने उन्हें रोक दिया।

ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लाने की भूमिका अदा करेगा। आतंकवाद को लेकर भारत की कूटनीति के कारण वह भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव में है। बालाकोट कार्रवाई के बाद भारत की रणनीति तो उसके सामने है ही, एफएटीएफ द्वारा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए पर्याप्त कदम न उठाए जाने के कारण उस पर काली सूची में डाले जाने का खतरा मंडरा रहा है।

इसी महीने इमरान खान अमेरिका गए हैं। इसलिए पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लाने की मूर्खता नहीं करेगा। हां, पाकिस्तान में एक वर्ग ऐसा है, जो इनका समर्थक है एवं वे हरसंभव मदद कर रहे होंगे किंतु इमरान सरकार ऐसी मूर्खता नहीं कर सकती।

वैसे जाकिर मूसा ने भी ठीक 2 साल पहले पाकिस्तान के बारे में ऐसा ही बयान दिया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं अपनी आंतरिक स्थिति के कारण पाकिस्तान खुलकर पहले की तरह इनकी मदद करने की स्थिति में नहीं है।

पिछले 8 जुलाई को पाकिस्तानी मीडिया में एक व्यक्ति के पकड़े जाने की खबर आई, जो खैरात के नाम पर लोगों से धन इकट्ठा कर अल कायदा को भेजता था। पाकिस्तान के आतंकवादरोधी विभाग (सीटीडी) ने आतंकवादरोधी अधिनियम के तहत आतंकवाद को वित्तपोषण के आरोप में ह्यूमन कन्सर्न इंटरनेशनल नामक गैरसरकारी संगठन के स्थानीय प्रमुख अली नवाज को गिरफ्तार किया। उसे आतंकवादीरोधी न्यायालय में पेश किया गया जिसने उसे सीटीडी की हिरासत में भेज दिया।

हो सकता है, इस तरह की और भी कार्रवाई हुई हो। पाकिस्तान के सामने इस समय दुनिया को ऐसी कार्रवाइयों का प्रमाण देने की मजबूरी है। पाकिस्तान हाफिज सईद तथा मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर हुआ है।

जो खबर आ रही है, उसके अनुसार ये सब अपना ढांचा अफगानिस्तान की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे आईएसआईएस के उभरने के बाद अल कायदा पूरी दुनिया में कमजोर हो गया। अल बगदादी पहले अल कायदा का ही सदस्य था। उसने अलग संगठन बनाया और उसका आकर्षण इतना हुआ कि अल कायदा की रीढ़ ही टूट गई।

अलकायदा से प्रभावित संगठन उत्तरी अफ्रिका में जरूर सक्रिय हैं, लेकिन एक संगठन के रूप में वह इस समय अत्यंत कमजोर हालत में है। चूंकि आईएस अपने मुख्य केंद्रों इराक एवं सीरिया में पराजित हो चुका है तथा उसके बचे-खुचे आतंकवादी बिखरे हुए हैं इसलिए संभव है जवाहिरी ने उनको अपनी ओर खींचने तथा कश्मीर को जेहाद के मुख्य केंद्र में लाने की रणनीति अपनाई हो।

हमें हर ऐसी धमकी को गंभीरता से अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि एक ओर कुरान और दूसरी ओर हथियार रखकर जेहाद के उसके आह्वान से कुछ युवाओं के भ्रमित होने का खतरा है, तो इस पर नजर रखनी है। किंतु इससे ज्यादा हमें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। अल कायदा के विचारों का समर्थन आधार तो होगा, लेकिन जवाहिरी के आह्वान पर युवा आतंकवादी बनकर लड़ने के लिए कूद पड़ेंगे, इसकी संभावना न के बराबर है।

वैसे भी गृह राज्यमंत्री ने संसद में, जो बयान दिया उसके अनुसार स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती में काफी कमी आई है। आईएस ने 3 वर्ष पहले ही खलीफा के साम्राज्य का एक नक्शा जारी किया था जिसमें जम्मू-कश्मीर के साथ भारत के पश्चिमी भाग को शामिल किया गया था। उसने दक्षिण एशिया के लिए कमांडर की भी भर्ती की थी। बावजूद समय-समय पर प्रदर्शनों में आईएस के झंडा लहराने का उसका प्रभाव सुरक्षा बलों ने कश्मीर में होने नहीं दिया।

इस समय 'ऑपरेशन ऑलआउट' से कश्मीर में आतंकवादियों को मूलभूत आधार उपलब्ध करने वाले तत्वों को निष्प्रभावी करने की जिस तरह की कार्रवाई चल रही है, उसमें अल कायदा का विस्तार कठिन है। जब तक पाकिस्तान खुलकर धन प्रदान न करे, आतंकवादियों के भर्ती, प्रशिक्षण और घुसपैठ कराने का सक्रिय ढांचा उपलब्ध न कराए, किसी आतंकवादी संगठन के लिए कश्मीर में सशक्त संघर्ष अब संभव नहीं।

पाकिस्तान चाहेगा जरूर कि कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या बढ़े, लेकिन इमरान सरकार के लिए पहले की तरह खुलकर ऐसा करना अभी संभव नहीं। वैसे भी कश्मीर का वातावरण बदल रहा है। सेना में भर्ती के लिए बारामूला में जितनी संख्या में नौजवान बाहर आए, वह बदलते कश्मीर का एक छोटा प्रमाण, जो है ही।

गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी यात्रा के दैरान पंचों एवं सरपंचों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की तथा विकास कार्यों में उनकी सीधी भागीदारी का संकल्प बताया। अब केंद्र से सीधे उनको विकास राशि जा रही है। सरकार उन लोगों तक पहुंच रही है जिन्हें सत्ता ने अभी तक हाशिए पर रखा था।

तो एक साथ सुरक्षा ऑपरेशन, अलगाववादियों, भारत विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई तथा जनता तक सीधे पहुंचने की नीतियों के माहौल में नए सिरे से आतंकवादी संगठन प्रभावी नहीं हो सकते।
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