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Written By Author अनिल जैन
Last Updated : बुधवार, 9 अक्टूबर 2019 (20:45 IST)

एवरेस्ट पर चढ़ने की होड़ में भी अब पैसे का खेल

Mount Everest। एवरेस्ट पर चढ़ने की होड़ में भी अब पैसे का खेल - Mount Everest
दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर सागरमाथा यानी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचना और वहां पताका फहराना पर्वतारोहियों के लिए बड़ी उपलब्धि होती है। वहां पहुंचकर आसपास के दृश्यों की सुंदरता को निहारना और उसे अपने कैमरे में कैद करना भी जीवन का अद्भुत अनुभव होता होगा!
 
इसके अलावा इनमें से कई लोग ऐसे भी हैं, जो बर्फीली चोटियों पर बसने के सपने को साकार करने की संभावना तलाशने जाते हैं लेकिन यह सफर बेहद कठिनाइयों भरा होता है। हड्डियां जमा देने वाली सर्दी में कई दिन बिताना हर किसी के वश की बात नहीं होती। बर्फीली आंधी-तूफान के खतरे भी हमेशा बने रहते हैं। कई बार ऐसा भी होता है, जब बर्फीली आंधी की चपेट में आकर या बर्फ में दबकर कई पर्वतारोही अपनी जान गंवा बैठते हैं।
 
एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए पर्वतारोही वर्षों अभ्यास करते हैं, लेकिन वहां पहुंचने की सबकी हसरत पूरी नहीं हो पाती। हालांकि अब पर्वतारोहण के लिए तरह-तरह के साधन उपलब्ध हो गए हैं, प्रशिक्षण और तकनीक में इतना विकास हो गया है कि हर साल एवरेस्ट पर पहुंचने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। इस साल इस मौसम में रिकॉर्डतोड़ 885 लोगों ने एवरेस्ट की चोटी पर अपने कदम रखे। पिछले साल 807 लोग वहां पहुंचे थे।
 
इस साल वहां अधिक संख्या में लोगों के पहुंचने की वजह से काफी भीड़ हो गई थी जिससे वहां ट्रैफिक जाम-सा माहौल बन गया था। वहां के ऐसे ही माहौल का एक फोटो पिछले दिनों 'एजेंस फ्रांस प्रेस' नामक समाचार एजेंसी ने जारी किया था। वहां पर बढ़ी भीड़ और थमी रफ्तार की खबरों ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं। इसके बाद यह खबर आई कि महज 9 दिनों में एवरेस्ट शिखर पर 16 पर्वतारोहियों की मौत हो गई।
 
इस बीच एवरेस्ट की चढ़ाई का एक वीडियो भी सामने आया जिसमें कई पर्वतारोही रास्ते में पड़े एक महिला के शव को लांघते हुए शिखर की ओर बढ़ रहे हैं। कहा जा सकता है कि हमारी सभ्यता के साथ ही हमारी निर्ममता और संवेदनहीनता भी उस एवरेस्ट शिखर पर पहुंच चुकी है। ध्यान देने लायक बात यह है कि जिस दौरान इन 16 पर्वतारोहियों की मौत हुई, उस दौरान वहां न तो कोई बर्फीला तूफान आया और न ही मौसम ने कोई ऐसा कहर ढाया कि वह परेशानियों का कारण बन गया हो।
 
बेशक, इस दुर्गम पर्वत शिखर पर बड़ी संख्या में लोगों का पहुंचना बड़ी बात है लेकिन वहां तक पहुंचने में हर साल कुछ पर्वतारोहियों के मरने की खबरें आना भी कम चिंता की बात नहीं है। माना जा सकता है कि जान गंवाने के ज्यादातर मामलों का कारण इस 29,029 फुट ऊंची चोटी की बर्फीली ठंडक ही रही होगी, लेकिन सिर्फ इस ठंडक को ही दोष नहीं दिया जा सकता।
 
साल 2012 में भी जर्मनी के पर्वतारोही राल्फ़ दुज्मोवित्स की खींची गई फोटो वायरल हुई थी जिसमें पर्वतारोहियों की लंबी क़तार दिखती है। राल्फ़ का कहना है कि क़तार लग जाना ख़तरनाक़ है, इंतज़ार के दौरान ऑक्सीजन ख़त्म होने का ख़तरा होता है और वापसी में ऑक्सीजन न होने की स्थिति पैदा हो जाती है। 1992 में वे एवरेस्ट गए थे कि लौटते समय मेरी ऑक्सीजन ख़त्म हो गई थी, उस समय ऐसा लगा था जैसे कोई लकड़ी के हथौड़े से चोट कर रहा है।
 
वे बताते हैं कि वे सौभाग्यशाली थे कि किसी तरह सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच गए। राल्फ़ ने कहा कि जब हवा 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल रही हो तो बिना ऑक्सीजन काम नहीं चल सकता। आपके शरीर का तापमान बहुत गिर जाता है। 3 बार एवरेस्ट फ़तह करने वाली माया शेरपा का कहना है कि रास्ते में ऑक्सीजन सिलेंडर चोरी भी हो जाता है कि ये किसी को मार डालने से कम नहीं है।
 
माना यह जाता है कि जब आप एवरेस्ट के आधार शिविर से चलें तो जितनी जल्दी हो सके शिखर तक पहुंचें और वापस आ जाएं। लेकिन अब यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि अब बहुत सारा समय तो वहां सेल्फी लेने में भी बीतता है।
 
पिछले दिनों एरिजोना का एक पर्वतारोही जब इस शिखर पर पहुंचा तो उसने देखा कि वहां 3-4 लोगों के खड़े होने की जगह पर करीब 25 लोग जमा थे जिनमें कुछ सेल्फी ले रहे थे। नियम यह है कि आप जितना ज्यादा समय इस शिखर पर आने-जाने में देंगे, बर्फीली ठंड की चपेट में आने का खतरा उतना ही होगा। भारतीय पर्वतारोही अमीषा चौहान को शिखर से उतरने के लिए पूरे 20 मिनट इंतजार करना पड़ा, जबकि कई लोगों को तो उतरने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है।
 
पर्वतारोहियों के बढ़ते आकर्षण के चलते नेपाल के लिए यह शिखर काफी अरसे से डॉलर की खान बना हुआ है। नेपाल सरकार इस शिखर पर जाने वाले हर पर्वतारोही से 11 हजार डॉलर की फीस लेती है और इस परमिट व्यवस्था में यह शर्त कहीं नहीं जुड़ी है कि आप में पर्वतारोहण की आधारभूत कुशलता है भी या नहीं?
 
अब यह मांग भी उठने लगी है कि न्यूनतम योग्यता वालों को ही परमिट दिया जाए, लेकिन नेपाल सरकार अपनी यह कमाई भला क्यों खोना चाहेगी, वह भी तब, जब चीन कहीं कम फीस में 'एवरेस्ट पर्यटन' के नाम पर लोगों को लुभाने-बुलाने में लगा है।
 
कहीं-न-कहीं दुनियाभर में यह धारणा बनने लगी है कि अगर आप परमिट फीस के लिए आधुनिक उपकरणों के लिए और शेरपाओं की सेवा लेने के लिए धन खर्च कर सकते हैं, तो फिर एवरेस्ट पर झंडा फहरा सकते हैं।
 
यह सच है कि 1953 में जब शेरपा तेनजिंग और एडमंड हिलेरी पहली बार एवरेस्ट शिखर पर पहुंचे थे, तब मानव सभ्यता के लिए यह एक दुर्लभ क्षण था। वे वहां पहुंच गए थे, जहां उनसे पहले कोई मानव नहीं जा सका था। लेकिन अब एवरेस्ट का पर्वतारोहण महज एक खेल बनकर रह गया है और इसमें पैसे का खेल भी चलता रहता है। सागरमाथा को इन दोनों ही खेलों से मुक्ति की दरकार है! (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)