Jai Shiv Omkara Aarti in Hindi
Jai Shiv Omkara Aarti in Hindi : शिवजी की आरती ॐ जय शिव ओंकारा : सदियों से एक आरती प्रचलित है जिसे सिर्फ शिवजी की आरती माना जाता रहा है, परंतु हकीकत में यह त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की एक साथ आरती है। इस आरती की रचना इसकी रचना पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी ने थी।
भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी की आरती | जय शिव ओंकारा आरती हिंदी अर्थ सहित
जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धंगी धारा।।
ॐ हर हर महादेव।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजै।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजै।।
ॐ हर हर महादेव।।
दो भुज चारु चतुर्भुज दशभुज अति सोहै।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहै।।
ॐ हर हर महादेव।।
अक्षमाला वनमाला रुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ॐ हर हर महादेव।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ॐ हर हर महादेव।।
कर मध्ये सुकमण्डलु चक्र शूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जग-पालनकारी।।
ॐ हर हर महादेव।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षरमें शोभित ये तीनों एका।।
ॐ हर हर महादेव।।
त्रिगुणस्वामिकी आरति जो कोइ नर गावै।
भनत शिवानन्द स्वामी मनवाञ्छित पावै।।
ॐ हर हर महादेव।।
आरती का हिंदी में अर्थ:-
ओंकार (ॐ) रूप शिव की जय हो।
ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव के स्वरूप आप ही हो।।
एक मुख वाले (नारायण), चार मुख वाले (ब्रह्मा), पांच मुख वाले (शिव) हैं।
हंस पर आसीन (ब्रह्मा), गरुड़ पर आसीन (नारायण), व शिव अपने वाहन बैल के ऊपर सज्जित हैं।।
ब्रह्मा की दो भुजाएं हैं, विष्णु की चार भुजाएं हैं व शिव की दस भुजाएं बहुत सुंदर लगती हैं।
आपके तीनों रूप अति सुंदर हैं और तीनों लोकों में मन मोह लेते हैं।।
ब्रह्मा ने रुद्राक्ष की माला, विष्णु ने सुगन्धित पुष्पों की माला तो शिव ने, राक्षसों के कटे हुए सिर की माला पहनी हुई है।
चंदन का तिलक (ब्रह्मा), मृगमद कस्तूरी का तिलक (विष्णु), और चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है।।
श्वेत वस्त्र (ब्रह्मा), पीले वस्त्र (विष्णु), व शिव ने बाघ की खाल के वस्त्र पहने हुए हैं।
ब्रह्मा के अनुयायी ब्रह्मादिक ऋषि, विष्णु के अनुयायी सनक आदि ऋषि तथा शिवजी के अनुयायी भूत, प्रेत इत्यादि संग हैं।।
ब्रह्मा के हाथों में कमंडल, विष्णु के चक्र, व शिव के त्रिशूल धारण है।
एक जग के रचनाकार, एक संहारक, तथा एक पालनकर्ता हैं।।
हम ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव को अविवेक के कारण अलग अलग देखते हैं।
वास्तव में प्रणव अक्षर (ॐ) में यह तीनों एक ही हैं।।