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5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के मेरुदंड होंगे हमारे सूक्ष्म व लघु उद्योग

Indian Economy
सूक्ष्म व लघु उद्योग: भारतीय सामाजिक-आर्थिक स्वावलंबन के मेरुदंड
 
- शिवेश प्रताप
                       
भारत के सामान्य जन अवधारणा में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण एक दूसरे के पर्यायवाची जैसा मान लिया गया है, परंतु इस लेख को पढ़ने के बाद इस स्थापित मान्यता का भ्रम टूटेगा।

देश की आजादी के तुरंत बाद ही देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा एक महत्वाकांक्षी औद्योगिकीकरण योजना चलाई गई, जिसका लक्ष्य भारी मशीनरी तथा इंजीनियरिंग उपकरणों पर था। परंतु इसी के साथ एक और बात ध्यान देने की है कि महात्मा गांधी इस व्यापक औद्योगिकीकरण एवं यंत्रीकरण के खिलाफ थे, साथ ही उनका आर्थिक दर्शन भारत के एक आम आदमी को सर्वाधिक लाभ पहुंचाने वाले आर्थिक ढांचे के पक्ष में था।

आसान शब्दों में कहें तो उनका विचार था कि भारत के कामगार वर्ग के लिए रोजगार का निर्माण प्राथमिक बिंदु होना चाहिए एवं उसके बाद द्वितीयक बिंदुओं पर मशीनरी आदि का स्थान होना चाहिए। 
 
गांधी जी के अनुसार मशीनों का प्रयोग उस स्थान पर होना चाहिए था, जहां पर मानव श्रम अपने संतृप्त प्रयोग में हो। उनका स्वप्न एक ऐसे विकेंद्रीकृत आर्थिक ढांचे का था, जहां गांवों को एक आत्मनिर्भर ईकाई के रूप में विकसित किया जाए। उन्होंने कुटीर उद्योगों एवं घरेलू निर्माण इकाइयों को बल देने की बात कही थी।


चरखा और खादी मात्र एक सिंबल ही नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता एवं अंत्योदय आधारित उनके आर्थिक दर्शन को व्यक्त करते थे। गांधी जी के सपनों को भारत के संविधान में भी स्थान दिया गया एवं ग्रामीण इकाइयों के संवर्धन को राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया गया।

 
वर्तमान में इन्हीं ग्रामीण इकाइयों को हम सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों के रूप में जानते हैं। यह सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयां सदैव से भारत की अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक क्रांति का मेरुदंड बने रहे हैं। आइए इस लेख के माध्यम से भारत की अर्थव्यवस्था समाज एवं संस्कृति में एमएसएमई के योगदान की चर्चा करते हैं। साथ ही मोदी सरकार के द्वारा इस क्षेत्र को और उन्नति प्रदान करने के लिए किए जा रहे सर्वश्रेष्ठ प्रयासों को जानते हैं। 
 
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों का वर्गीकरण सरकार के द्वारा उनके निवेश एवं व्यापारिक टर्नओवर के आधार पर किया जाता है। एमएसएमई डेवलपमेंट एक्ट के अनुसार ऐसी इकाइयां जिनका मूल्य एक करोड़ तक तथा टर्नओवर 5 करोड़ तक होता है उन्हें सूक्ष्म इकाइयां कहते हैं।

इसी तरह से जिनका मूल्य 10 करोड़ एवं टर्नओवर 50 करोड़ तक होता है उन इकाइयों को लघु इकाइयां कहते हैं। मध्यम इकाइयां वह हैं जहां इकाइयों का मूल्य 50 करोड़ एवं उनका टर्नओवर ढाई सौ करोड़ तक होता है। 2006 में यह वर्गीकरण निर्माण एवं सेवा क्षेत्रों के लिए अलग-अलग था, परंतु कोविड-19 के बाद आत्मनिर्भर पैकेज में इन दोनों क्षेत्रों को मिलाकर उनका मानकीकरण हो गया है।
 
 
नेशनल सैंपल सर्वे के डाटा के अनुसार देशभर में कुल 6 करोड़ 33 लाख सूक्ष्म लघु एवं मध्यम इकाइयां हैं। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि देश की 93% एमएसएमई इकाइयां सूक्ष्म उद्योगों की श्रेणी में आते हैं। इनमें सबसे अधिक इकाइयां उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में कार्यरत हैं। यह दोनों प्रदेश अकेले ही 28% इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। देशभर में मध्यम इकाइयों का योगदान मात्र 1 प्रतिशत है।

 
भारत देश को ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा बुरी तरह से लूटकर कंगाल बनाए जाने के बाद जब हमें आजादी मिली तो इस देश की खस्ताहाल आर्थिक स्थितियों में किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि 1 दिन यही भारत आगे चलकर आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।

देश के उंगलियों पर गिने जाने वाले उद्योगपतियों के अलावा समाज के साथ-साथ सरकारों के पास भी इतनी आर्थिक संपन्नता नहीं थी कि वह बड़े उद्योग स्थापित कर सकें एवं ऐसे में देश के आर्थिक विकास की नींव इस देश के गांवों में फैले हुए सूक्ष्म उद्योगों के द्वारा डाली गई। बहुत ईमानदारी से कहा जाए तो हमारे देश के यह सूक्ष्म उद्योग राष्ट्र मंदिरों की भूमिका निभाते आ रहे हैं। 
 
वह ऐसा समय था जब की बैंकिंग व्यवस्था है तथा आर्थिक बाजारों का उदय देश में नहीं हुआ था। विदेशी निवेशकों पर सरकार द्वारा नियंत्रण था। यह सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग बड़े उद्योगों के लिए भी एक जीवन रेखा का कार्य करते हैं, साथ ही इनके साधारण एवं आधारभूत संरचना के कारण बाजार को इनके उत्पादों के रूप में अपेक्षाकृत अच्छी गुणवत्ता का सामान बहुत ही प्रतिस्पर्धी मूल्य पर प्राप्त होता है जिसका सीधा सा अर्थ है कि बड़े उद्योगों के द्वारा बनाए जाने वाले सामानों के मूल्य को कम रखने के पीछे भी इन छोटे उद्योगों एवं इकाइयों का बड़ा महत्वपूर्ण हाथ है। 
 
साथ ही भारत सरकार के द्वारा कई लाभों को सुनिश्चित करने तथा कर्ज लेने के उदारवादी नियमों के कारण इनके द्वारा बड़े उद्योगों को बहुत अच्छा सहयोग मिल रहा है। आइए हम चर्चा करते हैं कि किस प्रकार यह एमएसएमई उद्योग देश के विकास में सबसे उत्कृष्ट सहयोग कर रहे हैं, चाहे भारत के अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात हो, रोजगार पैदा करने की बात हो, निर्यात के द्वारा लाभ कमाने की बात हो या फिर सकल घरेलू उत्पाद के विकास की हो। 
 
सामाजिक आर्थिक न्याय में वृद्धि: 
 
सामाजिक आर्थिक न्याय को देश में सुनिश्चित करने के मामले में एमएसएमई का योगदान सर्वश्रेष्ठ है। उपरोक्त कारणों की वजह से यह सेक्टर भारत के विकास की रीढ़ है। भारत के संपूर्ण सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई सेक्टर का योगदान 37.5 प्रतिशत है।

देशभर में फैले हुए गुमनाम एमएसएमई उद्योग बड़ी ही शांति से भारत की इकॉनॉमी में 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं। ग्रामीण विकास में इनका योगदान इस प्रकार से समझा जा सकता है कि 6.33 करोड़ उद्यम इकाइयों में से 51% भारत के ग्रामीण इलाकों में फैले हैं। शेष छोटी इकाइयां भी छोटे-छोटे शहरों में बसे हुए हैं एवं उन शहरों के आर्थिक विकास में बड़ी हिस्सेदारी करते हैं। 
 
भारत की वर्तमान आबादी का दो तिहाई आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है इससे आप यह समझ सकते हैं कि एमएसएमई उद्योग किस प्रकार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। क्षेत्र विशेष में फैले हुए छोटे उद्योग अपनी परंपरागत क्षेत्रीय विभिन्नता को समेटे हुए देश भर में लगभग समान आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हैं। 
 
रोजगार की समस्या का संकट मोचक: 
 
यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखा जाए तो भारत दशकों से रोजगार न उत्पन्न कर पाने की समस्या से पीड़ित है। कोविड के बाद संसार के बड़े-बड़े देशों की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर संकेत कर रही है। बड़े-बड़े कंपनियों से लेकर नए स्टार्टअप्स तक कर्मचारियों की छटनी हो रही है। ऐसे विपरीत समय में भी देश के भीतर एमएसएमई उद्योग रोजगार पैदा करने के मामले में सर्वश्रेष्ठ रहा है।

नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश के एमएसएमई सेक्टर के द्वारा 11.10 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराता है। एक और जहां भारत कच्चे तेल के आयात में अपने विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी देख रहा है तो ऐसे समय में निर्यात को शक्ति प्रदान करने वाले एमएसएमई सेक्टर द्वारा निर्यात के क्रम को लगातार जारी रखने के दौरान हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को एक शक्ति मिलती रही है।
 
 
भारतीय निर्यात में 50 प्रतिशत का योगदान: 
 
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिसटिक्स के अनुसार भारत के कुल निर्यात का 50% यानी आधा हिस्सा अकेले सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों के द्वारा होता है। आज नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदम मेक इन इंडिया का मूल उद्देश्य है, विनिर्माण के जरिए भारतीय आर्थिक सुधारों के एक नए युग का सूत्रपात करना। इसके द्वारा एक आनुपातिक आर्थिक प्रगति के साथ-साथ एक बेहतर रोजगार के अवसरों को सुनिश्चित करना भी सरकार का मूलभूत लक्ष्य है।

सरकार जब मेक इन इंडिया के सफलता के लिए उद्योगों को देखती है तो भी उसे इन्हीं सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों में अपनी संभावनाएं दिखाई देती हैं क्योंकि भारत के कुल रजिस्टर्ड एमएसएमई इकाइयों में 38% इन्हीं निर्माण क्षेत्रों की इकाइयां हैं साथ ही एमएसएमई में कार्य करने वाले कुल रोजगार का 32% इन्हीं विनिर्माण क्षेत्रों में लगा हुआ है। 
 
सामाजिक-आर्थिक न्याय में अहम किरदार: 
 
इन सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों का योगदान सिर्फ आर्थिक स्तर पर ही नहीं है अपितु सामाजिक न्याय एवं समाज के निचले स्तर के लोगों को सशक्त करने में एक क्रांतिकारी योगदान दिया है। महिला सशक्तिकरण की कितनी भी बड़ी से बड़ी बातें बड़े कॉर्पोरेट करें, परंतु देश के इस आधी आबादी के लिए वास्तविकता में कोई भी परिवर्तन यदि लाया गया है तो वह इन्हीं सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के द्वारा लाया गया है।

देश भर में फैले हुए करोड़ों सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों में 20% इकाइयों का स्वामित्व महिलाओं के पास है जबकि भारत के बड़े कॉर्पोरेट्स या कंपनियों में महिलाओं का स्वामित्व केवल 11 प्रतिशत है। 
 
सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों में महिलाओं का प्रभाव इस प्रकार से समझा जा सकता है कि इनके निपुणता के आधार पर ही सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, कपड़े, अचार एवं अन्य घरेलू उत्पादों वाले उद्योग आज एमएसएमई की पहचान बन कर उभरे हैं। यह सूचनाएं सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के बारे में हमारे मन में स्थापित विचारों के अलग जो दृश्य बना रहे हैं वह कितने अलग हैं और साबित करते हैं कि हमारे सूक्ष्म और लघु उद्योगों को वह स्थान नहीं मिला जिनके वह हकदार थे।
 
 
एमएसएमई में यदि पिछड़े समाज एवं जातियों की बात की जाए तो 12.4% शेड्यूल कास्ट, 4.1% शेड्यूल ट्राइब तथा 49.7% अन्य पिछड़ा वर्ग इन इकाइयों का स्वामित्व रखता है। इसका अर्थ है की दो-तिहाई उद्योग समाज के निचले अथवा पिछड़े तबकों के द्वारा चलाया जाता है ऐसे में एमएसएमई की प्रगति का अर्थ है इन सभी वर्गों की प्रगति सुनिश्चित करना। 
 
लोक परंपराओं एवं विरासत का संरक्षण एवं संवर्धन: 
 
इसके अलावा एमएसएमई अपने लोक परंपराओं एवं विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन में भी अपना अमूल्य योगदान देता है। उदाहरण के रूप में खादी व रेशम के कपड़े हों, खुर्जा की पॉटरी, जलेसर की घंटियां, फिरोजाबाद की चूड़ियां या अलीगढ़ के ताले हों सभी अपने लोग परंपरा के संरक्षण को साथ लेकर चल रहे हैं।
 
भारत में कृषि क्षेत्र का विशेष रूप से लाभकारी ना होना कृषकों से लेकर सरकारों तक एक बहुत बड़ा परेशानी का कारण है, क्योंकि देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग केवल कृषि पर निर्भर है। खाद्य प्रसंस्करण, कृषि उत्पादों के मूल्य वर्धन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

इस प्रकार से एमएसएमई के अंतर्गत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां कृषि क्षेत्र की इन दो जटिल समस्याओं का समाधान स्थाई रूप से कर सकती हैं। साथ ही ऐसे इकाइयों के द्वारा कृषि उत्पादों के मूल्य वर्धन के साथ-साथ गैर कृषि क्षेत्र में भी ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसरों का सृजन होगा।
 
 
उपरोक्त कई विषयों की चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि एमएसएमई इकाइयों का संवर्धन करके वर्तमान सरकार कई लक्ष्यों की पूर्ति एक साथ कर सकती है। साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय आयात से हमारे सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पढ़ना चाहिए। उदाहरणस्वरूप पिछली सरकारों के दूर दृष्टि के अभाव के कारण चीन के द्वारा भारत में निर्यात किए जाने वाले खिलौनों ने भारत के क्षेत्रीय खिलौना निर्माताओं की कमर तोड़ दी एवं कई छोटे उद्योग बंद हो गए।

देश इस तंद्रा से तब उठा जब चीन के इन सस्ते खिलौनों में प्रयोग किए जाने वाले कैंसर कारक प्लास्टिक की बात पता चली परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भारत के ग्रामीण इकाइयों के द्वारा बनाए जाने वाले खिलौने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं प्लास्टिक कचरा जैसी समस्याओं को जन्म नहीं देते थे साथ ही वह हमारी लोक संस्कृति एवं परंपरा के संरक्षक होने के साथ-साथ सतत विकास के लक्ष्य को भी पूर्ण करते थे। 
 
ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए इन एमएसएमई इकाइयों के लिए मोदी सरकार अबाधित विद्युत आपूर्ति के साथ-साथ ब्रॉडबैंड हाईवे के द्वारा डिजिटल असमानता को दूर कर रही है। अच्छे सड़कों के निर्माण के साथ-साथ अवसंरचना के विकास पर भी ध्यान दे रही है, जैसे कौशल विकास के द्वारा नई चीजों को सिखाया जाना एवं हुनर हाट जैसे व्यवस्थाओं का संवर्धन करते हुए इकाइयों को बाजार एवं मांग के अवसर प्रदान करना। 
 
कांग्रेस सरकार के द्वारा एमएसएमई मंत्रालय बनाया गया, जिससे कि जीडीपी में एक तिहाई योगदान देने वाले इस क्षेत्र के लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सकें। परंतु इस क्षेत्र में जो आमान परिवर्तन आए वह 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद ही दिखाई दिए। 2020 में उद्यम पंजीकरण पोर्टल का प्रारंभ किया गया जिससे कि कंपनियों के ऑनलाइन पंजीकरण को सुनिश्चित किया जा सके। उद्योग आधार नंबर प्राप्त करने के लिए केवल एक पेज का उद्योग आधार मेमोरेंडम नाम का रजिस्ट्रेशन करना होता है।

 
चुनौतियों के समाधान करती मोदी सरकार: 
 
एमएसएमई इकाइयों के लिए एक बड़े बाजार का निर्माण करने तथा बड़े उद्योगों के इकॉनमी ऑफ स्केल से संगरोध करने हेतु सार्वजनिक प्रोक्योरमेंट नीति को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रयोग किया गया है। सभी केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को अपने वार्षिक समान एवं सेवाओं की खरीदी का 25% एमएसएमई इकाइयों के द्वारा ही करना है। सरकार का कड़ा निर्देश है कि 200 करोड़ के भीतर के बजट के लिए कोई भी वैश्विक निविदा आमंत्रित नहीं की जाएगी एवं देश के ही उद्योगों को इसका लाभ मिलना चाहिए।
 
 
एमएसएमई इकाइयों के लिए एक सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है वर्किंग कैपिटल की क्योंकि सामान की निर्माण से लेकर उनके अंतिम व्यक्ति तक बिक्री में सबसे लंबे समय तक जिसकी पूंजी बाजार में रहती है वह यह छोटी इकाइयां ही हैं। सरकार द्वारा इस क्षेत्र में स्थाई समाधान के लिए ट्रेड रिसिवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम TReDS का निर्माण किया जा रहा है जो एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक विनिमय केंद्र होगा, जहां से भविष्य में मिलने वाले पेमेंट्स के आधार पर बैंकिंग सिस्टम वर्तमान की आवश्यकताओं के लिए उनको पेमेंट कर देंगे। मेरा पूर्ण विश्वास है कि यह कदम एमएसएमई के लिए एक क्रांतिकारी कदम होगा। 
 
प्रधानमंत्री रोजगार निर्माण पोर्टल के द्वारा सूक्ष्म इकाइयों के लिए 2020-21 में 7 लाख से अधिक रोजगार पैदा किया गया। केंद्र सरकार के द्वारा सूक्ष्म एवं लघु उद्योग क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट का भी निर्माण किया गया है जिसके द्वारा बिना किसी अनुबंध के सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों को दिया जा रहा है। 2018-19 में एमएसएमई उद्योगों को 30 हजार करोड़ से ज्यादा की क्रेडिट गारंटी दी गई है। भारत सरकार के द्वारा वर्तमान में किए जा रहे प्रयासों की तैयारी भविष्य में भी लगातार सुधार होते रहे तो पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि एमएसएमई क्षेत्र भारत के भीतर चौथी औद्योगिक क्रांति का कारण बन सकते हैं। 
 
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विश्व में वैश्वीकरण के इस दौर में भारत को विशेष स्थिति में बनाए रखने के लिए बेहद आवश्यक हैं। साथ ही घरेलू बाजार में उत्पादन एवं आपूर्ति का समन्वय बना पाने में सक्षम रहने के कारण ही भारत तमाम वैश्विक स्तर पर आने वाली आर्थिक उथल-पुथल से अप्रभावित भी रहता है। जैसा कि वर्तमान में हम देख रहे हैं कि किस प्रकार अमेरिका से लेकर चीन तक सारी अर्थव्यवस्थाओं की विकास गति ठप हो गई है परंतु भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ है। 
 
उपरोक्त सभी कारण यह बताते हैं कि क्यों भारत सरकार के द्वारा एमएसएमई इकाइयों पर विशेष रूप से ध्यान देते रहने की जरूरत है, जिससे कि भारत चौथे औद्योगिक क्रांति को सुनिश्चित करते हुए अपने 5 ट्रिलियन इकोनॉमी के लक्ष्य को आसानी से पूर्ण कर सके।
 
(लेखक तकनीकी-प्रबंध सलाहकार हैं।) 

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