सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव।
हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (जमीन) नहीं दूंगा।- दुर्योधन
क्या यह संभव है कि शांतिपूर्ण बातचीत से चीन और पाकिस्तान भारत की भूमि लौटा देंगे? 70 वर्ष से हम बातचीत ही तो कर रहे हैं। इस बातचीत के दौरान हम पाकिस्तान के साथ 4 और चीन के साथ 1 युद्ध झेल चुके हैं। पाकिस्तान से युद्ध जीतने के बाद भी यदि हम समस्या का हल नहीं कर पाए हैं तो फिर हमें सोचना होगा कि हम क्यों अपने सैनिकों को शहीद कर रहे हैं? क्या जरूरी है युद्ध करने की? युद्ध करो और 1 लाख बंधक सैनिकों को रिहा करो और फिर से राजा हरिशचंद्र बन जाओ।
डोकलाम के बाद से ही भारत और चीन में तनाव जारी है लेकिन गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिक जब शहीद हो गए तो अब तनाव चरम पर है। 15 जून 2020 की रात भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई थी। अपुष्ट खबरों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भारतीय सैनिकों ने चीन के 43 सैनिकों को मार गिराया और उनके कैंप को भी तबाह कर दिया, लेकिन चीन इसकी पुष्टि नहीं करता है। अब सवाल यह उठा है कि आगे क्या होगा?
भारत चीन सीमा : भारत और चीन की सीमा को लेकर कई पेंच है- अक्साई चिन, द जॉन्सन लाइन, द मैककार्टिनी-मैकडोनाल्ड लाइन, वर्ष 1899 से लेकर 1947 तक की स्थिति, वर्ष 1947 के बाद, ट्रांस कराकोरम (कराकोरम पार) के विस्तार, द मैकमोहन लाइन, लद्दाख, सिक्कम, अरुणाचल का तवांग, 1962 के युद्ध के बाद लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल ये सभी सीमाएं असल में कैसी हैं यह तो सेना और सरकार ही जानती हैं।
क्या है युद्ध की संभावना चीन की ओर से?
1. भारतीय सक्रियता से घबराया चीन : भारत की ओर से चीन सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर और बढ़ती सैन्य गतिविधियां और भारत के कड़े और बड़े कूटनीतिक कदमों से चीन अब चिंता में आ गया है। वियतनाम, ताइवान, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, बर्मा, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया से दोस्ती चीन को हजम नहीं हो रही थी जिसके चलते उसने पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल को अपने चंगुल में ले लिया है।
2. भीतर से अशांत चीन को भारत का डर : चीन खुद अंदर से अशांत है, जिनशियांग, हांगकांग और तिब्बत में विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं जिसके चलते चीन ने भी सीमाओं पर अपनी मूवमेंट बढ़ा दी है। चीन को शंका है कि कहीं भारत इस असंतोष का फायदा नहीं उठाए इसलिए भी चीन ने सीमा पर घुसपैठ बढ़ाकर दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया है। चीन के पास अभी जो भूमि है उसमें से करीब 60 प्रतिशत कभी उसकी थी ही नहीं। चीन ने मंगोलिया, तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंचूरिया जैसे इलाकों पर कब्जा करके अपना इतना विस्तार किया है।
1962 के युद्ध के बाद चीन के कब्जे में भारत के कुछ इलाके भी आ गए थे और बाद में पाकिस्तान ने भी अपने कुछ इलाकों को चीन को सौंप दिया, जबकि पाकिस्तान के कब्जे में पहले से ही भारत का बहुत बड़ा भूभाग है। अब चीन किसी भी कीमत पर नहीं चाहेगा कि भारत अपने खोये हुए इलाके फिर से हासिल करने के लिए किसी भी प्रकार की कोई मूवमेंट करे। इस लिए वह भारत की हर तरह की मिलट्री मूवमेंट को रोकने के लिए सारे हदें पार करेगा और सभी करार तोड़ देगा।
3. शी जिंगपिंग की पार्टी में असंतोष : ऐसा भी कहा जा रहा है कि जिनशियांग और हांगकांग में विवाद के बाद वुहान से निकले कोरोनावायरस के चलते शी जिंगपिंग की पार्टी में भी अब उनके खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे हैं जिनसे ध्यान हटाने के लिए वे माओत्से तुंग वाला दांव खेल रहे हैं। माओत्से तुंग ने ही पार्टी पर अपनी पकड़ कमोजर होने के चलते 1949 में तिब्बत में सेना भेज दी थी। हालांकि नेहरू के काल में चीनी राष्ट्रपति लियु शाउची ने 1962 में जब युद्ध किया था तो वह पहले से तय योजना के तहत किया गया था जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू समझ नहीं पाए।
शी जिंगपिंग 1912 में पार्टी के नेता बने और बतौर राष्ट्रपति पद की शपथ ली। शी जिंगपिंग को पिछले साल ही क्युनिष्ट पार्टी ने उन्हें आजीवन राष्ट्रपति बने रहने पर मोहर लगा दी। अब शी जिंगपिंग को कुछ ऐसा करके दिखाना है जिससे कि इतिहास में उनका नाम माओत्से तुंग की तरह अमर हो जाए इसीलिए भी सीमा पर तनाव है। निश्चित ही शी जिंगपिंग चाहते होंगे कि भारत को पटकनी देकर लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल हड़प लिया जाए। जैसा कि माओत्से ने तिब्बत को हड़पकर अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का असफल प्रयास किया था।
4. फिर धोका देने की तैयारी कर रहा चीन : 2014 से लेकर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग करीब 18 बार आपस में मुलाकात कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपने अब तक के कार्यकाल में 5 बार चीन की यात्रा कर चुके हैं जबकि शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति के तौर पर दो बार भारत आ चुके हैं। यह आना जान चीन तब करता है जबकि उससे सीमा पर कुछ बड़ा करना होता है जैसा की 1962 के समय किया था। समझौते और करार में उलझाकर चीन सीमा पर अपनी ताकत बढ़ लेता है और धोखा उसकी नीति है।
5. शी जिनपिंग बनना चाहते हैं इतिहास पुरुष : शी जिनपिंग माओ की तरह दुनिया के सुप्रीम लीडर बनान चाहते हैं। इसी वजह से बार-बार वो मित्रता का हाथ बढ़ाकर भारत को धोखा देने की मंशा पाले बैठे हैं। इसके लिए प्रारंभ में शी जिनपिंग क्रीपिंग फॉर्वर्ड पॉलिसी का सहारा ले रहे हैं। क्रीपिंग फॉर्वर्ड पॉलिसी यानी धीरे-धीरे आगे बढ़ने की नीति। इस पॉलिसी के तहत चीन एक-एक इंच करके किसी देश की जमीन पर कब्जा करता है और बॉर्डर से जुड़े पिछले समझौतों से पीछे हट जाता है और इसी दौरान अपनी सैना का जमावाड़ा भी बढ़ता रहता है। फिर ठीक वक्त का एक साथ हमला करेगा।
क्या है युद्ध की संभावना भारत की ओर से?
1. धारा 370 से बदला गणित : धारा 370 हटाने और लद्दाख से जम्मू-कश्मीर को अलग करने से भी चीन बौखला गया और उसे भारत के इरादे समझ में आ गए। इससे राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक और भौगोलिक गणिक बदल गया है। अब भारत को किसी भी हालत में पीओके और अस्साई चीन चाहिए। लेह-लद्दाख के नए नक्षे में अक्साई चीन सहित गिलगित, बाल्टिस्तान भी शामिल है जहां चीन अपना कॉरिडोर बना रहा है। इसे चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (CPEC) कहा जाता है। अक्साई चीन तो चीन के लेकिन गिलगित, बाल्टिस्तान का हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि ये क्षेत्र हमारा है और आप किसी भी कीमत पर यहां कॉरिडोर नहीं बना सकते। धारा 370 को हटाना और राज्य के दो हिस्से करना भारत का सबसे बड़ा और साहसिक कदम है।
2. भारत बढ़ना चाहता है अपनी असली सीमाओं की ओर : लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर 73 स्ट्रेटेजिक रोड यानि सामरिक महत्व की सड़कें बनाने का प्रोजेक्ट शुरू कर भारत ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि अब एलएसी वही होगी जो हम तय करेंगे। अब तक इनमें करीब 60 सड़कें बन कर तैयार हो चुकी हैं। इसके अलावा असम को अरुणाचल से जोड़ने वाला लगभग 9 किलोमीटर लंबा ब्रह्मपुत्र नदी पर एक ब्रिज बनाया गया। इस पुल के चलते दोनों राज्यों के बीच की दूरी 165 किलोमीटर तक घट गई। इसी तरह भारत ने गवलान घाटी में गलवान नदी पर भी एक ब्रिज बनाया है जो संकीर्ण पहाड़ी क्षेत्र को श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क से जोड़ता है। भारत अब चाहता है कि नक्षे में दिखाई गई सीमा तक हमारी पहुंच अब आसान होना चाहिए।
3. भारत अब चीन को नहीं बढ़ने देगा आगे : वर्ष 2017 में चीन ने भूटान से सटे विवादित डोकलाम (या डोलम) में एक सड़क बनाने की कोशिश की थी तो भारत ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। डोकलाम इलाका चीन और भूटान के ट्राइजंक्शन पर है जहां भारत के सिक्किम की सीमा भी मिलती है। चीन इस विवादित इलाके से भारत की सीमा तक सड़क बनाना चाहता था। हालांकि, ये भूटान और चीन के बीच का विवाद था लेकिन भारतीय सेना ने यहां चीन की पीएलए सेना को सड़क नहीं बनाने दी और 73 दिनों तक गतिरोध बना रहा। जानकार मानते हैं कि डोकलाम विवाद के दौरान चीन पीछे हट गया लेकिन उसे ये कतई बर्दाश्त नहीं हुआ कि भारत दो देशों के विवाद में कूद पड़ा है।
4. भारत अपने सामरिक क्षेत्र को करेगा मजबूत : गलवान घाटी पर चीन की नजर इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यहां ये सियाचिन ग्लेशियर बहुत दूर नहीं है और वो सक्षम घाटी भी करीब ही है, जिसे 1962 में पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था। भारत सियाचिन से पाकिस्तान और चीन दोनों पर एक साथ नजर रखता है। इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी सेक्टर भी इसी से लगा हुआ है। दौलत बेग ओल्डी में दुनिया में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद हवाई पट्टी है। यानी अगर चीन पीछे नहीं हटता है तो भारत के 2 दुश्मन एक दूसरे के बहुत करीब आ जाएंगे और तब भारत के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी जिसका एक ही विकल्प बचेगा गोली चलाना। और यदि एक भी गोली चली तो फिर कई गोलियां चलेंगी।
5. भारत भी तोड़ देगा करार ? चीन नहीं मानता है कोई भी करार। भारत ने पहले भी कई करार किए लेकिन भारत ने 1993 के बाद 1996 में भारत सरकार ने चीन से एक करार किया था। उस करार के तहत पहला निर्णय यह हुआ की दोनों सैनाएं गोलियां नहीं चलाएंगी। दूसरा यह कि अगर कोई जानवर भी दिखाई दे तो दोनों सैनाएं शिकार नहीं करेगी। तीसरा यह कि अगर दोनों पेट्रोलिंग करते हुए एक दूसरे के आमने सामने आ जाएं तो वे दोनों किसी भी प्रकार की बहस न करते हुए अलग हो जाएंगे और अपने अपने डिप्लोमेटिक चैनल को इसकी सूचना देंगे। चौथा यह कि आप फायरिंग सिर्फ फायरिंग रेंज में कर सकते हैं। इस करार में और भी कई नियम थे, लेकिन यह मुख्य चार थे।
इसके बाद 2005 में एक और करार हुआ। इस करार में यह खास बात थी कि जब तक एलएसी सीमा का मामला पूरा हल नहीं हो जाए तब तक हम लोग वहां पर हथियार का उपयोग नहीं करेंगे और अगर आपने सामने आए तो गोली नहीं चलेगी। आराम से सभ्य तरीके से बात करके अपनी अपनी जगह चले जाएंगे। (लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ).
भारत चीन के बीच जो एलएसी (LAC) है वह लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी है जिसमें कई ऊंचे-ऊंचे पहाड़, नदियां और घाटियां हैं तो पेट्रोलिंग करते वक्त सेना को यह समझ में नहीं आता है कि किसी पहाड़ या दुर्गम घाटी से एलएसी गुजर रही है। ऐसे में अक्सर दोनों कई बार आमने-सामने हो जाते हैं। चीन मानता है कि एलएसी भारत की ओर के पहाड़ पर है और भारत मानता है कि वह चीन के पहाड़ की ओर है। चीन ने इस करार को कभी नहीं माना यही समस्या की जड़ है। भारत का कहना है कि चीनी पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार अपना रुख बदलता रहा है जिस कारण से कोई स्थायी सीमारेखा का निर्धारण नहीं हो सका है।
1962 के युद्ध के समय और उसके बाद अक्साई चीन और लेह लद्दाख के कुछ इलाकों को छोड़कर चीन ने 70 सालों में हमारी और कितनी भूमि कब्जे में कर ली या नहीं की, यह अभी तक हम शायद ही जानते होंगे क्योंकि एलएसी पर पहले भारत की पकड़ नहीं थी, लेकिन जब से पकड़ बनाना प्रारंभ हुई तनाव फिर बढ़ गया और अब यह तनाव बढ़ता ही जाएगा क्योंकि भारत अपनी सामरिक क्षमताओं को बढ़ाने से रुकने वाला नहीं है।