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Written By Author अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)
Last Modified: शुक्रवार, 1 मई 2020 (22:24 IST)

गांवों से रोजगार पलायन बनाम स्टे होम

गांवों से रोजगार पलायन बनाम स्टे होम - employment in villages
भारत जैसे विशाल भू-भाग वाले देश में आज के काल में भी छोटी-मोटी मनुष्य बसाहटों में स्थानीय स्तर पर सतत रोजगार की उपलब्धता या अवसरों को बढ़ाने जैसे मूलभूत सवालों को लेकर कोई समग्र दृष्टि और पहल ही मौजूद नहीं है।

शरीर श्रम पर जिन्दा मनुष्य किसी तरह जिन्दा रहने के लिए अपनी बसाहट, अपना गांव परिवार छोड़कर या साथ लेकर लम्बे समय से बड़े, मझोले या छोटे शहरों, कस्बों में पीढ़ी दर पीढ़ी से आता जाता और किसी तरह जीता रहा है। शहरी ज़िन्दगी को संवारने, विकसित और संचालित करने में ऐसे करोड़ों मेहनतकश या श्रमनिष्ठ लोगों की बहुत बड़ी भूमिका है।
 
श्रमनिष्ठ मनुष्यों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे शरीर और मन की ताकत के साथ कहीं भी और कभी भी केवल श्रम के विनिमय से ही अपना जीवन चलाना जानते हैं। कोरोना महामारी के इस काल में श्रमनिष्ठ लोग इसलिए चर्चा में आए कि लॉकडाउन में वे महानगरों, शहरों से अपने घर गांव जा रहे हैं।
 
सौ-दो सौ नहीं हजार-दो हजार किलोमीटर की दूरी पैदल चल घर-गांव पहुंचने निकल पड़े हैं। वो भी एक-दो नहीं हजारों हजार लोग चल पड़े हैं, पैरों की ताकत और मन की हिम्मत के बल पर और राजकाज और शहरी समाज के लोग भौंचक, अरे ये कैसे संभव है। पर श्रमनिष्ठ चल पड़ा अपने गांव-घर जीने और जीते रहने के लिए।
 
जो जीने के लिए जान पर खेल भूख-प्यास और भौगोलिक दूरी से घबराए बिना अपने गांव-घर को किसी तरह बड़ी संख्या में पहुंचने में सफल हो गए हैं और अगले कुछ समय में बड़ी संख्या में पहुंचेंगे उन सबके मन में तत्काल यह संतोष तो हुआ कि चलो अपने घर-गांव तो पहुंच गए। पर कुछ ही दिनों में उन सबके पास आजीविका का सवाल बड़े सवाल के रूप में खड़ा होगा, जिसका हल केन्द्र और राज्य सरकारों की प्राथमिक जवाबदारी है।
 
ऐसे लोग हजारों-लाखों नहीं करोड़ों में हैं जो आंशिक रूप से और स्थायी रूप से रोजगार की प्रत्याशा में अपनी श्रम शक्ति का विनिमय करने देश भर के बड़े-छोटे शहरों में जाते रहे हैं। यह गंभीर सवाल है जिससे शहरी और गांव के लोग बड़ी संख्या में प्रभावित हैं। शहरी क्षेत्रों में श्रमिकों के अभाव का दौर प्रारंभ होगा और गांवों में आजीविका का संकट जो आम बात है और इसी कारण से गांवों से शहर की ओर रोजगार के लिए पलायन की महायात्रा भारतीय ग्रामीण समाज में स्थायी रूप से विस्तार पाती रहीं।
 
भारतीय गांवों में पैदल चलना जीवन का बहुत पुराना क्रम है। खेती-किसानी और पशुपालन पर आधारित जिंदगी सुबह से रात तक अपने जीवन भर पैदल चलते हुए ही गुजरती है। अपने पैरों से लम्बी दूरी तय करना यह गांव के लिए बड़ी समस्या नहीं है। गांव के जीवन का सबसे बड़ा सवाल या समस्या यह है कि पूरे गांव की बसाहट के पास वर्ष भर खाने-कमाने के संसाधन और अवसर ही नहीं हैं। इसी कारण भारतीय गांव में रोजगार या आजीविका के लिए पलायन का क्रम हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है।
 
भारत में गांवों के रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के बजाय प्रतिदिन शहरों के विस्तारित होते रहने का एजेंडा रोजगार पलायन का मुख्य कारक है। महानगरीय या शहरी विस्तार की एकांगी और अंधी अवधारणा के समक्ष कोरोना महामारी से निपटने में जो चुनौतियां राज्य, समाज और स्थानीय प्रशासन के सामने आई हैं, उसे लेकर हमें हमारी सोच समझ में मूलभूत बदलाव करना होगा।
 
कोरोना महामारी ने भीड़ भरी शहरी सभ्यता या बसाहटों में आज के लोकजीवन की रोजमर्रा की सुरक्षा की सुनिश्चितता पर ही गहरे और बुनियादी सवाल खड़े किए हैं। उन सवालों के सुरक्षित समाधानकारी उत्तर खोजना हम सबकी पहली प्राथमिकता हो गया है। महानगरों, शहरों में आबादी का दबाव कम कैसे हो? और गांवों में बारहों महीने रोजगार मूलक साधनों की सुनिश्चितता कैसे स्थायी स्वरूप में विकसित हो। इन दोनों चुनौतियों को प्राथमिकता के साथ पूरा करने में राज, समाज और बाजार तीनों को एकजुटता के साथ पहल करना होना होगी।
 
आशंकित मन सुरक्षित और जीवंत समाज की रचना नहीं कर सकता। आज की चुनौती कठिन जरूर है पर समाधान असंभव नहीं है। हमारे लोकजीवन और लोकमानस में हम रहन-सहन के स्तर में बुनियादी समानता की प्राण-प्रतिष्ठा ही नहीं कर पाए।
 
मनुष्य जीवन की मूलभूत जरूरतों में संभव समानता हमारा तात्कालिक कार्यक्रम तथा बुनियादी समानता हमारा समयबद्ध मूल लक्ष्य निर्धारित कर उसे साकार करना होगा। कोरोना महामारी ने हमारे रहन-सहन के तौर-तरीकों  से पैदा होने वाली जीवन की असुरक्षा का बोध हम सबको कराया।
 
मनुष्य के नाते हम में से कोई भी महामारी की चपेट में आसकता है। मनुष्यों के रहने, खाने, कमाने के अवसर और तौर तरीकों, आवागमन के साधनों का उपयोग तथा व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में अतिरिक्त सतर्कता और शारीरिक दूरी हमारे आगामी समय के लोकशिक्षण और लोक समझ के मुख्य विषय होंगे, जो हमारे आगामी शहरी और गांव के जीवन की सुरक्षा और गतिशीलता को निर्धारित करेंगे। 
 
लॉकडाउन और स्टे होम, कोरोना महामारी से निपटने के उपाय के रूप में उभरे। भविष्य में हम शहरी विस्तार को रोकें यानी लॉकडाउन में डालें गांवों में आजीविका और जीवन यापन के इतने साधन संसाधनों का विस्तार करें कि आजीविका जन्य पलायन लगभग रुक जाए और लोकजीवन जहां यानी गांवों में रहता है तो वहीं रहने यानी स्टे होम को सुरक्षित जीवन का पर्याय समझने लगे।
 
 
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