ब्लॉग-चर्चा
निर्मल-आनंद की तलाश में अभय तिवारी
हमारी ब्लॉग-चर्चा का नया ठौर है - निर्मल-आनंद । मुंबई में रह रहे और पेशे से टेलीविजन लेखन से जुड़े अभय तिवारी के बहुचर्चित ब्लॉग का नाम है - निर्मल-आनंद। अभय तिवारी ने अपने ब्लॉग और हिंदी ब्लॉगों की वर्तमान दुनिया के बारे में लंबी बातचीत की। सो इस बार हमारी ब्लॉग-चर्चा में निर्मल आनंद के बारे में कुछ बातें। अभय पत्रकार नहीं हैं, लेकिन लेखन के पेशे से ही जुड़े हुए हैं। उन्होंने कई टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों पर अपनी कलम चलाई है। लेकिन ब्लॉग शुरू करने से पहले खुद उन्हें भी यह अंदाजा नहीं था कि पेशेवर लेखन के अतिरिक्त इतना कुछ लिखने की संभावनाएँ उनके भीतर हैं। अभय कहते हैं कि ब्लॉग ने उनकी उस दबी हुई चीजों को अभिव्यक्ति का प्लेटफॉर्म दिया। फरवरी में अपने मित्र अजदक वाले प्रमोद सिंह को देखकर उन्होंने 'निर्मल-आनंद' की शुरुआत की। पहले तो यह माध्यम अजाना और विचित्र लगता था। लेकिन धीरे-धीरे ब्लॉग की दुनिया के रहस्य खुले, कलम के बंधन टूटे और लेखन की एक नई जमीन तैयार हुई। इस ब्लॉग की सबसे बड़ी खासियत उसकी सहजता और सरलता है। बहुत सधे और संतुलित तरीके से और बगैर किसी अतिशयोक्ति के अभय अपनी बात कहते हैं। गूढ़-से-गूढ़ विषयों पर भी उनकी यह सहजता बनी रहती है। एक बानगी- ‘कल कहीं जाते हुए रास्ते में तमाम नई मॉल्स के दर्शन किए। और सोचा कि क्यों बना रहे हैं लोग इतनी नई-नई मॉल्स ? क्या शहर चलाने वाले लोग(!) नहीं देख पाते कि बान्द्रा से लेकर बोरीवली तक एक बच्चों के खेलने का पार्क नहीं है, लाइब्रेरी नहीं है, म्यूजियम, जू, या ऐसी कोई भी सार्वजनिक जगह नहीं है, जहाँ आप अपने घर से निकलकर दो पल चैन से बैठ सकें। घर से निकलते ही सड़क है, सड़क पर गुर्राता-गरजता ट्रैफिक है। कारें हैं, बाइक्स हैं, बसें हैं, ट्रक हैं, ट्रेन हैं, स्टेशन्स हैं, गजागज भरे लोग हैं, पसीने, पेट्रोल और परफ्यूम में गजबजाता मनुष्य का समुद्र है और बाजार है। इस ब्लॉग की सबसे बड़ी खासियत उसकी सहजता और सरलता है। बहुत सधे और संतुलित तरीके से और बगैर किसी अतिशयोक्ति के अभय अपनी बात कहते हैं। गूढ़-से-गूढ़ विषयों पर भी उनकी यह सहजता बनी रहती है।
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ऐसी की एक अन्य पोस्ट ‘कब होगी क्रांति’ में पूंजीवाद और क्रांति के संबंध में मार्क्स की प्रस्थापनाओं पर अभय लिखते हैं, ‘यानी जब तक यह समूचा विश्व एक साथ क्रांति के लिए परिपक्व नहीं हो जाता, तार्किक तौर पर क्रांति नहीं हो सकती। मतलब क्रांति तभी होगी, जब पूरा विश्व एकरस हो जाएगा। और एकरस तो होना निश्चित है। पूँजीवादी बाज़ार का जो आक्रामक तेवर अभी दुनिया में चल रहा है, उसे देखकर दूर-दूर के इलाकों का भी आमूल-चूल परिवर्तन होना तय दिख रहा है। इस प्रक्रिया में पर्यावरण, वन्य-जीवन, लोक-परंपरा और परिपाटियों के नाश का भी एक आसन्न खतरा साफ नजर आता है। देखना होगा कि प्रतिरोधी शक्तियाँ कितना बदल पाती हैं, बाजार के इस विनाशकारी मिजाज को।'यह शैली और बात कहने का यह ढंग ही उनकी खासियत है। अभय कहते हैं कि मैं जैसे जीता हूँ, वैसे ही लिखता हूँ। अतिरिक्त शब्दों और अलंकारों से मुझे परहेज है। मैं संक्षेप में कहता हूँ, किसी साज-सज्जा के बगैर।
अभय के अनुसार लिखने के लिए वे विषयों का चुनाव नहीं करते, बल्कि विषय खुद उनका चुनाव कर लेते हैं। जो बातें उन्हें अपील करती हैं, राजनीति, दर्शन, इतिहास, मनोविज्ञान और धर्म से संबंधित, उन सब विषयों पर वे लिखते हैं, अपने चिर-परिचित अंदाज में।इंटरनेट युग के इस आधुनिक आविष्कार और हिंदी ब्लॉगों के बारे में अभय कहते हैं कि कम्प्यूटर युग ने मनुष्य को भौतिक धरातल पर एकाकी किया है और इंटरनेट के जरिए उसे एक बड़ी आभासी दुनिया के साथ जोड़ दिया है। सिमटता हुआ भौतिक संसार और खुलती हुई आभासी दुनिया का आने वाले समय में और भी ज्यादा विस्तार होगा। ब्लॉग ने अभिव्यक्ति का नया माध्यम दिया है। अब किन्हीं व्यक्ति विशेषों के लेखक और कलाकार होने का दंभ नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँ हर कोई लेखक और पाठक दोनों है।अभय कहते हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग का संसार अभी बहुत सीमित है। पहले चरण में तकनीक से जुड़े लोग ही लिख रहे थे। फिर पत्रकारों और पेशेवर लेखकों तक इसका विस्तार हुआ। अभी यह और भी बढ़ेगा। घरेलू स्त्रियाँ और अन्य पेशों से जुड़े लोग भी ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय होंगे। वर्तमान में हिंदी ब्लॉग की दुनिया में ज्यादा निजी किस्म के संस्मरण, आपस की चर्चाएँ, मेल-मिलाप, कविताएँ, गॉसिप और सनसनीखेज चीजें ही लिखी और पढ़ी जाती हैं।
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अभय कहते हैं कि ब्लॉगिंग प्रिंट मीडिया के बरक्स बिल्कुल भिन्न विधा है। यह हिंदी भाषा और लेखन को भी नया आयाम देगी। भाषा के साथ नए प्रयोग होंगे और नई-नई तरह की चीजें आकार लेंगी। जितने क्षेत्रीय प्रभावों के साथ लोग ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय होंगे, उतनी तरह की अभिव्यक्तियाँ भी देखने को मिलेंगी। एक परिपाटी से बँधी हुई शिष्ट भाषा ही लिखी जाए, यह जरूरी नहीं। इलाहाबाद, सहारनपुर, बेतिया की भाषा ब्लॉग में आएगी और हिंदी भाषा के संसार को बदलेगी। अभय मानते हैं कि ब्लॉग की दुनिया में छोटा और बेहतरीन लेखन ही आगे बढ़ेगा। यह भविष्य की विधा है। आज की व्यस्त और तेज रफ्तार जिंदगी में बहुत लंबी चीजें पढ़ने का धैर्य किसी के पास नहीं है। जो कम शब्दों में मर्म की बात कहेगा, उसका लिखा पढ़ा जाएगा। वास्तव में ब्लॉग गूढ़-गझिन चर्चाओं का मंच नहीं है। कम्प्यूटर युग ने मनुष्य को भौतिक धरातल पर एकाकी किया है और इंटरनेट के जरिए उसे एक बड़ी आभासी दुनिया के साथ जोड़ दिया है। सिमटती हुआ भौतिक संसार और खुलती हुई आभासी दुनिया का आने वाले समय में और भी ज्यादा विस्तार होगा।
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यह तो बात का एक पक्ष है। लेकिन अभय यह भी कहते हैं कि वर्तमान में हिंदी ब्लॉग की दुनिया में ज्यादा निजी किस्म के संस्मरण, आपस की चर्चाएँ, मेल-मिलाप, कविताएँ, गॉसिप और सनसनीखेज चीजें ही लिखी और पढ़ी जाती हैं। इस बात की संभावना भी कम ही जान पड़ती है कि इन चीजों से ऊपर उठकर और गंभीर बातों को ब्लॉग में स्थान मिलेगा और बड़ी संख्या में लोग उसे पढ़ेंगे भी।निर्मल-आनंद बहुत थोड़े से समय में हिंदी का काफी पढ़ा जाने वाला ब्लॉग बन गया है। अभय की अभिव्यक्ति की सरलता और उसका ठोसपन उसे पठनीय बनाते हैं। बिना किसी नारेबाजी या थोथी पक्षधरता के अगर कोई राजनीति, दर्शन और इतिहास से लेकर धर्म तक के बारे में बेहतरीन लेखन पढ़ना चाहता है तो अभय तिवारी के ब्लॉग पर बिना थके घंटों गुजारे जा सकते हैं।ब्लॉग - निर्मल-आनंदURL - http://www.nirmal-anand.blogspot.com/