दक्षिण अफ्रीका में हुए अध्ययन से हुआ खुलासा, 'ओमिक्रॉन' डेल्टा से कम खतरनाक  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  जोहानिसबर्ग। कोरोनावायरस का नया स्वरूप 'ओमिक्रॉन' वायरस के पहले स्वरूपों से कम गंभीर प्रभाव वाला लगता है। दक्षिण अफ्रीका में एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। 'ओमिक्रॉन' स्वरूप की पहचान सबसे पहले पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका में ही की गई थी और इसके प्रभाव को लेकर व्यापक स्तर पर अध्ययन किया जा रहा है।
				  																	
									  				  
	 
	विटवाटर्सरैंड विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान की प्रोफेसर शेरिल कोहिन ने बुधवार को 'नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज' (एनआईसीडी) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन वार्ता में 'दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन स्वरूप की गंभीरता का प्रारंभिक आकलन' शीर्षक वाले एक अध्ययन के परिणाम साझा किए।
				  						
						
																							
									  				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	कोहिन ने कहा कि उपसहारा अफ्रीकी क्षेत्र के अन्य देशों में स्थिति कमोबेश समान रह सकती है, जहां पिछले स्वरूपों का खतरनाक असर देखने को मिला था। उन देशों में स्थिति समान नहीं हो सकती है, जहां पिछले स्वरूपों का असर काफी कम रहा था और टीकाकरण की दर अधिक है।
				  																	
									  
	 
	एनआईसीडी की जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ वासीला जस्सत ने इस बात को स्पष्ट किया कि कैसे 'ओमिक्रॉन' स्वरूप की वजह से आई वैश्विक महामारी की चौथी लहर, पिछली लहर से अधिक खतरनाक नहीं है। चौथी लहर में पहले 4 सप्ताह में संक्रमण के मामले काफी अधिक आए। पिछली लहर की तुलना में 3,66,000 से अधिक मामले सामने आए।
				  																	
									  
	 
	जस्सत ने बताया कि 4थी लहर में केवल 6 प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जबकि पिछली लहरों में 16 प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जस्सत ने कहा कि इसका मतलब है कि मामले अधिक थे, लेकिन अधिक मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आई। पिछली लहरों की तुलना में इस बार अस्पताल में भर्ती कराए गए मरीजों की दर काफी कम थी।
				  																	
									  
	 
	उन्होंने बताया कि गंभीर रूप से संक्रमित हुए मरीजों की दर भी पहले की तुलना में कम थी। चौथी लहर में 6 प्रतिशत मरीजों की मौत संक्रमण से हुई जबकि 'डेल्टा' स्वरूप के कारण आई पिछली लहर में करीब 22 प्रतिशत मरीजों की जान गई थी। जस्सत ने बताया कि अधिकतर मरीज औसतन 3 दिन ही अस्पताल में भर्ती रहे।
				  																	
									  
	 
	उन्होंने कहा कि इस चौथी लहर का प्रकोप कई अन्य कारणों से भी शायद कम रहा, जैसे टीकाकरण के कारण लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता थी या 'ओमिक्रॉन' के कम संक्रामक होने के कारण भी ऐसा हो सकता है। इस संबंध में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें और अध्ययन करने की जरूरत है।