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Last Modified: मंगलवार, 4 जनवरी 2022 (00:25 IST)

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर जल्द जनगणना की संभावना नहीं

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर जल्द जनगणना की संभावना नहीं - Census unlikely soon in view of fear of third wave of Corona
नई दिल्ली। कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड महामारी के कारण 2020-21 में स्थगित की गई दशवार्षिक जनगणना के जल्द शुरू होने की संभावना नजर नहीं आ रही है। केंद्र ने राज्यों को जून 2022 तक जिलों और अन्य नागरिक और पुलिस इकाइयों की सीमाओं में बदलाव नहीं करने का निर्देश दिया है। यह देश की सबसे बड़ी जनगणना से 3 महीने पहले एक अनिवार्य आवश्यकता है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है कि जनगणना कब कराई जाए और फिर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अद्यतन किया जाए।

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त ने राज्यों को अवगत कराया है कि केंद्र सरकार ने जून 2022 तक जिलों, उप-मंडलों, तालुकों, पुलिस स्टेशनों आदि की सीमाओं के परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया है।

जनगणना कार्यों के संचालन के लिए कम से कम तीन महीने पहले प्रशासनिक और पुलिस इकाइयों की सीमाओं के परिवर्तन पर प्रतिबंध अनिवार्य है। अधिकारी ने कहा कि चूंकि प्रशासनिक और पुलिस इकाइयों की सीमाओं को जून 2022 तक सील कर दिया गया है, इसलिए अक्टूबर से पहले जनगणना अभियान शुरू करने का कोई सवाल ही नहीं है।

सोमवार को सुबह आठ बजे अद्यतन किए गए आंकड़ों के अनुसार, कोरोना के 33,750 ताजा मामलों के साथ भारत में इससे संक्रमितों की संख्या बढ़कर 3,49,22,882 हो गई, जबकि सक्रिय मामले बढ़कर 1,45,582 हो गए। आंकड़ों से पता चलता है कि 123 और लोगों की मौत के साथ मरने वालों की संख्या बढ़कर 4,81,893 पर पहुंच गई।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि सक्रिय मामले बढ़कर 1,45,582 हो गए हैं, जबकि राष्ट्रीय कोविड-19 से ठीक होने वाले मरीजों की दर 98.20 प्रतिशत दर्ज की गई है। पहले के कार्यक्रम के अनुसार, जनगणना की संदर्भ तिथि एक मार्च, 2021 होती और बर्फीले राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में यह तिथि एक अक्टूबर, 2020 होती।

मार्च 2020 में, जब कोविड लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त एनपीआर की जनगणना और अद्यतन के पहले चरण के लिए पूरी तरह तैयार थे, जो एक अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाला था। भले ही कुछ राज्य सरकारों ने एनपीआर अपडेट का विरोध किया था, लेकिन सभी ने जनगणना की कवायद को पूरा समर्थन दिया था।

यद्यपि जनगणना की कवायद में 8,700 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान था, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एनपीआर अभ्यास के लिए 3,941.35 करोड़ रुपए को मंजूरी दी थी। जनगणना भारत के लोगों की विभिन्न विशेषताओं पर विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है।

भारत के लोगों की समृद्ध विविधता वास्तव में दशवार्षिक जनगणना द्वारा सामने आई है जो देश की वास्तविक स्थिति को समझने और अध्ययन करने का एक उपकरण बन गया है। एनपीआर का उद्देश्य देश के प्रत्येक सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है। डेटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बायोमेट्रिक विवरण शामिल होंगे।

एनपीआर देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। इसे नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियमावली, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव और उप-नगर), उप-जिला या उप-मंडल, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है।

सरकार ने 2015 में रजिस्टर को अपडेट करते समय आधार और उनके मोबाइल नंबर जैसे विवरण मांगे थे। अधिकारियों ने बताया कि इस बार उनके ड्राइविंग लाइसेंस और मतदाता पहचान पत्र से जुड़ी जानकारी भी जुटाई जा सकती है। यद्यपि माता-पिता के जन्म स्थान के बारे में जानकारी मांगी जाएगी, लेकिन यह नागरिकों पर निर्भर है कि वे प्रश्न का उत्तर देना चाहते हैं या नहीं, क्योंकि यह स्वैच्छिक है।(भाषा)