Chhath Puja : उत्तर भारत का लोकपर्व छठ पूजा कार्तिक चतुर्थी से प्रारंभ होकर सप्तमी को समाप्त होता है। इसमें षष्ठी के दिन डूबते सूर्य और सप्तमी के दिन उगते सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा को लेकर आपके मन में कई तरह के सवाल होंगे। उन्हीं सवालों को एकत्रिक करके हमने उनके यहां जवाब लिखे हैं। आओ जानते हैं छठ पूजा के संबंध में संपूर्ण जानकारी।
1. छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं?
- छठ पूजा के व्रत में सूर्य देव और छठ मैया की पूजा की जाती है। सूर्य को जगत की आत्मा माना गया है जो सभी प्राणियों के जीवन की रक्षा करता है। सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। सूर्य के साथ-साथ षष्ठी देवी या छठ मैया की भी पूजा की जाती है। षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ और दीघार्यु बनाती हैं।
2. छठ मैया कौन-सी देवी हैं?
- कहते हैं कि नवरात्रि की षष्ठी शक्ति मां कात्यायिनी है। इन्हें सूर्य की बहन भी कहा जाता है। यह भी कहते हैं कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।
3. कैसे प्रारंभ हुई षष्ठी देवी की पूजा? क्या है पौराणिक कथा?
- प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्रेष्टि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा का दुख देखकर एक दिव्य देवी प्रकट हुईं। उन्होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्होंने षष्ठी देवी की स्तुति की। तभी से यह पूजा संपन्न की जा रही है।
4. छठ पूजा मंदिर या घर में क्यों नहीं होती है?
- छठ पूजा सूर्य की पूजा का पर्व है इसलिए लोग पवित्र नदी और तालाबों आदि के किनारे मा होते हैं, क्योंकि सूर्य की पूजा में उन्हें जल से अर्घ्य देने का विधान है। पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्य देने और स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। नदी या तालाबों पर ज्यादा भीड़ होने के कारण कई लोग घर के आंगन या छतों पर भी सूर्य पूजा करते हैं।
5. महिलाएं ही छठ पूजा क्यों करती हैं?
- महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा परिवाण के कल्याण की भावना अत्यधिक होती है। वे कष्ट सहकर भी परिवार के कल्याण के लिए सभी कुछ करने के लिए तैयार रहती है। दूसरा यह कि महिलाएं प्रकृति से अधिक जुड़ी रहती है इसलिए भी उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महिलाएं तरह-तरह के यत्न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं। इसे महिलाओं के त्याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है। महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्वास्थ्य और उनके दीघार्यु होने के लिए यह पूजा अधिक बढ़-चढ़कर और पूरी श्रद्धा से करती हैं। हालांकि यह व्रत पुरुष रखना चाहे तो वह भी रख सकता है। यह श्रद्धा और विश्वास का मामला है।
6.. छठ पूजा क्या किसी जाति या प्रांत का त्योहार है?
- छठ पूजा किसी भी जाति या प्रांत का त्योहार नहीं है। यह सूर्य पूजा का पर्व है जिसे संपूर्ण भारत में अलग समय और अलग तरीके से मनाया जाता है और जिसे हर प्रारंभ में स्थानीय भाषा के अनुसार जाना जाता है। यह पर्व ही जाति और समाज के लोग मनाते हैं और इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है। सूर्य सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं। वे किसी तरह के वर्ण या जाति में भेदभाव नहीं करते। इस पर्व हो हर कोई मना सकता है।
7. छठ पूजा का क्या है सामाजिक संदेश?
- लोग उगते सूर्य को नमस्कार करते हैं लेकिन छठ का पर्व बताता है कि डूबते सूर्य का भी उतना ही महत्व है। सूर्य न कभी उगता है और न ही वह डूबता है। इस पर्व में कई आध्यात्मिक संदेश छिपे हुए हैं। यह पर्व हमें सामाजिक भेदभाव से उपर उठकर बराबरी से जीवन जीना की शिक्षा देता है। सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं। इससे सामाजिक संदेश एकदम स्पष्ट है।
8. बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध क्यों है?
- बिहार में छठ पूजा का इससे ज्यादा प्रचलन है क्योंकि यहां पर सूर्य की पूजा सदियों से चली आ रही है। सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों की महिमा का वर्णन मिलता है। यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जबकि आम तौर पर सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है। मान्यता है कि यहां के विशेष सूर्य मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया था। स्थापत्य और वास्तुकला कला के दृष्टिकोण से यहां के सूर्य मंदिर बेजोड़ हैं।
9. इस पूजा में कुछ लोग जमीन पर बार-बार लेटकर, कष्ट सहते हुए घाट की ओर क्यों जाते हैं?
- आम बोलचाल की भाषा में इसे कष्टी देना कहते हैं। ज्यादातर मामलों में ऐसा तब होता है, जब किसी ने इस तरह की कोई मन्नत मानी हो।
10. चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा में किस-किस दिन क्या होता है?
- कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इस दिन व्रत करने वाले और घर के सारे लोग चावल-दाल और कद्दू से बने व्यंजन प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शाम में मुख्य पूजा होती है इसे खरना कहा जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस या गुड़ में बनी खीर चढ़ाई जाती है। कई घरों में चावल का पिट्ठा भी बनाया जाता है। लोग उन घरों में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिन घरों में पूजा होती है। तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्ठी की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती के साथ-साथ सारे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन, कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण के साथ व्रत की समाप्ति होती है।