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Last Updated : बुधवार, 15 नवंबर 2023 (15:59 IST)

छठ पूजा के समय किस देवता और किस देवी का होता है पूजन?

छठ पूजा के समय किस देवता और किस देवी का होता है पूजन? - Chhath puja Surya shashti vrat chhathi maiya
chhath puja: 19 नवंबर 2023 रविवार के दिन छठ पूजा का उत्सव मनाया जाएगा। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली सहित उत्तर भारत के संपूर्ण क्षेत्र में छठ पूजा का खास प्रचलन है। षष्ठी तिथि पर सूर्योदय का समय 19 नवंबर प्रात: 06:46 पर और सूर्यास्त का समय शाम 05:26 पर है। 20 नवंबर को उषा अर्घ्य देने के लिए सूर्योदय का समय 06:47 पर है। जानिए इस दिन किस देव और देवी की होती है पूजा।
 
सूर्य देव : छठ पूजा में उगते और डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान उन्हें अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस दिन सूर्य को सायंकाली अर्घ्य अर्पित करते हैं।  संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है। इस समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसीलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देने का लाभ मिलता है। कहते हैं कि शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है।
 
शाम को बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू और कुछ फल रखें जाते हैं और पूजा का सूप सजाया जाता है और तब सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसी दौरान सूर्य को जल एवं दूध चढ़ाकर प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा भी की जाती है। बाद में रात्रि को छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
 
उषा अर्घ्य : उषा अर्घ्य अर्थात इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। षष्ठी के दूसरे दिन सप्तमी को उषाकाल में सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है जिसे पारण कहते हैं। अंतिम दिन सूर्य को वरुण वेला में अर्घ्य दिया जाता है। यह सूर्य की पत्नी उषा को दिया जाता है। इससे सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है।
 
पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है। यह छठ पर्व का समापन दिन होता है। यह मुख्य रूप से यह लोकपर्व है जो उत्तर भारत के राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग ही मनाते हैं। यहां के लोग देश में कहीं भी हो वे छठ पर्व की पूजा करते हैं।
छठ मैया : सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में मां कात्यायनी को छठ मैया माना गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। 
 
पौराणिक कथा अनुसार मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ। तभी माता षष्ठी प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।