विश्व में कम्प्यूटर के क्षेत्र में जानी-मानी कंपनी माइक्रोसाफ्ट के पितामह श्री बिल गेट्स का जन्म 28 अक्टूबर 1955 को हुआ था। धनु लग्न तथा मीन राशि में जन्मे बिल गेट्स की पत्रिका में गुरु भाग्य भाव से लग्न को देख रहा है। लग्नेश की लग्न पर दृष्टि एक उत्तम राजयोग का सृजन करती है, साथ ही जिस भाव से संबंधित ग्रह होता है उससे संबंधित परिवर्तन देखने को मिलता है।
सामान्य स्थिति में जन्मे बिल गेट्स का झुकाव बचपन से ही कुछ विशिष्ट कार्य की ओर था। लग्न पर उच्चस्थ शनि कन्या राशि के मंगल तथा सिंह राशि के गुरु की दृष्टि उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का संकेत दे रहा है। शनि से धैर्य, गुरु से प्रभाव और मंगल से उसके साहसी व्यक्तित्व का संकेत मिलता है, दशम भाव में उच्च का बुध कुशल व्यापारी होने का संकेत दे रहा है। दशम भाव का मंगल दिग्बली होता है, साहसी व्यापारी ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हैं। बुध और मंगल का दशम भाव में समन्वय उनके साहसी चतुर तथा सफल व्यापारी होने का पूर्ण संकेत दे रहा है। बुध केन्द्र में उच्च राशि का होने से 'भद्र पंच महापुरुष योग' बना रहा है।
धनु लग्न की पत्रिका में शुक्र लाभ भाव तथा छठे भाव का स्वामी होता है, इस पत्रिका में शनि धन भाव (द्वितीय भाव) का स्वामी होता है, संचित धन (पैतृक, वसीयत, जमीनल जायदाद) की गणना द्वितीय भाव से की जाती है, एवं धनु लग्न में जिसका शनि अच्छी अवस्था में रहता है वह व्यक्ति उतना संचित धन का मालिक होता है।
बिल गेट्स की पत्रिका में लाभ भाव का स्वामी शुक्र स्वग्रही होकर लाभ भाव में स्थित है, चूँकि यह ग्रह छठे घर का स्वामी होकर लाभ भाव में गया अतः यहाँ विपरीत राजयोग का निर्माण हुआ। तीसरे, छठे, ग्यारहवें स्थानों के स्वामी इन्हीं स्थानों पर बैठे हैं तथा इन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ये ग्रह सर्वोत्तम फल देते हैं। शुक्र ग्रह पर नीचस्थ सूर्य का प्रभाव है, द्वितीय भाव का स्वामी शनि अपनी उच्च राशि में लाभ भाव में स्थित है। इस शनि ने उन्हें अपार धन दिलाया। लाभ भाव के शुक्र ने इस कार्य में उन्हें भरपूर सहयोग दिया, यद्यपि भाग्य भाव का स्वामी सूर्य अपनी नीच राशि में है किंतु लाभ भाव में बैठने से अच्छे फल प्राप्त हुए।
चंद्र मंगल का समसप्तम संबंध प्रबल लक्ष्मी योग का निर्माण कर रहा है, शनि की महादशा में जन्मे बिल गेट्स का झुकाव बाल्यावस्था से ही कम्प्यूटर के क्षेत्र की ओर रहा, 27 वर्ष में बिल को शुक्र की महादशा लगी जिसने उन्हें इस क्षेत्र में प्रबल लाभ दिया। 1995 से बिल को शुक्र की महादशा में शनि की अंतरदशा चली, इस अंतरदशा ने बिल को वर्तमान में विश्व का धनाढ्य व्यक्ति बना दिया, शनि शुक्र दोनों उनकी पत्रिका में लाभ में स्थित है। शास्त्रों के अनुसार शुक्र में शनि या शनि में शुक्र की अंतरदशा व्यक्ति को राजा से रंक या रंक से राजा बनाने में समर्थ है।
शुक्र मिथुन लग्न में पंचमेश होता है तथा इसका फल शुभ ही होता है। आपकी कुण्डली में यह स्वराशि का होकर पंचम में होने से और भी शुभ फल प्रदान कर रहा है। यह दशा सन् 1989 से आरम्भ हुई है तथा सन् 2009 तक रहेगी। इस अवधि में आप और भी अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
कुण्डली की विशेषताएँ - लग्नेश की लग्न पर दृष्टि, भाग्य से प्रबल राजयोग का निर्माण। - दशम भाव में उच्च के बुध की स्थिति सफल व्यापारी होने का स्पष्ट संकेत। - उच्चस्थ बुध के साथ मंगल की दशम भाव में स्थिति उनके एक सफल साहसी तथा चतुर व्यापारी होने का संकेत दे रही है। - लाभ भाव में छठे भाव तथा एकादश भाव (लाभ) के स्वामी का नीच राशि के सूर्य के साथ बैठना एक प्रबल विपरीत राजयोग का निर्माण है जो कि शुक्र की महादशा में फलित हुआ। - चन्द्र, मंगल का समसप्तम दृष्टि संबंध जो प्रबल लक्ष्मी योग का निर्माण कर रही है, ऐसा व्यक्ति साहसी भूमिपति तथा धनाढ्य होता है। - धनु लग्न की पत्रिका में धनेश अपनी उच्च राशि में लाभेष शुक्र के साथ लाभ भाव में स्थित है। - मीन राशि की पत्रिका में लाभ व भाव का स्वामी भी अपनी उच्च राशि में है, सुखेश तथा सप्तमेष बुध, धनेश तथा भाग्येश मंगल के साथ केंद्र में बैठा है। - राशि की पत्रिका में चंद्रमा पंचमेष होकर धनेश तथा भाग्येश के साथ दृष्टि संबंध बना रहा है। - लग्न कुंडली के पंचमेष मंगल तथा राशि कुंडली का पंचमेष चंद्र का आपस में दृष्टि संबंध द्वारा प्रबल लक्ष्मी योग का निर्माण हो रहा है, ध्यान रहे पंचम भाव अति महत्वपूर्ण भाव है यह भाग्य भाव से नवम में आता है। तथा यही व्यक्ति के महत्व को दर्शाता है। - शुक्र की महादशा लाभेश की महादशा थी, जो सन 1982 से सन् 2002 तक रही। तत्पश्चात बुध की अंतरदशा उनके कर्मक्षेत्र के विस्तार में सहायक रही। - लग्न का स्वामी ग्रह शुक्र के नक्षत्र में है तथा शुक्र लाभ भाव में गुरु के नक्षत्र में है इस कारण शुक्र की महादशा राजयोगकारी रही। - बिल गेट्स की पत्रिका का मुख्य तथ्य शनि की दृष्टि में किसी ग्रह का न आना है।