पुख्ता हो जाएगा शिक्षा में भेदभाव
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सुरेंद्र मोहन गत संप्रग सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राथमिक शिक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई थी। कपिल सिब्बल इसके अध्यक्ष थे जो उस सरकार में विज्ञान और यांत्रिकी विभाग संभाल रहे थे। कमेटी की पहली बैठक में ही उन्होंने कमेटी के सदस्यों को चेतावनी दे दी कि पब्लिक स्कूलों पर कोई बहस नहीं होगी। अलबत्ता इस विधेयक में यह प्रावधान जरूर किया गया है कि ये स्कूल 20 प्रतिशत ऐसे बच्चों को प्रवेश देंगे जो गरीब परिवारों के हों। यह व्यवस्था दिल्ली में तो कई दशकों से है क्योंकि महानगर के सभी पब्लिक स्कूलों ने राज्य सरकार या जब दिल्ली को राज्य का दर्जा मिला नहीं था, तब महानगर परिषद से लगभग मुफ्त जमीन ली थी और इस शर्त को मंजूर किया था कि वे 20 प्रतिशत गरीब बच्चों को भी प्रवेश देंगे। अलबत्ता, जिन धनी व प्रतिष्ठावान परिवारों के नौनिहाल वहाँ पढ़ रहे थे, वे यह सहन न कर सके कि उनके नौनिहाल 'मैले' या 'गंदे' छात्रों की संगत में रहें। लिहाजा वे स्कूल अपनी बात से पलट रहे हैं और कानून की अवहेलना कर रहे हैं। वैसे भी इन स्कूलों के प्रबंधकों-अध्यापकों की मानसिकता उसी वर्ग जैसी बन जाती है और वे गरीब बच्चों को न तो धनी परिवारों के बच्चों जैसी शिक्षा देते हैं, न ही उनसे समान व्यवहार करते हैं। अब यही चलन उन सब इलाकों में हो जाएगा जहाँ ये पब्लिक स्कूल हैं।औसत मध्यम वर्ग के लोग मानते हैं कि अँगरेजी शिक्षा, अँगरेजी बोलचाल और वैसी ही वेषभूषा व रहन-सहन ही प्रगति की सीढ़ी है। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे वैसे ही स्कूलों में पढ़ें। इसलिए कस्बों-शहरों में अँगरेजी पढ़ाने वाले दुकाननुमा स्कूल खुल गए हैं। अलबत्ता कहाँ ये टूटपूंजिया दुकानें और कहाँ पब्लिक स्कूल। इस समस्या का क्या समाधान है कि वैसी दुकानें बंद न होंगी जबकि पब्लिक स्कूलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है? संभवतः उनमें पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को सामान्य सरकारी या सरकारी अनुदान लेने वाले स्कूल अच्छे नहीं लगेंगे। हर स्तर पर दोहरी- तिहरी शिक्षा नीति चलेगी और समानता की बात खत्म हो जाएगी। पहले कभी उत्साह से कहा जाता था, 'लोकराज की क्या पहचान, सबकी शिक्षा एक समान।' अब यह आकांक्षा भी दम तोड़ रही है। न केवल अर्थव्यवस्था में वर्गभेद तीखा हुआ है, बल्कि शिक्षा पद्धति उसे सामाजिक वैधता भी दे रही है। नतीजा यही होगा कि यह लोकतंत्र कुलीनतंत्र बना रहेगा जहाँ पब्लिक स्कूलों में शिक्षित युवजन नेता, अफसर, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर आदि बनते जाएँगे और सामान्य स्कूल क्लर्कों की सेना खड़ी करते रहेंगे। यह उस देश का हाल है जिसका संविधान उसे समाजवादी घोषित करता है।