यदि दिमाग में चढ़ी गर्मी तो होना पड़ेगा पानी-पानी
एक बार यमुना नदी के तट पर टहलते समय गुरु नानकदेवजी को किसी के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी। पास जाकर उन्होंने देखा कि एक महावत जमीन पर पड़े अपने हाथी के पास बैठा-बैठा रो रहा है। वह रोते हुए ईश्वर से अपने मरे हुए हाथी को जिंदा करने की प्रार्थना कर रहा था। नानक उससे बोले- तुम रोना बंद करो और नदी में से पानी लाकर हाथी के सिर पर डालो। यह ठीक हो जाएगा। महावत वैसा ही करने लगा। कुछ देर में हाथी उठ बैठा। इस पर महावत गुरु नानक के चरणों में गिरते हुए बोला- आप जरूर चमत्कारी बाबा हैं जो मेरे हाथी को जिंदा कर दिया। तब गुरु नानक बोले- मैंने कोई चमत्कार नहीं किया। यह हाथी मरा नहीं था। वह तो दिमाग में गर्मी चढ़ने के कारण बेहोश हो गया था। जब तुमने उसके सिर पर पानी डाला तो उसके दिमाग को ठंडक पहुँची जिससे गर्मी उतर गई और वह होश में आ गया। |
एक बार यमुना नदी के तट पर टहलते समय गुरु नानकदेवजी को किसी के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी। पास जाकर देखा कि एक महावत जमीन पर पड़े अपने हाथी के पास बैठा-बैठा रो रहा है। वह रोते हुए ईश्वर से अपने मरे हुए हाथी को जिंदा करने की प्रार्थना कर रहा था। |
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दोस्तो, जब किसी के दिमाग का पारा सातवें आसमान पर हो तो उसे भी इसी तरह शांति की शीतलता से ठंडा करना चाहिए। ऐसे में यदि उसकी गर्मी के आगे आप भी गर्मी दिखाएँगे तो गर्मी और बढ़ेगी, जिसका नतीजा कभी अच्छा नहीं होता। अकसर गुस्से में होने वाली गलतियाँ इसी गर्मागर्मी का नतीजा होती हैं जिसमें दोनों पक्ष जोर आजमाइश करके एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते हैं। जब बात हद से ज्यादा बढ़ जाती है तो कोई एक पक्ष हाथापाई पर उतर आता है ताकि सामने वाले का मुँह बंद किया जा सके, उसे चुप किया जा सके। धौंस में आकर चुप हुआ पक्ष शांत ज्वालामुखी बन जाता है जिसके दिमाग में नफरत का लावा धधकता रहता है और मौका मिलते ही सामने वाले पर बरसने लगता है। इसलिए बेहतर है कि गुस्से पर काबू पाया जाए, काबू किया जाए। सबसे अच्छा तो यह है कि हम खुद ही इस पर पानी डालें, क्योंकि सामने वाला कब तक आपकी गर्मी को सहन करेगा।
रामायण में कहा गया है कि सुलगती आग को पानी से रोकने की तरह अपने भड़के हुए क्रोध की गति को रोकने वाला महान होता है। वैसे भी क्रोध माने दूसरों की गलतियों का खुद से प्रतिशोध लेना। इससे सामने वाले को तो कुछ नहीं होता, आप हर वक्त उसे निपटाने की सोचते रहते हैं। इससे आपका मन किसी काम में नहीं लगता और यह आपकी तरक्की में अवरोध बन जाता है। इसलिए जब भी पारा चढ़े तो परिणाम पर विचार करें। आप निश्चिंत ही ठंडे हो जाएँगे। वैसे भी गुस्सा पानी पर लकीर या पानी के बुलबुले की तरह होता है। लेकिन पलभर में ही वह ऐसी चोट कर जाता है कि रिश्तों में गहरी लकीरें खिंच जाती हैं। इसलिए ऐसा कुछ न करें कि जब दिमाग की गर्मी उतरे, तब आप अपनी गलती पर लज्जित होकर पानी-पानी हो जाएँ। दूसरी ओर, अकसर जब व्यक्ति का पानी चढ़ता है यानी उसकी ख्याति बढ़ती है तो समझदार को तो वह पानी नहीं लगता, लेकिन जिसका दिमाग खाली रहता है, उसके दिमाग में इसकी वजह से गर्मी चढ़ने लगती है यानी उसे घमंड हो जाता है। तब वह अपने होशो-हवाश में नहीं रहता और मूर्खतापूर्ण व्यवहार करने लगता है। इस तरह वह अपनी कमाई हुई इज्जत पर बट्टा लगाने लगता है। यदि आप भी दिमाग की गर्मी की वजह से ऐसी ही बेहोशी की अवस्था में हैं तो आपको अपने दिमाग की गर्मी खुद ही उतारना होगी वर्ना सभी आपसे किनारा कर लेंगे। तब आपका पानी और गर्मी खुद ब खुद नीचे उतर आएँगे। अच्छा यही है कि अपनी सफलताओं पर इतराकर अपने दिमाग पर चर्बी न चढ़ने दें वर्ना वह जरा-सी गर्मी से भड़क उठती है और सारा किया-धरा पानी-पानी हो जाता है। गीता में कहा गया है कि क्रोध से मूर्खता बढ़ती है, मूर्खता से स्मरण शक्ति कम होती है, आप आगा-पीछा भूल जाते हैं और उससे बुद्धि नष्ट हो जाती है। तब आप कितनी ही ऊँचाई पर क्यों न हों, अपनी स्थिति से नीचे गिरकर नष्ट हो जाते हैं। इसलिए बेहतर है कि गर्मी चाहे जैसी भी हो, उस पर हमेशा पानी डाला जाए ताकि आपको कभी पानी-पानी होने की नौबत ही ना आए। आशा है इस बार अच्छा पानी गिरेगा ताकि धरती की गर्मी उतरे और उसका पानी चढ़े। अरे भई, सामने वाले को छेड़कर क्यों पानी में आग लगाने की कोशिश कर रहे हो।