आज से करीब 5 साल पहले एक्सपेरिमेंट लेवल पर गाँवों में लगभग 50 बीपीओ सेंटर्स शुरू किए गए थे। यह नई सोच थी, जिसने लोगों का दिल जीत लिया। अब ये रूरल बीपीओ सेंटर कस्टमर का दिल भी जीतने लगे हैं। एक्सपेरिमेंट लेवल से उठकर अब ये अपना दमखम दिखाने लगे हैं और हाशिये से कारोबार की मुख्यधारा में शामिल होते दिख रहे हैं।
ग्रामीण बीपीओ का ढाँचा बिलकुल सरल है। गाँवों में जमीन सस्ती है और कर्मचारी भी। ऐसे काम सीधे ग्रामीण बीपीओ केंद्रों के पास भेजे जा सकते हैं, जिनमें प्रस्तुतिकरण या ग्राहकों को जोड़े रखने की खास कुशलता की जरूरत नहीं होती है। इस तरह के कार्यों में आँकड़ों का संग्रह और रिकॉर्ड दर्ज करना शामिल है।
ग्रामीण बीपीओ की संख्या अगले 5 सालों में मौजूदा 50 से बढकर 1000 हो सकती है और इनके कर्मचारियों की संख्या मौजूदा 5000 से बढ़कर डेढ़ लाख होने की उम्मीद की जा रही है।
आर्थिक मंदी के बाद बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) को लेकर यह सोच विकसित हो गई थी कि इसमें अब करियर बनाने जैसी बात नहीं है। अमेरिका द्वारा भारतीय बीपीओ कंपनियों को काम आउटसोर्स नहीं करने की बात सामने आई थी, परंतु इन सबके बावजूद भारतीय बीपीओ कंपनियों द्वारा कनाड़ा, योरप से लेकर अन्य देशों में अपना फैलाव कर लिया है।
बीपीओ में काम करने के लिए आमतौर पर युवाओं की जरूरत होती है और भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा युवा रहते हैं। भारतीय कंपनियाँ अपने बीपीओ कार्यालय इस कारण आरंभ कर रही हैं, क्योंकि खर्च कम लगता है। अब भारतीय कंपनियों ने इस खर्च को और भी कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ केंद्र आरंभ किए हैं, जिससे न केवल उन्हें ज्यादा ऑर्डर मिलेंगे, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को भी काम करने का मौका मिलेगा।
वैसे तो बीपीओ सेक्टर में काम करने के लिए योग्यता और शिक्षा जॉब प्रोफाइल पर निर्भर करती है। बेसिक क्वॉलिफिकेशन के रूप में किसी भी सब्जेक्ट से ग्रेजुएट होना चाहिए। कस्टमर सपोर्ट में काम करने वाले बीपीओ कर्मचारी को इंग्लिश का अच्छा ज्ञान होना चाहिए, जबकि फाइनेंस, मार्केटिंग और एचआर में काम करने के लिए डिग्री की जरूरत पडती है। टेक्निकल सीट पर काम करने के लिए किसी अच्छे संस्थान से तकनीकी डिग्री का होना जरूरी है।