बजट से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां
देश का पहला बजट 15 अगस्त 1949 को प्रस्तुत किया गया था और तब देश को आजाद हुए मात्र बमुश्किल 3 माह ही हुए थे। देश के आजाद होने के बाद पहला बजट 26 नवंबर 1947 को आरके शणमुखम शेट्टी ने पहली बार पेश किया था। वास्तव में यह एक पूर्ण बजट नहीं था और असल में बजट के नाम पर पेश की गई जानकारी में तत्कालीन अर्थव्यवस्था की समीक्षा भर की गई थी। बजट में किसी प्रकार के कर का प्रस्ताव नहीं था, क्योंकि अगले वर्ष का बजट करीब 3 महीने की दूरी पर था।
लेकिन इससे पहले कि शेट्टी 1948-49 का बजट पेश करते, इससे पहले उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ हुए मतभेदों के चलते इस्तीफा दे दिया। इस बीच प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आनन-फानन में एक नए वित्तमंत्री का इंतजाम करना पड़ा। शेट्टी के विदा होने के बाद केसी नियोगी ने मात्र 35 दिनों के लिए वित्त मंत्रालय का काम अपने हाथ में लिया। नेहरू ने देश के तीसरे वित्तमंत्री को खोज लिया और जॉन मथाई ने तीसरे वित्तमंत्री के तौर पर आजाद भारत का पहला बजट पेश किया। मथाई ने 1950-51 में देश की चुनी गई संसद का पहला बजट पेश किया।
मोरारजी देश के ऐसे वित्तमंत्री बने जिन्होंने सबसे ज्यादा अवसरों पर बजट पेश करने का रिकॉर्ड बनाया। वर्ष 1959 में मोरारजी देसाई देश के वित्तमंत्री बने और उन्होंने 10 बार बजट पेश किया है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 5 पूर्णकालिक और 1 अंतरिम बजट पेश किया। दूसरे कार्यकाल में देश के वित्तमंत्री होने के साथ-साथ वे उपप्रधानमंत्री भी थे। दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने 3 पूरे और 1 अंतरिम बजट पेश किया था।
मोरारजी भाई देसाई देश के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने जन्मदिवस के 2 अवसरों पर बजट पेश करने का अवसर मिला। उल्लेखनीय है कि मोरारजी भाई का जन्म 29 फरवरी को हुआ था, जो कि प्रत्येक 4 वर्ष बाद आता था। वर्ष 1967 में चौथे आम चुनाव के बाद मोरारजी देसाई एक बार फिर वित्तमंत्री बने। यह उनका दूसरा कार्यकाल था और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना वित्तमंत्री बनाया था लेकिन इंदिराजी से मतभेद होने के बाद मोरारजी ने वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। देसाई के इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वित्त मंत्रालय अपने पास रख लिया था। बाद में इंदिरा गांधी देश की इकलौती महिला वित्तमंत्री भी रहीं।
इंदिराजी के न रहने पर वर्ष 1987-88 में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में वीपी सिंह वित्तमंत्री थे लेकिन प्रधानमंत्री से मतभेद होने के बाद राजीव गांधी ने भी खुद बजट पेश किया था। अपनी मां इंदिरा गांधी और नाना जवाहरलाल नेहरू के बाद बजट पेश करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री थे। इसके बाद नौकरशाह से नेता बने यशवंत सिन्हा ने बतौर वित्तमंत्री रहते हुए 1991-92 का बजट पेश किया।
लेकिन मई 1991 के आम चुनावों के बाद कांग्रेस फिर सत्ता में आई और मनमोहन सिंह वित्तमंत्री बने। पहली बार अंतरिम और पूर्ण बजट 2 अलग-अलग पार्टियों के नेताओं ने पेश किए थे। सिन्हा जहां भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे, वहीं मनमोहन सिंह को कांग्रेस ने वित्तमंत्री बनाया था। पहले वित्तमंत्री और बाद में प्रधानमंत्री के तौर पर देश के आर्थिक नियोजन में मनमोहन सिंह की अहम भूमिका रही। वित्त मंत्रालय संभालने से पहले वे रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके थे। भारतीय इतिहास में एक वित्तमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की भूमिका काफी अहम थी। उनके कार्यकाल के दौरान न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को खोला गया बल्कि इसे विदेशी निवेश के लिए भी आकर्षक बनाया गया।
मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री बनने से पहले आयात शुल्क 300 फीसदी से ज्यादा था लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में इसे घटाकर 50 फीसदी तक किया। इसी दौरान उन्होंने सर्विस टैक्स (सेवाकर) की शुरुआत की थी। आम चुनावों के बाद यह मंत्रालय गैरकांग्रेसी मंत्री के हिस्से में आया और इसके बाद वर्ष 1996-97 में तमिल मनीला कांग्रेस के पलानीअप्पन चिदंबरम ने बजट पेश किया। तब ऐसा दूसरा मौका आया, जब दो राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने अंतरिम और फाइनल बजट पेश किया। आईके गुजराल सरकार के संकट में आने के बाद पी. चिदंबरम ने 1997-98 का बजट बिना किसी बहस के पास कर दिया।
गौरतलब है कि वर्ष 2000 तक केंद्रीय बजट फरवरी माह के आखिरी दिन शाम 5 बजे पेश किया जाता था। यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने की थी, क्योंकि तब पहले दोपहर में ब्रिटिश संसद में बजट पास होता था और इसके बाद इसे शाम को भारत में पेश किया जाता था। पर जब यशवंत सिन्हा देश के वित्तमंत्री बने तो उन्होंने बजट के शाम 5 बजे पेश होने के समय को सुबह 11 बजे कर दिया था और तब से बजट का समय फरवरी माह में हो गया।
लेकिन समझा जाता है कि मोदी सरकार इस बजट को महीने के अंतिम दिन की बजाय पहले ही दिन पेश करने का इरादा रखती है। वित्तमंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में आम बजट को अंतिम रूप दिया जा रहा है। बजट पेश किए जाने से पहले वित्त मंत्रालय में एक हलवा सेरेमनी होती है यानी मंत्रालय में मीठा खाने के बाद सभी के लिए मीठा बजट पेश करने की परंपरा निभाई जाती है। इस बार जेटली संभवत: 1 फरवरी को ही अपना बजट पेश कर देंगे।