शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
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रोमियो अकबर वॉल्टर : फिल्म समी‍क्षा

रोमियो अकबर वॉल्टर : फिल्म समी‍क्षा - Romeo Akbar Walter, John Abraham, Robby Grewal, Samay Tamrakar, Movie Review in Hindi
रोमियो अकबर वॉल्टर शुरू होने के चंद मिनट बाद ही समझ आने लगता है कि यह आलिया भट्ट की पिछले वर्ष रिलीज हुई फिल्म 'राज़ी' का मेल वर्जन है। राज़ी की सेहमत पाकिस्तान में जासूसी करने के लिए जाती है और वहां से जानकारियां बटोर कर भारत पहुंचाती है। रोमियो अकबर वॉल्टर में यही काम जॉन अब्राहम करते हैं। 
 
दोनों फिल्मों में बड़ा फर्क यह है कि जो दिल की धड़कन तेज करने वाला रोमांच 'राज़ी' में था, उस रोमांच के आसपास भी 'रोमियो अकबर वॉल्टर' नहीं फटकती। यह फिल्म उबा देने वाली हद तक लंबी है और फिल्म में से उतार-चढ़ाव नदारद हैं। 
 
कहानी 1971 की है जब भारत-पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। रोमियो (जॉन अब्राहम) एक बैंक में काम करता है और उसे रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के चीफ श्रीकांत राय (जैकी श्रॉफ) पाकिस्तान जाकर जासूसी करने का महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपते हैं। 
 
अंडरकवर मिशन पर रोमियो अपना नाम बदल कर अकबर अली कर कर लेता है और इसाक अफरीदी (अनिल जॉर्ज) का खास बन जाता है जिसके पाकिस्तानी सेना से अच्छे संबंध है। अकबर कई खुफिया जानकारी जुटा कर भारत तक पहुंचाता है, लेकिन पाकिस्तानी पुलिस की निगाह में भी आ जाता है। 
 
रॉबी ग्रेवाल ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। लेखक के रूप में रॉबी निराश करते हैं। उनकी कहानी पर एक थ्रिलर बनने सारे गुण मौजूद थे, लेकिन उनकी स्क्रिप्ट इतनी सपाट है कि इसमें कोई रोमांच नजर नहीं आता। 
 
फिल्म में कुछ दृश्यों का कोई अर्थ ही नहीं निकलता। जॉन अब्राहम अपने पहले दृश्य में एक बूढ़े के रूप में नजर आते हैं जो मंच पर जाकर शायरी कर रहा है। इस सीन का कोई अर्थ नहीं निकलता सिवाय इसके कि वह रूप बदलने में माहिर है, लेकिन फिल्म में आगे यह बात कही नजर नहीं आती। 
 
एक बैंक केशियर में क्या खासियत रॉ चीफ को नजर आ जाती है कि वह इतनी बड़ी जिम्मेदारी रोमियो को सौंप देता है यह समझ से परे है। 
 
पाकिस्तान जाकर रोमियो बड़ी आसानी से काम करता है। जब लेखक को लगता है कि अब इसे पाकिस्तानी पुलिस की निगाह पर आ जाना चाहिए तो बड़ी आसानी से उसने यह काम कर दिया। 
 
अकबर के वॉल्टर बनने की कहानी तो बेहद बचकानी है और फिल्म के टाइटल को जस्टिफाई करने के लिए यह सब किया गया है जो अविश्वसनीय है। फिल्म के अंत में पाकिस्तानी क्यों अकबर पर इतना भरोसा करते हैं, समझ से परे है। एक गांव पर बम बरसाने का काम तो खुद पाकिस्तानी भी कर सकते थे। इस काम को वे अकबर से ही क्यों कराना चाहते थे? 
 
फिल्म में एक हीरोइन होना चाहिए इसलिए मौनी रॉय को ले लिया गया। मौनी को भी एक सरकारी अधिकारी बता कर पाकिस्तान पहुंचाने वाली बात भी पचना मुश्किल हो जाती है। फिल्म की धीमी गति भी बहुत बड़ी रूकावट है। कई बार आपके धैर्य की यह परीक्षा लेती है। 
 
फिल्म में एक अजीब-सी उदासी भी छाई हुई है। आखिर जॉन का किरदार क्यों इतना उदास क्यों है? बिना कारण की यह उदासी भी दर्शकों को फिल्म से दूर करती है। 
 
स्क्रिप्ट की कमियों को रॉबी अपने निर्देशन के जरिये नहीं छिपा पाए। कहानी को कहने का तरीका उन्हें सीखना होगा। कई बातें फिल्म में अस्पष्ट हैं और घटनाक्रमों को समझने में कठिनाई भी होती है। रॉबी ने स्टाइल और शॉट टेकिंग पर ज्यादा जोर दिया है। उन्होंने 70 के दशक का माहौल तो अच्छा बनाया है। उस दौर के घर, गलियां और चीजों को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है। कुछ दृश्य भी अच्छे से फिल्माए हैं, लेकिन सिर्फ ये बातें ही फिल्म को देखने लायक नहीं बनाती हैं।
 
तपन तुषार बसु का कैमरावर्क शानदार है। उन्होंने फिल्म को डार्क कलर टोन दिया है जिससे फिल्म का लुक ही बदल गया है। 
 
जॉन अब्राहम के चेहरे पर सदैव एक से भाव रहते हैं। यही कारण है कि मां-बेटे वाला ट्रैक जॉन के भावहीन अभिनय के कारण कमजोर साबित हुआ। जॉन अपने किरदार को किसी भी तरह खास बनाने में असफल रहे हैं। 
 
मौनी रॉय ने यह फिल्म क्यों की? यह सवाल वे खुद इस फिल्म के बाद अपने आप से पूछेंगी। जॉन-मौनी की मोहब्बत इस फिल्म में बिलकुल भी फिट नहीं बैठती। 
 
सिकंदर खेर का अभिनय बढ़िया है और उन्हें अधिक फुटेज मिलना थे। पाकिस्तानी पंजाबी वाला उनका उच्चारण शानदार है। जैकी श्रॉफ और रघुवीर यादव अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
 
'रोमियो अकबर वॉल्टर' जितनी 'इंटेलिजेंट' फिल्म बनने की कोशिश करती है उतनी है नहीं। 
 
बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, रेड आइस प्रोडक्शन्स, केवायटीए प्रोडक्शन्स, वीए फिल्म कंपनी 
निर्देशक : रॉबी ग्रेवाल
संगीत : अंकित तिवारी, सोहेल सेन, शब्बीर अहमद, राज आशू 
कलाकार : जॉन अब्राहम, मौनी रॉय, जैकी श्रॉफ, सिकंदर खेर, रघुवीर यादव, अनिल जॉर्ज
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 24 मिनट 30 सेकंड 
रेटिंग : 1.5/5