स्टीरियो टाइप कैरेक्टर्स और घिस चुके फॉर्मूलों को लेकर सोहेल खान ने 'फ्रीकी अली' फिल्म बनाई है। निरुपा रॉय नुमा मां, गरीबों की बस्ती, अमीर-गरीब का भेद, हिंदू-मुसलमान का भाईचारा, गोरी चिट्टी हीरोइन, सड़कछाप हीरो को अब कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है।
अफसोस की बात तो यह है कि इन फॉर्मूलों को भी सोहेल ठीक से पेश नहीं कर पाए। कहानी में नई बात यह डाली कि बस्ती में रहने वाला अली (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) अमीरों का खेल समझे जाने वाले गोल्फ में चैम्पियन बन जाता है। आइडिया तो अच्छा था, लेकिन इस कहानी को कहने के लिए जिस तरह का माहौल, किरदार और घटनाएं बनाई गई है वो फिल्म को चालीस साल पीछे ले जाती है।
कहानी भी सोहेल खान ने ही लिखी है, लेकिन वे समझ ही नहीं पाए कि बात को किस तरह आगे बढ़ाया जाए। कहानी को थोड़ा आगे बढ़ाने के बाद वे दिशा भूल गए और किसी तरह उन्होंने फिल्म को खत्म किया। फिल्म को दिलचस्प बनाने के लिए उन्होंने कई ट्रैक डाले, लेकिन फिल्म को उबाऊ होने से नहीं बचा पाए।
यह एक अंडरडॉग की कहानी है, लेकिन कोई रोमांच इसमें नहीं है। दोस्त और मां वाले ट्रेक में इमोशन नहीं है। रोमांस को कहानी में बेवजह फिट करने की कोशिश की गई है। फिल्म में कॉमिक अंदाज में खलनायक भी है जो न डराता है और न ही हंसाता है। ये तमाम ट्रैक्स अधपके हैं इसलिए बेस्वाद लगते हैं।
क्लाइमैक्स को धमाकेदार बनाने के लिए जैकी श्रॉफ को लाया गया है, लेकिन उनके लिए न ढंग की लाइनें लिखी गई हैं और न ही अच्छे दृश्य। जैकी ने इतना घटिया काम शायद ही पहले कभी किया हो।
सोहेल खान फूहड़ कॉमेडी शो में जज की भूमिका चुके हैं। इन शो की तरह कॉमेडी फिल्म में भी रखी गई है। भला जब मुफ्त में दिखाई जा रही कॉमेडी लोग देखना पसंद नहीं करते तो पैसे खर्च कर कौन ऐसी बकवास कॉमेडी देखना पसंद करेगा।
फिल्म का दूसरा हाफ तो इतना बुरा है कि, घर जाने, सोने, पॉपकॉर्न खाने, जैसे विकल्पों पर आप विचार करने लगते हैं। यह हिस्सा गोल्फ को समर्पित है। भारत में बमुश्किल चंद प्रतिशत लोग यह खेल समझते हैं। दर्शकों को समझ ही नहीं आता कि विलेन जीत रहा है या हीरो, तो भला रोमांच कैसे आएगा। भला होता यदि इस खेल के कुछ नियम कायदे दर्शकों को बता दिए जाते।
सोहेल का निर्देशन रूटीन है। उन्होंने कहानी को ऐसा पेश किया है मानो स्कूल/कॉलेज का कोई नाटक देख रहे हों।
गली-गली चड्डी बेचने वाले से गोल्फर बनने वाले किरदार को नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया है। वे फिल्म को मजेदार बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन स्क्रिप्ट से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है। अरबाज खान ने बेमन से अपना काम किया है। एमी जैक्सन को तो ज्यादा अवसर ही नहीं मिले हैं। निकितिन धीर ने बोर किया है। जस अरोरा प्रभावित नहीं कर पाए।
फिल्म के गीत-संगीत में कोई दम नहीं है।
फ्रीकी अली में एक भी ऐसा कारण नहीं है जिसके लिए टिकट खरीदा जाए। यह बिलकुल फीकी फिल्म है।
बैनर : सलमान खान फिल्म्स
निर्माता : सलमान खान
निर्देशक : सोहेल खान
संगीत : साजिद अली-वाजिद अली
कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, एमी जैक्सन, अरबाज खान, निकितिन धीर, जस अरोरा
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए
रेटिंग : 1/5