• Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
Written By समय ताम्रकर

हीरोपंती : फिल्म समीक्षा

हीरोपंती
PR
ज्यादातर स्टारसन्स को लांच करने के लिए जो फिल्में बनाई जाती हैं उनकी कहानी रूटीन होती है। बिना मलतब के ऐसे दृश्य रखे जाते हैं जिनमें अपने जौहर दिखा सके कि वह फाइटिंग कर सकता है, डांस कर सकता है, इमोशनल दृश्यों में अपनी छाप छोड़ सकता है। कुल मिलाकर ये फिल्में उस स्टार पुत्र के शोकेस की तरह होती हैं। जैकी श्रॉफ के पुत्र टाइगर श्रॉफ को लांच करने के उद्देश्य से बनाई गई 'हीरोपंती' भी इन बातों से भिन्न नहीं है।

कहानी जाटलैंड में सेट है, जहां शादी के पहले प्यार हो जाए तो मौत के घाट उतार दिया जाता है। दो बच्चे होने के बाद बीवी से प्यार होता है। वहां के डॉन (प्रकाश राज) की बेटी रेणु (संदीपा धर) अपनी शादी वाली रात अपने प्रेमी राकेश के साथ भाग जाती है। चौधरी के गुंडे राकेश की तलाश में उसके तीन दोस्तों को उठा लाते हैं जिनमें से एक बबलू (टाइगर श्रॉफ) भी है। जब तक रेणु और राकेश का पता नहीं चल जाता इन तीनों को चौधरी कैद कर लेता है।

दोस्तों को बबलू बताता है कि उसे एक लड़की से प्यार हो गया है जिसकी एक झलक उसने चाट की दुकान पर देखी थी। संयोग से यह लड़की चौधरी की छोटी बेटी डिम्पी (कृति सेनन) निकलती है। बबलू जानता है कि राकेश और रेणु कहां है, लेकिन चौधरी को वह बेवकूफ बना कर खूब इधर-उधर घुमाता है और इस दौरान वह डिम्पी का दिल भी जीत लेता है। किस तरह से बबलू-डिम्पी का प्यार जीतता है यह फिल्म का सार है।

'हीरोपंती' तेलुगु फिल्म 'परुगु' का हिंदी रिमेक है। कहानी दोयम दर्जे की और घिसी-पिटी है। फिल्म की शुरुआत में चौधरी परिवार का जो परिचय दिया गया है वो इतना लंबा है कि वही से फिल्म अपनी पकड़ खोने लगती है। स्क्रिप्ट में कई खामियां हैं। जैसे, बबलू और उसके दोस्त चौधरी के शिकंजे से निकल जाते हैं, लेकिन बबलू को डिम्पी दिखाई देती है और वह उसे निहारने में लग जाता है। दोस्त आसानी से भाग सकते थे, लेकिन बबलू का ही इंतजार करते रहते हैं।

रेणु और राकेश का पता जब चौधरी के गुंडों को लग जाता है तो वह बबलू और उसके दोस्तों को वहां क्यों ले जाते हैं, ये समझ से परे है। ये सीन सिर्फ इसलिए रखा गया है है ताकि बबलू का एक्शन सीन फिट किया जा सके। रेणु को भागे हुए कई दिन बीत जाते हैं, लेकिन जब चौधरी को बबलू बताता है कि वे मंदिर में या कोर्ट में शादी कर रहे होंगे तो चौधरी उसकी बात आसानी से मान कर वहां खोजबीन शुरू कर देता है। चौधरी यह बात नहीं सोचता कि अगर शादी करना हो तो रेणु ने अब तक कर ली होगी। होशियार चौधरी को अचानक बेवकूफ बताया जाता है ताकि हीरो 'स्मार्ट' लगे।

बबलू और डिम्पी की प्रेम कहानी में भी दम नहीं है। बबलू का प्यार एकतरफा है, लेकिन डिम्पी उससे क्यों प्यार करने लगती है, इसकी सिचुएशन ठीक से नहीं बनाई गई है। चौधरी के सख्त पहरे में डिम्पी और बबलू इतनी आसानी से मिलते हैं कि हैरत होती है। बबलू कौन है, क्या करता है, यह बताने की जहमत भी लेखक और निर्देशक ने नहीं उठाई।

आखिरी आधे घंटे में जरूर फिल्म में पकड़ आती है जब ड्रामा ड्राइविंग सीट पर आता है। डिम्पी की शादी कहीं और तय हो जाती है। उसे भगाने के उद्देश्य से चौधरी के घर बबलू घुसता है, लेकिन बाप-बेटी के प्यार को देख वह डिम्पी को भगाने का इरादा त्याग देता है। यहां फिल्म दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे की याद दिलाती है।

PR
फिल्म का निर्देशन शब्बीर खान ने किया है जो इसके पहले 'कमबख्‍त इश्क' जैसी घटिया फिल्म बना चुके हैं। चूंकि साजिद नाडियाडवाला से जुड़े हुए हैं इसलिए एक अवसर उन्हें और मिल गया है। शब्बीर ने फिल्म बनाते समय यह ध्यान रखा कि यह टाइगर श्रॉफ की पहली फिल्म है इसलिए उन्हें पूरा अवसर मिले। टाइगर की 'हीरोपंती' दिखाने के लिए उन्होंने लॉजिक को कई बार ताक पर रख दिया है। इंटरवल उन्होंने एक अहम मोड़ पर किया है और आखिरी के आधे घंटे फिल्म को संभाला है, लेकिन बाकी जगह उनका निर्देशन कमजोर नजर आया। टाइगर और उसके दोस्तों के बीच फिल्माए गए दृश्य बचकाने हैं।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग... अगले पेज प


PR
साजिद-वाजिद ‍का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। 'रात भर', 'तेरे बिना' सहित एक-दो गीतों की धुनें अच्छी हैं, लेकिन इनकी सिचुएशन सही नहीं होने के कारण ये गाने देखते समय अखरते हैं। फिल्म के संवादों पर कोई मेहनत नहीं की गई है। 'हीरोपंती किसी को आती नहीं और मेरी जाती नहीं' जैसा संवाद ऊबा देने वाले स्तर तक सुनने को मिलता है। दूसरी ओर 'मैं तुम्हारा द एंड करूंगा और फिर डिम्पी की ओपनिंग सेरेमनी करूंगा' जैसे घटिया संवाद भी झेलने पड़ते हैं।

लुक के मामले में टाइगर श्रॉफ जरूरत से ज्यादा चिकने हैं। हर तरह के रोल में वे जमेंगे या नहीं, फिलहाल कहा नहीं जा सकता है। उनके चेहरे पर मासूमियत है जो 'हीरोपंती' जैसी फिल्म में उनकी खूबी बन गई है। एक्शन और स्टंट करने के मामले में वे बेजोड़ हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनकी इस क्वालिटी का निर्देशक ने भरपूर उपयोग नहीं किया। अभिनय के मामले में टाइगर औसत हैं। उनकी 'कूल' होने की कोशिश साफ नजर आती है।

फिल्म की हीरोइन कृति सेनन खूबसूरत हैं और टाइगर के साथ उनकी जोड़ी अच्छी भी लगी है। कृति में संभावना नजर आती हैं, लेकिन इसके पहले उन्हें अपने आपको मांझना होगा। फिल्म में कई जगह उन्होंने सपाट चेहरे से संवाद बोले हैं। प्रकाश राज का रोल ग्रे शेड्स लिए हुए हैं और फिल्म के आखिरी आधे घंटे में उनका काम जबरदस्त है। टाइगर के दोस्त बने अभिनेताओं ने जमकर ओवर एक्टिंग की है। संदीपा धर भी खास असर नहीं छोड़ पाती हैं।

कुल मिलाकर 'हीरोपंती' ऐसी मसाला फिल्म है जिसका स्वाद फीका है।

PR
बैनर : नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : शब्बीर खान
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : टाइगर श्रॉफ, कृति सेनन, प्रकाश राज, संदीपा धर, विक्रम सिंह
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 26 मिनट 26 सेकंड
रेटिंग : 2/5