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Written By ND

बदला लेने को तैयार गर्ल ब्रिगेड

बदला लेने को तैयार गर्ल ब्रिगेड -
माँ कसम... खून का बदला खून से लूँगा..! सुनते ही दिमाग में एकदम से हिन्दी फिल्म का धर्मेंद्र-अमिताभ या सन्नी पाजी नुमा कोई एक्शन दृश्य साकार हो उठता है। हिन्दी फिल्मों में हीरो के मम्मी-पप्पा और गर्लफ्रेंड से लेकर खुद के साथ हुए अन्याय तक बदले का हिसाब-किताब हीरो अपने ही पास रखा करता है, अक्सर। लेकिन कहानी में टि्‌वस्ट की तरह अब हीरोइनें भी बदले की जंग में उतर रही हैं और यहाँ मामला प्यार-मोहब्बत-इश्क में धोखा खाने के बाद सबक सिखाने का नजर आ रहा है। यानी कि दिल तोड़ने का बदला दिल तोड़ने से। चोपड़ा खेमे की आगामी फिल्म 'लेडीज वर्सेस रिकी बहल' को भी इसका एक उदाहरण माना जा सकता है।

हालाँकि इस मामले में अगर मानद पीएचडी का भी मामला हो तो शायद वो खिलाड़ी कुमार के खाते में जाएगी क्योंकि इस तरह के दिलफेंक किस्म के रोल उन्होंने काफी किए हैं और शायद करते रहेंगे...जहाँ उनसे धोखा खाने के बाद लड़कियाँ उनकी तबीयत से मरम्मत करती हैं...। फिर चाहे वो कॉमेडी फिल्म का मामला हो या फिर सामान्य रोमांटिक फिल्म।

याद कीजिए उनकी फिल्म 'सुहाग' जिसमें वे ढेर सारी लड़कियों से केवल चाँटे ही नहीं जूतों और सैंडल्स के भी निशान पाते नजर आते हैं। अक्सर हिन्दी फिल्मों के कॉलेज में ऐसे दृश्य आम होते हैं जहाँ दिल तोड़ने या परेशान करने वाले अशिकनुमा हीरो को हीरोइन और उसकी सहेलियाँ मजा चखाती हैं। दिल, खिलाड़ी, शोला और शबनम जैसी कई फिल्मों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। ये अलग बात है कि यह बदला बाद में प्रेमकथा में बदल जाता है।

बदलते जमाने के साथ अब तेजी से युवतियों और महिलाओं की दुनिया में भी काफी तब्दीलियाँ आई हैं और जाहिर है कि इसका असर भी बॉलीवुड पर पड़ना ही है। तो बदले की इन नई प्रेमकथाओं को इसका हिस्सा कहा जा सकता है।

जहाँ हीरोइन या कुछ मामलों में सह-नायिकाएँ... हीरो के प्रेम में दीवानी हो जाती हैं और फिर उन्हें पता चलता है कि हीरो के लिए तो ये महज मन बहलाव का मसला था और कि वो आजकल किसी और लड़की के इश्क में मुब्तिला है।

तो धोखा खाई लड़कियाँ अकेले या साथ मिलकर हीरो के खिलाफ बदले का जाल बुनती हैं और फिर अंत भला तो सब भला कि तर्ज पर क्लाइमेक्स में हीरो अपनी गलती मान लेता है और उसे माफी के साथ-साथ किसी एक लड़की का साथ भी आसानी से मिल जाता है।

लेडीज वर्सेस रिकी बहल में बैंड बाजा बारात फेम रणवीर सिंह लड़कियों को धोखा देते और फिर अपनी करनी का फल भुगतते नजर आएँगे। वैसे अगर चरित्र-चित्रण किया जाए तो रणवीर इस मामले में अक्षय कुमार के असल उत्तराधिकारी नजर आते हैं।

कुछ समय पहले आई फिल्म 'बचना ऐ हसीनों' में रणबीर कपूर भी कुछ-कुछ ऐसे ही रोल में नजर आए थे। जिन्हें मिनीषा और बिपाशा से दिल बहलाने के बाद दीपिका मिलती हैं और उन्हें असल मुहब्बत हो जाती है। लेकिन तब दीपिका उन्हें ठुकरा देती हैं और दिल टूटने के दर्द को महसूस कर रणबीर बिपाशा और मिनीषा से माफी माँगने जाते हैं। तब बिपाशा उनसे बदले की तर्ज पर अपने लिए सेवक की तरह काम करवाती हैं।
इसी तरह यशराज खेमे की हाल ही में आई फिल्म 'लव का दी एंड' में भी नायिका श्रद्धा कपूर... एक कॉन्टेस्ट को जीतने के लिए उससे प्रेम का प्रपंच रचा रहे नायक से बदला लेती है। इसके लिए वह अपनी सहेलियों का एक गैंग बनाकर बकायदा नायक को जाल में फँसाती है। यह फिल्म बहुत कुछ हॉलीवुड की फिल्म 'जॉन टकर मस्ट डाय' से प्रेरित कही जा सकती है।

कुछ समय पहले आई फिल्म 'हैलो डार्लिंग' में भी लड़कियों के दिलों से खेलने वाले बॉस जावेद जाफरी को सबक सिखाती तीन लड़कियों की कहानी थी। फिल्म 'दिल है हिंदुस्तानी' का वह सीन याद कीजिए जहाँ जूही चावला, शाहरुख खान की सभी कथित प्रेमिकाओं को एक जगह इकट्ठा कर इस बात का पर्दाफाश कर देती हैं कि शाहरुख असल में सबके दिल से खेल रहे थे...और कुछ नहीं। यह भी नायिका बदले की भावना से ही करती है क्योंकि नायक उसके साथ भी फ्लर्ट करता है।

खैर कॉलेज की स्टोरी में इस तरह के बदले बॉलीवुडिया मसाला फिल्मों का एक अहम हिस्सा रहे हैं। पर प्रेम में धोखा मिलने के बाद नायक को सबक सिखाने और उसे हराकर, जीत जाने वाली हीरोइनों पर केंद्रित कहानियाँ भी अब हिन्दी फिल्मों में चलन बनती जा रही हैं।

- प्रीतेश गुप्ता