'श्री' देखने के लिए दिमाग की जरूरत : हुसैन कुवाजरवाला
हुसैन कुवाजरवाला को आप टीवी पर एक्टर, एंकर और मॉडल के रूप में देख चुके हैं। दर्शकों ने टीवी पर उन्हें हर किरदार और रूप में पसंद किया है। कई दिनों से वे टीवी पर नजर नहीं आ रहे हैं। हुसैन सीएम एंटरटेनमेंट की फिल्म 'श्री : द मैन... द साइंस... द ट्रैप' से बॉलीवुड में एंट्री कर रहे हैं। इस एक्शन-थ्रिलर फिल्म को राजेश बच्चानी निर्देशित कर रहे हैं, जबकि विक्रम एम. शाह इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं। हुसैन के साथ फिल्म में अंजलि पाटिल, शिवानी तकसाले, परेश गनात्रा, पारितोश सैंड, रियो कापड़िया, जितेंद्र भी दिखाई देंगे। हुसैन का इस फिल्म और किरदार के बारे में क्या कहना है।एक्शन-थ्रिलर फिल्म से बॉलीवुड में एंट्री?मेरे पास पहले भी कुछ फिल्मों की स्क्रिप्ट आई थी, लेकिन मुझे पसंद नहीं आई। जब 'श्री' के लेखक और निर्देशक राजेश बच्चानी ने मुझे इसकी कहानी सुनाई तब मैंने बड़े ध्यान से सुना। कहानी गजब की थी और मैं इसके अगले मोड़ का अंदाजा भी नहीं लगा पाया। जब मेरी पत्नी टीना ने कहानी पढ़ी तो उसने भी फौरन हां कर दी। रोमांटिक और कॉमेडी फिल्में ही अच्छा प्लेटफार्म नहीं हो सकतीं। एक्शन-थ्रिलर फिल्मों से भी कई स्टार फेमस हुए हैं। फिल्म का ट्रीटमेंट और कहानी अच्छी होनी चाहिए। टीवी और फिल्मों में फर्क? जहां सीरियल्स में कहानी कभी खत्म नहीं होती, वहीं फिल्म में सिर्फ दो-तीन घंटे का समय ही होता है। दो-तीन घंटे में ही कहानी को क्लाइमेक्स तक पहुंचाना होता है। कहानी के उतार-चढ़ाव के अलावा ज्यादा फर्क नहीं। फिल्म में आपका किरदार? फिल्म में मैं ही श्री हूं जो एक टेलीफोन कंपनी में अकाउंटेंट है। सीधा-सादा, मेहनती श्री एक लड़की सोनू से प्यार करता है, उससे शादी करना चाहता है, लेकिन शादी के लिए घर खरीदना जरूरी है। जब उसे जीवन के 10 घंटों के बदले बड़ी सैलरी, बड़ा मकान, 20 लाख रुपए का ऑफर आता है तो वह मान जाता है, बस यहीं से उसके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। फिल्म दर्शकों को कैसे प्रभावित करेगी?यह थ्रिल से भरपूर कहानी है। फिल्म में एक दिमागी खेल है। जैसे कॉमेडी फिल्मों के लिए कहा जाता है कि दिमाग घर पर छोड़कर आओ वैसे ही 'श्री' के लिए दर्शकों को दिमाग साथ लाने को कहा जाएगा। आज की यंग जनरेशन को श्री और सोनू में अपनी झलक नजर आएगी। सोनू के किरदार को अंजलि पाटिल ने बखूबी निभाया है। शिवानी तन्कसाले, परेश गनात्रा जैसे कलाकारों के साथ काम करना कैसा लगा? बहुत मजा आया। ये सभी बहुत मंझे हुए कलाकार हैं। राजेश बच्चानी और विक्रम शाह की भी यह पहली फिल्म है? राजेश अपने काम के प्रति बहुत ही समर्पित हैं। उन्होंने यह कहानी बहुत समय पहले लिखी थी। टेलीविजन और फिल्मों में असिस्टेंट के रूप में किए गए काम का अनुभव फिल्म निर्माण के दौरान उपयोगी रहा। विक्रम शाह का भी फिल्म के लिए पूरा सपोर्ट रहा। शूट के दौरान मजेदार घटना? फिल्म में एक सीन था, मेरे पीछे तीन-चार कॉन्सटेबल दौड़ते हैं और मुझे भागना था। सीन शुरू होने पर मैं भागकर गया और गाड़ी में बैठकर निकल गया पर ये जूनियर एक्टर दौड़ते ही जा रहे थे। जब एक मिनट बाद हमारी गाड़ी लौटी तो देखा उनके पीछे कुत्ते लगे हुए थे। यूनिट वालों ने डंडा बजाकर कुत्तों को भगाया। इस सीन को पूरी टीम ने एंजॉय किया। इतने दिनों से मीडिया में नजर नहीं आए? मैंने कभी ज्यादा पब्लिसिटी नहीं की। मैं बॉलीवुड म्यूजिकल नाटक 'जंगारू- द जिप्सी प्रिंस' में व्यस्त था। इसका ऑडिटोरियम बहुत भव्य और खूबसूरत है। यहां एक्टिंग करना अपने आप में चुनौती है। मुझे लगता है कि एक एक्टर के रूप में विज्ञापन, एंकरिंग, थिएटर और टीवी से मेरा सर्कल पूरा हो गया। भविष्य के लिए कोई प्लान? मैंने कुछ भी प्लान नहीं किया है। जब जैसा अच्छा ऑफर आया मैंने उसे स्वीकारा। अभी मैं एक कलाकार हूं अभिनय ही करूंगा। टीवी से फिल्मों में जाना मुश्किल लगा? कुछ भी आसान नहीं है और अगर आप में पैशन है तो कुछ भी मुश्किल नहीं। हम कलाकार इसी चुनौती पर जीते हैं। हर माध्यम में कुछ फर्क है पर आत्मा तो सभी की एक है। मैंने हर काम लगन से किया है। मेरे फैन्स उसे हमेशा सराहा। हर कलाकार की तरह मेरी भी इच्छा फिल्म करने की थी, जो पूरी हुई। अपने फैन्स से इतना कहना चाहूंगा कि फिल्म को देखकर मुझे उतना पसंद करें जितना टीवी पर किया।