संजय दत्त की स्टार वैल्यू को देखते हुए थिएटर वालों ने उनकी वापसी वाली फिल्म 'भूमि' 1894 स्क्रीन्स दिए। भूमि के सामने रिलीज हुई 'न्यूटन', जिसमें राजकुमार राव हैं। उनकी स्टार वैल्यू को देखते हुए 'न्यूटन' को 430 स्क्रीन्स मिले। पहला दिन भूमि का भारी रहा। इस फिल्म ने लगभग सवा दो करोड़ रुपये का कलेक्शन किया, हालांकि संजय की वापसी को देखते हुए यह कलेक्शन बहुत कम था, लेकिन न्यूटन के पहले दिन का कलेक्शन (96 लाख रुपये) को देखते हुए यह ज्यादा लगता है। दूसरे और तीसरे दिन न्यूटन ने ऐसी छलांग लगाई कि भूमि से आगे निकल गई। कम स्क्रीन्स होने के बावजूद फिल्म के कलेक्शन ज्यादा रहे। यह संजय दत्त की फिल्म के लिए करारा झटका था।
दरअसल 'भूमि' इतनी घटिया फिल्म है कि इसका यही हश्र होना था। संजय दत्त ने जब अपना करियर शुरू किया था तब इस तरह की फिल्में बना करती थीं, लेकिन आज के दौर में इस तरह की फिल्म से वापसी कर संजय ने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है।
फिल्म में संजय दत्त को इस तरह से पेश किया गया है कि उनके कट्टर प्रशंसक भी शायद ही इस फिल्म को पसंद करे। मारामारी करने के बजाय वे 80 प्रतिशत फिल्म में लाचार नजर आते हैं और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। अंतिम चंद मिनटों में उन्होंने मारधाड़ की है, लेकिन वो भी प्रभावी नहीं है।
आश्चर्य तो इस बात का है कि संजय ने यह फिल्म चुनी ही क्यों? जेल से छूटने के बाद उन्होंने अपनी वापसी के लिए लंबा समय लिया। कई स्क्रिप्ट सुनी और तब जाकर 'भूमि' को फाइनल किया। शायद उमंग कुमार के नाम से संजय प्रभावित हो गए होंगे क्योंकि उन्होंने 'मैरीकॉम' और 'सरबजीत' बनाई हैं, लेकिन कम से कम स्क्रिप्ट तो संजू ने भी पढ़ी या सुनी होगी। इस तरह की स्क्रिप्ट को मंजूरी उन्होंने कैसे दे दी।
यह फिल्म लगभग तीस करोड़ में तैयार हुई है और जिस तरह से फिल्म ने अब तक प्रदर्शन किया है उसे देख लग रहा है कि फिल्म के लिए लागत वसूलना कठिन है। इस फिल्म की असफलता दर्शाती है कि सोलो हीरो के रूप में संजय के लिए चलना कठिन है। उन्हें मल्टीस्टारर फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं निभाना चाहिए जैसा कि अनिल कपूर कर रहे हैं।