गुरुवार, 14 नवंबर 2024
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Written By Author सुशोभित सक्तावत

मोहेंजो दारो, रितिक रोशन और आर्य नस्ल

मोहेंजो दारो, रितिक रोशन और आर्य नस्ल - Mohenjo Daro, Hrithik Roshan, Aushutosh Gowarikar, Pooja Hegde
पता नहीं, अपनी फिल्म 'मोहेंजो दारो' के लिए रितिक रोशन का चुनाव करते समय आशुतोष गोवारीकर क्या सोच रहे थे। शायद, इसलिए कि वे 'जोधा अकबर' में रितिक के साथ पहले काम कर चुके थे, या शायद इसलिए कि मौजूदा बॉलीवुड अभि‍नेताओं में रितिक की गणना उन इने-गिने लोगों में होती है, जो ना केवल प्रतिभाशाली और परिश्रमी हैं, बल्कि जिनकी सुपर सितारा हैसियत फिल्म की क़ामयाबी की गारंटी भी होती है। 
 
बहरहाल, मुझे नहीं पता रितिक को लेते समय आशुतोष गोवारीकर "आर्य नस्ल" की थ्योरी के बारे में क्या सोच रहे थे क्योंकि रितिक के "एंथ्रोपॉलाजिकल फ़ीचर्स" बेहद "आर्यन" हैं। "नोर्ड‍िक नस्ल" (जिसे कि नात्स‍ियों ने "मास्टर रेस" कहा था) के अनुरूप- गौर वर्ण, उन्नत भाल, तीखे नाक-नक़्श, घनी बरौनियां, नीली आंखें और सुगठित शरीर। तब क्या अपनी फिल्म के नायक के रूप में रितिक को चुनते समय आशुतोष इस विवादित धारणा की पुष्ट‍ि करना चाह रहे थे कि आर्य भारत के मूल निवासी थे?
इसे समझने के लिए हमें इसके संदर्भों में जाना होगा। भारत में 2600 से 1900 ईसा पूर्व तक "सिंधु घाटी सभ्यता" या "हड़प्पा संस्कृति" का अस्त‍ित्व बताया जाता है। यह एक अत्यंत कुशाग्र, कल्पनाशील, व्यवहार बुद्ध‍ि से परिपूर्ण और सुसंगठित सभ्यता थी, जिसने दुनिया की पहली "प्लान्ड सिटी" मोहेंजो दारो बसाई थी। सुमेरियाई और बेबीलोनियाई सभ्यताओं से कहीं पुरानी, कहीं विकसित यह सभ्यता 1900 ईसा पूर्व में नाटकीय तरीक़े से लुप्त हो जाती है और उसके स्थान पर एक "वैदिक सभ्यता" उभरती दिखाई देती है, जिसका कि कोई 1400 सालों बाद गौतम बुद्ध ने प्रतिकार करना था। 
 
फ़ारस से लेकर गंगा के दोआब तक हज़ारों किलोमीटर के दायरे में फैली यह सभ्यता अचानक कैसे समाप्त हो गई? इस बारे में दो थ्योरियां प्रचलित हैं। एक यह कि किसी प्राकृतिक आपदा या जलवायु परिवर्तन संबंधी संकट के कारण उनका नाश हो गया। दूसरी यह कि आर्यों ने उन पर चढ़ाई कर उन्हें दक्ष‍िण में खदेड़ दिया। यह कि हड़प्पा संस्कृति के मूल निवासी अश्वेत थे, जैसे कि आज द्रविड़ लोग पाए जाते हैं और आर्य गौरांग थे, जैसे कि उत्तर भारतीय सवर्ण होते हैं।
 
भारत में आर्यों के आगमन या उनके यहां के मूल निवासी होने के संबंध में भी तीन तरह की थ्योरियां प्रचलित हैं। पहली है "एआईटी" यानी "आर्य इन्वेशन थ्योरी", जो कहती है कि आर्य यूरोपीय नोर्ड‍िक थे, जिन्होंने मोहेंजो दारो पर धावा बोला था। इसका आधार भारोपीय भाषाएं हैं, जिसमें संस्कृत और लैटिन से उत्पन्न होने वाली भाषाओं में कई समानताएं पाई जाती हैं। दूसरी थ्योरी "एएमटी" यानी "आर्य माइग्रेशन थ्योरी" कहलाती है, जिसके मुताबिक़ आर्य भारत आए ज़रूर थे, लेकिन वे यहां आकर मूल निवासियों से घुल-मिल गए थे और उत्तर से दक्ष‍िण तक फैल गए थे। एक अन्य थ्योरी "ओआई" यानी "आउट ऑफ़ इंडिया "थ्योरी कहलाती है, जिसके मुताबिक़ आर्य भारत के मूल निवासी थे और कालांतर में मध्येशिया और यूरोप तक फैल गए थे।
 
पहली थ्योरी का समर्थन औपनिवे‍‍शिक ताक़तें और मार्क्सवादी चिंतक करते हैं। औपनिवेशिक इसलिए क्योंकि इससे यूरोपियन नस्ल की श्रेष्ठता सिद्ध होती है और साम्राज्यवादी लिप्साओं को एक ऐतिहासिक तर्क प्राप्त होता है। मार्क्सवादी इसलिए, क्योंकि वे इससे सवर्ण बनाम अवर्ण का अपना विमर्श चला पाते हैं और यह सिद्ध कर पाते हैं कि दलित और द्रविड़ ही भारत के मूल निवासी हैं, जिन्हें सवर्ण आर्यों द्वारा हाशि‍ये पर खदेड़ दिया गया था। (मार्क्सवादियों को अहसास नहीं है कि मूल निवासी का यह पूर्वग्रह कितना घातक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पर्याय है, और इसके आधार पर कश्मीर से लेकर फ़लस्तीन तक मुसलमानों को भी खदेड़ा जा सकता है।) 
तीसरी थ्योरी का समर्थन करने वाले हिंदू राष्ट्रवादी हैं, जो मानते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता एक ही थी, पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध की तरह, वरना यह कैसे संभव है कि कोई सात सौ सालों तक भारत में फलने-फूलने वाली हड़प्पा संस्कृति का समूल नाश हो गया है और उसकी तुलना में कथित रूप से विदेशी आर्यों के वेद, पर्व, देवता, प्रतीक और भाषाएं आज भी भारतीय संस्कृति का स्थायी अंग बने हुए हों?
 
मुझे नहीं मालूम, आशुतोष गोवारीकर अपनी फिल्म के लिए रितिक रोशन को लेते समय क्या सोच रहे थे, क्योंकि वे नोर्ड‍िक-आर्यन नस्ल के प्रतिनिधि चेहरे हैं : सवर्ण रूप-रंग वाले। मुझे यह भी नहीं मालूम कि अभी तक इस बिंदु पर किसी का ध्यान गया है या नहीं, लेकिन बहुत संभव है कि फिल्म की रिलीज़ के बाद यह मामला तूल पकड़े। जो भी हो, मुझे इस फिल्म का इंतज़ार है, रितिक से ज़्यादा पूजा हेगड़े के लिए, क्योंकि जहां रितिक का चेहरा एंथ्रोपॉलॉजी की दृष्ट‍ि से ही इतना आधुनिक है कि उन्हें इस तरह की किसी भी प्रागैतिहासिक फिल्म में देखना अजीब लगता है, वहीं पूजा के चेहरे में एक प्राच्य "इजिप्श‍ियन" सौंदर्य की झलक है, क्लेओपात्रा की तरह। रितिक की तुलना में पूजा हेगड़े का सौंदर्य कहीं "ओरियंटल" है, अलबत्ता सवर्ण दोनों ही हैं, आर्यों के भारत के मूल निवासी होने की धारणा को बलवती करते हुए।
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