फिल्म '99' की खुलेगी लॉटरी
बहुत दिनों से कोई नई फिल्म लग नहीं पा रही है, इसलिए यह तय था कि अब जो भी फिल्म पहले लगेगी उसे बहुत फायदा होगा। मिसाल के तौर पर आज से लग रही है फिल्म '99। अगर ये फिल्म सामान्य दिनों में लगती तो शायद निन्यानवे लोग भी इसके बारे में चर्चा नहीं करते। मगर इत्तफाक से ये फिल्म हड़ताल के बाद पहले पहल लग रही है, सो इसे मल्टीप्लेक्स खाली मिलेंगे। दर्शक भी तरसे हुए होंगे। इस फिल्म को अच्छा खासा शुरुआती लाभ मिलेगा। यह ऐसा ही है जैसे जंगल में रेल रुकी पड़ी है। मुसाफिर एक-एक दाने को तरस रहे हैं। ऐसे में एक आदमी घर से कच्चा-पक्का बना लाता है, और बेचने लगता है। भूख में कुछ समझ नहीं आता कि रोटियाँ जली हुई हैं, चावल मोटे वाले हैं और वो भी कच्चे रह गए हैं, दाल पतली है और गली नहीं है, नमक तेज है और रोटियों के आटे में नमक डला ही नहीं है। इतनी भूख में सब बिक जाता है। मगर सोचिए कि यही कच्चा-पक्का खाना किसी बड़े स्टेशन पर वही आदमी लेकर आए तो क्या बिकेगा? इसी शुरुआती लाभ को पाने के चक्कर में फिल्म के निर्माता ने मल्टीप्लेक्स वालों की बेजा बातें भी मान ली हैं। एक तरह से ये अपने साथी निर्माताओं से गद्दारी है, पर फायदे की खातिर गद्दारी भी चलती है। ये फिल्म सभी के लिए एक मौका लेकर आई है। निर्माता के लिए पैसा कमाने का और काम करने वालों के लिए पहचान बनाने का। फिल्म अच्छा धंधा करेगी तो पैसा भले ही निर्माता और वितरक को मिले, पर साख बढ़ेगी कुणाल खेमू की, सोहा अली खान की, निर्देशक राजनिधी मोरन और कृष्णा डिके की। ये लोग जानते हैं कि मल्टीप्लेक्स वालों के साथ निमार्ताओं का समझौता होने के बाद हर हफ्ते तीन बड़ी फिल्में रिलीज होंगी और उस वक्त '99' जैसी फिल्मों की कोई पूछ न होगी। फिल्म '99' को कॉमेडी फिल्म बताया जा रहा है। सायरस बरूचा के साथ फिल्म में महेश मांजरेकर भी हैं। कहानी जुए के आसपास है। फिल्म की पब्लिसिटी से नहीं लगता कि ये ठीक-ठाक कहलाने लायक फिल्म भी है। न ही निर्माता-निर्देशक का नाम कोई उम्मीद जगाता है। मगर इस समय मनोरंजन की रेलगाड़ी जंगल में फँसी है। कहीं से रसद आने की उम्मीद नहीं है। सो जो मिल जाए वो गनीमत है। आईपीएल अब थकाने लगा है। इतना क्रिकेट लोग नहीं देख सकते। हफ्ते-दस दिन की बात हो तब भी ठीक है। चुनाव का बुखार उतर ही चुका है। सोलह के बाद बुखार की टूटन भी जाती रहेगी। तब तो फिल्में ही सहारा हैं। '99' के निर्माता के हाथ तो एक तरह से जैकपॉट लगा है। जिस ज्योतिष ने इस फिल्म का मुहूर्त निकाला था, उसकी माँग बढ़ सकती है।