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Written By WD feature Desk
Last Modified: रविवार, 9 जून 2024 (07:01 IST)

महाराजा छत्रसाल, जिन्होंने मुगलों से कभी हार नहीं मानी, सदा विजेता रहे

Maharaja Chhatrasal
Maharaja Chhatrasal
Maharaja Chhatrasal Jayanti 2024: बुंदेलखंड ऐसे वीरों की भूमि रही है जिन्होंने कभी किसी से हार नहीं मानी और न ही कभी किसी के सामने झुके हैं। उन्हें मरना पसंद है लेकिन झुकना नहीं। ऐसे ही वीर योद्धा थे महाराजा छत्रसाल। इन्हें बुंदेलखंड का छत्रपति शिवाजी कहा जाता है। बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया (3) संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। इस बहादुर वीर बालक की माताजी का नाम लालकुंवरि था और पिता का नाम था चम्पतराय। चम्पतराय बड़े वीर व बहादुर व्यक्ति थे।
चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में लालकुंवरि भी साथ-साथ रहती और अपने पति को उत्साहित करती रहतीं। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। यही युद्ध के प्रभाव उसके जन्म लेने पर जीवन पर असर डालते रहे। माता लालकुंवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियां बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं।
 
अन्याय के प्रति कड़ा प्रतिकार करना और दुश्मन को धूल चटाने के अधिक किस्से उसने सुने। बाल्यावस्था में छत्रसाल क्षत्रिय धर्म का पालन करता हुआ आतताइयों से मुक्त होकर स्वतंत्र देश में सांस लेना चाहता था। बालक छत्रसाल मामा के यहां रहता हुआ अस्त्र-शस्त्रों का संचालन और युद्ध कला में पारंगत होता रहा। दस वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल सैनिक बन गए थे।
 
छत्रसाल के लिए कहावत है -
'छत्ता तेरे राज में,
धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा मुख करे,
तित-तित फत्ते होय।' 
 
सोलह साल की अवस्था में छत्रसाल को अपने माता-पिता की छत्रछाया से वंचित होना पड़ा। इस अवस्था तक छत्रसाल की जागीर छिन चुकी थी, फिर भी छत्रसाल ने धैर्यपूर्वक और समझदारी से काम लिया। मां के गहने बेचकर छोटी सी सेना खड़ी की। स्वयं अत्यंत चतुराई से युद्ध का संचालन करते और संघर्ष करते हुए अपना भविष्य स्वयं बनाया। छोटे-मोटे राजाओं को परास्त करके अपने आधीन कर क्षेत्र विस्तार करते रहे और धीरे-धीरे सैन्य शक्ति बढ़ाते गए। 
एक समय ऐसा भी आया जब दिल्ली तख्त पर विराजमान औरंगजेब भी छत्रसाल के पौरुष और उसकी बढ़ती सैनिक शक्ति को देखकर चिंतित हो उठा। छत्रसाल की युद्ध नीति और कुशलतापूर्ण सैन्य संचालन से अनेक बार औरंगजेब की सेना को हार माननी पड़ी।
 
बुंदेलखंड के बड़े साहसी व बहादुर सैनिक प्राण-प्रण से युद्ध में अपना कौशल दिखाने के कारण सदैव विजयी रहे। छत्रसाल ने धीरे-धीरे अपनी प्रजा को सब प्रकार की सुख-सुविधाएं पहुंचा कर प्रजा का विश्वास प्राप्त कर लिया था। 
एक बार छत्रसाल, छत्रपति शिवाजी महाराज से मिले। दक्षिण क्षेत्र में मुगलों के लिए शिवाजी के नाम से पसीना छूटता था। शिवाजी ने कहा - 'छत्रसाल तुम बुंदेलखंड में जाकर वहां की देखभाल करो।' छत्रसाल, शिवाजी से मंत्रणा करके बुंदेलखंड क्षेत्र में मुगलों को परास्त कर अपना शासन चलाते रहे। छत्रसाल को ज्ञात था कि जहां शस्त्र से राष्ट्र की रक्षा होती है वहां शास्त्र सुरक्षित रहते हैं।
 
छत्रसाल तलवार के धनी थे और कुशल शस्त्र संचालक थे। वहीं शस्त्रों का आदर करते थे। अपनी सभा में विद्वानों को सम्मानित करते थे। स्वयं भी विद्वान थे तथा कवि थे। शांतिकाल में कविता करना छत्रसाल का कार्य रहा है।
 
भूषण कविराज शिवाजी के दरबार में रहते हुए छत्रसाल की वीरता और बहादुरी की प्रशंसा में अनेक कविताएं कविराज भूषण ने लिखीं। 'छत्रसाल-दशक' में इस वीर बुंदेले के शौर्य और पराक्रम की गाथा गाई गई है।
 
बुंदेलखंड का शक्तिशाली राज्य छत्रसाल ने ही बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी महोबा थी। छत्रसाल धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में व शांतिकाल में दैनिक पूजा-अर्चना करना छत्रसाल का कार्य रहा। इस वीर बहादुर छत्रसाल की 83 वर्ष की अवस्था में 14 दिसंबर 1731 ईस्वी को इहलीला समाप्त हुई।
 
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहिं न्यारे।
दौर देस मुगलन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करिहो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषें।
 
सौजन्य से- मासिक पत्रिका देवपुत्र