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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 5 जून 2024 (08:35 IST)

नरेंद्र मोदी क्या गठबंधन सरकार चला पाएंगे?

नरेंद्र मोदी क्या गठबंधन सरकार चला पाएंगे? - Will Narendra Modi be able to run a coalition government?
भारत के आम चुनाव के नतीजों में बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई है। अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहारे ही बीजेपी सत्ता में रह सकती है। बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं। सरकार बनाने के लिए 272 के आँकड़े चाहिए। एनडीए गठबंधन के खाते में क़रीब 292 सीटें आई हैं और विपक्षी इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं।
 
इंडिया गठबंधन के सूत्रधार रहे जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीती जनवरी में ही पाला बदल लिया था और एनडीए में शामिल हो गए थे। बिहार में एनडीए के साथ सरकार बनाई और लोकसभा चुनाव भी इसी गठबंधन से लड़ा था।
 
जेडीयू ने उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन करते हुए बिहार में 12 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी के भी खाते में 12 सीटें आईं। एलजेपी (राम विलास) को पांच और जीतनराम मांजी की पार्टी को एक सीट मिली। यानी एनडीए को कुल 30 सीटें मिलीं। एक सीट निर्दलीय पप्पू यादव को पूर्णिया में जीत हासिल हुई है।
 
नायडू और नीतीश के भरोसे सरकार
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी को 16 सीटें मिली हैं। यहां आम चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए थे, जिसमें टीडीपी ने 175 सदस्यों वाली विधानसभा में 135 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया है। टीडीपी भी एनडीए में शामिल है।
 
दिलचस्प ये है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों ही कुछ समय पहले तक केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए थे और इसीलिए अब एनडीए गठबंधन में उनकी हैसियत बहुत अहम किरदार वाली हो गई है।
 
सरकार बनाने के लिए मोदी और बीजेपी के सामने अब इन पुराने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने की ज़रूरत पड़ेगी।
 
मोदी के सामने चुनौतियां
ताज़ा नतीज़ों के बाद सत्ता समीकरण में इन दोनों नेताओं के किंगमेकर की भूमिका में आ जाने पर वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, “यह सरकार बिना नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बैसाखी के नहीं चल पाएगी और नीतीश कुमार मौसम की तरह बदलते रहते हैं।''
 
''अब सवाल ये है कि ये बैसाखी बीजेपी के गले में घंटी बन गई है। ये दोनों ही पुराने उस्ताद और मंझे हुए राजनेता हैं और ख़ास तरह की राजनीतिक सोच रखने वाले हैं और इस सत्ता समीकरण में वो पूरी क़ीमत वसूल करेंगे और अपनी मांग रखेंगे कि ये ये चाहिए, तभी रहेंगे।”
 
वो कहते हैं, “अगर सामान्य राजनीतिक संदर्भों में बात करें तो तीसरी बार सरकार बनाने की कवायद में 240 के क़रीब सीटें लाना कोई बुरा प्रदर्शन नहीं है। मोदी जी ने अपना लक्ष्य ही इतना आगे कर दिया था, जैसे '400 पार' कि बीजेपी जीत कर भी हारी हुई महसूस करती है और विपक्ष हार कर भी जीत गया लगता है।”
 
उनके मुताबिक़, 'इन चुनावी नतीजों का प्रमुख संदेश ये है कि पीएम मोदी को एनडीए के सभी घटक दलों को साथ लेकर चलना होगा।'
 
संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, “इस चुनावी नतीजे के बुनियादी बात ये है कि आप जनता को और पूरे तंत्र को हल्के में लेंगे और जिस तरह से चाहेंगे, वैसे चलाने की कोशिश करेंगे तो जनता ये शायद पसंद नहीं करती।”
 
सत्ता का केंद्रीकरण नहीं चल पाएगा
"सबसे बड़ी चुनौती ये है कि मोदी जी के दस साल के कार्यकाल में सत्ता में किसी की भागीदारी नहीं थी, सिवाय खुद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के। अब वो सत्ता में भागीदारी बढ़ाएंगे, लोगों की सुनी जाएगी तो सरकार चल पाएगी। यानी सरकार के गठबंधन धर्म का पालन करेंगे और वाजपेयी मॉडल अपनाएंगे तो ये सरकार चला पाएंगे।"
 
वो कहते हैं, "मोदी को इस मॉडल के बारे में अपने जीवन में कोई अनुभव ही नहीं है। 2002 से 2024 तक तीन बार मुख्यमंत्री रहते और दो बार प्रधानमंत्री रहते उन्होंने एकछत्र राज किया। अब अचानक तालमेल और सहमति की राजनीति करना एक चुनौती होगी। अब वो इस नई भूमिका को कितना अपना पाते हैं उसी पर इस सरकार का टिकाउपन निर्भर करता है।"
 
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 1999 में बनी तो एनडीए गठबंधन में 24 दल थे। और यह सरकार पांच साल तक चली थी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गठबंधन में तालमेल बिठाने की वाजपेयी की कुशलता ने पांच साल तक स्थिर सरकार दिया।
 
विपक्षी नेताओं के बयानों से संकेत
मंगलवार को जब चुनावी नतीजों के रुझान में दिखने लगा कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत पाने की गुंजाइश ख़त्म होती दिखी तो इंडिया गठबंधन की ओर से संकेत आने लगे थे कि एनडीए के घटक दलों के लिए उनके दरवाज़े खुले हैं।
 
कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक शरद पवार ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से बात की है। हालांकि उन्होंने इसका खंडन किया और कहा कि बुधवार को गठबंधन की बैठक दिल्ली में होगी।
 
लेकिन कुछ नेताओं की बयानों ने इस बात के संकेत दिए कि सत्ता का समीकरण आने वाले समय में बदल भी सकता है।
 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर चंद्रबाबू नायडू को 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस वायदे को याद दिलाया जिसमें आंध्र प्रदेश को पांच साल के लिए स्पेशल स्टेट्स देने की बात कही गई थी।
 
इसके बाद उन्होंने चंद्रबाबू के एक पुराने इंटरव्यू को ट्वीट किया जिसमें वो कहते सुनाई दे रहे हैं कि 'सभी नेता नरेंद्र मोदी से बेहतर हैं।'
 
इससे पहले चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस न मिलने की वजह से उन्होंने साझेदार बदल लिए थे। ऐसा माना जाता है कि यह वह कारण था जिसकी वजह से उन्होंने बीजेपी छोड़ कांग्रेस का साथ पकड़ लिया था।
 
क्या कांग्रेस भी सरकार बनाने की होड़ में?
हालांकि मंगलवार शाम को कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सरकार बनाने को लेकर पूछे गए सवालों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का यही कहना था कि बुधवार को गठबंधन की बैठक में फैसला होगा।
 
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जयराम रमेश के ट्वीट ने एक राजनीतिक संदेश दे दिया। शाम तक जेडीयू के एमएलसी खालिद अनवर ने यह कह कर एक और राजनीतिक अटकलें बढ़ा दीं कि 'नीतीश कुमार से बेहतर और कौन प्रधानमंत्री हो सकता है?'
 
उन्होंने आगे कहा, "नीतीश जी देश को समझते हैं। अपने लोकतांत्रिक संस्थाओं की इज्ज़त करना, लोकतांत्रिक तरीक़े से आगे बढ़ना, लोगों को जोड़ कर चलना जानते हैं। अभी हम एनडीए गठबंधन में है, लेकिन पहले और आज भी लोग नीतीश कुमार को पीएम बनते देखना चाहते हैं।"
 
लेकिन इंडिया गठबंधन के दो अन्य घटक दलों आरजेडी और आम आदमी पार्टी के बयान भी गौर करने लायक हैं।
 
राजद नेता मनोज झा ने कहा, "भाजपा बहुमत से दूर है। अगर मैं चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी और यहां जेडीयू को थोड़ा अलग कर दूं तो बहुमत भी नहीं है। जाहिर है वे 400 पार का गुब्बारा फट गया है।"
 
दिल्ली सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार से सही फ़ैसला लेने की अपील की।
 
उन्होंने कहा, "देश की जनता टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू के नीतीश कुमार जी से उम्मीद कर रही है कि वो सही समय पर सही फ़ैसला लेंगे। देश में तानाशाही को ख़त्म करके और लोगों की बेरोज़गारी और महंगाई की समस्या को दूर करने के लिए लोकतांत्रिक सरकार बनायेंगे।"
 
सरकार बनाने का समीकरण
मंगलवार की शाम जब दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में पीएम मोदी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया तो वो तीसरी कार्यकाल के लिए भरोसा जताने पर सभी का आभार जताया।
 
उन्होंने कहा कि एनडीए की लगातार तीसरी बार सरकार बननी तय है। देशवासियों ने बीजेपी, एनडीए पर पूर्ण विश्वास जताया है। आज की जीत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत है। लेकिन घटक दलों को साथ रखने और हर परिस्थिति में सत्ता समीकरण साधने की उनके सामने चुनौती भी है।
 
मौजूदा समय में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के पास 292 का आंकड़ा है, जो 272 के बहुमत से अधिक है। अगर जेडीयू की 12 सीटें और टीडीपी की 16 सीटें मिलाएं तो 28 सीटें होती हैं। यानी ये दोनों पार्टियों के बिना एनडीए का आंकड़ा लगभग 264 पर आ जाता है, बहुमत से आठ सीटें कम।
 
जबकि दूसरी तरफ़ इंडिया गठबंधन के पास 232 के आसपास सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस 99, समाजवादी पार्टी 37, तृणमूल कांग्रेस 29, डीएमके 21 (और एक पर आगे), शिवसेना यूबीटी 9, एनसीपी (शरद पवार) 7, आरजेडी 4, सीपीएम 4, आप 3, जेएमएम 3, सीपीआई एमएल 2 और अन्य छोटी पार्टियां हैं।
 
एनडीए की 292 सीटों में बीजेपी 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद टीडीपी और जेडीयू हैं और बाकी अन्य हैं। केंद्र में सरकार गठन को लेकर अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर दारोमदार है। सबकी नज़र चंद्रबाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर है। दोनों समय-समय पर साझेदार और रणनीति बदलने के लिए जाने जाते हैं।
 
बुधवार को दोनों गठबंधनों की बैठक है। सरकार बनाने की रणनीति कैसे आगे बढ़ती है, ये इन बैठकों के बाद ही पता चलेगा।
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