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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024 (08:03 IST)

पाकिस्तान: नवाज शरीफ ने खुद प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला क्यों किया?

Nawaz Sharif
शुमाइला जाफरी, बीबीसी न्यूज इस्लामाबाद
13 फरवरी का दिन पाकिस्तान में काफी सरगर्म था क्योंकि कई दिनों की अनिश्चितता के बाद आखिरकार उस सवाल का जवाब मिला, जो हरेक के ज़ेहन में था कि अगले 5 साल तक मुल्क का नेतृत्व कौन करेगा?
 
इस्लामाबाद में वरिष्ठ राजनेता चौधरी शुजात हुसैन के घर पर देर रात तक चली मैराथन बैठक के बाद पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, एमक्यूएम पाकिस्तान, पीएमएल-क्यू और आईपीपी समेत सभी पार्टियों ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में शहबाज शरीफ के नाम का समर्थन करने का फैसला किया।
 
हालांकि शहबाज शरीफ, जिन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए पीएमएल-एन की तरफ से मरियम नवाज शरीफ का नाम स्पष्ट रूप से आगे किया था, प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वसम्मति वाली उम्मीदवारी को स्वीकार करने में ‘अनिच्छा’ दिखाई।
 
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि वो चाहते हैं कि उनकी जगह उनके बड़े भाई नवाज शरीफ अगले प्रधानमंत्री बनें और यह भी कहा कि वो अपने भाई से इस पद को स्वीकार करने के लिए ज़ोर देंगे।
 
हालांकि पत्रकार वार्ता खत्म होने के कुछ मिनट बाद ही पीएमएल-एन की प्रवक्ता मरियम औरंगजेब की ओर से एक ट्वीट आया।
 
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नवाज शरीफ की ओर से एलान किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए अपने भाई शहबाज शरीफ को और सबसे बड़े प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी बेटी मरियम नवाज शरीफ को नामित किया है।
 
इन घोषणाओं से पहले दोपहर में एक और अहम और अप्रत्याशित घटनाक्रम हुआ। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने यह कह कर देश को सकते में डाल दिया कि उनकी पार्टी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनेगी।
 
पाकिस्तान के लोग यह उम्मीद कर रहे था कि गठबंधन सरकार के गठन का कोई साझा फ़ॉर्मूला लेकर आएंगे।
 
तेज़ी से बदलती तस्वीर
आठ फरवरी को हुए चुनावों के बाद त्रिशंकु नेशनल असेंबली में इमरान खान की पार्टी समर्थित उम्मीदवारों ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं लेकिन अकेले दम पर सरकार बनाने के लिए संख्या पर्याप्त नहीं थी।
 
नवाज शरीफ की पार्टी दूसरे नंबर पर रही; साधारण बहुमत तक भी नहीं पहुंच पाई। वहीं बिलावल भुट्टो की पीपीपी को 54 सीटें मिलीं, जिसने उन्हें किंग मेकर की हैसियत में ला दिया। हालांकि पीटीआई और पीएमएल-एन के बाद उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर रही।
 
इसलिए सरकार में शामिल न होने की उनकी घोषणा आई तो एक पल के लिए लगा कि सरकार गठन की कोशिशें ख़तरे में पड़ जाएंगी और पाकिस्तान एक और राजनीतिक मुश्किल में फँस जाएगा।
 
लेकिन इसके कुछ घंटों बाद ही बिलावल के पिता पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी चौधरी शुजात हुसैन के घर पर शहबाज शरीफ के बगल में बैठे दिखाई दिए।
 
पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने पीएमएल-एन के प्रति बिलावल के ‘आक्रमक’ स्टैंड में नरमी दिखाई और भरोसा दिलाया कि देश को स्थिर करने और देश को मौजूदा संकट से निकालने में पीपीपी अपनी भूमिका निभाएगी।
 
एक तरफ़ जब कम वोट पाने वाली पार्टियां सत्ता साझीदारी के लिए बातचीत कर रही थीं, सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पीटीआई ने विपक्ष में बैठने का संकेत दिया।
 
इमरान खान ने कुछ पार्टियों से गठबंधन की घोषणा की, सत्ता पाने के लिए नहीं बल्कि अपनी पार्टी को बचाने और अपने सदस्यों को जोड़े रखने के लिए।
 
चुनाव के बाद से ही अनिश्चितता के छाए बादल को इन घटनाक्रमों ने जब साफ़ कर दिया है तो लोगों के ज़ेहन ये सवाल आ रहा है कि नवाज शरीफ ने चौथी बार पीएम बनने से क्यों इनकार कर दिया और सरकार में शामिल न होने के पीछे बिलावल भुट्टो की क्या सोच है और छोटी पार्टियों से गठबंधन बनाने के पीछे पीटीआई की क्या रणनीति है?
 
नवाज शरीफ क्यों पीएम नहीं बन रहे?
चुनाव से पहले ही नवाज शरीफ के क़रीबी सूत्रों की ओर से ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि साधारण बहुमत न मिलने की स्थिति में वो सरकार का नेतृत्व करने के इच्छुक नहीं हैं।
 
चुनाव के दिन अपना वोट डालने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि केवल एक बहुमत वाली सरकार ही कड़े फ़ैसलों और अपने प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी लेते हुए देश को मौजूदा संकट से निकाल सकती है।
 
हालांकि जब चुनावी नतीजे आ ही रहे थे और पीएमएल-एन को 264 में से 64 सीटें मिल चुकी थीं, नवाज शरीफ ने विजयी होने वाली तक़रीर की।
 
वो उत्साहित और बेफ़िक्र दिखे और एलान किया कि उनकी पार्टी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
 
उन्होंने कहा, “बहुत अच्छा होता अगर हमें बहुमत मिल जाता, लेकिन फिर भी हम अपने (पूर्व) गठबंधन के साझीदारों को न्योता देंगे कि देश को इस अराजकता से निकालने के लिए साथ आएं।”
 
इस दौरान अनिच्छा या पीछे रहने का कोई संकेत नहीं दिया लेकिन चार दिनों में ऐसा क्या हुआ उन्होंने अपना मन बदल दिया या शुरू से ही योजना थी।
 
पीएमएल-एन के वरिष्ठ नेता और नवाज शरीफ के क़रीबी ने इसका कारण बताया।
 
राना सनाउल्लाह ने कहा, “आदर्श रूप से, पार्टी नवाज शरीफ को चौथी बार पीएम बनाने की उम्मीद कर रही थी लेकिन चूंकि हम ख़ुद से सरकार बनाने लायक संख्या हासिल नहीं कर पाए इसलिए पार्टी ने अपने गठबंधन मास्टर शहबाज शरीफ को आगे लाने का फ़ैसला किया।"
 
शहबाज शरीफ- 'गठबंधन चलाने के उस्ताद'
राना सनाउल्लाह ने कहा, "सबसे मुश्किल समय में 13 पार्टियों की गठबंधन सरकार को 16 महीने तक चलाने का उनका अनुभव है। इसलिए चुनाव बाद अपने पार्टी की स्थिति का आकलन करने के बाद वरिष्ठ नेताओं में सहमति बनी की शहबाज शरीफ को नेतृत्व करना चाहिए।”
 
हालांकि उन्होंने इस धारणा से इनकार किया कि नवाज शरीफ आसानी से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।
 
उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन यह जनता का फ़ैसला है और हम इसका सम्मान करते हैं। नवाज शरीफ और बाक़ी पार्टी मानती है कि शहबाज शरीफ गठबंधन को अधिक प्रभावी तरीक़े से संभालेंगे।”
 
तो क्या इसका मतलब है कि नवाज शरीफ का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया?
 
पीएमएल-एन के इरफ़ान सिद्दीक़ी कहते हैं, “फ़िलहाल ऐसा लग सकता है कि नवाज शरीफ राजनीति छोड़ रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है। वो अब भी राजनीति में हैं और उन्होंने अगले पीएम और पंजाब के अगले सीएम के बारे में दो महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए।"
 
"इसलिए पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य में उनकी अहम भूमिका है। हालांकि अभी उन्होंने सरकार में किसी पद से ख़ुद को अलग कर लिया है लेकिन वो पार्टी और इसकी सरकारों को दिशा देते रहेंगे।”
 
यही बात मरियम नवाज ने दुहराई।
 
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार मंसूर अली खान मानते हैं कि पाकिस्तान अब नवाज शरीफ को भविष्य में पीएम नहीं देख पाएगा, जब तक कि कोई बड़ी घटना न हो। चुनाव से पहले ही ये फैसला हो गया था कि अगर पीएमएल को स्पष्ट बहुमत मिलता है, तभी नवाज शरीफ सरकार की लगाम अपने पास लेंगे।"
 
"अब वो पीछे रहेंगे और देश में रहे तो समर्थकों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश करेंगे। उनकी सेहत भी अब कड़ी मेहनत लायक नहीं रही।
 
बिलावल के पीछे हटने की क्या है वजह?
टीवी पत्रकार कामरान शाहिद ने बिलावल भुट्टो की घोषणा को एक राजनीतिक ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताया।
 
बिलावल ने स्पष्ट रूप से कहा कि वो राष्ट्रीय हित में पीएमएल-एन की सरकार गठन में केवल मदद करेंगे और इसके बदले कैबिनेट में कोई मंत्रालय नहीं लेंगे। उन्होंने ये भी साफ़ किया कि यह समर्थन पूरा नहीं बल्कि मुद्दा आधारित होगा।
 
बिलावल ने राष्ट्रपति, सीनेट अध्यक्ष और नेशनल असेंबली स्पीकर जैसे प्रतिष्ठित पदों के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़ा करने की इच्छा भी ज़ाहिर की और अगले राष्ट्रपति के लिए अपने पिता आसिफ़ अली ज़रदारी का नाम प्रस्तावित किया।
 
हालांकि बिलावल ने आक्रामक और समझौते की गुंजाइश न रखने वाला रुख़ अपनाया।
 
विश्लेषकों का मानना है कि पीपीपी दोनों तरफ़ से खेलने की कोशिश कर रही है। बिलावल सत्ता में हिस्सेदारी भी चाहते हैं लेकिन पीएमएल-एन से दूरी भी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
 
वरिष्ठ टिप्पणीकार मुहम्मद मलिक का मानना है कि पीपीपी के लिए यह दोनों ही स्थितियों जीत वाली स्थिति है।
 
वह कहते हैं, “वे जानते हैं कि सरकार गठन में अगर पीएमएल-एन का साथ नहीं दिया गया तो यह गतिरोध दोबारा चुनाव में बदल सकता है। अब पीपीपी समझती है कि अगर दोबारा चुनाव होता है तो इमरान खान की पीटीआई के अलावा कोई भी पार्टी उतनी भी सीटें नहीं जीत पाएगी, जितनी उसे मिली है।”
 
मलिक ने कहा, “वे ये भी समझते हैं कि अगली सरकार को शुरू में अलोकप्रिय आर्थिक फ़ैसले लेने पड़ेंगे और पीपीपी इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहती। इसलिए वो हालात में बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं। वे कई संवैधानिक पद अपने पास रखेंगे और पीएमएल-एन को उन्हें हर वोट और नीतिगत फ़ैसले पर श्रेय देना होगा।”
 
दूसरी तरफ़ विश्लेषक अज़ाज़ सैयद मानते हैं कि बिलावल जनता की नब्ज़ समझते हैं और पीएमएल-एन से दूरी बनाकर वो सैन्य प्रतिष्ठान से भी ख़ुद अलग रख रहे हैं। वो जानते हैं कि सत्ता विरोधी लहर उभार पर है और वो इसे भुनाना चाहते हैं।
 
अज़ाज़ के तर्क में दम दिखता है क्योंकि बिलावल, जो कि शहबाज शरीफ के कैबिनेट में विदेश मंत्री का पोर्टफ़ोलियो संभाल चुके हैं, अपने चुनाव प्रचार में पीएमएल-एन और इसके नेता नवाज शरीफ की कटु आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने अपने फायदे के लिए पीटीआई समर्थकों को भी लुभाने की कोशिश की।
 
इसीलिए, बिलावल की घोषणा पर पीटीआई प्रवक्ता ने कहा कि पीपीपी और पीएमएल-एन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और कहा कि वे जनता को और मूर्ख नहीं बना सकते।
 
पीटीआई छोटी पार्टियों से क्यों गठबंधन कर रही है?
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ ने फ़ैसला किया है कि अगर वो अपने चुराए गए जनमत को हासिल नहीं करती और साधारण बहुमत पाने में असफल रहती है तो विपक्ष में बैठेगी।
 
पीटीआई के एक बयान के मुताबिक़, इमरान खान ने मजलिस वाहदत-ए-मुस्लिमीन के साथ केंद्र और पंजाब में और जमात-ए-इस्लामी के साथ ख़ैबर पख़्तूनख्वा में गठबंधन करने की हरी झंडी दे दी है।
 
मजलिस वहदत-ए-मुस्लिमीन एक छोटी शिया पार्टी है और नेशनल असेंबली में उसे एक सीट मिली है। गठबंधन का मक़सद है कि पीटीआई के समर्थन से स्वतंत्र रूप में जीते इसके उम्मीदवारों को पार्टी का एक मंच मिल जाए।
 
क़ानून के तहत, चुनावी नतीजों के नोटिफ़िकेशन के बाद सभी स्वतंत्र उम्मीदवारों को अपनी सदस्यता बचाने के लिए 72 घंटे के अंदर अपनी पसंद की पार्टी को जॉइन करना अनिवार्य है।
 
चूंकि पीटीआई क़ानूनी और तकनीकी कारणों से इस समय निष्क्रिय है, इसलिए पीटीआई के सामने किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के अलावा कोई चारा नहीं है।
 
इमरान खान ने पीपीपी, पीएमएल-ए और एमक्यूएम के साथ गठबंधन को ख़ारिज कर दिया है इसलिए विकल्प सीमित हैं।
 
गठबंधन का एक और कारण है, आरक्षित सीटों को सुरक्षित करना। आम चुनावों में जीती गई सीटों के अनुपात में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटें हासिल की जाती हैं।
 
नेशनल असेंबली में महिलाओं के लिए 60 और अल्पसंख्याकों के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। चूंकि पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं, इसलिए आरक्षित सीटों में उनका बड़ा हिस्सा है, लेकिन वे इसे तभी ले पाएंगे जब वो किसी पार्टी से जुड़ जाएं।
 
हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें भी कुछ क़ानूनी बाधाएं आएंगी। लेकिन गठबंधन बनाने के लिए आरक्षित सीटें एक बड़ा कारण रहा है।
 
हालांकि मजलिस वहदत-ए-मुस्लिमीन ने गठबंधन के लिए हां कर दिया है, लेकिन ऐसी ख़बरें हैं कि गठबंधन को लेकर जमात-ए-इस्लामी में ही दरार है। पार्टी के केपी अमीर ने इस संभावना से इनकार किया है और कहा है कि पीटीआई के साथ गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।
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