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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 27 मई 2020 (14:21 IST)

चीन और भारत क्यों कई मुद्दों पर आपस में उलझे हुए हैं

चीन और भारत क्यों कई मुद्दों पर आपस में उलझे हुए हैं - Why China and India are confused on many issues
- गुरप्रीत सैनी
कोरोना वायरस (Corona virus) कोविड-19 के फैलते संक्रमण के बीच अमेरिका और चीन के रिश्ते में जहां कड़वाहट आई है, वहीं भारत और चीन के बीच भी इस दौरान कई विवादित मुद्दे उठे हैं। अप्रैल में भारत ने चीन को उस समय बड़ा झटका दिया, जब उसने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के नियमों में बदलाव कर दिया।

दरअसल कोविड-19 की वजह से खस्ता हाल हुई भारतीय कंपनियों को लेकर एक डर था कि चीन सस्ते में इन्हें टेकओवर कर सकता है। महामारी के बीच जब चीन के एक बैंक ने एक भारतीय कंपनी में 1।01 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदी, तो इससे चिंता और बढ़ी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी चिंता ज़ाहिर करते हुए 12 अप्रैल को ट्वीट किया था। इसके कुछ दिन बाद ही, भारत सरकार ने फैसला किया कि जो भी एफडीआई आएगी वो ऑटोमेटिक रूट से नहीं आएगी, वो भारत सरकार की मंज़ूरी के बाद ही आएगी।

भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जो नए नियम बनाए हैं, उनके मुताबिक़, जिन देशों की ज़मीनी सरहदें भारत से मिलती हैं, अगर वो भारत के किसी कारोबार या कंपनी में निवेश करते हैं, तो इसके लिए भारत सरकार की मंज़ूरी लेनी अनिवार्य होगी। पहले ये पाबंदी केवल भारत में निवेश करने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश के निवेशकों पर लागू होती थी। इस बदलाव पर चीन ने आपत्ति जताई थी और इसे निवेश के सामान्य नियम के ख़िलाफ़ बताया था।

कोरोना की उत्पत्ति की जांच का भारत ने किया समर्थन
पिछले कई महीनों से कोरोना वायरस की उत्पति को लेकर अमरीका और चीन में ठनी हुई थी। जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में ये मामला उठा, तो भारत ने जाँच का समर्थन किया। जाँच की मांग को लेकर 18 मई को वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक ड्राफ्ट प्रस्ताव पेश किया गया था। जिसका भारत ने भी समर्थन किया।

इस प्रस्ताव में डब्ल्यूएचओ से अपील की गई थी कि वो ज़ूनॉटिक कोरोना वायरस के स्रोत की निष्पक्ष जांच करे और पता लगाए कि इंसानों तक ये वायरस कैसे पहुंचा और कहीं इससे कोई छोड़छाड़ तो नहीं की गई? हालाँकि इस ड्राफ्ट में किसी देश या जगह का नाम नहीं था। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस जाँच का ज़्यादातर फोकस चीन पर रहेगा। चीन ने भी जाँच कराने पर सहमति दे दी और कहा कि कोरोना पर क़ाबू पा लेने के बाद वो किसी भी जाँच का समर्थन करता है।

ताइवान : शपथ ग्रहण समारोह में 2 भारतीय सांसद शामिल
इन सबके बीच ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए जब बीते बुधवार को शपथ ली, दो भारतीय सांसदों ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की। बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान वीडियो कॉल के ज़रिए शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और मोदी सरकार की ओर से ताइवान की राष्ट्रपति को शुभकामनाएं दीं।

जानकार मानते हैं कि भारत की मोदी सरकार ने ऐसा करके चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। क्योंकि चीन ताइवान को संप्रभु देश नहीं मानता है। जबकि साई इंग-वेन ताइवान को एक संप्रभु देश के तौर पर देखती हैं और उनका मानना है कि ताइवान 'वन चाइना' का हिस्सा नहीं है। चीन उनके इस रवैए को लेकर नाराज़ रहता है। चीन का मानना है कि ताइवान उसका क्षेत्र है। चीन का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर ताक़त के ज़ोर उस पर कब्ज़ा किया जा सकता है।

भारत क्या संदेश देना चाहता है
भारत इन क़दमों से क्या संदेश देना चाहता है? इस बारे में सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में रिसर्च फेलो और चीन मामलों के जानकार अतुल भारद्वाज कहते हैं कि भारत ये संदेश देना चाहता है कि वो चीन से ख़ुश नहीं है। उन्होंने कहा, भारत चहता है कि चीन नेपाल जैसे देशों पर उसके मामले में अपना प्रभाव कम इस्तेमाल करे। ये संदेश देने के लिए भारत ताइवान समेत जिन जगहों पर पहुंच बढ़ा सकता है, वहां बढ़ा रहा है।

अब भड़का सीमा विवाद
हाल में दोनों देशों के बीच सालों पुराने सीमा विवाद का जिन्न भी एक बार फिर निकल आया। ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देश अपने सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा रहे हैं। चीन का आरोप है कि भारत गालवन घाटी के पास रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कर रहा है। लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के नज़दीक दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव की भी ख़बरें आईं।

हालांकि बीते गुरुवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने एलएसी पर ताज़ा तनाव को लेकर चीन को जवाब दिया और कहा कि भारत नॉर्मल पेट्रोलिंग कर रहा था, जिसमें चीन ने बाधा डाली और हम भारत की संप्रभुता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।

इस बयान के एक दिन बाद यानी शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे पूर्वी लद्दाख की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए लेह स्थित XIV कोर मुख्यालय भी पहुंचे। भारत का कहना है कि वो हर क़दम का जवाब देने को तैयार है।

तनाव क्यों बढ़ता जा रहा है
जिस वक़्त दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की वजह क्या हो सकती है? अतुल भारद्वाज कहते हैं कि चीन इस वक़्त पहले से अंतरराष्ट्रीय दबाव झेल रहा है। अमरीका ख़ास तौर पर दबाव डाल रहा है। अमेरिका जब दबाव डालता है, तो उसके सहयोगी देश भी अपनी तरफ से कुछ ना कुछ दबाव डालने की तो कोशिश करते हैं। जब सब मिलकर दबाव डालते हैं तभी फर्क पड़ता है।

भारत अमेरिका का अहम रणनीतिक साझेदार है, ऐसे में एक वजह ये भी हो सकती है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता के तौर पर ये दबाव बना रहा हो। इससे चीन हर तरफ से दबाव महसूस करेगा, चाहे ताइवान का मामला हो या डब्ल्यूएचओ का। हॉन्गकॉन्ग के हालिया घटनाक्रम को लेकर भी चीन पर दबाव बनेगा। अतुल भारद्वाज कहते हैं कि दो तरीक़े हो सकते हैं, एक अंतरराष्ट्रीय एकजुटता।

दूसरा द्विपक्षीय यानी भारत और चीन के बीच का आपसी मामला। अगर द्विपक्षीय वजह है तो भारत चाहेगा कि सीमा विवाद सुलझे और वो उसके पक्ष में हो। लेकिन क्या इस सबसे चीन पर कोई दबाव आएगा, इस पर अतुल भारद्वाज कहते हैं कि अगर भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता के तहत चीन पर दबाव बना रहा है तो अलग असर होगा, लेकिन ये द्विपक्षीय तौर पर चीन के साथ डील करेगा तो एक अलग ढाँचा तैयार होगा। वो मानते हैं कि देखना होगा कि भारत चीन को किस तरह से अप्रोच कर रहा है, उस तरीक़े से तनाव आगे बढ़ेगा या घटेगा।
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