टीम बीबीसी हिंदी
"गणतंत्र मतलब है कि गण ऊपर और तंत्र नीचे लेकिन बीते 72 सालों में तंत्र ऊपर हो चुका है और गण नीचे दब गया है। आज हम इस ट्रैक्टर रैली के माध्यम से गण की प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, किसानों की बात सुनाना चाहते हैं। लोगों के मन की बात तो सुनाई जाती है आज हम चाहते हैं कि किसानों के मन की बात सुनी जाए"
बीबीसी हिंदी से बातचीत में किसान नेता योगेन्द्र यादव गणतंत्र का मतलब कुछ इस तरह समझाते नज़र आए। लेकिन इसके कुछ घंटे बाद राजधानी दिल्ली की सड़कों पर जो तस्वीरें देखने को मिलीं उससे ये पता नहीं चला कि किसान ट्रैक्टर परेड निकाल कर कौन सा संदेश सरकार तक पहुँचाना चाहते थे।
किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर से जिस तरह की हिंसक तस्वीरें आईं वो पिछले 60 दिनों से चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन से बिलकुल अलग थीं।
गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के किसान नए कृषि क़ानूनों के विरोध में शांति पूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकालना चाहते थे।
रैली में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस रैली पर रोक लगाने से इंकार करते हुए किसानों को पुलिस से बात करने की बात कही थी। किसान नेताओं और दिल्ली पुलिस के बीच एक रूट भी तय हो गया और समय भी। लेकिन मंगलवार को रैली जब शुरू हुई तो सब कुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक़ नहीं हुआ।
किसानों की ट्रैक्टर रैली से कुछ जत्थे राजधानी दिल्ली के अंदर पहुँचे और लाल किले पर जाकर अपना झंडा फहरा दिया। इसके अलावा पुलिस के साथ कई जगहों पर टकराव, लाठी चार्ज और आँसू गैस के गोले छोड़े गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ टकराव में कई लोग और पुलिस वाले घायल हुए हैं। सिंघु, टिकरी, शाहजहांपुर, चिल्ली और गाज़ीपुर की सीमाओं पर बने तनाव की तस्वीरें सामने आईं, जहाँ बड़ी संख्या में किसान ट्रैक्टरों के साथ मौजूद हैं।
किसान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हिंसा के प्रयोग का आरोप लगाया वहीं कई जगह पुलिस वाले बैरिकेडिंग तोड़ने वाले किसानों को रोकने का प्रयास करते नज़र आए।
गणतंत्र भारत के 72 साल के इतिहास में 26 जनवरी के दिन ऐसी हिंसा की ख़बरें इससे पहले देखने को नहीं मिली थी।
आईटीओ के आस-पास का नज़ारा
बीबीसी संवाददाता विकास त्रिवेदी इस जगह सुबह 11 बजे से मौजूद थे।
"आम तौर पर गणतंत्र दिवस की परेड का रास्ता यही होता है। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से परेड को छोटा रखा गया था। फिर भी आईटीओ पहुंचने वाले कई रास्ते बंद थे।
गणतंत्र दिवस परेड ख़त्म होने के बाद प्रगति मैदान से आईटीओ की तरफ़ का पूरा रास्ता ट्रैक्टर और किसानों के पटा पड़ा था। किसान रैली के प्रस्तावित रूट में ये रास्ता नहीं था। पैदल चल कर जब मैं आईटीओ तक पहुँचा तो पुलिस की तरफ़ से प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे थे।
कुछ 50 आंदोलनकारियों के हाथ में लोहे की रॉड थी। वो पुलिस बैरिकेडिंग को तोड़ने की कोशिश में जुटे थे। पूरे वाकये को रिकॉर्ड करने की कोशिश करने वालों से वो हाथापाई कर रहे थे। पुलिस ड्यूटी पर लगी बस को प्रदर्शनकारियों ने तोड़ दिया था।
एक बजे के आसपास आईटीओ की तरफ़ से नई दिल्ली की ओर जाने वाले रास्ते की तरफ़ से एक शख्स आया और कहा कि उस तरफ़ एक ट्रैक्टर पलट गया है और एक शख्स की मौत हो गई है।
हम उस तरफ़ बढ़े। पता चला मरने वाला शख्स उत्तराखंड का रहने वाला नवनीत है। पहले उस इलाके में बहुत पुलिस तैनात थी। लेकिन मौत की ख़बर के बाद पुलिस वहाँ से हट गई। आंदोलनकारियों ने उस शख़्स के शव को आईटीओ चौराहे पर रख दिया। पुलिस और प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारियों में काफ़ी ग़ुस्सा दिखा। आईटीओ से शाम को शव हटा लिया गया। "
चिल्ला और गाज़ीपुर बॉर्डर
उत्तर प्रदेश और दिल्ली को जोड़ने वाली सीमा पर बॉर्डर पर बीबीसी संवाददाता सलमान रावी सुबह नौ बजे से मौजूद थे।
"चिल्ला बॉर्डर पर 10।30 बजे तक ट्रैक्टर रैली की शुरुआत नहीं हुई थी। किसान ट्रैक्टर के साथ हजारों की संख्या में जमा हो गए थे। जब मैंने वहां मौजूद पुलिस वालों से पूछा कि ट्रैक्टर परेड को कब निकलने की इजाजत मिलेगी, उनका कहना था कि राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड ख़त्म होने के बाद। इस बात से किसान आंदोलनकारी थोड़े ख़फा नज़र आ रहे थे।
उसके एक घंटे बाद सूचना मिली की ग़ाजीपुर में सीमेंट और लोहे वाली बैरिकेडिंग तोड़ेते हुए किसान आंदोलनकारी सेंट्रल दिल्ली की तरफ़ बढ़ रहे हैं।
मैं भी उस तरफ़ बढ़ा। मैंने पाया कि पुलिस कम संख्या में मौजूद थी और किसान प्रदर्शनकारी उनके कंट्रोल से बाहर थे। गाज़ीपुर बॉर्डर के आसपास कुछ रिहायसी इलाका भी है, इसलिए पुलिस के हाथ थोड़े बंधे थे।
गाज़ीपुर से अक्षरधाम की तरफ़ बढ़ते किसान प्रदर्शनकारियों पर दिल्ली पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ। भीड़ ये बोलते हुए आगे बढ़ी कि हम लाल किले जा रहे हैं।
मैंने कई किसान प्रदर्शनकारियों से पूछा भी कि आप लोग तय रूट से क्यों नहीं चल रहे, लेकिन वो यही बोले कि हम कुछ नहीं जानते हमें तो लाल किले जाना है।
साफ़ तौर पर देखने को मिला कि किसान नेताओं की बात प्रदर्शनकारी सुनने को तैयार नहीं थे। हालांकि कोई बड़ा किसान नेता इस बॉर्डर पर मौजूद नहीं था। थोड़ी देर में किसान प्रदर्शनकारियों ने अपना कंट्रोल पूरी सड़क पर जमा दिया और पुलिस पीछे हटती हुई नज़र आई।"
शहाजहाँपुर बॉर्डर
बीबीसी संवाददाता सोनल सुबह से ही वहाँ तैनात थी। शहाजहाँपुर बॉर्डर पर किसानों की ट्रैक्टर परेड का नेतृत्व किसान नेता योगेंद्र यादव कर रहे थे।
"यहाँ सब कुछ शांतिपूर्ण रहा। हज़ारों की संख्या में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल के किसान ट्रैक्टर पर यहाँ पहुँचे थे।
सुबह 10।30 बजे यहां कार्यक्रम शुरू हुआ। पहले झंडा फहराया गया और फिर राष्ट्रगान हुआ उसके बाद झांकियाँ निकाली गई। सबसे पहली झांकी आंदोलन में मारे गए किसानों की थी। फिर राज्यवार झांकियाँ निकाली गई। जैसी ही परेड शुरू हुई, पुलिस ने अपनी बैरिकेडिंग खोल दी। इसलिए यहाँ किसी तरह का कोई संघर्ष पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच नहीं हुआ।
इस बॉर्डर पर टैक्टर की कतार इतनी लंबी नहीं थी जितनी टिकरी बार्डर पर मिली।
शहाजहाँपुर बॉर्डर से निकली ट्रैक्टर परेड को आगे टिकरी बॉर्डर वाली ट्रैक्टर परेड के साथ मिलना था, जहाँ से दोनों आगे मिल कर हरियाणा के मानेसर तक जाते। लेकिन दोपहर 3 बजे तक ऐसा नहीं हो पाया। "
नांगलोई से लालक़िले तक
बीबीसी के सहयोगी पत्रकार समीरात्मज मिश्र इस जगह ट्रैक्टर परेड कवर करने के लिए मौजूद थे।
"क़रीब 11 बजे किसानों का ट्रैक्टर मार्च शुरू हो गया और नारे लगाते हुए हज़ारों की संख्या में जब किसान नांगलोई पहुँचे तो एक बार पुलिस से उनकी फिर कहा सुनी हुई। दरअसल, किसान नांगलोई से सीधे पीरागढी की ओर जाना चाहते थे लेकिन दिल्ली पुलिस उन्हें तय रास्ते पर ही जाने को कह रही थी। यहाँ हज़ारों की संख्या में किसान कई घंटे नारेबाज़ी करते रहे। बाद में कुछ किसान तय रूट पर निकले तो कुछ पीरागढी की ओर। रास्ते में पुलिस की ओर से लगाई गई बैरिकेडिंग को तोड़ते हुए किसान आगे बढ़ने लगे। उसके बाद उन्हें पुलिस ने भी नहीं रोका लेकिन नांगलोई चौक पर किसानों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव हो गया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले भी छोड़े जिसमें कुछ लोगों के घायल होने की ख़बर भी है।
इस बीच, ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से किसान आईटीओ होते हुए दिल्ली के लालक़िले में दाखिल हो चुके थे। नांगलोई से दिल्ली में आए किसान भी लालक़िले पहुँच गए और देखते ही देखते लालक़िले पर किसानों का जमावड़ा हो गया। किसान घंटों लालक़िले की उस प्राचीर पर रहे जहां स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री झंडारोहण करते हैं। किसानों ने यहाँ तिरंगा भी फहराया और ट्रैक्टर मार्च भी किया।
बाद में पुलिस ने किसानों को प्राचीर से उतार दिया, उसके बाद पैदल आए किसान धीरे-धीरे वहाँ से चले गए लेकिन कुछ किसान अब भी किले की तरफ़ जाते दिख रहे हैं, इस तरह शाम तरह शाम पाँच बजे तक भी आवाजाही जारी है, और यह इलाकों अभी किसानों से खाली नहीं हुआ है। यहाँ से सारे ट्रैक्टर जा चुके हैं, रास्ता खुल गए हैं जिन पर यातायात चल रहा है। लाल क़िला पर मामूली लाठी चार्ज के अलावा हिंसा और टकराव की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है।"
टिकरी बॉर्डर
टिकरी बॉर्डर पर बीबीबी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा मौजूद थे।
सुबह 10 बजे के आसपास किसानों की ट्रैक्टर परेड टिकरी बॉर्डर से निकली। परेड में लोग शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकालते दिख रहे हैं, सड़क की एक तरफ ट्रैक्टर चल रहे हैं और उसके साथ किसान पैदल चल रहे हैं। रैली के दौरान देशभक्ति के गीत बजाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि ये काफिला पीछे कहां तक है इस बारे में कहना मुश्किल है। उन्होंने जिन किसानों से बात की है उनका कहना है कि पीछे ये रैली तीस किलोमीटर से भी लंबी है।
कई जगह लोगों ने फूल बरसा कर किसानों का स्वागत तक किया। लेकिन परेड जैसे ही नांगलोई की तरफ बढ़ी, तकरीबन दोपहर 1।30 बजे के कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दिया। जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और फिर इलाके में तनाव बढ़ गया।
वहाँ कई घंटे तक भारी पुलिस बल की तैनाती थी। लेकिन शाम पाँच बजे कोई पुलिस वाला नज़र नहीं आ रहा है, कई पुलिस वाहन टूटे हुए हैं, किसानों ने बैरिकेड को ट्रैक्टर से जंजीरों के सहारे खींचकर रास्ता बनाया है।
इस बॉर्डर पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आँसू गैस छोड़ी है जिससे अब भी आँखों में जलन हो रही है। लाठी चार्ज भी किया गया था जिसमें कई लोगों को मामूली चोटें आई हैं। माहौल में भारी अफ़रा-तफ़री है, किसानों के कुछ जत्थे दिल्ली की तरफ़ जाते दिख रहे हैं। इलाके में इंटरनेट सेवा भी बंद है।
सिंघु बॉर्डर
सिंघु बॉर्डर पर बीबीसी संवाददाता अरविंद छाबड़ा तैनात थे।
किसानों ने ट्रांसपोर्ट नगर के पास लगे बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की। बदले में वहाँ तैनात पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। हालांकि शुरुआत में पुलिस बल प्रयोग करने से बचती दिखी।
सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसान नेता सतनाम सिंह पन्नु ने कहा है हम रिंग रोड पर निकलना चाहते हैं लेकिन पुलिस हमें रोक रही है। हमने पुलिस से न रोकने की अपील की है और कहा है कि आला अधिकारियों से बात करेंगे।
समाचार एजेंसी एएनआई से उन्होंने कहा कि जो रूट हमें दिया गया था उससे हम सहमत नहीं हैं और हम रिंग रोड पर जाएंगे। हम अभी कुछ देर इंतज़ार करेंगे और पीछे से आ रहे किसानों का इंतज़ार करेंगे, उसके बाद मिलजुल कर चर्चा करेंगे।