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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 1 अप्रैल 2023 (08:13 IST)

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में पहली बार रामनवमी पर हुआ 'दंगा', क्या थी वजह?

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में पहली बार रामनवमी पर हुआ 'दंगा', क्या थी वजह? - roits on ramnavmi in Chhatrapati sambhajinagar
श्रीकांत बंगाले, बीबीसी मराठी, छत्रपति संभाजीनगर से
राम नवमी के दिन सुबह आठ बजे मैं छत्रपति संभाजीनगर के किराडपुरा इलाके में पहुंचा तो वहां नगर निगम के कर्मचारी सड़क की सफाई कर रहे थे। वे सड़क पर पड़े पत्थरों और कांच के ढेर उठाने के साथ साथ सड़क पर पानी का छिड़काव कर उसे साफ कर रहे थे। यह सड़क शहर में आधी रात को हुई घटना की गवाह रही है। सड़क के दोनों तरफ भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। सड़क के किनारे बड़ी संख्या में मुस्लिम युवक भी खड़े हैं जो सड़क साफ होते हुए देख रहे हैं।
 
सड़क पर दोनों तरफ की दुकानों पर ताले लटके हुए हैं। यहां खड़े होकर साफ देखा जा सकता है कि घटना के वक्त सड़क पर लगी स्ट्रीट लाइटों को भी निशाना बनाया गया था।
 
वास्तव में क्या हुआ?
महाराष्ट्र के संभाजीनगर में 29 मार्च की आधी रात को दो गुटों में कहासुनी हुई। ये कहासुनी धीरे-धीरे विवाद में और फिर पथराव में बदलने लगी। आखिर में लोगों ने आगजनी को भी अंजाम दिया।
 
आखिर हुआ क्या हुआ था? इस बारे में वहां आए एक पुलिसकर्मी ने बताया, "29 मार्च की आधी रात को यहां कुछ युवक रामनवमी की तैयारी के लिए जमा हुए थे। उन्होंने पटाखे फोड़े और 'जय श्री राम' के नारे लगाए।
 
"उस समय युवकों का एक और जत्था आया और 'अल्लाह हू अकबर' के नारे लगाने लगा। पहले युवकों की संख्या 10 थी, फिर 30 से 40 लोग जमा हो गए। इसके बाद पथराव शुरू हो गया और मामले ने तूल पकड़ लिया।"
 
पुलिसकर्मी ने यह भी कहा कि भीड़ ने 10 से अधिक पुलिस वाहनों को जला दिया और तोड़फोड़ की। सुबह करीब नौ बजे जली हुई कुछ कारों को राम मंदिर इलाके से उठाकर ले जाया जा रहा था।
 
इलाके में कुछ देर घूमने के बाद मैं राम मंदिर पहुंचा। वहां पर कई लोग दर्शन के लिए आए हुए थे। मंदिर के अंदर भजन-कीर्तन का कार्यक्रम चल रहा था। यहां मेरी मुलाकात स्थानीय पत्रकारों से हुई।
 
एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि यह पूरी तरह से मुस्लिम बहुल इलाका है। राम नवमी के दिन मुस्लिम भाई हिंदू लोगों को शरबत बांटते हैं। जो घटना हुई वह दो चार उपद्रवी लोगों के कारण होती है। इस तरह की घटना इस इलाके में पहले कभी नहीं हुई है। इसके बाद मैं मंदिर से बाहर आया और स्थानीय लोगों से बात करने लगा।
 
वहाँ मत जाओ, डर लग रहा है
मंदिर से महज 2 मिनट की दूरी पर मोहम्मद शफुउद्दीन और नवाब खान आपस में चर्चा करते नजर आए। 60 साल के मोहम्मद शफुउद्दीन से जब इस घटना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "जो कुछ हुआ गलत हुआ। इस तरह की घटनाएं दोनों समुदाय के लिए परेशानी खड़ी करती हैं। लॉकडाउन के कारण कारोबार पहले से ही बंद है। कल की घटना के कारण दुकानें फिर से बंद करनी पड़ी हैं।"
 
राम मंदिर लेन में ही शफुउद्दीन की फेब्रिकेशन की दुकान है। 29 मार्च की रात को घटना के चलते अगले दिन दुकान बंद करनी पड़ी। वे अपनी बंद दुकान के बाहर खड़ा होकर हमसे बात कर रहे थे। उन्होंने कहा, "हिंदू, मारवाड़ी, गुजराती जैसे सभी समुदायों के लोग हमारे ग्राहक हैं। मुझे लगता है कि युवाओं को किसी के भाषणों और उकसावे का शिकार नहीं होना चाहिए।"
 
दुकानें बंद, काम बंद
शफुउद्दीन ने कहा, "जब मैं घर से दुकान पर आने के लिए चला तो दंगों की वजह से मेरी बेटी ने मुझे नहीं जाने के लिए कहा, क्योंकि उसे डर लगा रहा है।" उनका बेटा यह देखने आया था कि दुकान में सामान ठीक भी है या नहीं।
 
बीबीसी से बात करते हुए उनके बेटे ने कहा, "मैं 31 साल का हूं, मैंने बचपन से लेकर अब तक ऐसा कभी नहीं देखा था। यह पहली बार है जब ऐसा हुआ।" मोहम्मद शफुउद्दीन के साथ नवाब खान भी थे, जिनकी उम्र 75 साल है। इसी इलाके में उनकी रेत-बजरी की दुकान है।
 
नवाब खान ने कहा, "किसी भी समाज को ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे दोनों समाजों को नुकसान होता है। आज दुकान खुलती तो हम 1500 रुपये का काम कर लेते, लेकिन यह दंगे की वजह से नहीं हुआ। इससे काफी नुकसान हुआ है।"
 
युवक लगा रहे थे 'जय श्री राम' के नारे
जब मैं राम मंदिर वापस आया, तो मैंने देखा कि प्रकाश कथार नाम के व्यक्ति मंदिर के पास बैठकर फूल बेच रहे हैं। वे करीब तीस सालों से यहां हर रोज फूल बेचने का काम करते हैं।
 
घटना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "मुझे तो पता भी नहीं चला कि यहां पर ऐसा कुछ हुआ था। मुझे व्हाट्सएप पर इसकी जानकारी मिली। हालांकि फूलों की बिक्री पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। अब कुछ लोग मंदिर में दर्शन के लिए आने लगे हैं।"
 
इस बीच जब घड़ी पर ध्यान गया तो देखा 11 बज गए हैं। इस समय बड़ी संख्या में युवक बाइक पर सवार होकर आए। वे 'जय श्री राम', 'संभाजी महाराज की जय' के नारे लगा रहे थे। उनकी मोटर साइकिलें तेज होर्न की आवाजें दे रही थीं, जिसकी वजह से हर कोई उन्हें देख रहा था। उनके नारे सुनकर दूसरी गली के मुस्लिम युवक भी जमा हो गए और सड़क पर आने लगे।
 
'यह घटना मेरी समझ से बाहर है'
सुबह 9 बजे से लेकर 12 बजे तक सभी पार्टियों के नेता मंदिर में आने लगे। सभी ने मीडिया से बात की और अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील भी की। नेताओं की कार जब भी सड़क पर आती तो लोग उन्हें देखने के लिए बेताब नजर आते।
 
इस बीच मंदिर के बाहर मेरी मुलाकात नारायण दलवे से हुई। उन्होंने कहा, "इस पूरे इलाके में यही एकमात्र राम मंदिर है। यहां कोई हिंदू नहीं है, सभी मुस्लिम हैं। हर साल रामनवमी पर मुस्लिम भाई यहां शरबत का बांटते हैं।"
 
"वे यात्रा में शामिल होते हैं और हिंदू भाइयों को पानी भी पिलाते हैं। हिंदू और मुसलमान साथ रहते हैं लेकिन, इस साल यह कैसे हो गया? ये मेरी समझ से बाहर है।"
 
दोपहर को करीब डेढ़ बजे बगल की मस्जिद से नमाज की आवाज सुनाई दे रही थी। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग राम मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे।
 
'गुंडागर्दी का कोई धर्म नहीं'
इस समय स्नेहलता खरात मंदिर में दर्शन कर बाहर निकलीं। वे शहर की बीड बाईपास इलाके में रहती हैं। वे पिछले 15 साल से इस मंदिर में कीर्तन करने के लिए आती हैं।
 
उन्होंने कहा, "जो हुआ वह एक गलती थी। कुछ दिमागी रूप से बीमार लोग ऐसा करते हैं। इसके कारण आज उनके (मुस्लिम) इलाकों में तनाव है। कोई भी समुदाय इस तरह की चीज को पसंद नहीं करता है।"
 
यह पूछे जाने पर कि क्या शहर का नाम बदलने की वजह से ऐसा हुआ, तो उन्होंने कहा, "हो सकता है कि यह घटना नाम बदलने की वजह से हुई हो, लेकिन आतंकवाद और गुंडागर्दी का कोई धर्म नहीं होता।" जब उनसे पूछा गया कि क्या दर्शन को आने से पहले आगजनी होने की जानकारी थी, तो उन्होंने 'हां' में जवाब दिया।
 
तभी बगल में खड़ी एक महिला ने कहा, "डर किस बात का? हमारे भी पैरों में चप्पल है। हमारे बच्चों ने हमसे कहा, बिना समझौता किए दर्शन करने के लिए जाओ।" दोपहर में काफी संख्या में लोग मंदिर में आए और दर्शन किए।
 
शाम को निकली शोभायात्रा
शाम करीब पांच बजे इस राम मंदिर से शोभायात्रा निकलने वाली थी। शोभायात्रा में मुस्लिम लोग भी शामिल हुए।
 
शोभायात्रा की शुरुआत में भारी पुलिस बल साथ चल रहा था। राज्य पुलिस बल के साथ-साथ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान हाथों में बंदूकें लिए सड़कों पर तैनात थे। सभी का कहना था कि जो कुछ हुआ वह गलत था।
 
शाम करीब साढ़े सात बजे शोभायात्रा वापस राम मंदिर पहुंची। यह यात्रा उस किराडपुरा इलाके से भी गुजरी जहां रामनवमी से एक रात पहले पत्थरबाजी हुई थी। शाम को हुई शोभायात्रा के समय सड़क पर कोई मुस्लिम व्यक्ति दिखाई नहीं दिया।
 
इलाके के मुस्लिम लोग शोभायात्रा को अपने घरों की छतों से देख रहे थे, वहीं कुछ लोग शोभायात्रा को देखने के लिए गलियों में खड़े थे। आखिर में जब शोभायात्रा मंदिर पहुंची तो पत्रकारों ने भी राहत की सांस ली।
 
मंदिर से निकलते समय एक पत्रकार दोस्त से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा, "सवाल यह है कि क्या यह दंगा पूर्व नियोजित था।" मैंने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों सोचते हैं? उन्होंने कहा, "मंदिर के परिसर में अभी भी पत्थर देखे जा सकते हैं।"
 
पत्रकार ने आगे कहा, "नगर निगम के कर्मचारी जब सुबह सफाई करने के लिए आए तो उन्हें एक ट्रैक्टर भर पत्थर मिले, तो सवाल ये है कि इतने सारे पत्थर कहां से आए? पास में कोई निर्माण का काम भी नहीं चल रहा है।"
 
क्या नाम बदलने पर हुआ दंगा?
सभी लोग यही कर रहे थे कि संभाजीनगर के इतिहास में रामनवमी के दिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई थी।
सवाल है कि यह घटना अब क्यों हुई? यह सवाल बना हुआ है। इसका जवाब जानने के लिए पहले यह देखना होगा कि पिछले कुछ दिनों में शहर का माहौल कैसा रहा है?
 
केंद्र सरकार ने जब औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी तो मुस्लिम समुदाय ने नाराजगी जताई थी।
 
औरंगाबाद का नाम बदलने के विरोध में सांसद इम्तियाज जलील ने अनशन भी किया था। उनके नेतृत्व में हजारों मुस्लिम लोगों ने कैंडल मार्च निकाला था। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि शहर का नाम औरंगाबाद ही होना चाहिए।
 
इस समय औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजीनगर होने के समर्थन में हिंदू समुदाय ने एक बड़ा मार्च निकाला था। इस मार्च के बाद सांसद इम्तियाज जलील ने अपना अनशन तोड़ दिया था। शहर के नाम बदलने का मामला पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। सोमवार, 27 मार्च नाम परिवर्तन पर आपत्ति दर्ज कराने का अंतिम दिन था।
 
छत्रपति संभाजीनगर के समर्थन में आज तक कुल आवेदनों की संख्या 4 लाख 3 हजार 15 है, जबकि इसके विरोध में 2 लाख 73 हजार 210 आपत्तियां मिली हैं। शहर में एक तरफ हिंदू पार्टियां समर्थन में तो दूसरी तरफ एमआईएम विरोध में लोगों से आवेदन भरवाने के काम में लगी हैं।
 
क्या कहते हैं जानकार?
इसलिए सवाल पूछा जा रहा है कि क्या नाम बदलने से विवाद भड़का है और इसके बाद ही दंगे हुए हैं। इसका जवाब देते हुए संभाजीनगर के वरिष्ठ पत्रकार संजीव उनहाले कहते हैं, "शहर के इतिहास में रामनवमी को लेकर ऐसा कभी नहीं हुआ। शहर का नाम बदलने की कोई मांग नहीं उठी और न ही इसके लिए कोई बड़ा आंदोलन हुआ।"
 
"लोकप्रियता पाने के लिए शहर का नाम बदला गया और इससे शहर के शांत लोग भी नाराज हो गए और उसके बाद इस तरह की घटना हुई।"
 
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जयदेव डोले के अनुसार, "जब शहर का नाम औरंगाबाद था, बावजूद उसके पिछले 30 से 35 सालों से लोग संभाजीनगर की तरह से ही देखते थे।"
 
"इसलिए शहर के आधिकारिक नाम बदलने के बाद भी लोगों में वैसा उत्साह नहीं था। इसलिए मैं देख रहा हूं कि यह स्थिति लोकसभा और नगर निकाय चुनाव को ध्यान में रखकर हो रही है।"
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