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Last Modified: शनिवार, 29 दिसंबर 2018 (14:52 IST)

राजेश खन्ना की गाड़ी की धूल से लड़कियाँ भरती थीं अपनी मांग: विवेचना

rajesh khanna | राजेश खन्ना की गाड़ी की धूल से लड़कियाँ भरती थीं अपनी मांग: विवेचना
- रेहान फ़ज़ल
 
राजेश खन्ना सही मायने में भारतीय फ़िल्म उद्योग के पहले सुपर स्टार थे। उनके बालों का स्टाइल हो, या गुरु कॉलर वाली शर्ट पहनने का तरीका हो या पलकों को हल्के से झुकाकर गर्दन टेढ़ी कर निगाहों के तीर छोड़ने की अदा, उन्होंने सिनेमा प्रेमियों की पूरी एक पीढ़ी को सम्मोहित कर रखा था।
 
 
राजेश खन्ना पर बहुचर्चित किताब 'द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ इंडियाज़ फ़र्स्ट सुपरस्टार' लिखने वाले यासिर उस्मान बताते हैं, "बंगाल की एक बुज़ुर्ग महिला थीं। उनसे मैंने पूछा कि राजेश खन्ना क्या थे आपके लिए? उन्होंने कहा कि आप नहीं समझेंगे। जब हम उनकी फ़िल्म देखने जाते थे तो हमारी और उनकी बाक़ायदा डेट हुआ करती थी।"
 
 
"हम मेकअप करके, ब्यूटी पार्लर जाकर, अच्छे कपड़े पहनकर जाते थे और हमें लगता था कि वो जो पर्दे की तरफ़ से पलकें झपका रहे हैं या सिर झटक रहे हैं या मुस्करा रहे हैं, वो सिर्फ़ हमारे लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हॉल में बैठी हर लड़की को ऐसा ही महसूस होता था।"
 
 
"जिस मास 'हिस्टीरिया' की लोग बात करते हैं, उसके अनगिनत क़िस्से मुझे सुनने को मिले कि कैसे उनकी सफ़ेद गाड़ी, लड़कियों के लिपस्टिक के रंग से गुलाबी हो जाती थी और कैसे उनकी गाड़ी की धूल से लड़कियाँ अपनी मांग भरती थीं। ये सुने-सुनाए नहीं, बल्कि रियल क़िस्से हैं।"
 
 
शुरू से ही अहंकारी और लेटलतीफ़
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाएटेड प्रोड्यूसर्स और फ़िल्मफ़ेयर प्रतिभा खोज अभियान में बाज़ी मारी थी। उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यासिर उस्मान बताते हैं, "यूनाएटेड प्रोड्यूसर्स में बीआर चोपड़ा, जीपी सिप्पी और शक्ति सामंत जैसे निर्देशक हुआ करते थे।"
 
 
"ये सब मिलकर कुछ अच्छे अभिनेता ढ़ूंढ़ने का काम कर रहे थे। इसमें काफ़ी लोग चुने गए थे जैसे विनोद मेहरा, राजेश खन्ना और फ़रीदा जलाल। राजेश खन्ना से पूछा गया कि आप क्या सुना सकते हो तो उनका थियेटर का एक मशहूर डायलॉग था, वो उन्होंने सुना दिया और अंतत: उनका चुनाव हो गया।"
 
 
"जीपी सिप्पी साहब ने सबसे पहले उन्हें एक फ़िल्म 'राज़' दी, जिसमें उनका डबल रोल था। इसके बाद उन्होंने चेतन आनंद की 'आख़िरी ख़त' साइन की। लेकिन 'आख़िरी ख़त' पहले रिलीज़ हुई और फ़्लॉप हो गई। राजेश खन्ना के बारे में मशहूर था कि वो अहंकारी थे और सेट पर हमेशा लेट आते थे।"
 
 
"मैंने लोगों से पूछा कि क्या ये 'राज़' के वक्त से ही था तो पता चला कि शुरू से ही ऐसा था। जब पहले दिन इनकी शूटिंग थी तो इन्हें सुबह आठ बजे बुलाया गया था लेकिन ये आदत के मुताबिक 11 बजे पहुंचे। सब लोग देख रहे थे कि ये तो नया लड़का है, उनका पहला शूट है, ऐसा कैसे कर सकता है। कुछ लोगों ने उन्हें घूरकर देखा। थोड़ी डांट भी लगाई सीनियर टेक्नीशियंस ने।"
 
 
"इन्होंने कहा देखिए ऐक्टिंग और करियर की ऐसी की तैसी। मैं किसी भी चीज़ के लिए अपना लाइफ़-स्टाइल नहीं बदलूंगा। तो सब ख़ामोश हो गए। इस तेवर के साथ दो ही चीज़ें होती हैं। या तो आदमी बहुत ऊपर जाता है या बहुत नीचे जाता है।"
 
 
'आराधना' से हुई थी राजेश खन्ना की पहचान
जिस फ़िल्म ने राजेश खन्ना को राष्ट्रीय पहचान दी, वो थी 'आराधना'। यूं तो ये फ़िल्म बनाई गई थी शर्मिला टैगोर के लिए, लेकिन इसने 'लॉन्च' किया राजेश खन्ना को। 'बॉलीवुड न्यूज़ सर्विस' के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार दिनेश रहेजा बताते हैं, "मुझे अभी तक याद है कि मेरा बड़ा भाई गोपाल अपनी गर्ल फ़्रेंड को 'इंप्रेस' करने के लिए 'मेरे सपनों की रानी' गाना इतनी ज़ोर से बजाया करता था कि सामने की बिल्डिंग में रहने वाली उस लड़की को वो साफ़ सुनाई देता था।"
 
 
"इस गीत को राजेश खन्ना पर एक खुली जीप में फ़िल्माया गया था, जो एक ट्रेन के साथ साथ चल रही है। इसकी शूटिंग दार्जिलिंग में हुई थी और दिलचस्प बात ये थी कि उसे शर्मिला टैगोर के बिना शूट किया गया था। बाद में उनके पाजामे को स्टूडियो में शूट कर एडिटिंग टेबल पर फ़िल्म के दूसरे 'फ़ुटेज' के साथ मिला दिया गया था।"
 
 
यासिर उस्मान बताते हैं, "इस फ़िल्म में राजेश खन्ना का छोटा सा रोल था। वो शर्मिला टैगोर के पति बने थे, जिनकी शुरुआत में ही मौत हो जाती है। धीरे धीरे फ़िल्म शेप लेती गई और कहानी आगे बढ़ती है। इसमें फिर ये तय हुआ कि बेटे का रोल भी राजेश खन्ना को ही दे दिया जाए।"
 
 
"पहले कहानी का 'सेंट्रल रोल' तो माँ का था। लेकिन जब फ़िल्म पूरी हुई तो राजेश खन्ना का डबल रोल हो चुका था। जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो उसका इस तरह प्रमोशन किया गया कि वो शर्मिला टैगोर की 'मदर इंडिया' है।"
 
 
लेकिन अजीब सा करिश्मा हुआ कि जब लोग ट्रायल शो देख कर बाहर निकले तो लोगों ने शर्मिला टैगोर के बजाय पूछना शुरू किया कि वो लड़का कहाँ है? राजेश खन्ना ने अपने इंटरव्यू में कहा कि मैं शो शुरू होने से पहले सबको नमस्ते कर रहा था, हाय कर रहा था। लेकिन कोई उसका जवाब नहीं दे रहा था। शो के बाद वो मुझे ढ़ूंढ़ते हुए आए। मैं होटल चला गया था। उसके बाद मुझे होटल से बुलाया गया कि आइए आपकी पूछ हो रही है।
 
 
इसके बाद जो हिट फ़िल्मों का सिलसिला शुरू हुआ। 13-14 लगातार हिट फ़िल्में, जिसकी मिसाल आज तक नहीं मिलती। उस्मान बताते हैं कि वो 'मास हिस्टीरिया' इस 'सेंस' में था कि उस ज़माने में न तो कोई 'सोशल मीडिया' था और न ही टीवी चैनल। अचानक एक लड़का आया और पूरी फ़िल्मी दुनिया पर छा गया। उनकी हर फ़िल्म 'जुबली हिट' और 'ब्लॉकबस्टर' हो रही थी। एक थियेटर 'रॉक्सी' में आराधना चल रही थी और उसके सामने ऑपेरा हाउज़ में 'दो रास्ते' चल रही थी।
 
 
"लोग 'आराधना' से निकल कर 'दो रास्ते' देखने जा रहे हैं। ये अजीब सी चीज़ हो रही थी कि जितने भी बड़े थियेटर थे, उनमें छह सात महीने से सिर्फ़ राजेश खन्ना की ही फ़िल्में चल रही थीं।"
 
 
गज़ब की थी राजेश खन्ना की मुस्कान
इसके बाद चार वर्षों तक राजेश खन्ना एक नेशनल ऑब्सेशन बन गए। मशहूर फ़िल्म कहानीकार सलीम ख़ान बताते हैं कि किसी फ़िल्म अभिनेता के प्रति ऐसी दीवानगी, उन्होंने पहले न तब देखी और न उसके बाद कभी।
 
 
सलीम कहते हैं, "वो अब तक के सबसे बड़े स्टार हैं। सलमान, शाहरुख़ या राजेंद्र कुमार जितने भी स्टार आए, वो उनकी लोकप्रियता को कभी नहीं छू पाए। राजेश खन्ना का 69 से लेकर 75 तक का जो समय था उसकी तुलना नदी में लगे खंबे से की जा सकती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ तक पानी आया था।"
 
 
"राजेश खन्ना की लोकप्रियता जहाँ तक गई थी, वहाँ तक किसी की नहीं गई। कारण ये था कि लोग उनके साथ अपने आप को आइडेंटिफ़ाई करते थे और उनकी मुस्कान लड़कियों को बहुत आकर्षित करती थी। उनकी आवाज़ बहुत अच्छी थी और उनकी फ़िल्मों को संगीत बहुत अच्छा मिला।"
 
अमिताभ बच्चन से भी अधिक क्रेज़ था राजेश खन्ना का
यासिर उस्मान बताते हैं कि "सत्तर और अस्सी के दशक के मशहूर अभिनेता नवीन निश्चल ने उन्हें बताया था कि उन्होंने अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना दोनों के साथ काम किया है। दोनों की मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ। उस वक़्त अमिताभ बच्चन का दौर शुरू हो गया था। शोले और दीवार आ गई थी।"
 
 
"एक शादी की पार्टी में बहुत बड़े बड़े स्टार पहुंचे हुए थे, राजेंद्र कुमार थे, धर्मेंद्र और राज कपूर भी थे। अचानक राजेश खन्ना की एंट्री हुई। ये देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए कि मीडिया के सारे कैमरे उनकी तरफ़ घूम गए।"... "उस शादी में करीब 400-500 लोग मौजूद थे और सब के सब राजेश खन्ना के पीछे चल रहे थे। मैं सालों साल फ़िल्म इंडस्ट्री में रहा लेकिन इस तरह का जादू मैंने सिर्फ़ उनके साथ देखा।"
 
 
अंजू महेंद्रू और राजेश खन्ना के बीच दरार
यूँ तो राजेश खन्ना पर लाखों लड़कियाँ मरा करती थीं, लेकिन उनकी सबसे नज़दीकी दोस्त थीं अंजू महेंद्रू। यासिर उस्मान बताते हैं, "अंजू उनकी ज़िंदगी में तब से थीं, जब से वो स्ट्रगलर थे। उन्होंने उनका बड़ा साथ दिया।"
 
 
"अंजू भी स्ट्रगल कर रही थीं फ़िल्मी दुनिया में पैर जमाने के लिए। जब वो स्टार बन गए तो वो अंजू महेंद्रू के घर जाया करते थे और बाहर खड़ी उनकी गाड़ी को स्कूल की लड़कियाँ घेर कर खड़ी हो जाती थीं। राजेश खन्ना की कामयाबी के साथ-साथ अंजू से उनके रिश्तों में भी बदलाव आया।"
 
 
"वो बहुत बड़े स्टार बन गए। कहीं न कहीं वो चाहते थे कि अंजू भी उस 'स्टारडम' को महसूस करें। अंजू कहती थीं कि मेरे लिए तो वो वही जतिन थे लेकिन वो चाहते थे कि मैं उनसे सुपरस्टार की तरह बर्ताव करूँ जो मेरे लिए मुमकिन नहीं था।"
 
 
"इसके अलावा उन्हें तारीफ़ करने वाले लोगों की ज़रूरत थी और वो उन्हीं लोगों से घिरे रहना पसंद करते थे। मुझे उनके बारे में जो ग़लत लगता था, वो उन्हें बताती थी, जैसा कि मैं पहले उन्हें बताया करती थी। कामयाबी मिलने के साथ वो अंजू को कम वक्त देने लगे और दोनों के रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई।"
 
 
यासिर बताते हैं, "कुछ दिनों बाद राजेश खन्ना की ज़िंदग़ी में डिम्पल की एंट्री हुई। वो उम्र में बहुत छोटी थी। तीन चार दिनों के अंदर ही उन्होंने शादी करने का फ़ैसला किया। अंजू को बहुत बाद में पता चला।"
 
 
"जब राजेश खन्ना की बारात बांद्रा से जुहू जा रही थी तो उन्होंने उसका रास्ता बदला और वो उसे अंजू महेंद्रू के घर के सामने से ले कर गए। शायद राजेश खन्ना के चरित्र में ये चीज़ हमेशा से थी कि बताता हूँ मैं क्या चीज़ हूँ। ये अलग बात है कि बाद में उनकी अंजू महेंद्रू से दोस्ती हो गई।"
 
 
संजीव कुमार की तारीफ़ नागवार गुज़री
दुनिया का हर अच्छा सिलसिला हमेशा के लिए वैसा नहीं रहता। राजेश खन्ना के साथ भी ऐसा ही हुआ। कहा ये गया कि वो कामयाबी को ढंग से हैंडल नहीं कर पाए। यासिर उस्मान कहते हैं, "नाकामी से ज़्यादा कामयाबी ने लोगों को बरबाद किया है। कामयाबी दोहरा नशा होता है। कामयाबी के साथ बहुत पैसा भी आता है। इसकी ज़्यादती होती है तो लड़खड़ाकर गिर जाता है आदमी। मुश्किल काम होता है कामयाबी को हज़म करना।"
 
 
"राजेश खन्ना कहीं न कहीं संतुलन नहीं बैठा पाए। वो साल में दस फ़िल्में किया करते थे। उनका तर्क था कि मैं अपने प्रशंसकों को ज़्यादा से ज़्यादा नज़र आऊं। उनमें अहंकार शुरू से था। जब कामयाबी आई तो वो बढ़ता चला गया।"
 
 
"एक बहुत दिलचस्प कहानी है। सलीम ख़ान उनके बहुत करीबी थे 'हाथी मेरे साथी' के ज़माने से। वो अक्सर उनके घर जाते थे। उन्होंने मुझे बताया कि एक बार एक फ़िल्म मैगज़ीन ने संजीव कुमार पर कवर स्टोरी की। उसमें सलीम ख़ान से पूछा गया कि एक अभिनेता के रूप में संजीव कुमार के बारे में आपकी क्या राय है, तो उन्होंने उनकी ख़ूब तारीफ़ कर दी।"
 
 
"यह सब होने के बाद राजेश खन्ना बांद्रा में महबूब स्टूडियो में एक दिन शूट कर रहे थे। जब उस स्टोरी पर उनकी नज़र पड़ी तो उन्होंने फ़ौरन अपने ड्राइवर से कहा कि सलीम साहब को बुला कर लाइए। जब सलीम वहाँ पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजेश खन्ना अपनी 'इंपोर्टेड' गाड़ी के बोनट पर बैठकर वो मैगज़ीन पढ़ रहे थे।"
 
 
"उन्होंने सलीम से पूछा कि ये आपने कहा है। उन्होंने कहा- हाँ। राजेश ने फिर पूछा, तो आपको लगता है कि संजीव कुमार अच्छे एक्टर हैं। सलीम ने कहा- जी हाँ। इस पर राजेश खन्ना ने पूछा, और मैं? सलीम थोड़ा परेशान हो गए और बोले कि ये कहानी संजीव कुमार के बारे में थी। आपके बारे में भी अगर कोई स्टोरी करेगा और मुझसे पूछेगा तो मैं आपकी भी तारीफ़ करूंगा। इसके बाद राजेश खन्ना ने मेरी तरफ़ देखा, मैगज़ीन बंद की और वहाँ से चले गए। अगले छह महीने तक उनका कोई फ़ोन मेरे पास नहीं आया।"
 
 
एंग्री यंग मैन की एंट्री
इसके बाद एंग्री यंग मैन की एंट्री के साथ रोमांटिक फ़िल्मों का युग पुराना लगने लगा। राजेश खन्ना ने कुछ ऐसी फ़िल्मों में काम किया जिन्होंने उनके करियर को बहुत नुकसान पहुंचाया।
 
 
यासिर उस्मान कहते हैं, "ओवर एक्सपोजर भी कोई चीज़ होती है। दूसरे थोड़ा दौर भी बदल रहा था। लोग रोमांस से एक्शन की तरफ़ जा रहे थे। उसी ज़माने में ज़ंजीर आ गई। फिर शोले और दीवार आ गई। इस तरह ग़ुस्से वाले कैरेक्टर खड़े होने लगे। राजेश खन्ना का यूएसपी ग़ुस्सा नहीं था। वो मूल रूप से रोमांटिक स्टार थे।"
 
 
"उन्होंने अस्सी के दशक में कुछ एक्शन फ़िल्में की लेकिन उनमें वो कभी स्वाभाविक नहीं लगे। अचानक फ़िल्मों का ट्रेंड बदला और वो डिप्रेशन में आ गए। फ़िल्म 'नमक हराम' से इसकी शुरुआत हुई। जब 'नमक हराम' साइन की गई थी तो राजेश खन्ना सुपर स्टार थे और अमिताभ बच्चन उतने बड़े स्टार नहीं थे।"
 
 
"वो 'ज़ंजीर' की शूटिंग कर रहे थे। वो अभी रिलीज़ नहीं हुई थी। अभिनेता सचिन ने मुझे बताया कि मैं मुंबई के एक थियेटर में 'नमक हराम' देख रहा था। अचानक क्लाइमेक्स से पहले अमिताभ बच्चन बस्ती में आते हैं और चीखकर बोलते हैं। उसे सुनकर ऐसा शोर हुआ थियेटर में जो आराधना के समय राजेश खन्ना के साथ हुआ था।"
 
 
उस्मान आगे बताते हैं, "मुंबई की बाल काटने वालों की दुकान पर पहले ऐसे होता था कि दिलीप कुमार कट और देवानंद कट के बोर्ड लगा करते थे। मुंबई बार्बर्स एसोसिएशन ने एक नया बोर्ड बनवाया जिसमें दो नई एंट्रीज़ की गई, जिसमें लिखा था राजेश खन्ना हेयर कट- 2 रुपए और अमिताभ बच्चन हेयर कट- साढ़े तीन रुपए।"
 
 
डिम्पल कपाड़िया से भी अनबन
कई फ़्लॉप फ़िल्मों के बाद राजेश खन्ना ने फ़िल्म 'सौतन' में कमबैक किया और एक बार लगा कि पुराने राजेश खन्ना वापस आ रहे हैं। उस फ़िल्म के निर्देशक सावन कुमार टाक बताते हैं कि उस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ही राजेश खन्ना का टीना मुनीम से रोमांस शुरू हुआ था और डिम्पल कपाड़िया उनके जीवन से बाहर चली गई थीं।
 
 
टाक कहते हैं, "डिम्पल मॉरिशस आई थीं। जब उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि राजेश टीना मुनीम के बहुत नज़दीक जा रहे हैं तो वो वापस मुंबई चली गईं। एक दिन राजेश खन्ना शूटिंग से वापस आए तो वो उन्हें डिंपी, डिंपी, डिंपी कह कर ढ़ूढ़ रहे थे लेकिन उन्हें डिंपल कहीं नहीं मिलीं। मैंने कहा काका आपने एक चीज़ नोटिस नहीं की। ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर क्या लिखा है। उन्होंने पूछा, क्या? उस पर लिखा था 'आई लव यू, गुड बाय।'
 
 
"बाद में पता चला कि डिम्पल जहाज़ से वापस मुंबई चली गई थीं। मुझे लगा कि इतनी बड़ी बात का भी राजेश खन्ना पर कोई असर नहीं हुआ और वो पहले की तरह टीना मुनीम के साथ शूटिंग करते रहे। उसके बाद डिम्पल उनके घर आशीर्वाद में कभी नहीं लौटीं।"
 
 
मेकडॉन्ल्ड और स्ट्रॉबेरी मिल्क शेक
अपने जीवन के आख़िरी चरण में राजेश खन्ना बहुत एकाकी हो गए। उन्हें कैंसर ने जकड़ लिया। उनके करीबी लोग अंत तक उनका मनोबल बढ़ाते रहे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन एक दिन राजेश खन्ना ने टूटती हुई आवाज़ में कहा, 'टाइम अप हो गया, पैक अप।'
 
 
यासिर उस्मान कहते हैं, "टैक्स प्रॉब्लम के चलते इनकम टैक्स विभाग ने उनका बंगला सील कर दिया था। इसलिए वो अपने ऑफ़िस में रहते थे। उसके बग़ल में एक मेकडॉनल्ड रेस्तराँ हुआ करता था। वो वहाँ जाते थे, एक बर्गर खाते थे और स्ट्रॉबेरी मिल्क शेक पिया करते थे, जो उनका बहुत 'फ़ेवरेट' होता था।"
 
 
"कई शाम वो अकेले 'ड्राइव' करके वहाँ जाते थे। वो इंतज़ार करते थे कि कोई आए और उन्हें पहचान ले। ऐसा कभी-कभी होता था कि कोई पुराना फ़ैन आकर उन्हें पहचान लेता था तो वो बहुत खुश होते थे।"
 
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