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Last Updated : शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018 (10:54 IST)

राजस्थान उपचुनावः करणी सेना के गुस्से का शिकार हुई भाजपा

राजस्थान उपचुनावः करणी सेना के गुस्से का शिकार हुई भाजपा - rajasthan elections 2018
- नारायण बारेठ (जयपुर से)
 
राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए अपने पारम्परिक वोट से दरकते रिश्तों की कहानी बन गया है। राजपूत संगठनों ने फिल्म पद्मावत और दूसरे मुद्दों को लेकर बीजेपी को हराने का आह्वान किया था। करणी सेना ने दावा किया है कि यह पहला मौका है जब राजपूत समाज ने बीजेपी से अपना पुराना रिश्ता तोड़ा और उसके ख़िलाफ़ में मतदान किया।
 
विश्लेषक कहते हैं कि राजपूत समाज की यह नाराज़गी अजमेर लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी को भारी पड़ी, क्योंकि अजमेर संसदीय क्षेत्र में राजपूत और सांस्कृतिक तौर पर उनके निकट समझे जाने वाले रावणा राजपूत बिरादरी और चारण समाज ने सत्तारूढ़ बीजेपी को सबक सिखाने का आह्वान किया था।
 
विश्लेषकों के अनुसार अजमेर क्षेत्र में इन जातियों के कोई दो लाख वोट है। करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराना कहते है, ''हमने पहली बार मंच सजाकर बीजेपी को हराने का आह्वान किया था और हम इसमें कामयाब रहे।''
 
आनंदपाल एनकाउंटर से शुरू हुई टूट
करणी सेना के मुताबिक ,बीजेपी से नाराज़गी के कई कारण थे। पिछले साल 24 जून को आनंदपाल एनकाउंटर ने बीजेपी सरकार और राजपूत समाज के संबंधो में टूट पैदा कर दी।
 
आनंदपाल रावणा राजपूत समाज के थे। राजपूत समाज खुद को रावणा समाज के निकट मानता है। इस घटना से बीजेपी और उसके पारम्परिक वोट बैंक समझे जाने वाले राजपूत समाज में फासला पैदा हो गया।
 
इसकी भरपाई हो भी नहीं पाई थी कि संजय लीला भंसाली की फिल्म ने इस दरार को और चौड़ा कर दिया। मकराना कहते हैं, ''हम कभी भी कांग्रेस समर्थक नहीं रहे, मगर यह पहला मौका था जब हमें बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को वोट देना पड़ा।''
 
वे कहते हैं कि चाहे पहले रामराज्य परिषद हो या जनसंघ, हम उन्हें वोट देते रहे मगर कांग्रेस का दामन नहीं थामा।
वसुंधरा राजे की नाकाम कोशिशें
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बीजेपी के हाथ से फिसलते इस वोट बैंक को फिर से सहेजने के लिए अजमेर में काफी प्रयास किये और रिश्तों की दुहाई दी, मगर बात नहीं बनी।
 
जब कोई प्रमुख राजपूत नेता साथ आने को खड़ा नहीं हुआ तो चुनाव प्रचार के दौरान अजमेर के मसूदा में राजपूत सरपंचो को एकजुट कर राजे से मिलाने का प्रयास किया गया।
 
अजमेर जिले में 34 राजपूत सरपंच है। अजमेर के पत्रकार एसपी मित्तल कहते हैं, ''बहुत प्रयासों के बाद भी कोई दस सरपंच एकजुट किए जा सके, न केवल राजपूत बल्कि उनके साथ रहते आए रावणा राजपूत और चारण समाज ने भी बीजेपी से किनारा कर लिया।''
 
क्या कांग्रेस की तरफ आ रहे हैं राजपूत?
अजमेर के पुष्कर में राजपूत सेवा सदन के ट्रस्टी महेंद्र सिंह कड़ेल ने बीबीसी से कहा, ''एक नहीं कई घटनाएं ऐसी हुई कि राजपूत समाज का बीजेपी से मोहभंग हो गया। राजपूत अपने कद्दावर नेता जसवंत सिंह की बाड़मेर से टिकट काटे जाने से पहले ही खफा था। फिर कुछ और घटनाएं हो गई। पिछले कुछ समय में राजपूत समाज के साथ नाइंसाफ़ी के कई वाकये हुये और हमे यह फ़ैसला लेना पड़ा।''
 
राष्ट्रीय करणी सेना के सुखदेव गोगामेड़ी कहते हैं कि लगातार एक के बाद ऐसी घटनाएं हुई जिसके बाद राजपूत समाज को बीजेपी से अपने रिश्ते तोड़ने पड़े।
 
करणी सेना के मकराना कहते हैं, ''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाड़मेर दौरे में कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो राजपूतों को तस्सली दे सके, क्योंकि कांग्रेस ही बीजेपी को हरा सकती थी इसलिए राजपूत समाज ने बीजेपी को छोड़ कर कांग्रेस को वोट दिए, अब भी बीजेपी के लिए मौका है, वरना विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हम बीजेपी को फिर सबक सिखाएंगे।''
 
अजमेर जिले में राजपूत समाज के नारायण सिंह मसूदा लंबे समय तक कांग्रेस के विधायक रहे है। जंगे आज़ादी में स्वगोपाल सिंह खरवा एक प्रमुख स्वाधीनता सेनानी रहे हैं लेकिन उसके बाद ज्यादातर राजपूत नेता बीजेपी के साथ ही दिखाई देते रहे हैं।
 
इन चुनाव परिणामों के बाद बीजेपी को समझ में नहीं आ रहा है कि इन दरकते रिश्तों को कैसे संभाले क्योंकि दस माह बाद, पहले विधानसभा और फिर लोकसभा के वोट डाले जाएंगे।
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