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Last Modified: मंगलवार, 2 जुलाई 2019 (20:27 IST)

मोदी और योगी सरकार क्यों है आमने-सामने

मोदी और योगी सरकार क्यों है आमने-सामने - Modi and Yogi
समीरात्मज मिश्र, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
उत्तर प्रदेश में 17 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल वाली राज्य सरकार की मुहिम को केंद्र सरकार ने तगड़ा झटका दिया है। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने संसद में कहा कि किसी वर्ग की किसी जाति को अन्य वर्ग में डालने का अधिकार सिर्फ़ संसद को है।
 
राज्यसभा में मंगलवार को बहुजन समाज पार्टी के सांसद सतीश चंद्र मिश्र ने इस मुद्दे को उठाया जिस पर केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सतीश मिश्र से सहमति जताते हुए कहा, 'यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था। किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटाकर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है। पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई।'
 
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पिछले हफ़्ते ही राज्य की सत्रह पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने संबंधी फ़ैसला किया गया था।
 
सरकार की ओर से इस बारे में शासनादेश भी जारी कर दिया गया था और ज़िलाधिकारियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने संबंधी आदेश भी दे दिए गए थे।
 
लेकिन अब केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है। सोमवार को ही बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती ने सरकार के इस फ़ैसले को असंवैधानिक बताते हुए वही बात कही थी जो मंगलवार को केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने राज्य सभा में कही।
 
इस मामले में राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि या बीजेपी नेता कुछ भी कहने से बच रहे हैं। लेकिन बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद अब योगी सरकार अपने इस फहसले को वापस ले सकती है।
 
केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत का कहना था, 'यदि यूपी सरकार इन जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए एक प्रक्रिया है। राज्य सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भेजेगी तो हम उस पर विचार करेंगे, लेकिन अभी जो आदेश जारी किया है वह संवैधानिक नहीं है।'
 
बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्र का कहना था, 'संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत संसद की मंज़ूरी से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव किया जा सकता है। यहां तक कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है। बसपा चाहती है कि इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए लेकिन यह निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए और अनुपातिक आधार पर अनुसूचित जाति का कोटा भी बढ़ाया जाना चाहिए। संसद का अधिकार संसद के पास ही रहने देना चाहिए, यह अधिकार राज्य को नहीं लेना चाहिए।'
 
राज्य सरकार ने जिन सत्रह अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फ़ैसला किया था, उनमें से ज्यादातर की सामाजिक स्थिति दलितों जैसी ही है।
 
दूसरी ओर, संख्या के आधार पर देखें तो इन सत्रह अति पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है। इन जातियों में निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, मांझी, तुरहा, गौड़ इत्यादि हैं।
 
इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने संबंधी कोशिश पिछले काफ़ी समय से चली आ रही है। मुलायम सिंह के अलावा मायावती ने भी सरकार में रहते हुए ऐसा किया था और अखिलेश यादव के नेतृत्व में पिछली सपा सरकार ने तो मौजूदा सरकार की तरह बाकायदा आदेश भी जारी कर दिया था। लेकिन उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी।
 
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान सरकार की इस कोशिश को सीधे तौर पर चुनावी राजनीति से जोड़ते हैं। उनका कहा, 'राज्य की बीजेपी सरकार ने आरक्षण के बहाने सामाजिक समीकरणों को बदलने की दूरगामी कोशिश की लेकिन कुछ जल्दबाजी में सब काम कर गई। दरअसल, उसे आने वाले दिनों में 11 सीटों पर उपचुनाव भी दिख रहे हैं और सारी कवायद इसी वजह से की गई है। हालांकि तमाम पिछड़ी जातियों को बीजेपी अपने पक्ष में कर चुकी है लेकिन अभी तक ये जातियां अपने नेताओं के बैनर तले ही उसके साथ खड़ी हैं। इस मास्टरस्ट्रोक से उसने सीधे तौर पर उन्हें अपनी ओर करने की कोशिश की थी।'
 
हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि सरकार के इस फैसले से उसे दलित समुदाय की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती थी क्योंकि जो जातियां अनुसूचित जाति में शामिल की जातीं, उनसे अनुसूचित जाति के लोगों का ही नुकसान था, क्योंकि ये आरक्षण मौजूदा सीमा में ही दिया जाना था।
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