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Last Modified: बुधवार, 13 मार्च 2019 (14:37 IST)

लोकसभा चुनाव 2019: पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए कितनी संभावना

लोकसभा चुनाव 2019: पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए कितनी संभावना - lok sabha elections 2019,
- प्रभाकर एम. (कोलकाता से)
 
बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अबकी बार पश्चिम बंगाल पर ख़ास ध्यान दे रहा है। पार्टी यहां अपनी सीटें बढ़ा कर दूसरे राज्यों में होने वाले संभावित नुक़सान की भरपाई करना चाहती है।
 
 
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश नेतृत्व को राज्य की 42 में से कम से कम 23 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। बीते लोकसभा चुनावों में पार्टी को यहां महज दो सीटें मिली थीं। लेकिन इस लक्ष्य तक पहुंचने की उनकी राह पथरीली नज़र आ रही है।
 
 
फ़िलहाल टिकटों के बँटवारे के मुद्दे पर पार्टी में आंतरिक गुटबाजी लगातार तेज़ हो रही है। इसके अलावा पार्टी अब तक कम से कम 25 फ़ीसदी मतदान केंद्रों पर बूथ समितियों का गठन भी नहीं कर सकी है।
 
 
अमित शाह ने प्रदेश बीजेपी नेतृत्व के लिए 23 सीटें जीतने का लक्ष्य तो पिछले साल ही तय कर दिया था। लेकिन उसके बाद भी पार्टी की हर रणनीति फेल होती रही है। पहले तो उसकी महात्वांकाक्षी रथ यात्रा प्रशासन और अदालत के चक्कर में फंस कर ठप हो गई।
 
 
अमित शाह ने सितंबर 2017 में अपने बंगाल दौरे के समय ही स्थानीय नेतृत्व को राज्य के 77 हज़ार मतदान केंद्रों पर बूथ समितियों के गठन का निर्देश दिया था। लेकिन अब तक केवल 75 फ़ीसदी बूथ समितियां ही बनाई जा सकी हैं।
 
 
एक-एक सीट के लिए 60 से 70 दावेदार
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष मानते हैं कि इस मामले में पार्टी पिछड़ गई है। वे कहते हैं, "पार्टी ख़ासकर अल्पसंख्यक-बहुल इलाक़ों में अब तक तमाम मतदान केंद्रों पर ऐसी समितियां नहीं बना सकी हैं। वहां हमारा जनाधार तो है लेकिन तृणमूल कांग्रेस के आतंक की वजह से कोई भी समिति में शामिल नहीं होना चाहता।"
 
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि एक-एक सीट के लिए 60 से 70 दावेदारों के मैदान में होने की वजह पार्टी नेतृत्व को टिकटों के बंटवारे के मुद्दे पर आंतरिक असंतोष और गुटबाजी से जूझना पड़ रहा है।
 
 
पुराने नेताओं की अनदेखी नहीं करने की अपील
पार्टी के कई गुट एक ही सीट पर अपना दावा कर रहे हैं। इसी वजह से प्रदेश नेतृत्व ने उम्मीदवारों की जीत की क्षमता के आकलन की राह चुनी है। बीजेपी के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "पार्टी के कुछ नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व से उम्मीदवारों के चयन के मामले में पुराने नेताओं की अनदेखी नहीं करने की अपील की है।"
 
 
बीजेपी ने विभिन्न लोकसभा सीटों पर जीत की संभावनाओं का पता लगाने के लिए एक बाहरी एजेंसी की भी सहायता ली है। अब उस एजेंसी की रिपोर्ट और वरिष्ठ नेताओं की सलाह के आधार पर उम्मीदवारों की सूची तैयार की जाएगी।
 
 
प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष दावा करते हैं, "पार्टी में कहीं कोई गुटबाजी नहीं है। बीजेपी एक अनुशासित पार्टी है। उम्मीदवारों की सूची का ऐलान होते ही तमाम नेता और कार्यकर्ता उनकी जीत सुनिश्चित करने में जुट जाएंगे।"
 
 
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि हर सीट के लिए कम से कम तीन उम्मीदवारों के नाम केंद्रीय नेतृत्व को भेजे जाएंगे। अंतिम फ़ैसला केंद्रीय नेतृत्व ही करेगा। पार्टी ने पिछली बार मिली दार्जिलिंग और आसनसोल सीटों को उक्त सर्वेक्षण को दायरे से बाहर रखा है क्योंकि उसे वहां दोबारा जीत की पूरी उम्मीद है।
 
 
घोष दावा करते हैं कि बीते चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर उत्तर और दक्षिण बंगाल में 18-20 सीटों पर पार्टी की जीत की संभावना 70 से 80 फ़ीसदी है।

 
नागरिकता अधिनियम और एनआरसी का मुद्दा
बीजेपी ने चरमपंथी ठिकानों पर वायुसेना के हमलों को भुनाते हुए बंगाल के सीमावर्ती इलाक़ों में, ख़ासकर, लोकसभा चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। पार्टी के तमाम नेता इसके साथ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और एनआरसी का मुद्दा भी उठा रहे हैं। उसकी निगाहें देश के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आकर सीमावर्ती इलाकों में बसने वाले हिंदुओं पर हैं।
 
 
पार्टी का कहना है कि बंगाल में भी देर-सवेर एनआरसी लागू कर घुसपैठियों को निकाल बाहर किया जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार उत्पल घोष कहते हैं, "बीते दिनों एक सर्वेक्षण में बीजेपी को यहां लोकसभा की छह से आठ सीटें मिलने की बात कही गई थी। उसके बाद टिकट के दावेदारों की तादाद तेजी से बढ़ी है। ऊपर से पार्टी के अलग-अलग गुट के नेता अपने-अपने उम्मीदवारों को टिकट दिलाने के जोड़-तोड़ में जुट गए हैं।" वो कहते हैं कि भारी गुटबाजी की वजह से ही प्रदेश नेतृत्व ने हर सीट के लिए तीन-तीन उम्मीदवारों के नाम केंद्रीय नेतृत्व को भेजने का फ़ैसला किया है।
 
राष्ट्रवाद ही बनेगा प्रमुख मुद्दा
राजनीतिक पर्यवेक्षक जितेन दासगुप्ता कहते हैं, "देश के दूसरे हिस्सों की तरह बंगाल में भी बीजेपी राष्ट्रवाद को ही अपने चुनाव प्रचार का प्रमुख मुद्दा बनाएगी। इसके साथ ही यहां नागरिकता अधिनियम और एनआरसी का मुद्दा भी जुड़ गया है। बीजेपी के लिए फ़िलहाल आतंरिक गुटबाजी से निपटना सबसे बड़ी चुनौती है।"
 
 
वो कहते हैं कि बीजेपी सीमावर्ती ज़िलों पर ख़ास ध्यान दे रही है। इसके लिए उसने बीते चुनाव में हर सीट पर मिले वोटों और हार-जीत का अंतर पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष दावा करते हैं, "अमित शाह ने हमें 23 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। लेकिन मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की स्थिति में हम कम से कम 26 सीटें जीत सकते हैं।" 
 
 
लेकिन दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, "बीजेपी चाहे जितना भी हाथ-पांव मार ले, उसे यहां एक सीट भी नहीं मिलेगी। बंगाल की तमाम 42 सीटें हम ही जीतेंगे।"
 
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