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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 6 अगस्त 2023 (08:02 IST)

राहुल गांधी को लेकर तेजी दिखाना क्या बीजेपी को भारी पड़ रहा है?

राहुल गांधी को लेकर तेजी दिखाना क्या बीजेपी को भारी पड़ रहा है? - Is showing speed on Rahul Gandhi costing BJP?
अभिजीत श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
Rahul Gandhi : देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 'मोदी सरनेम' मामले में राहत देते हुए उनकी सज़ा पर रोक लगा दी। इसी साल 23 मार्च को राहुल गांधी को साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिए गए भाषण को लेकर सूरत की अदालत ने दो साल की सज़ा सुनाई थी।
 
उस आदेश के ठीक अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी थी।
 
'मोदी सरनेम' को लेकर मानहानि का दावा कोई पहला मामला नहीं है जब राहुल गांधी को लेकर भारतीय जनता पार्टी इतनी हमलावर हुई हो। क़रीब ढाई साल पहले राहुल गांधी ने स्वीडन की वी-डेम इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक ख़बर को टैग करते हुए ट्विटर पर लिखा था, "भारत अब लोकतांत्रिक देश नहीं रहा।"
 
इस पर सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता राकेश सिन्हा ने कहा था कि राहुल गांधी पश्चिम देशों की ताक़तों के साथ मिलकर भारत की एकता संप्रभुता की अवहेलना कर रहे हैं।
 
इसी साल जून में राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर थे और राजधानी वाशिंगटन डीसी में उन्होंने कहा था कि "भारत में लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ना हमारा काम है।"
 
उस दौरान उन्होंने वहां बसे भारतीयों से भारत वापस आने का अनुरोध करते हुए लोकतंत्र के साथ भारतीय संविधान की रक्षा में खड़े होने का आह्वान किया था।
 
इससे कुछ महीने पहले राहुल गांधी की ब्रिटेन यात्रा को लेकर भी भारत में बहुत बवाल हुआ था। बीजेपी ने तब राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने विदेशी धरती पर भारतीय लोकतंत्र का अपमान किया है। हालांकि राहुल और पार्टी दोनों ने उस आरोप का खंडन किया था।
 
बीजेपी नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने तब कहा था, "राहुल गांधी विदेश में जा कर ये कहते हैं कि देश में प्रजातंत्र नहीं है। अगर देश में प्रजातंत्र न होता तो यहां का कोई नेता विदेश में जाकर भारत को भारत के लोकतंत्र को भारत में लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने हुए नेता को इस तरह के अपशब्द और दुष्प्रचार की भाषा बोल सकता था?"
 
राहुल पर स्मृति ईरानी का आरोप
उस दौरे के बाद जून में ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे को लेकर राहुल गांधी पर बड़ा आरोप लगाया।
 
उन्होंने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस आयोजित की। उस दौरान उन्होंने एक तस्वीर दिखाई और बोलीं, "राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे की इस तस्वीर में जो महिला सुनीता विश्वनाथन साथ बैठी हैं उनके जॉर्ज सोरोस के साथ संबंध हैं। यह पहले भी सामने आ चुका है कि जॉर्ज सोरोस भारत के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं।"
 
स्मृति ईरानी ने यह भी दावा किया कि जॉर्ज सोरोस के संस्थान से जुड़े एक व्यक्ति का राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से संबंध भी था।
 
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि "राहुल गांधी उनसे क्या बात कर रहे थे उन्हें इसकी जानकारी देश को देनी चाहिए।"
 
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की दो साल की सज़ा पर रोक लगा दी है तो बीजेपी की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन निरहुआ के नाम से प्रसिद्ध आज़मगढ़ से बीजेपी के सांसद दिनेश लाल यादव ने कहा कि राहुल गांधी को संसद में आ कर माफ़ी मांगनी चाहिए।
 
आख़िर क्या कारण है कि जिस राहुल गांधी को बीजेपी पहले गंभीरता से नहीं लेती थी, उन्हें 'पप्पू' तक का टैग दे रखा था, उनको लेकर वो लगातार बयानबाज़ी कर रही है?
 
क्या राहुल गांधी को लेकर बीजेपी की अतिसक्रियता ही अब उस पर (बीजेपी पर) भारी पड़ रही है?
 
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "जिस तरह से राहुल गांधी की सदस्यता गई उससे ज़मीनी स्तर पर लोगों को अच्छा नहीं लगा। विपक्ष के नेताओं पर ईडी का उपयोग किया गया उससे आमलोग उतने परेशान नहीं थे लेकिन राहुल गांधी के मामले में ये कहा जा रहा था कि देखो उन्हें संसद तक से निकाल दिया। तो कहीं न कहीं यह अतिसक्रियता के कारण विफल सा दिखता है।"
 
"बीजेपी ने ही राहुल को देश का हीरो बनाया"
वहीं वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े कहते हैं, "ये कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि बीजेपी ने ही राहुल गांधी को देश का हीरो बना दिया है। पहले उनको पप्पू पप्पू कह कर नीचा दिखाते थे। कहते थे कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस प्रचारक हैं तो यह हमारे लिए बहुत आशादायक है। कांग्रेस का नेतृत्व राहुल करेंगे तो फिर जीवन भर बीजेपी जीतती रहेगी। राहुल गांधी को हीनभाव से टैग किया करते थे।"
 
"लेकिन राहुल गांधी ने इस सभी चीज़ों का जवाब अपनी भारत यात्रा से दे दिया। उन्होंने बता दिया कि वो गंभीर राजनीति करना चाहते हैं, उनमें मेहनत करने की ताक़त है और देश के लोग उनसे प्यार करते हैं।"
 
वे कहते हैं, "राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के तुरंत बाद लोकसभा में हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सरकार को जिस आक्रामकता से घेरा उससे एक बात तो समझ में आ गई कि आने वाले समय में बीजेपी के आगे एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी के रूप में होगी।"
 
"मोदी शब्द को लेकर राहुल गांधी के कोलार में दिए गए वक्तव्य पर चार साल बाद सज़ा दी गई। उन्हें अधिकतम दो वर्ष की सज़ा दी गई इससे उनकी सदस्यता चली गई। इसने उनके राजनीतिक भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने जो टिप्पणी की वो राज्य स्तर की जूडिशियरी पर गंभीर चीज़ों को रेखांकित करती है।"
 
लोकसभा में राहुल लौटे तो...
राहुल गांधी की लोकसभा में वापसी पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "लोकसभा की सदस्यता वापस होने की स्थिति में राहुल गांधी फिर केंद्रीय भूमिका में होंगे। लेकिन इससे विपक्ष के नए गठबंधन 'इंडिया' में कुछ उथल पुथल हो सकती है। हां वो विपक्ष के केंद्र बिंदु ज़रूर होंगे क्योंकि सवाल उन पर और उनसे पूछे जाएंगे। बीजेपी उनको फिर ख़ारिज करेगी, उन पर हमला करेगी। तो कांग्रेस उनका समर्थन करेगी। ऐसी स्थिति में वो केंद्र बिंदु तो बनेंगे ही।"
 
अगर राहुल गांधी को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलने का मौक़ा मिल गया तो क्या होगा?
 
इस पर अशोक वानखेड़े कहते हैं, "राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के तुरंत बाद लोकसभा में हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सरकार को जिस आक्रामकता से घेरा उससे एक बात तो समझ में आ गई कि आने वाले समय में बीजेपी के आगे एक सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी के रूप में होगी।"
 
"अब अगर अविश्वास प्रस्ताव से पहले राहुल गांधी संसद में वापस आए तो उसी आक्रामकता के साथ वो अपनी बातें रखेंगे क्योंकि वो मणिपुर हो कर आए हैं। वहां की स्थिति को देख कर आए हैं।"
 
"ऐसी स्थिति में 2024 के चुनाव को जीत कर सत्ता में वापसी करने की राह में राहुल गांधी बीजेपी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित होंगे।"
 
"बीजेपी लगातार राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने का प्रयास करती रही है। वो जितना राहुल गांधी को डिसक्रेडिट करने की कोशिश करती है, उनकी स्वीकार्यता उतनी ही बढ़ रही है। और बीजेपी की स्वीकार्यता पर सवाल उठ रहे हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री विपक्ष के नए गठबंधन को लेकर चिंतित हैं जब भी एनडीए की बात करते हैं तो विपक्ष के नए गठबंधन 'इंडिया' पर भड़कते हैं।"
 
"राहुल कभी पप्पू नहीं थे"
अशोक वानखेड़े ज़ोर देकर कहते हैं, "राहुल गांधी कभी 'पप्पू' नहीं थे। ये बनाए गए थे। इसमें जहां बीजेपी का हाथ था वहीं कांग्रेस के नेताओं का भी हाथ था। कांग्रेसियों का ज़्यादा था।"
 
"आज जब हिंडनबर्ग और मणिपुर जैसे मुद्दे सामने हैं तो ये भी पूछा जा रहा है कि क्या नोटबंदी, जीएसटी, चीन, कोविड, महंगाई, किसानों पर लाए गए तीन बिल, मणिपुर पर उठाए गए सवाल ग़लत थे। ये सभी सवाल बाद में विकराल रूप लेकर सामने आया।"
 
"राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद को ठुकराया है। इसके बाद भी उन पर परिवारवाद का टैग लगता है, क्योंकि बीजेपी के तरकश में अब कोई तीर बचा नहीं। वर्तमान में जब आपके पास बताने के लिए कुछ बचा ही नहीं तो भविष्य की जीत के लिए आप उसी पुराने परिवारवाद, नेहरू की बात कर के इतिहास के पीछे छुपते हैं। यही बीजेपी करती आ रही है।"
 
विधानसभा चुनाव और कांग्रेस, बीजेपी की स्थिति
देश में इस साल कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसमें कांग्रेस और बीजेपी की स्थिति फिलहाल कैसी दिखती है।
 
नीरजा चौधरी कहती हैं, "अगर ये दिखा कि राहुल गांधी जैसे ही कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका में आएंगे नए गठबंधन 'इंडिया' की कमज़ोरी या कहें डर सामने आ जाएगा। पटना में जो मीटिंग हुई थी उसमें मेरी जानकारी में आई कि राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने यह स्पष्ट कर दिया कि वो पूरी तरह सहयोग करेंगे। उसमें उन्होंने यह बता दिया कि ऐसा नहीं है कि मैं प्रधानमंत्री के पद का दावेदार होना चाहता हूं, ये चीज़ें नतीजे आने पर तय होती रहेंगी। उस दौरान उन्होंने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही आगे रखा है। यह राहुल गांधी की तरफ़ से एक रोचक पहल रही है।"
 
नीरजा चौधरी कहती हैं, "राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ज़रूर उत्साहित कर दिया। लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत को राहुल गांधी से नहीं जोड़ सकते। वहां मिली जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से हुई।"
 
इस पर अशोक वानखेड़े कहते हैं, "कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में ऊंचे मनोबल के साथ जा रही है। जब केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व मजबूत होगी तो निचले स्तर पर एकजुटता भी बढ़ेगी, जिसका अच्छा उदाहरण हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में देखने को मिला। आने वाले समय में ये देखेंगे कि तेलंगाना में कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी। वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी बैकफ़ुट पर दिखती है।"
 
वे कहते हैं कि बीजेपी का संगठन कमज़ोर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, "हर जगह ब्रैंड मोदी मार खाते हुए दिखाई देता है। पन्ना प्रमुख तब काम करेंगे जब कार्यकर्ता साथ होगा। कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहा है। उनको लग रहा है कि उनके नेताओं की बेइज्जती हो रही है। केंद्र के कुछ लोग ही प्रदेश की सभी चीज़ें तय कर रहे हैं। इस बीजेपी को बहुत अधिक नुकसान होता दिख रहा है। तो वर्तमान परिस्थिति में बीजेपी आगामी चुनावों को जीतती हुई नहीं दिख रही है।"
 
नीरजा चौधरी कहती हैं, "राज्यों में कांग्रेस की जीत वहां के स्थानीय नेतृत्व की वजह से मिलेगी। राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़ने ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच एक समझौता करवा दिया है। मध्य प्रदेश में कमलनाथ हैं, वहां स्थानीय नेतृत्व मजबूत है। वहां इतने सालों की एंटी इनकम्बेंसी है।"
 
2024 के लोकसभा चुनाव पर क्या होगा असर?
अशोक वानखेड़े कहते हैं, "विधानसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया तो इसके जो भी नतीजे आएंगे उसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। याद करें कि कर्नाटक में उन्होंने कहा था कि नब्बे गालियां मुझे दी जा रही हैं, जिसका बदला आपको लेना है। तो हार होने की स्थिति में यह उनकी हार है जिसका असर 2024 के चुनाव पर ज़रूर पड़ेगा।"
 
नीरजा चौधरी भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखती हैं कि अगर 2024 के चुनाव से पहले 'इंडिया' गठबंधन ने अपनी एकता दिखाई और सोच समझ कर उम्मीदवार उतारे तो उसका असर पड़ेगा।
 
लेकिन साथ ही वे यह भी कहती हैं, "विपक्षी गठबंधन ने बहुत अच्छा प्रदर्शन भी किया तो बीजेपी की 60-70 सीटें कम हो जाएंगी। हो सकता है उन्हें गठबंधन की सरकार बनानी पड़े लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ही रहेगी। उन्होंने एनडीए में 38 दलों को इकट्ठा कर लिया है। हालांकि ऐसी स्थिति में सरकार तो बीजेपी बनाएगी लेकिन नेतृत्व पर सवाल उठ सकता है कि क्या मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे या कोई और।"
 
क्या राहुल गांधी 'इंडिया' के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे?
अगर आगामी चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन को बड़ी जीत हासिल हुई तो क्या राहुल गांधी 2024 में कांग्रेस की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे?
 
इस पर अशोक वानखेड़े साफ़ साफ़ कहते हैं, "ऐसी किसी भी स्थिति में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार नहीं होगा। उम्मीदवार तब ही तय होगा जब निर्णय आएंगे। संख्या के आधार पर यह तय होगा कि मंत्रिमंडल में कौन होगा?"
 
वे कहते हैं, "अभी तो कई राज्यों में जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला नहीं है वहां से कई ऐसे दल अब 'इंडिया' में शामिल हैं जो पहले कांग्रेस के साथ सीधे मुक़ाबले में होती थीं।"
 
स्थिति ये है कि विरोधाभास वाले दल इंडिया और एनडीए दोनों में साथ हैं। राजनीति में नैतिकता रही नहीं तो यहां परिभाषा रोज़ बदलती है।
 
अगर कांग्रेस को डेढ़ सौ से अधिक सीटें मिल गईं तो वैसी परिस्थिति में क्या राहुल को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं?
 
अशोक वानखेड़े कहते हैं, "कांग्रेस को अगर दो सौ सीटें भी आ गईं तो राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ़ से भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। वैसी स्थिति में जैसे पिछली बार मनमोहन सिंह का नाम आया था, वैसे ही कोई नाम आएगा।"
 
क्या राहुल गांधी की परिपक्वता भी बढ़ी है?
इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "भारत जोड़ो यात्रा में इतनी लंबी यात्रा की। उन्होंने इसे पूरा किया। इससे उनकी परिवार से अलग पहचान बनी। हालांकि परिपक्वता बढ़ी है कि नहीं यह कहना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि कई बार उनकी भाषा में संयम नहीं दिखता है।"
 
"सरकार को आड़े हाथ लेते हैं, निष्ठा दिखती है लेकिन पार्टी में कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध होना उनके लिए मुश्किल दिख रहा था। हालांकि अब वो पहले से बेहतर कर रहे हैं। ज़मीनी स्तर पर लोग समझते हैं कि जिस भाषा का इस्तेमाल वो करते हैं वो थोड़ा अटपटा सा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उनकी भाषा को लेकर कहा भी है।"
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