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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 31 जुलाई 2023 (09:35 IST)

अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार को कितना अस्थिर कर सकेगा?

अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार को कितना अस्थिर कर सकेगा? - How much will the no-confidence motion destabilize the Modi government?
-अभिजीत श्रीवास्तव (बीबीसी संवाददाता)
 
No confidence motion against Modi government: संसद के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा को लेकर लगातार गतिरोध बना हुआ है। विपक्ष इसे लेकर अड़ा हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर के मुद्दे पर सदन में बोलें। इस मांग को लेकर वो लगातार सदन का बहिष्कार करता आ रहा है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि वो संसद में इस पर जवाब देने के लिए तैयार हैं, लेकिन विपक्ष ने अमित शाह के इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस थमाया।
 
बुधवार (26 जुलाई) को विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस यानी इंडिया की तरफ़ से सदन के नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार तो कर लिया लेकिन सदन में इस पर चर्चा कब होगी, ये तय नहीं किया।
 
लोकसभा के नियम के अनुसार नोटिस स्वीकार किए जाने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा की तारीख़ तय की जाती है। इस प्रस्ताव का नोटिस दिए आज 6 दिन हो गए हैं लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि इसी हफ़्ते इस पर चर्चा होगी।
 
ऐसे में चलिए जानते हैं कि इस अविश्वास प्रस्ताव पर विभिन्न राजनीतिक दलों का रुख़ क्या है? कौन दल किसके साथ है? लोकसभा का अंकगणित किसके साथ है और इस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से क्या हासिल होगा?
 
किसने क्या कहा?
 
बात सबसे पहले इस अविश्वास प्रस्ताव पर हो रहे बयानों की।
 
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, 'क्यों प्रधानमंत्री मणिपुर पर सदन में नहीं बोलते? मोदी साहब क्यों यहां नहीं आते और बात नहीं करते हैं? क्यों अपनी बात को यहां नहीं रखते हैं? बाहर तो बोलते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में, अरे मणिपुर के बारे में बोले ना।'
 
राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा, 'अविश्वास प्रस्ताव में आंकड़े हमारे पक्ष में नहीं हैं, लेकिन सवाल आंकड़ों का नहीं है। लोकतंत्र में जब ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाए कि पौने तीन महीने प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहें तो शायद अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से प्रधानमंत्री जी को सदन में अपनी बात तो रखनी ही होगी।'
 
'मणिपुर के लोगों को एक संदेश जाएगा कि बाकी किसी इंस्ट्रूमेंट से प्रधानमंत्री जी सामने नहीं आए अतः विपक्ष को एक्स्ट्रीम स्टेप लेना पड़ा ताकि मणिपुर के लोगों को प्रधानमंत्री की ओर से संवेदना का एक संदेश जाए।'
 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, 'मणिपुर पर प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए। पूरा विपक्ष एकजुट हो कर उनसे सदन में बयान देने को कह रहा है लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहे इसलिए यह अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।'
 
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा बोले, 'बहुत बार संसदीय औजारों का इस्तेमाल इसलिए भी किया जाता है ताकि सरकार को सदन के अंदर देश के ज्वलंत मुद्दों पर बयान देने के लिए मजबूर किया जाए। अभी मणिपुर सबसे ज्वलंत मुद्दा है। इस प्रस्ताव में किसकी हार होगी या जीत यह सोचने का वक़्त नहीं है। सरकार के मुखिया सदन के भीतर आ कर जवाब दें।'
 
क्या है लोकसभा में संख्या बल का गणित?
 
जहां तक लोकसभा में संख्या बल की बात है तो यह विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' को भी बखूबी पता है कि लोकसभा में चर्चा के बाद जब वोट डाले जाएंगे तो उसका अविश्वास प्रस्ताव नहीं टिकेगा क्योंकि 545 सीटों वाली लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 है और अकेले एनडीए के सबसे प्रमुख घटक दल बीजेपी के पास ही 300 से अधिक सीटें हैं। वहीं कांग्रेस समेत विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के पास क़रीब 141 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है।
 
केसीआर की बीआरएस, वाईएस जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी और नवीन पटनायक की बीजेडी जैसी तटस्थ पार्टियों की संयुक्त ताकत 41 है। बाकी सीटें अन्य दलों के साथ-साथ निर्दलीय सदस्यों के बीच विभाजित हैं।
 
क्या पीएम को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलना ही पड़ेगा?
 
इस पर वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, 'अविश्वास प्रस्ताव का मतलब यह है कि यह संसद प्रधानमंत्री के कार्य पर विश्वास नहीं करती है। इस बार अविश्वास प्रस्ताव लाने का अहम कारण यह रहा कि विपक्ष चाहता था कि प्रधानमंत्री ही मणिपुर पर सदन में बोलें।'
 
वे कहते हैं, 'विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया है, लेकिन नियम ये कहीं नहीं कहते कि प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव पर बोलना ही पड़ेगा। हो सकता है कि वो किसी को अपना प्रतिनिधि बना कर कह सकते हैं कि सरकार की तरफ़ से जवाब वो देंगे। लेकिन इस बात की उम्मीद बहुत कम है। क्योंकि ऐसे में माना जाएगा कि प्रधानमंत्री संसद से बच रहे हैं, संसद के सामने उत्तरदायी नहीं बनना चाहते, संसद को उत्तर नहीं देना चाहते।'
 
वे कहते हैं, 'मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के पास बहुत सक्षम जवाब है। बार बार सत्ता पक्ष या उनके प्रवक्ता कह रहे हैं ड्रग माफ़िया पर कार्रवाई की वजह से ये शुरू हुआ है। जातीय हिंसा जो हो रही है उसकी एक बड़ी वजह म्यांमार से होने वाली घुसपैठ है। घुसपैठियों को पहचान करने की कोशिश की जा रही है।'
 
कौन दल किसके साथ?
 
इस बीच कुछ दलों ने अपना रुख़ स्पष्ट करना शुरू कर दिया है।
 
लोकसभा में 9 सदस्यों वाली के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीएसआर) ने 26 जुलाई को बताया था कि उसने भी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है।
 
बीएसआर बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की उस बैठक का हिस्सा नहीं थी जहां इस गठबंधन का नाम 'इंडिया' तय किया गया था।
 
वहीं 22 लोकसभा सांसदों वाली वाईएसआर कांग्रेस ने संसद में मोदी सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया है। पार्टी ने तय किया है कि वो लोकसभा में विपक्ष के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ और सरकार के पक्ष में वोट डालेगी।
 
वाईएसआर कांग्रेस संसदीय के प्रमुख विजयसाई रेड्डी ने कहा, 'इस वक़्त मिलकर काम करने की ज़रूरत है। वाईएसआर कांग्रेस सरकार का समर्थन करेगी और अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट देगी।'
 
12 सांसदों वाली बीजू जनता दल ने अविश्वास प्रस्ताव को लेकर अपना रुख़ अभी स्पष्ट नहीं किया है। ऐसा ही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ है जो 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं।
 
अविश्वास प्रस्ताव का मक़सद
 
तो जब संख्या बल विपक्ष के साथ नहीं है तो वो अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आई है।
 
वहीं वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, 'यह विपक्ष की रणनीति लगती है कि इस प्रस्ताव के ज़रिए पीएम मोदी को मणिपुर पर संसद में बोलना पड़े। प्रधानमंत्री निश्चित रूप से बात अपने 9 सालों के कार्यकाल की करेंगे लेकिन बात मणिपुर की ज़रूर आएगी।'
 
वे कहती हैं, 'मणिपुर का मसला देश में इतना तूल पकड़ रहा है और वो 10 वाक्य भी बोलते तो इस तरह के सभी वार कुंद पड़ जाते लेकिन राजनीतिक रूप से भी ये समझ में नहीं आता कि वो कुछ क्यों नहीं बोल रहे हैं।'
 
नीरजा चौधरी कहती हैं, 'ऐसा लगता है कि नया विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' राजनीतिक लामबंदी के ज़रिए पूर्वोत्तर और महिलाओं के चुनावी क्षेत्रों को संदेश देने की कोशिश कर रहा है। पूर्वात्तर राज्यों की तरफ से यह मैसेज आ रहा है कि बाकी देश को हमारी परवाह नहीं है और ये बहुत ख़तरनाक है क्योंकि वहां दशकों तक उथल पुथल रहा है। हाल के दिनों में ही यहां राजनीतिक स्थिरता आई है। वहां के लोगों के बीच असंतुष्टि का आना देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी असर हो सकता है।'
 
वहीं वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने बीबीसी हिन्दी से कहा, 'अविश्वास प्रस्ताव का मुख्य मक़सद ये नहीं होता कि सरकार को गिरा ही दिया जाए। यह सरकार की नीतियों की आलोचना करने का सबसे बड़ा अवसर होता है। राजनीति में विपक्ष का एक अहम काम सरकार का विरोध करना और उसकी कमियों को उजागर करना भी होता है।'
 
'अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए विपक्ष जनता को यह बताती है कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही। आज अविश्वास प्रस्ताव को लाइव दिखाया जाता है। तो जनता विपक्ष और सरकार को लाइव देखती है कि वो क्या बोल रहे हैं। विपक्ष के पास संख्या बल नहीं है। अगर होता तो आप सरकार का कोई भी विधेयक गिरा देते उससे ही ये ज़ाहिर हो जाता।'
 
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के मुद्दे
 
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के केंद्र में मणिपुर हिंसा रहेगी।
 
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, 'विपक्षी पार्टी निश्चित रूप से सरकार को घेरना चाहेगी कि क़रीब तीन महीने से इस पर नियंत्रण क्यों नहीं हुआ। विपक्ष सरकार को इस पर कटघरे में खड़ा करना चाहेगा। अब वहां सेना और अर्धसैनिक बल तैनात हैं लेकिन हिंसा की ख़बरें अब भी आ रही हैं।'
 
वे कहते हैं कि केंद्रीय गृहमंत्री 3 बार मणिपुर जा चुके हैं लेकिन वहां हिंसा का दौर थमा नहीं है, तो विपक्ष के पास यह मुद्दा सबसे अहम होगा। मणिपुर की हिंसा भले ही अविश्वास प्रस्ताव का आधार बनी हो लेकिन ऐसा नहीं है कि चर्चा भी केवल इसी पर होगी।
 
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि ये पूरी बहस मणिपुर पर होगी। अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई, चीन के साथ संबंध, लद्दाख, किसान, अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी जैसे कई मुद्दे हैं जिस पर इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्ष चर्चा करना चाहेगा।'
 
रामदत्त त्रिपाठी और शरद गुप्ता दोनों के स्वर में कहते हैं कि इस चर्चा के दौरान विपक्ष जहां सत्ता पक्ष को घेरने में लगेगा वहीं सरकार अपने 9 साल के कार्यकाल में किए गए कार्यों को गिनाने में लगेगी।
 
शरद गुप्ता कहते हैं, उनके पास अपने 9 साल के कार्यकलाप का लेखा जोखा देने और चुनाव से पहले जो भी वो कार्य करने वाले उसे बताने का मौक़ा होगा। तो यह माना जा सकता है कि कुल मिलाकर यह प्रधानमंत्री का चुनावी भाषण होने वाला है।'
 
शरद गुप्ता अंत में यह भी जोड़ते हैं, 'मुझे लगता है कि विपक्ष के पास लोकसभा में उतने अच्छे वक़्ता नहीं हैं। 2018 में राहुल गांधी ने विपक्ष की तरफ़ से भाषण दिया था, इस बार वो भी नहीं हैं। तो जिस तरह 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौक़े का इस्तेमाल अपने कार्यों को बताने के लिए किया था तो कह सकते हैं कि इस बार भी यह उनके ही पक्ष में जाएगा। विपक्ष चाहता ज़रूर है कि सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाए लेकिन सरकार कटघरे में खड़े होने की बजाए विपक्ष ही कटघरे में खड़ा नज़र आए।'
 
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव?
 
केंद्र या राज्य में जब विपक्षी पार्टी को यह लगता है कि सरकार के पास सदन चलाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है या वो (सरकार) सदन में विश्वास खो चुकी है तब वो अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती है। केंद्र में इसे लोकसभा तो राज्य में विधानसभा में पेश किया जाता है।
 
इस प्रस्ताव को लाने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन चाहिए। अब जबकि इसे मंज़ूरी मिल गई है तो सत्ताधारी पार्टी को साबित करना होगा कि उन्हें सदन में ज़रूरी समर्थन हासिल है।
 
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद इस पर वोटिंग होगी और फ़ैसला साधारण बहुमत से तय होगा। अगर सदन ने इसके समर्थन में वोट दे दिया तो सरकार गिर जाएगी। यानी मोदी सरकार के बने रहने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का गिरना ज़रूरी है।
 
अविश्वास प्रस्ताव का संक्षिप्त इतिहास
 
केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लाया गया यह प्रस्ताव भारतीय इतिहास का 28वां अविश्वास प्रस्ताव है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ सबसे अधिक 15 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे, तो लाल बहादुर शास्त्री और पीवी नरसिम्हा राव को एक समान 3 अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा।
 
अविश्वास प्रस्ताव से पहली बार 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरी थी। वहीं वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ यह पहला अविश्वास प्रस्ताव नहीं है। 2018 में लाए गए उस प्रस्ताव में विपक्ष को 325 के मुक़ाबले 126 वोट ही हासिल हुए थे। मानसून सत्र के दौरान तब 12 घंटे बहस चली थी और आखिरी में 20 जुलाई को मोदी सरकार ने 199 वोट के अंतर से अविश्वास प्रस्ताव को हरा दिया था।
 
जब पहली बार लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव
 
1952 में लोकसभा के नियमों में यह प्रावधान किया गया कि एक अविश्वास प्रस्ताव 30 सांसदों के समर्थन से लाया जा सकता है, अब यह संख्या 50 हो गई है। हालांकि लोकसभा के दो कार्यकाल तक कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया। लेकिन अगस्त 1963 में लोकसभा के तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के ख़िलाफ़ पहली बार अविश्वास प्रस्ताव आचार्य जेबी कृपलानी ले कर आए।
 
सदन में चार दिनों तक 21 घंटे चली चर्चा में 40 सांसदों ने भाग लिया और आखिर विपक्ष का लाया यह अविश्वास प्रस्ताव गिर गया।
 
अविश्वास प्रस्ताव पर क्या बोले थे पंडित नेहरू?
 
अविश्वास प्रस्ताव पर 41वें सदस्य के रूप में 22 अगस्त को प्रधानमंत्री नेहरू बोले। उन्होंने कहा, 'अविश्वास प्रस्ताव का लक्ष्य सरकार में जो पार्टी है उसे हटा कर उसकी जगह लेना होता है या होना भी चाहिए। वर्तमान स्थिति में ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी।'
 
'वैसे तो मैं इस प्रस्ताव पर हुए बहस का स्वागत करता हूं और मुझे लगता है कि यह कई मायनों में फ़ायदेमंद थी लेकिन यह थोड़ी अवास्तविक भी थी। हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैंने इस प्रस्ताव और इस पर चर्चा का स्वागत किया है। मैंने ये भी महसूस किया है कि अगर हम समय समय पर इस तरह के टेस्ट करवाते रहे तो यह अच्छी चीज़ होगी।'
 
उन्होंने कहा, 'मैंने पूरी चर्चा सुनी, विपक्ष सदस्यों की पूरी बात सुनी और यह समझने की कोशिश की कि आखिर उन्हें किस चीज़ से परेशानी हुई।
 
हो सकता है कि वो सरकार हो हटाना चाहते हों, लेकिन इसकी उन्हें उम्मीद नहीं होगी। लिहाजा, कुल मिलाकर यह समझ में आता है कि उनमें क्रोध और द्वेष भरपूर था और जिसे वो तल्ख भाषा में व्यक्त करना चाहते थे।'(फोटो सौजन्य : बीबीसी)
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