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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 30 अप्रैल 2022 (07:47 IST)

शाह फ़ैसल इस्तीफ़ा देने के बाद एक बार फिर आईएएस कैसे बन रहे हैं?

शाह फ़ैसल इस्तीफ़ा देने के बाद एक बार फिर आईएएस कैसे बन रहे हैं? - How Shah Faesal is becoming IAS again
जम्मू-कश्मीर के पहले यूपीएससी टॉपर शाह फ़ैसल राजनीति में हाथ आज़माने के बाद एक बार फिर आईएएस के रूप में नौकरी ज्वॉइन करने जा रहे हैं। शाह फैसल ने बीते बुधवार ट्वीट कर लिखा है कि 'उन्हें भरोसा था कि ज़िंदगी उन्हें एक और मौका ज़रूर देगी।'
 
उन्होंने लिखा कि "जनवरी 2019 से अगस्त 2019 के दरमियानी आठ महीनों ने मेरी ज़िंदगी पर ऐसा असर डाला कि मैं लगभग ख़त्म सा हो गया था। एक भ्रम के पीछे भागते हुए मैंने वो सब कुछ खो दिया जो कि मैंने पिछले कई सालों में हासिल किया था - नौकरी, दोस्त, प्रतिष्ठा और लोगों का भरोसा।
 
लेकिन मैंने उम्मीद नहीं खोई थी। मेरे आदर्शवाद ने मुझे निराश किया। लेकिन मुझे अपने ऊपर भरोसा था कि मैं अपनी ग़लतियां सुधार लूंगा। और ज़िंदगी मुझे एक मौका ज़रूर देगी।"
 
उन्होंने ये भी लिखा कि वह अगले महीने 39 साल के होने जा रहे हैं और एक नयी शुरुआत करने के लिए उत्साहित हैं।
 
फ़ैसल ने अपने ट्वीट में जनवरी 2019 से लेकर अगस्त 2019 के जिस दौर का ज़िक्र किया है, ये वो समय था जिसमें उन्होंने आईएएस के रूप में अपने पद से इस्तीफ़ा देकर हिरासत में लिए जाने तक का सफर किया।
 
टॉपर से हिरासत में जाने तक शाह फ़ैसल
साल 2010 में यूपीएससी टॉप करने वाले शाह फ़ैसल ने 9 जनवरी, 2019 को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस्तीफ़े का एलान करते हुए उन्होंने कहा था कि वह किसी राजनीतिक दल में शामिल होने की योजना नहीं बना रहे हैं।
 
लेकिन इसके कुछ महीनों बाद फ़ैसल ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट के नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की। इसके ठीक छह महीने बाद जब वह अमेरिका जा रहे थे तभी उन्हें 14 अगस्त, 2019 को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से हिरासत में लिया गया।
 
बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर के कई राजनेताओं को हिरासत में लिया था। साल 2020 के फरवरी महीने में उनके ख़िलाफ़ पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत भी केस दर्ज हुआ। इसके बाद अगस्त, 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया।
 
बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने राजनीति छोड़ने की बात स्वीकारते हुए कहा था, "मैं बहुत विनम्रता के साथ राजनीति छोड़ रहा हूं और लोगों को बता रहा हूं कि मैं झूठी उम्मीदें नहीं दिला सकता कि मैं आपके लिए ये करूंगा, वो करूंगा, जबकि मुझे पता है कि मेरे पास ऐसा कर पाने की ताक़त नहीं है।"
 
इसके लगभग बीस महीने बाद उनके नौकरी पर लौटने की ख़बरें आ रही हैं।
 
शाह फ़ैसल की वापसी पर उठे सवाल
जम्मू-कश्मीर सरकार की वेबसाइट के मुताबिक़, शाह फ़ैसल की तैनाती के आदेश आना अभी बाक़ी है। फ़ैसल के नौकरी पर लौटने की ख़बरें आने के बाद से सवाल उठाया जा रहा है कि किसी व्यक्ति को इस्तीफ़ा देने, राजनीति में हाथ आज़माने के बाद वापस नौकरी में कैसे लाया जा सकता है।
 
ट्विटर यूज़र सहाना सिंह ने इस पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि शाह फ़ैसल का इस्तीफ़ा साल 2019 में क्यों स्वीकार नहीं किया गया था।
 
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) फिर से ज्वाइन करने पर शाह फ़ैसल को शुभकामना दी है।
 
उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट किया है- राजनेता के रूप में अपनी छोटी पारी के बाद शाह फ़ैसल अब उसी सरकार की सेवा करेंगे, जिसके वे 10 महीने क़ैदी रहे। मैं उनकी नई/पुरानी ज़िम्मेदारियों के लिए उन्हें शुभकामना देता हूँ।
 
लेकिन ये पहला मामला नहीं है जब किसी प्रशासनिक अधिकारी को इस्तीफ़े के बाद नौकरी पर वापस लाया गया हो। इससे पहले साल 2009 में बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का मामला सुर्खियों में आया था।
 
पांडे साल 2009 में बिहार के इंस्पेक्टर जनरल हुआ करते थे। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते पांडे ने बक्सर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। वह बीजेपी की सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे।
 
पद पर रहते हुए वह चुनाव नहीं लड़ सकते थे। ऐसे में उन्होंने वीआरएस ले लिया। लेकिन ऐन मौके पर बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी के क़रीबी रहे लालमनी चौबे को टिकट दे दिया और पांडे चुनाव नहीं लड़ सके।
 
इसके बाद पांडे ने सबको चौंकाते हुए बिहार सरकार से नौकरी पर वापस आने का अनुरोध किया और बिहार सरकार ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया।
 
उत्तर प्रदेश में तैनात रहे आईपीएस दावा शेरपा का मामला भी कुछ ऐसा ही है। उन्होंने भी साल 2008 में अपना इस्तीफ़ा देने के बाद राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई थी।
 
कुछ समय बाद शेरपा भी भारतीय पुलिस सेवा में वापस आ गए थे। भारतीय प्रशासनिक खेमे में ऐसी घटनाओं को अपवाद माना जाता है।
 
शाह फ़ैसल की नौकरी पर वापसी होने से जुड़ी ख़बरें आने के बाद फिर एक बार इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गयी है।
 
इस्तीफ़े के बाद नौकरी पर वापसी कैसे?
अखिल भारतीय सेवाएं (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम 1958 के तहत इस्तीफ़े और वापसी से जुड़े नियमों को दर्ज किया गया है।
 
बीबीसी ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पूर्व सचिव डॉक्टर श्यामल सरकार से बात करके इस मसले की पेचीदगियों को समझने की कोशिश की है।
 
डॉ. सरकार बताते हैं, "अखिल भारतीय सेवाओं के तहत जिन लोगों का चयन होता है, उनकी अपॉइंटिंग अथॉरिटी भारत का राष्ट्रपति होता है। ऐसे में अगर कोई इस्तीफ़ा देता है, तो उसे राष्ट्रपति के स्तर पर ही स्वीकार करना होता है।
 
अगर किसी अधिकारी ने इस्तीफ़ा दिया है, और उनका इस्तीफ़ा स्वीकार हो जाता है तो उनकी नौकरी पर वापसी बहुत दुर्लभ है। जब हम डीओपीटी में सचिव थे, उस दौरान एक-दो मामले सामने आए थे जिनमें इस्तीफ़ा दिया गया और स्वीकार हो गया। इसके बाद अधिकारी ने आवेदन करके बताया कि उन्होंने जायज़ व्यक्तिगत समस्या की वजह से इस्तीफ़ा दिया था तो ऐसे मामलों में राष्ट्रपति ने उनके आवेदन को स्वीकार किया है। ये बहुत दुर्लभ है। किसी ने अगर इस्तीफ़ा दिया है तो उसकी वापसी बहुत कम ही मौकों पर होती है।"
 
इस्तीफ़ा कैसे और किसे दिया जाता है?
शाह फ़ैसल ने जनवरी, 2019 में अपना इस्तीफ़ा दिया था लेकिन उसे केंद्र सरकार की ओर से स्वीकार किए जाने अथवा नहीं किए जाने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
 
इस्तीफ़े की प्रक्रिया को समझाते हुए डॉ. सरकार बताते हैं, "अगर कोई अधिकारी राज्य में तैनात है तो उसे राज्य सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार को इस्तीफ़ा सौंपना होगा। राज्य सरकार इस्तीफ़ा मिलने के बाद केंद्र सरकार के साथ सलाह-मशविरा करती है जिसके बाद वह किसी नतीजे पर पहुंच सकती है। अगर इस्तीफ़ा स्वीकार होने से पहले इस्तीफ़ा देने वाला अधिकारी अपना मन बदल लेता है तो वह सर्विस में वापस आ सकता है। लेकिन ये बहुत कुछ सरकार पर निर्भर करता है।"
 
इस्तीफ़े के बाद राजनीतिक गतिविधि
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के नियमों के तहत किसी अधिकारी को नौकरी पर रहते हुए राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेना चाहिए। शाह फ़ैसल के मामले में उन्होंने इस्तीफ़े के बाद अपनी राजनीतिक पार्टी लॉन्च की थी।
 
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोई अधिकारी इस्तीफ़ा देने और उसके स्वीकार होने से पहले राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा ले सकता है। डॉ श्यामल सरकार मानते हैं कि नियमों के हिसाब से ऐसा नहीं होना चाहिए।
 
वह कहते हैं, "नियमों के मुताबिक़, ऐसा नहीं होना चाहिए। इस्तीफ़ा देने और स्वीकार होने के बाद कोई भी व्यक्ति राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए स्वतंत्र है। सर्विस में रहते हुए ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति इस्तीफ़ा देकर राजनीतिक गतिविधि में शामिल हो जाता है। और उसका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं होता है तो वह अपने इस्तीफ़े को वापस लेने के लिए सरकार के समक्ष अनुरोध कर सकता है। ये सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस अनुरोध पर क्या प्रतिक्रिया दे।"
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