मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Doctors treating Corona patient not getting salary
Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 13 जून 2020 (07:54 IST)

कोरोना मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को महीनों से नहीं मिला वेतन

कोरोना मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को महीनों से नहीं मिला वेतन - Doctors treating Corona patient not getting salary
सिंधुवासिनी, बीबीसी संवाददाता

क्या आप ऐसा काम करना चाहेंगे जिसमें आपको अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय कोरोना संक्रमित लोगों के आस-पास, उनकी देखभाल करते हुए बिताना हो और बदले में आपको कोई वेतन भी न मिले? दिल्ली में कस्तूरबा और हिंदूराव अस्पताल के डॉक्टरों के साथ पिछले कई महीनों से ऐसा ही हो रहा है।
 
दिल्ली के सिविल लाइंस इलाक़े में स्थित हिंदूराव अस्पताल के डॉक्टरों को पिछले चार महीने से और दरियागंज स्थित कस्तूरबा अस्पताल के डॉक्टरों को पिछले तीन महीने से वेतन नहीं मिला है।
 
ये दोनों ही अस्पताल उत्तर दिल्ली नगर निगम यानी एनडीएमसी के अंतर्गत आते हैं। बार-बार शिकायत करने के बाद कोई सुनवाई न होने पर रेज़िडेंट डॉक्टर्सों के संगठन ने अब अस्पताल प्रशासन को चिट्ठी लिखकर सामूहिक रूप से इस्तीफ़ा देने की चेतावनी दी है।
 
हिंदूराव हॉस्पिटल में रेज़िडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर अभिमन्यु सरदाना ने बीबीसी को बताया कि उन्हें अपना आख़िरी वेतन 15 फ़रवरी को मिला था। उनका कहना है कि एनडीएमसी के अस्पतालों में सही समय पर तनख़्वाह न मिलना आम बात है।
 
उन्होंने बताया, “मैंने पिछले साल जनवरी से इस हॉस्पिटल में काम करना शुरू किया था और तब से लेकर अब तक वेतन की दिक़्क़त अक्सर आती रही है। कभी डेढ़ महीने पर पैसे मिलते हैं, कभी दो महीने पर। एक-दो महीने तक तो हम किसी तरह काम चला लेते हैं लेकिन चार महीने तक एक भी पैसा न मिलने से हमें बहुत मुश्किल हो रही है।”
 
'सैलरी नहीं मिली तो इस्तीफ़ा देने पर मजबूर होंगे'
चार महीने से वेतन न मिलने के बावजूद अस्पताल के डॉक्टर कोरोना वायरस संक्रमण के ख़तरों के बीच लगातार काम कर रहे हैं।
 
हिंदूराव हॉस्पिटल में न सिर्फ़ डॉक्टरों बल्कि नर्सों और अन्य स्वास्थकर्मियों को भी वेतन नहीं मिल रहा है। डॉक्टर अभिमन्यु ने बताया कि यहां 500 से ज़्यादा स्वास्थ्यकर्मी हैं। डॉक्टरों को वेतन न मिलने का कारण फ़ंड की कमी बताया गया है।
 
डॉक्टर अभिमन्यु बताते हैं, “जब भी हम प्रशासन के पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं, वो यही कहते हैं कि फ़ंड रिलीज़ नहीं हो रहा है।”
 
जामा मस्जिद के पास स्थित कस्तूरबा हॉस्पिटल के डॉक्टर भी कुछ ऐसी ही परेशानियों का सामना कर रहे हैं। उन्हें पिछले तीन महीने से वेतन नहीं मिला है। यहां भी रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने प्रशासन को चिट्ठी लिखी है और चेताया है कि अगर 16 जून तक वेतन न मिला तो उन्हें इस्तीफ़ा देने पर मजबूर होना पड़ेगा।
 
इस अस्पताल के रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर सुनील कुमार की भी शिकायत है कि एमसीडी के सभी अस्पतालों ख़ासकर एनडीएमसी के अस्पतालों के साथ अक्सर फ़ंड की समस्या रहती है।
 
उन्होंने बीबीसी से बताया, “पिछले तीन-चार वर्षों से हो रहा है कि एनडीएमसी के अस्पतालों में डॉक्टरों की तनख़्वाह देरी से आती है। एक-दो महीने तक को हम धीरज रख लेते हैं लेकिन इस बार हमारे लिए भी चीज़ें मुश्किल हो रही हैं।”
 
'डॉक्टर नहीं, बंधुआ मज़दूर'
डॉक्टर सुनील कहते हैं कि चूंकि अभी कोरोना महामारी का दौर है, इसलिए हमें वेतन न मिलने की ज़्यादा चर्चा हो रही है लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान होना चाहिए।
 
वो कहते हैं, “एक तरफ़ आप डॉक्टरों को कोरोना वॉरियर्स कहते हैं और दूसरी तरफ़ देश की राजधानी दिल्ली में उन्हें ठीक से तनख़्वाह तक नहीं दे पा रहे हैं। ये कितनी शर्म की बात है।”
 
फ़ंड की कमी का असर अस्पतालों के इंफ़्रास्ट्रक्चर और मरीज़ों को मिलने वाली सुविधाओं पर भी पड़ रहा है।
 
डॉक्टर अभिमन्यु बताते हैं, “अस्पताल में ज़रूरी सामानों की कमी है। इसका असर मरीज़ों और हमारे, दोनों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसी का नतीजा है कि हिंदूराव हॉस्पिटल में 38-40 के क़रीब स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं।”
 
कस्तूरबा और हिंदूराव, दोनों ही अस्पतालों के स्वास्थ्यकर्मी कई महीनों से वेतन न मिलने के कारण तनाव और ग़ुस्से में हैं। हालांकि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि अगले एक हफ़्ते में वेतन मिल जाएगा।
 
डॉक्टर सुनील कुमार कहते हैं, “अब तो हमें ये फ़ीलिंग भी नहीं आती कि हम डॉक्टर हैं। ऐसा लगता है जैसे हम सब बंधुआ मज़दूर हैं। किसी से आप काम कराएं और पैसे भी न दें तो ये बंधुआ मज़दूरी ही तो हुई।”
 
वो बताते हैं कि कई बार उन्होंने काम बंद करने और धरना देने के बारे में भी सोचा लेकिन फिर डॉक्टरों ने आपस में ही मिलकर तय किया कि महामारी के दौर में लोगों को उनकी ज़रूरत है।
 
वो कहते हैं, “मौजूदा संकट को देखते हुए हमने बिना सैलरी के काम जारी रखा है लेकिन सरकारों को समझना होगा कि हमारा भी घर-परिवार है और हमें भी घर चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है।”
 
डॉक्टर सुनील के मुताबिक़ फ़ंड की कमी का असर फ़िलहाल कस्तूरबा अस्पताल की सेवाओं पर नहीं पड़ा है लेकिन उन्हें डर है कि चीज़ें ऐसी ही रहीं तो हालात बदलते देर नहीं लगेगी।
 
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने भी इस बारे में एक बयान जारी कर चिंता जताई है। बयान में कहा गया है, “एनडीएमसी के तहत आने वाले कस्तूरबा अस्पताल, हिंदू राव अस्पताल और डिस्पेंसरी से जुड़े रेज़िडेंट डॉक्टरों को वेतन नहीं दिए जाने से हमारा संगठन चिंतित है। वे पिछले तीन महीने से इस बेहद तनावपूर्ण माहौल में बिना किसी स्वार्थ और पूरी निष्ठा के साथ अपना काम कर रहे हैं।”
 
एनडीएमसी का क्या कहना है?
नॉर्थ एमसीडी स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष जयप्रकाश ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उनकी दोनों अस्पतालों के डॉक्टरों से गुरुवार और शुक्रवार को मीटिंग हुई है।
 
उन्होंने कहा, “हमने उन्हें भरोसा दिलाया है कि अगले हफ़्ते उनकी पूरी तनख़्वाह आ जाएगी और आगे भी उन्हें नियमित रूप से वेतन मिलता रहेगा।”
 
फ़ंड की कमी का कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “अभी हालात सामान्य नहीं हैं। लॉकडाउन की वजह से हमारा रेवेन्यू लगभग ठप हो गया है। दिल्ली सरकार से मिलने वाला फ़ंड भी 25 फ़ीसदी ही रह गया है। लेकिन हम जल्दी ही डॉक्टरों की समस्या का समाधान कर देंगे।”
 
एनडीएमसी के अस्पतालों में वेतन की अनियमितता इतनी आम क्यों है?
 
इस सवाल के जवाब में जयप्रकाश ने कहा, “एमसीडी का बंटवारा होने के बाद एनएमसीडी ही ऐसा है जिसके पास चार बड़े अस्पताल हैं। इसके कारण हमें लगभग 1,000 करोड़ का अतिरिक्त ख़र्च मैनेज करना होता है। हम बिना टैक्स और फ़ीस बढ़ाए अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।”
 
इससे पहले पीतमपुरा स्थित भगवान महावीर हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमण के शिकार डॉक्टरों के क्वारंटीन पर जाने की वजह से उनके वेतन में कटौती की बात सामने आई थी। इतना ही नहीं, उन्हें एक्स्ट्रा ड्यूटी करके क्वारंटीन में छूटी ड्यूटी पूरा करने के निर्देश दिए गए थे।

हालांकि डॉक्टरों के विरोध और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के दख़ल के बाद फ़ैसला पटल दिया गया। स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन न मिलने की शिकायतों का सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लिया है।
 
अदालत ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा कि इस समय डॉक्टर युद्ध के दौर में सैनिकों की तरह हैं, इसलिए सरकार उन्हें नाराज़ न करे।
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस मामले में अदालत को दख़ल देने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए। सरकारें आगे बढ़कर स्वास्थ्यकर्मियों की सुविधा का ध्यान रखें।”
ये भी पढ़ें
आज का इतिहास : भारतीय एवं विश्व इतिहास में 14 जून की प्रमुख घटनाएं