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Last Modified: मंगलवार, 16 अप्रैल 2019 (14:20 IST)

शोरूम में कैरी बैग के लिए पैसे देते हैं, तो न दें

शोरूम में कैरी बैग के लिए पैसे देते हैं, तो न दें | carry bags
- कमलेश 
 
किसी शोरूम में सामान खरीदने के बाद जब आप काउंटर पर जाते हैं तो अक्सर कैरी बैग खरीदने के लिए कहा जाता है। आप कभी 3 या 5 रुपये देकर ये बैग खरीद लेते हैं या कभी इनकार करते हुए ऐसे ही सामान ले जाते हैं। लेकिन, चंड़ीगढ़ में एक शख़्स ने बाटा के शोरूम से 3 रुपए में बैग तो खरीदा पर उन्हें इसके बदले में 4000 रुपए मुआवज़े में मिले।
 
 
अक्सर शोरूम में सामान रखने के कैरी बैग के लिए 3 से 5 रुपए लिए जाते हैं। अगर आप कैरी बैग खरीदने से इनकार करते हैं तो आपको सामान के लिए किसी भी तरह का बैग नहीं दिया जाता।
 
 
चंडीगढ़ के रहने वाले दिनेश प्रसाद रतुड़ी ने 5 फरवरी, 2019 को बाटा के शोरूम से 399 रुपए में जूते खरीदे थे। जब उनसे काउंटर पर कैरी बैग के लिए पैसे मांगे गए तो उन्होंने पैसे देने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि कैरी बैग देना कंपनी की जिम्मेदारी है।
 
 
हालांकि, आखिर में कोई विकल्प न होने पर उन्हें बैग खरीदना पड़ा। कैरी बैग सहित उनका बिल 402 रुपए बन गया। इसके बाद दिनेश ने चंडीगढ़ में जिला स्तरीय उपभोक्ता फोरम में इसकी शिकायत की और शुल्क को गैर-वाजिब बताया।
 
 
इस शिकायत पर सुनवाई के बाद उपभोक्ता फोरम ने दिनेश प्रसाद के हक़ में फ़ैसला सुनाया। फोरम ने कहा कि उपभोक्ता से ग़लत तरीके से 3 रुपए लिए गए हैं और बाटा कंपनी को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के लिए दिनेश प्रसाद रतुड़ी को 3000 रुपए मुआवज़े के तौर पर देने होंगे।
 
 
साथ ही मुकदमे के खर्चे की भरपाई के लिए अलग से 1000 रुपए और देने होंगे। बाटा कंपनी को दंडात्मक जुर्माने के तौर पर उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में 5000 रुपए जमा कराने का भी आदेश दिया गया है। उपभोक्ता फोरम ने बाटा कंपनी को ये भी आदेश दिया कि वो सभी ग्राहकों को निशुल्क कैरी बैग दे और व्यापार के अनुचित तरीकों का प्रयोग बंद करें।
 
 
लेकिन, कई उपभोक्ता सामान के अलावा कैरी बैग के लिए भी भुगतान कर देते हैं। रकम बहुत छोटी होती है इसलिए कोई कोर्ट नहीं जाता। पर अब इस मामले का उपभोक्ता के पक्ष में आना कई तरह से महत्वपूर्ण बन गया है।
 
 
बैग के ज़रिए प्रचार
इस आदेश में एक खास बात ये है कि उपभोक्ता फोरम ने कैरी बैग पर लिखे बाटा कंपनी के नाम पर आपत्ति जताई है। दिनेश प्रसाद के वकील देवेंद्र कुमार ने बताया, ''हमने कोर्ट में कहा कि इस बैग पर बाटा कंपनी का नाम लिखा है और अगर हम इसे लेकर जाते हैं तो ये कंपनी का प्रचार होगा। एक तरह से कंपनी अपने प्रचार के लिए हमसे पैसे ले रही है।''
 
 
उपभोक्ता फोरम ने शिकायतकर्ता की इस दलील से सहमति जताई और इसे प्रचार का ही एक तरीका बताया। फोरम ने अपने आदेश में लिखा, ''शिकायत में बताए गए कैरी बैग को हमने देखा। उस पर बाटा का विज्ञापन 'बाटा सरप्राइज़िंगली स्टाइलिश' लिखा हुआ है। यह विज्ञापन दिखाता है कि बाटा स्टाइलिश है और ये उपभोक्ता को विज्ञापन एजेंट के तौर पर इस्तेमाल करता है।''
 
 
उपभोक्ता अधिकार कार्यकर्ता पुष्पा गिरिमाजी भी मानती हैं कि ये कंपनी की जिम्मेदारी है कि वो उपभोक्ताओं को कैरी बैग मुफ़्त दे। वह कहती हैं, ''अगर हम कुछ सामान खरीदते हैं तो उसे ऐसे ही हाथ में तो ले जा नहीं सकते, तो बैग देना जरूरी है। फिर जब हम इतना सामान खरीद रहे हैं तो दुकानदार की एक जिम्मेदारी भी बनती है। उसके लिए पैसा लेना बिल्कुल गलत है।''
 
 
वह इसे कंपनियों की कमाई का एक ज़रिया बताती हैं। पुष्पा गिरिमाजी कहती हैं, ''जब से प्लास्टिक बैग पर रोक लगाई गई है तब से कंपनियों ने पैसे देकर कैरी बैग देने का चलन शुरू कर दिया है। अगर आप सब्जी खरीदने जाते हैं या छोटा-मोटा सामान लेते हैं तो इसके लिए अपना बैग ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन महंगे सामानों में बैग के लिए पैसे लेना ठीक नहीं है। ये पैसे कमाने का एक तरीका बन गया है।''
 
 
हालांकि, बाटा ने शिकायत पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि उसने ऐसा पर्यावरण सुरक्षा के मकसद से किया है। लेकिन, उपभोक्ता फोरम का कहना था कि अगर कंपनी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ऐसा कर रही थी तो उसे ये बैग मुफ़्त देना चाहिए था।
 
 
कंपनी का नाम न लिखा हो तो
इस मामले में कैरी बैग पर कंपनी का नाम लिखा होने के चलते ये प्रचार का मामला बना। अगर बैग पर कंपनी का नाम न हो और सादा कागज हो तो क्या पैसे लिए जा सकते हैं।
 
 
पुष्पा गिरिमाजी ऐसे में भी पैसे लेना गलत मानती हैं। वह कहती हैं, ''कई शोरूम ऐसे होते हैं जहां अंदर बैग ले जाने की मनाही होती है। इससे उलझन रहती है कि कहां बैग लेकर जाएं और कहां नहीं। कई बार लोग साथ में बैग लेकर चलते भी नहीं है। इसलिए बैग मुफ़्त में ही देने चाहिए।''
 
 
साथ ही वो कहती हैं कि ये बहुत अच्छी बात है कि किसी उपभोक्ता ने ये कदम उठाया। इसका असर दूसरी कंपनियों पर भी पड़ सकता है। किसी अन्य मामले में भी इसका संदर्भ लिया जा सकेगा। इससे ये साबित हुआ है कि कैरी बैग के लिए पैसे देना जरूरी नहीं है।
 
 
इस पर रोक कैसे लगे
पुष्पा गिरिमाजी कहती हैं कि कंपनियों को इससे रोकने के लिए कोर्ट के आदेश के साथ-साथ लोगों की आपत्ति की भी जरूरत है। वह कहती हैं, ''अगर लोग शोरूम में जाकर ये पूछना शुरू करेंगे कि वो कैरी बैग देते हैं या नहीं और इसी आधार पर शॉपिंग करेंगे तो कंपनियों पर असर जरूर पड़ेगा। हालांकि, कोर्ट के ऐसे फैसले भी काफी असर डालेंगे।''
 
 
वहीं, दिनेश प्रसाद रतुड़ी के मामले में बाटा कंपनी राज्य स्तर पर भी अपील कर सकती है। एडवोकेट दिनेश प्रसाद ने बताया, ''अगर कंपनी मामले को आगे ले जाती है तो हम भी लड़ेंगे। पर अभी उपभोक्ता फोरम के आदेश से हम खुश हैं।''
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