- रेहान फ़ज़ल
भारत पाकिस्तान युद्ध के आखिरी दिन फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट नंदा करियप्पा, कुक्के सुरेश और एएस सहगल को कसूर क्षेत्र में पाकिस्तानी ठिकानों पर बमबारी करने का मिशन दिया गया। करियप्पा इस मिशन को लीड कर रहे थे।
जब इन तीनों ने पहला चक्कर लगाया तो सहगल के विमान को विभानभेदी तोपों का गोला लगा और वो अभियान से अलग हो गए। करियप्पा ने कुक्के के साथ हमला करना जारी रखा। जब वो लक्ष्य के ऊपर छठा पास ले रहे थे कि करियप्पा का हंटर ग्राउंड फ़ायर की चपेट में आ गया।
सुरेश का ध्यान गया कि करियप्पा के विमान से लपटें निकल रही हैं। करियप्पा ने विमान को ऊपर उठाकर उस पर नियंत्रण करने की कोशिश की लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ। इस बीच कुक्के उन्हें दो बार जहाज़ से इजेक्ट करने की सलाह दे चुके थे, लेकिन करियप्पा ने उसे अनसुना कर दिया था।
कुक्के तीसरी बार चिल्लाए, "कैरी इजेक्ट!" करियप्पा ने इस बार इजेक्शन का बटन दबा दिया। उसके एक क्षण बाद ही हंटर आग के गोले में बदला और भारतीय इलाके में ज़मीन पर जा गिरा। लेकिन करियप्पा जिस इलाके पर गिरे उस पर पाकिस्तान का कब्ज़ा था। उस समय 9 बज कर 4 मिनट हुए थे क्योंकि ज़मीन से टकराने की वजह से उनकी घ़ड़ी उसी समय रुक गई थी।
रीढ़ की हड्डी पर चोट : करियप्पा अपने नितंबों के बल ज़मीन पर गिरे जिसकी वजह से उनकी रीढ़ की हड्डी पर चोट लगी। जब पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें घेरकर अपने हाथ ऊपर करने के लिए कहा तो वो ऐसा नहीं कर पाए। रीढ़ की हड्डी में लगी चोट के कारण उनका पूरा शरीर पंगु बन चुका था।
करियप्पा याद करते हैं, "लगभग बेहोशी की हालत में मुझे लगा कि मुझे भारतीय सैनिकों ने घेर रखा है। तभी मुझे कुछ दूर पर गोले फटने की आवाज़ सुनाई दी। तब पाकिस्तानी सेना के जवान ने मुझसे कहा ये तुम्हारी तोपें हैं जो हमारे ऊपर आग उगल रही हैं।
'वो भारतीय वायु सेना के सातवें और आखिरी पायलट थे जिन्हें 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने बंदी बनाया था। बंदी बनने के बाद पाकिस्तानी अफ़सर ने जब उनसे सवाल पूछने शुरू किए तो उन्होंने तोते की तरह अपना नाम, रैंक और नंबर बता दिया। तभी पाकिस्तानी अफ़सर ने उनसे पूछा क्या आप का संबंध फ़ील्ड मार्शल करियप्पा से है?
अयूब का करियप्पा को संदेश : करियप्पा भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष फ़ील्डमार्शल करियप्पा के पुत्र थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ाँ विभाजन से पहले करियप्पा के अंडर काम कर चुके थे और उनको बहुत मानते थे। नंदा करियप्पा की पहचान पता चलने पर रेडियो पाकिस्तान ने उसी दिन घोषणा की कि फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट नंदा करियप्पा उनकी हिरासत में हैं और सुरक्षित हैं।
अयूब ने भारत में पाकिस्तानी उच्चायुक्त के ज़रिए फ़ील्ड मार्शल करियप्पा से संपर्क साधकर उनके बेटे के सुरक्षित होने की ख़बर उन्हें दी। उन्होंने ये भी पेशकश की कि अगर वो चाहें तो उनके बेटे को छोड़ा जा सकता है।
करियप्पा ने विनम्रता से इस ऑफ़र को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने पाकिस्तानी उच्चायुक्त से कहा, "नंदू मेरा नहीं इस देश का बेटा है। उसके साथ वही बर्ताव किया जाए जो दूसरे युद्धबंदियों के साथ किया जा रहा है। अगर आप उसे छोड़ना ही चाहते हैं तो सभी युद्धबंदियों को छोड़िए।"
स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट का कार्टन : इस बीच नंदू करियप्पा को ये अंदाज़ा नहीं था कि उनके सुरक्षित होने की ख़बर भारत पहुंच चुकी है। एयरमार्शल करियप्पा याद करते हैं, "पाकिस्तानी मुझे भारत वापस भेजने का लालच दे कर मुझसे सैनिक जानकारियाँ उगलवाने की कोशिश करते रहे। जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो वो मुझे दो अन्य लोगों के साथ इलाज के लिए लुइयानी ले आए। हांलाकि वो मुझे यातना देने की धमकी देते रहे लेकिन उन्होंने मेरे साथ कोई अभद्रता नहीं की। ये जरूर है कि उन्होंने मुझे दस दिनों तक पूरे एकांतवास में रखा।"
इस बीच पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल मूसा उन्हें देखने अस्पताल आए। उन्होंने उनसे पूछा कि वो उनके लिए क्या कर सकते है? करियप्पा ने इच्छा प्रकट की कि उन्हें दूसरे भारतीय युद्धबंदियों के साथ रख दिया जाए। इसके बाद करियप्पा को रावलपिंडी शिफ़्ट कर दिया गया जहाँ पहले से ही 57 भारतीय युद्धबंदी मौजूद थे।
इससे पहले राष्ट्रपति अयूब की पत्नी और उनका बड़ा बेटा अख़्तर अयूब उन्हें देखने रावलपिंडी के सीएमएस अस्पताल पहुंचे। एयरमार्शल करियप्पा याद करते हैं, "वो मेरे लिए स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट का एक कार्टन और वोडहाउज़ का एक उपन्यास ले कर आए थे। उन्होंने मेरा हालचाल पूछा और दिलासा दिया कि जल्दी ही मुझे छोड़ दिया जाएगा।"
इस बीच पाकिस्तान का एक जेसीओ करियप्पा से आ कर बोला, "ख़बर है कि कल रात राष्ट्रपति अयूब ने आपको ऐवाने सद्र में रात्रि भोज पर बुलाया था।" करियप्पा ने हंसते हुए इसका खंडन किया।
आशा पारेख का तोहफ़ा : इस बीच भारतीय युद्धबंदियों को रेड क्रास की तरफ से कई तरह के उपहार भेजे जाने लगे। करियप्पा को अभिनेत्री आशा पारेख की तरफ से एक पैकेट मिला जिसमें कई तरह के मेवे थे। 1966 के नव वर्ष की पूर्व संध्या पर जेल का कमांडेंट उनके लिए स्वादिष्ट चिकन करी बनाकर लाया।
कुछ दिनों बाद वहाँ तैनात एक हिंदू सफ़ाई कर्मचारी ने उन्हें चुपके से बताया कि जल्द ही उनकी नाप लेने एक दर्ज़ी आने वाला है। दर्ज़ी पहुंचा और उन्होंने उनके लिए जैतूनी रंग की कमीज़, पतलून और वेस्ट सिल कर दी। उन्हें एक नया पुल ओवर भी दिया गया। असल में ये उन को वापस भारत भेजने की तैयारी थी।
एक दिन अचानक उनकी आंखों पर पट्टी बांधी गई और पेशावर ले जाया गया। वहां से उन्हें उस फोकर एफ़ 27 विमान पर बैठा दिया गया जो भारत यात्रा पर गए पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल मूसा को लेने दिल्ली जा रहा था। 9 बजकर 4 मिनट पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की। चार महीने पहले ठीक इसी समय उनके विमान को नीचे गिराया गया था।
पीठ में लगी चोट की वजह से वो इसके बाद कभी भी फ़ाइटर विमान नहीं उड़ा पाए। वो हेलिकॉप्टर उड़ाने लगे। 1971 के युद्ध में उन्होंने हासिमारा में हैलिकॉप्टर की 111 यूनिट को कमांड किया और वो भारतीय वायुसेना के एयरमार्शल बनकर रिटायर हुए।