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Written By सलमा जैदी

मीडिया और लोकहित: चोली दामन का साथ

मीडिया और लोकहित
हाल ही में एक बहस में हिस्सा लेने का बुलावा आया। विषय था, मीडिया लोकहित के कितना करीब है। चर्चा में गणमान्य पत्रकार भी शामिल थे और पत्रकारिता कॉलेज के छात्र-छात्राएँ भी।

अधितकर लोगों का तर्क था कि मीडिया पूरी तरह अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहा है। मीडिया वह परोस रहा है जो अशोभनीय है, समाज को नुकसान पहुँचाने वाला है और अश्लीलता के दायरे में आता है।

सवाल यह उठता है कि मीडिया को इसके लिए प्रोत्साहित करने वाला कौन है? आप और हम जैसे दर्शक या पाठक ही न। मीडिया वह दिखाता है जो लोग देखना चाहते हैं। लोग वह देखते हैं जो मीडिया दिखाता है। यानी कैच 22 की स्थिति। चित भी मेरी, पट भी मेरी।

बहस में हिस्सा लेने वाले कुछ लोगों को एतराज था टीवी धारावाहिकों पर। यानी सास-बहू सीरियल, रियलिटी शो आदि। लेकिन अगर सोचा जाए तो क्या मनोरंजन जीवन का एक अहम हिस्सा नहीं है?

क्या सिर्फ राजनीतिक चर्चा और समाज को आईना दिखाने वाले शो दिन भर के थके-हारे, काम के बोझ से छुटकारा पाने के लिए हलके-फुलके कार्यक्रम देखने के इच्छुक दर्शकों के लिए ज्यादती नहीं हैं?

लेकिन यह भी सच है कि मनोरंजन ही सब कुछ नहीं है। अगर हमें अपने आसपास या दुनिया के अन्य हिस्सों में घटने वाली बातों की जानकारी ही नहीं है या इस सूचना तक पहुँच ही नहीं है तो फिर हम में और कुएँ के मेंढक में क्या फर्क रहा।

मेरे कहने का मतलब यह है कि संतुलन जरूरी है। मीडिया अगर इस बात का ध्यान रखे तो बस यह सोने पर सुहागा है। बहस में हिस्सा लेने आए विद्यार्थियों ने एक स्वर में यही कहा कि मीडिया को करियर के रूप में चुनने का उनका उद्देश्य था सशक्तीकरण।

यानी कल वे चाहें तो समाज का रुख़ बदलने की क्षमता रख सकते हैं। उनके आगे हर वह व्यक्ति जवाबदेह होगा जो जनहित के विपरीत काम कर रहा है।

यह एक अच्छा संकेत है और पत्रकारों की भावी पीढ़ी से कई अपेक्षाएँ जगाता है। निजी मीडिया पर तरह-तरह के दबाव हैं इसमें कोई शक नहीं। स्पॉन्सरशिप, विज्ञापन, टीआरपी और सब से बढ़कर प्रतिस्पर्धा। यानी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़।

इस समय जरूरत है एक ट्रेंड सेटर की, एक पथ-प्रदर्शक की। एक ऐसा मीडिया चैनेल जो अपने दायित्व को समझे और दर्शकों के हर वर्ग का ध्यान रखे।

अगर इसे आप अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना न कहें, तो मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहूँगी कि बीबीसी ने इस परंपरा का साथ निभाने की पूरी कोशिश की है। और हमसे कोई चूक होती है तो हमारा कान पकड़ने के लिए आप जैसे जागरूक पाठक तो हैं ही।